कैसे हुयी पांडवो की मृत्यु ,? क्यों द्रोपदी सबसे पहले मर्त्यु को प्राप्त हुयी?, युधिस्टर के साथ जो कुत्ता सवर्ग गया वो कोन था ?
जानिए किस कारण हुयी थी द्रोपदी की मृत्यु सबसे पहले
बात उस समय की है जब पांडव सम्पूर्ण भारत की यात्रा के बाद मोक्ष प्राप्ति के लिए यात्रा करते हुवे हिमालय पर्वत पर जा पहोचे / वहां मीरु पर्वत के पार उन्हें स्वर्ग जाने का रास्ता मिल गया .
इस रस्ते के दौरान सबसे पहले द्रोपदी की मृत्यु हुयी और उसके बाद एक एक करके सरे पांडव की मोत हो गयी , जबकि युधिस्टर अकेले ऐसे पांडव थे जिन्हे सरीर के साथ ही स्वर्ग जाने की अनुमति मिली ,
अब सवाल ये उठता है की क्यों सिर्फ अकेले युधिस्टर को ही स्वर्ग जाने की अनुमति मिली और क्यों द्रोपदी की मृत्यु सबसे पहले हुयी ?
बात उस समय की है जब महृषि वेदव्यास की बात मान कर और राजपाट त्याग कर परलोक जाने का निश्चय किया युधिस्टर ने युइक्षु को बुलाकर उसे सम्पूर्ण राज का भार सौंप दिया और परीक्षित का राज्याभिषेक कर दिया ,
जैसे ही पांडव वहां से चले उनके साथ एक कुत्ता भी चलने लगा ,अनेक तीर्थो ,नदियों, समुद्रो की यात्रा करते करते पांडव आगे बढ़ते गए सभी पांडव लाल सागर तक आ गए अर्जुन ने लोभ वश अपना धनुष और अक्षय तरकस का त्याग नहीं किया था , तभी वहां अग्नि देव उपस्तिथ हुवे और उन्होंने अर्जुन से गांडीव धनुष और अक्षय तरकश का त्याग करने के लिए कहा , अर्जुन ने ऐसा ही किया पांडवो ने पृथ्वी की परिकर्मा पूरी करने की इच्छा से उत्तर दिशा की और यात्रा की यात्रा करते करते पांडव हिमालय तक पहोच गए,
हिमालय लांग कर पांडव आगे बड़े तो उन्हें बालू ,का समुंदर दिखाई पड़ा इसके बाद उन्होंने मेरु पर्वत के दर्शन किये
पांचो पांडव द्रोपदी और वह कुत्ता तेजी से आगे चलने लगे तभी द्रोपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ी , द्रोपदी को गिरा देख भीम ने युधिस्टर से पूछा की द्रोपदी ने तो कभी कोई पाप नहीं किया तो फिर क्या कारण है की वो निचे गिर पड़ी तब युधिस्टर ने बताया की द्रोपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थी इसीलिए उनके साथ ऐसा हुआ है , ऐसा कहकर युधिस्टर द्रोपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए /
थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गयी तब युधिस्टर ने सहदेव हे गिरने का कारण बताया की वो अपने जैसा विद्वान् किसी को नहीं समझते थे इसी दोष के कारण उन्हें गिरना पड़ा और उनकी मृत्यु हुयी है
कुछ दूर ही आगे बढ़े थे की नकुल भी गिर पड़े भीम के पूछने पर युधिस्टर ने बताया की नकुल अपने जैसा सूंदर किसी को नहीं मानते थे उन्हें अपने सूंदर होने पर बहुत घमंड था इसलिए उनकी मृत्यु हुयी है ,
थोड़ी देर के बाद अर्जुन भी गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गयी युधिस्टर ने बताया की अर्जुन को अपने प्राकर्म पर अभिमान था अर्जुन ने कहा था की एक ही दिन में वो सत्रुओ का नाश कर देंगे लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए अपने इस अभिमान के कारण ही अर्जुन की यह हालत हुयी और उनकी मृत्यु हो गयी ,
थोड़ा आगे बड़े ही थे की भीम भी गिर पड़े तब युधिस्टर ने भीम को बताया की वो बहुत खाते थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन और दिखावा करते थे इसीलिए आज उन्हें भूमि पर गिरना पड़ा और ऐसा सुनते सुनते ही भीम की भी मृत्यु हो गयी ,
