नमस्कार दोस्तों ...
आज हम आपको इस पोस्ट में बताएंगे की कैसे भगवन श्री कृष्ण की मृत्यु हुयी , श्री कृष्ण की मृत्यु कहाँ हुई और कैसे और क्यों ख़त्म हो गया श्री कृष्ण का पूरा यदुवंश ?
दोस्तों आप महाभारत के युद्ध के बारे में तो जानते ही होंगे यह युद्ध १८ दिन चला था और इस युद्ध में समस्त कौरव वंश का नाश हुआ , और दूसरे पक्ष यानि पांडव पक्ष के भी पांचो पांडव पुत्रो को छोड़कर अधिकांश लोग मारे गए , लेकिन इस युद्ध के कारण इस युद्ध के पश्चात एक और वंश का अंत हुआ और वो वंश था श्री कृष्ण जी का यदुवंश ,
ये सब हुआ था गांधारी के श्राप के कारण जो उन्होंने श्री कृष्ण को दिया था ,
दोस्तों बात उस समय की है जब युद्ध के पश्चात युधिस्टर का राज तिलक हो रहा था तब कोरवो की माता गांधारी ने श्री कृष्ण को महाभारत के युद्ध का दोषी ठहराया और श्री कृष्ण को श्राप दिया की जिस प्रकार कोरवो के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार समस्त यदुवंश का भी नाश होगा ,
गांधारी के श्राप से विनाशकाल आने के कारण श्री कृष्ण द्वारिका लौटकर यदुवंशियो को लेकर एक प्रयास क्षेतर में आ गए थे वे अपने साथ अन्न का भंडार भी ले आये थे , यही पर श्री कृष्ण ने ब्राह्मणो को अन्न दान देकर यदुवंशियो को मर्त्यु का इंतज़ार करने को कहाँ था ,
महाभारत के कुछ दिनों बाद सकीकी और कृतवर्मा में विवाद हो गया और सकीकी ने गुस्से में आकर कृतवर्मा का सर काट दिया उससे उनमे आपसी विवाद भड़क उठा और वे दो समूहों में विभाजित होकर एक दूसरे का संघार करने लगे ,
इस लड़ाई में श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन और उनके मित्र साक़ीकी के साथ सभी यदुवंशी मारे गए थे , केवल बब्रु और दारुक ही बचे थे , यदुवंश के नाश के बाद श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम समुन्दर तट पर बैठ गए और एकाग्रचित होकर परमात्मा में लीन हो गए इस प्रकार शेषनाग के अवतार बलराम ने देह त्यागी और सावधाम लोट गए ,
दोस्तों बलराम के देह त्यागने के बाद जब श्री कृष्ण एक दिन पीपल के निचे दयँ की मुद्रा में बैठे हुए थे तब उस स्थान पर एक जरा नाम का बहेलिया आया हुआ था , बहेलिया एक शिकारी था और वो हिरन का शिकार करना चाहता था , जरा को दूर से श्री कृष्ण के पैर का तलवा हिरन के मुख के सामान दिखाई दिया ,
बहेलिये ने बिना कोई विचार किये वही से एक तीर छोड़ दिया जोकि श्री कृष्ण के तलवे में जाकर लगा , जब वो पास गया तो उसने देखा की उसने श्री कृष्ण के पेरो में तीर मार दिया है इसके बाद बहेलिये को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो माफ़ी मांगने लगा ,
इसके बाद श्री कृष्ण ने बहेलिये जरा से कहाँ की तू दर मत तूने वही किया जो में चाहता था अब तू मेरी आज्ञा से सवर्ग को प्राप्त करेगा ,
बहेलिये के जाने के बाद वह सशरी कृष्ण का सारथि दारुक पहुंच गया तब श्री कृष्ण ने दारुक को कहाँ की वो द्वारका जाकर सभी को ये बताए की पूरा यदुवंश समाप्त हो चूका है और कृष्ण भी बलराम के साथ स्वधाम लोट चुके है इसलिए अब सभी द्वारका को छोड़ दे क्योकि ये नगरी अब जलमगन होने वाली है अतः मेरे माता पिता और मेरे सभी प्रिय जन इंदरप्रस्थ ( दिल्ली ) चले जाए , श्री कृष्ण का सन्देश लेकर दारुक वहा से चला गया इसके बाद उस स्थान पर सभी देवी देवता , यक्ष ,गन्धर्व, आये और उन्होंने श्री कृषणकी आराधना की जिसके बाद श्री कृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए और वो शरीर के साथ ही अपने धाम को लोट गए ,
श्रीमद भगवद गीता के अनुसार जब श्री कृष्ण के स्वधाम लोट जाने की सुचना उनके परिजनों को लगी तो उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए , इसके बाद अर्जुन ने समस्त यदुवंश के लिए श्राद और पिंड दान किये और उसके बाद बचे हुए द्वारका वाशियो को लेकर अर्जुन इंदरप्रस्थ लोट गए ,
द्वारका वाशियो के वहा से निकलते ही श्री कृष्ण के निवास स्थान को छोड़कर समस्त द्वारका समुन्दर में डूभ गयी , इस तरह से श्री कृष्ण और समस्त यदुवंश के साथ साथ द्वारका का भी अंत हुआ ,
दो दोस्तों आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे जरूर बताए ,
दोस्तों हमे अपने सुझाव और शिकायत जरूर बताए , हम आपके हर सुझाव और शिकायत का स्वागत करते है ,
दोस्तों जानकारी अच्छी लगी हो तो ब्लॉग को फॉलो कीजिए ,
धन्यवाद .........