ये कहकर युधिस्टर चल दिए सिर्फ वो कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा युधिस्टर कुछ ही दूर चले थे की देवराज इन्दर अपना रथ लेकर खुद युधिस्टर को लेने आये तो युधिस्टर ने कहा की मेरे भाई और द्रोपदी भी हमारे साथ चले ऐसी कोई व्यवस्था कीजिए तब इन्दर ने वो सब पहले ही सरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंच चुके है वो सरीर त्याग कर पहुंचे है लेकिन आप शरीर के साथ स्वर्ग में जाएंगे ,
इन्दर की बात सुनकर ये कुत्ता मेरा परम भक्त है इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए लेकिन इन्दर ने ऐसा करने से मना कर दिया काफी देर हो गयी लेकिन युधिस्टर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में छुपे हुए यमराज अपने वास्तविक रूप में आ गए , वो कुत्ता वास्तव में यमराज ही थे /
युधिस्टर को अपने धरम में स्थिर देख कर यमराज बहुत प्रस्सन हुए इसके बाद देवराज इन्दर युधिस्टर को अपने रथ में बिठा कर स्वर्ग ले गए ,
स्वर्ग जा कर उन्होंने देखा की वहां दुर्योधन पहले ही एक दिव्य सिंघासन पर बैठा है और वहां अन्य कोई नहीं है ये देखकर युधिस्टर ने देवताओ से कहा मेरे भाई और द्रोपदी जिस लोक में गए में भी वहां जाना चाहता हूँ मुझे उनसे अधिक उत्तम लोक की कामना नहीं है तब देवताओ ने उन्हें कहा की यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइये ये देवदूत आपको अपने भाइयो के पास पहुंचा देगा /
देवदूत युधिस्टर को ऐसे मार्ग पर ले गया जो बहुत खराब था उस मार्ग पर घोर अंडकार था चारो तरफ से बदबू आ रही थी इधर उधर मुर्दे दिखाई दे रहे थे बहुत भयानक पक्षी और घीड़ मंडरा रहे थे वहां की दुर्गंद से तंग आकर युधिस्टर ने देवदूत से पूछा की हमें इस मार्ग पर और कितनी दूर चलना है और उनके भाई कहा है ,
युधिस्टर की बात सुनकर देवदूत बोलै की मुझे देवताओ ने बोलै था की जब आप थक जाए तो आपको लौटा लाऊँ यदि आप थक गए है तो वापस चलते है युधिस्टर ने ऐसा ही करने का निश्चय किया /
जब युधिस्टर वापस लौटने लगे तो उन्हें दुखी लोगो की आवाज़ सुनाई दी वे युधिस्टर से कुछ देर वहीं रुकने के लिए कह रहे थे ,युधिस्टर ने उनसे उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया की वो कर्ण भीम अर्जुन नकुल सहदेव और द्रोपदी है .
तब युधिस्टर ने उस देवदूत से कहा की तुम देवताओ के पास लौट जाओ मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयो को सुख मिलता है तो में इस स्थान पर ही रहूँगा /
देवदूत ने ये बात जाकर देवराज इन्दर को बता दी , युधिस्टर को उस स्तन पर अभी कुछ ही समय बिता था की सभी देवता वहां आ गए , देवताओ के ातेहि वहां सुंगंधित हवा चलने लगी मार्ग पर भी प्रकाश हो गया तब देवराज ने युधिस्टर को बताया की आपने अश्वथामा के मरने की बात कह कर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विस्वास दिलाया था इसी कारण आपको भी छल से तुम्हे भी कुछ देर नरक के दरसन करने पड़े अब तुम मेरे साथ चलो वहां तुम्हारे भाई पहले से ही पहुंच गए है इस प्रकार युधिस्टर अपने भाइयो और द्रोपदी को वहां देख कर बहुत प्रस्सन हुवे .
दोस्तों ये थी कहानी जो की पांडवो के स्वर्ग पहोचने और उनकी मृत्यु होने के बारे में प्रचलित है.
बात उस समय की है जब पांडव सम्पूर्ण भारत की यात्रा के बाद मोक्ष प्राप्ति के लिए यात्रा करते हुवे हिमालय पर्वत पर जा पहोचे / वहां मीरु पर्वत के पार उन्हें स्वर्ग जाने का रास्ता मिल गया .
इस रस्ते के दौरान सबसे पहले द्रोपदी की मृत्यु हुयी और उसके बाद एक एक करके सरे पांडव की मोत हो गयी , जबकि युधिस्टर अकेले ऐसे पांडव थे जिन्हे सरीर के साथ ही स्वर्ग जाने की अनुमति मिली ,
अब सवाल ये उठता है की क्यों सिर्फ अकेले युधिस्टर को ही स्वर्ग जाने की अनुमति मिली और क्यों द्रोपदी की मृत्यु सबसे पहले हुयी ?
बात उस समय की है जब महृषि वेदव्यास की बात मान कर और राजपाट त्याग कर परलोक जाने का निश्चय किया युधिस्टर ने युइक्षु को बुलाकर उसे सम्पूर्ण राज का भार सौंप दिया और परीक्षित का राज्याभिषेक कर दिया ,
जैसे ही पांडव वहां से चले उनके साथ एक कुत्ता भी चलने लगा ,अनेक तीर्थो ,नदियों, समुद्रो की यात्रा करते करते पांडव आगे बढ़ते गए सभी पांडव लाल सागर तक आ गए अर्जुन ने लोभ वश अपना धनुष और अक्षय तरकस का त्याग नहीं किया था , तभी वहां अग्नि देव उपस्तिथ हुवे और उन्होंने अर्जुन से गांडीव धनुष और अक्षय तरकश का त्याग करने के लिए कहा , अर्जुन ने ऐसा ही किया पांडवो ने पृथ्वी की परिकर्मा पूरी करने की इच्छा से उत्तर दिशा की और यात्रा की यात्रा करते करते पांडव हिमालय तक पहोच गए,
हिमालय लांग कर पांडव आगे बड़े तो उन्हें बालू ,का समुंदर दिखाई पड़ा इसके बाद उन्होंने मेरु पर्वत के दर्शन किये
पांचो पांडव द्रोपदी और वह कुत्ता तेजी से आगे चलने लगे तभी द्रोपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ी , द्रोपदी को गिरा देख भीम ने युधिस्टर से पूछा की द्रोपदी ने तो कभी कोई पाप नहीं किया तो फिर क्या कारण है की वो निचे गिर पड़ी तब युधिस्टर ने बताया की द्रोपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थी इसीलिए उनके साथ ऐसा हुआ है , ऐसा कहकर युधिस्टर द्रोपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए /
थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गयी तब युधिस्टर ने सहदेव हे गिरने का कारण बताया की वो अपने जैसा विद्वान् किसी को नहीं समझते थे इसी दोष के कारण उन्हें गिरना पड़ा और उनकी मृत्यु हुयी है
कुछ दूर ही आगे बढ़े थे की नकुल भी गिर पड़े भीम के पूछने पर युधिस्टर ने बताया की नकुल अपने जैसा सूंदर किसी को नहीं मानते थे उन्हें अपने सूंदर होने पर बहुत घमंड था इसलिए उनकी मृत्यु हुयी है ,
थोड़ी देर के बाद अर्जुन भी गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गयी युधिस्टर ने बताया की अर्जुन को अपने प्राकर्म पर अभिमान था अर्जुन ने कहा था की एक ही दिन में वो सत्रुओ का नाश कर देंगे लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए अपने इस अभिमान के कारण ही अर्जुन की यह हालत हुयी और उनकी मृत्यु हो गयी ,
थोड़ा आगे बड़े ही थे की भीम भी गिर पड़े तब युधिस्टर ने भीम को बताया की वो बहुत खाते थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन और दिखावा करते थे इसीलिए आज उन्हें भूमि पर गिरना पड़ा और ऐसा सुनते सुनते ही भीम की भी मृत्यु हो गयी ,