आज हम आपको इस पोस्ट में बताएंगे की कैसे भगवन श्री कृष्ण की मृत्यु हुयी , श्री कृष्ण की मृत्यु कहाँ हुई और कैसे और क्यों ख़त्म हो गया श्री कृष्ण का पूरा यदुवंश ?
दोस्तों आप महाभारत के युद्ध के बारे में तो जानते ही होंगे यह युद्ध १८ दिन चला था और इस युद्ध में समस्त कौरव वंश का नाश हुआ , और दूसरे पक्ष यानि पांडव पक्ष के भी पांचो पांडव पुत्रो को छोड़कर अधिकांश लोग मारे गए , लेकिन इस युद्ध के कारण इस युद्ध के पश्चात एक और वंश का अंत हुआ और वो वंश था श्री कृष्ण जी का यदुवंश ,
ये सब हुआ था गांधारी के श्राप के कारण जो उन्होंने श्री कृष्ण को दिया था ,
दोस्तों बात उस समय की है जब युद्ध के पश्चात युधिस्टर का राज तिलक हो रहा था तब कोरवो की माता गांधारी ने श्री कृष्ण को महाभारत के युद्ध का दोषी ठहराया और श्री कृष्ण को श्राप दिया की जिस प्रकार कोरवो के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार समस्त यदुवंश का भी नाश होगा ,
गांधारी के श्राप से विनाशकाल आने के कारण श्री कृष्ण द्वारिका लौटकर यदुवंशियो को लेकर एक प्रयास क्षेतर में आ गए थे वे अपने साथ अन्न का भंडार भी ले आये थे , यही पर श्री कृष्ण ने ब्राह्मणो को अन्न दान देकर यदुवंशियो को मर्त्यु का इंतज़ार करने को कहाँ था ,
महाभारत के कुछ दिनों बाद सकीकी और कृतवर्मा में विवाद हो गया और सकीकी ने गुस्से में आकर कृतवर्मा का सर काट दिया उससे उनमे आपसी विवाद भड़क उठा और वे दो समूहों में विभाजित होकर एक दूसरे का संघार करने लगे ,
इस लड़ाई में श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन और उनके मित्र साक़ीकी के साथ सभी यदुवंशी मारे गए थे , केवल बब्रु और दारुक ही बचे थे , यदुवंश के नाश के बाद श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम समुन्दर तट पर बैठ गए और एकाग्रचित होकर परमात्मा में लीन हो गए इस प्रकार शेषनाग के अवतार बलराम ने देह त्यागी और सावधाम लोट गए ,
दोस्तों बलराम के देह त्यागने के बाद जब श्री कृष्ण एक दिन पीपल के निचे दयँ की मुद्रा में बैठे हुए थे तब उस स्थान पर एक जरा नाम का बहेलिया आया हुआ था , बहेलिया एक शिकारी था और वो हिरन का शिकार करना चाहता था , जरा को दूर से श्री कृष्ण के पैर का तलवा हिरन के मुख के सामान दिखाई दिया ,
बहेलिये ने बिना कोई विचार किये वही से एक तीर छोड़ दिया जोकि श्री कृष्ण के तलवे में जाकर लगा , जब वो पास गया तो उसने देखा की उसने श्री कृष्ण के पेरो में तीर मार दिया है इसके बाद बहेलिये को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो माफ़ी मांगने लगा ,
इसके बाद श्री कृष्ण ने बहेलिये जरा से कहाँ की तू दर मत तूने वही किया जो में चाहता था अब तू मेरी आज्ञा से सवर्ग को प्राप्त करेगा ,
बहेलिये के जाने के बाद वह सशरी कृष्ण का सारथि दारुक पहुंच गया तब श्री कृष्ण ने दारुक को कहाँ की वो द्वारका जाकर सभी को ये बताए की पूरा यदुवंश समाप्त हो चूका है और कृष्ण भी बलराम के साथ स्वधाम लोट चुके है इसलिए अब सभी द्वारका को छोड़ दे क्योकि ये नगरी अब जलमगन होने वाली है अतः मेरे माता पिता और मेरे सभी प्रिय जन इंदरप्रस्थ ( दिल्ली ) चले जाए , श्री कृष्ण का सन्देश लेकर दारुक वहा से चला गया इसके बाद उस स्थान पर सभी देवी देवता , यक्ष ,गन्धर्व, आये और उन्होंने श्री कृषणकी आराधना की जिसके बाद श्री कृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए और वो शरीर के साथ ही अपने धाम को लोट गए ,
श्रीमद भगवद गीता के अनुसार जब श्री कृष्ण के स्वधाम लोट जाने की सुचना उनके परिजनों को लगी तो उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए , इसके बाद अर्जुन ने समस्त यदुवंश के लिए श्राद और पिंड दान किये और उसके बाद बचे हुए द्वारका वाशियो को लेकर अर्जुन इंदरप्रस्थ लोट गए ,
द्वारका वाशियो के वहा से निकलते ही श्री कृष्ण के निवास स्थान को छोड़कर समस्त द्वारका समुन्दर में डूभ गयी , इस तरह से श्री कृष्ण और समस्त यदुवंश के साथ साथ द्वारका का भी अंत हुआ ,
दो दोस्तों आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे जरूर बताए ,
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