ये कहकर युधिस्टर चल दिए सिर्फ वो कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा युधिस्टर कुछ ही दूर चले थे की देवराज इन्दर अपना रथ लेकर खुद युधिस्टर को लेने आये तो युधिस्टर ने कहा की मेरे भाई और द्रोपदी भी हमारे साथ चले ऐसी कोई व्यवस्था कीजिए तब इन्दर ने वो सब पहले ही सरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंच चुके है वो सरीर त्याग कर पहुंचे है लेकिन आप शरीर के साथ स्वर्ग में जाएंगे ,
इन्दर की बात सुनकर ये कुत्ता मेरा परम भक्त है इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए लेकिन इन्दर ने ऐसा करने से मना कर दिया काफी देर हो गयी लेकिन युधिस्टर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में छुपे हुए यमराज अपने वास्तविक रूप में आ गए , वो कुत्ता वास्तव में यमराज ही थे /
युधिस्टर को अपने धरम में स्थिर देख कर यमराज बहुत प्रस्सन हुए इसके बाद देवराज इन्दर युधिस्टर को अपने रथ में बिठा कर स्वर्ग ले गए ,
स्वर्ग जा कर उन्होंने देखा की वहां दुर्योधन पहले ही एक दिव्य सिंघासन पर बैठा है और वहां अन्य कोई नहीं है ये देखकर युधिस्टर ने देवताओ से कहा मेरे भाई और द्रोपदी जिस लोक में गए में भी वहां जाना चाहता हूँ मुझे उनसे अधिक उत्तम लोक की कामना नहीं है तब देवताओ ने उन्हें कहा की यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइये ये देवदूत आपको अपने भाइयो के पास पहुंचा देगा /
देवदूत युधिस्टर को ऐसे मार्ग पर ले गया जो बहुत खराब था उस मार्ग पर घोर अंडकार था चारो तरफ से बदबू आ रही थी इधर उधर मुर्दे दिखाई दे रहे थे बहुत भयानक पक्षी और घीड़ मंडरा रहे थे वहां की दुर्गंद से तंग आकर युधिस्टर ने देवदूत से पूछा की हमें इस मार्ग पर और कितनी दूर चलना है और उनके भाई कहा है ,
युधिस्टर की बात सुनकर देवदूत बोलै की मुझे देवताओ ने बोलै था की जब आप थक जाए तो आपको लौटा लाऊँ यदि आप थक गए है तो वापस चलते है युधिस्टर ने ऐसा ही करने का निश्चय किया /
जब युधिस्टर वापस लौटने लगे तो उन्हें दुखी लोगो की आवाज़ सुनाई दी वे युधिस्टर से कुछ देर वहीं रुकने के लिए कह रहे थे ,युधिस्टर ने उनसे उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया की वो कर्ण भीम अर्जुन नकुल सहदेव और द्रोपदी है .
तब युधिस्टर ने उस देवदूत से कहा की तुम देवताओ के पास लौट जाओ मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयो को सुख मिलता है तो में इस स्थान पर ही रहूँगा /
देवदूत ने ये बात जाकर देवराज इन्दर को बता दी , युधिस्टर को उस स्तन पर अभी कुछ ही समय बिता था की सभी देवता वहां आ गए , देवताओ के ातेहि वहां सुंगंधित हवा चलने लगी मार्ग पर भी प्रकाश हो गया तब देवराज ने युधिस्टर को बताया की आपने अश्वथामा के मरने की बात कह कर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विस्वास दिलाया था इसी कारण आपको भी छल से तुम्हे भी कुछ देर नरक के दरसन करने पड़े अब तुम मेरे साथ चलो वहां तुम्हारे भाई पहले से ही पहुंच गए है इस प्रकार युधिस्टर अपने भाइयो और द्रोपदी को वहां देख कर बहुत प्रस्सन हुवे .
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