विवाह बहुत पवित्र सम्बन्ध है ! यह एक ऐसा सूत्र है जहा ना केवल दो लोग अपितु दो परिवारों का सम्बन्ध होता है इसलिए ये दो विवाह करने वाले लोगों का उत्तरदायत्व बन जाता है की वो अपने जीवनसाथी के साथ उनके परिवार को भी खुश रखें और अपने कर्तव्यों को अच्छी प्रकार से निभाएं ! इस बंधन में घनिष्ठता ,मित्रता ,गहनता और सामंजस्य होना बहुत आवश्यक है ! पूरा जीवन साथ में व्यतीत करने के विचार से वर-वधु एक दूसरे का साथ निभाने का वचन देते है ! इसलिए ही यह कहा जाता है कि यदि जीवनसाथी अच्छा मिल जाये तो व्यक्ति जीवन की बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को भी
सहन करके उसे पार कर जाता है
परन्तु वही यदि इस सम्बन्ध में विश्वास , प्रेम और सामजस्य नहीं है तो दोनों का जीवन बहुत कठिन हो जाता है ! इसी कारण सनातन धर्म में कुंडली मिलाकर विवाह करने का प्रावधान है ! यह बात तो सत्य है कि व्यक्ति के ग्रह उसके जीवन के विषय में बहुत कुछ कहते है ! ग्रह नक्षत्रों के आधार पर ही दो लोगों की कुंडलियों को मिलाकर यह देखा जाता है कि दोनों के ग्रह भविष्य में किस प्रकार की परिस्थिति को जन्म दे सकते है ! व्यक्ति की कुंडली उसके राशि के नाम, समय ,जन्मस्थान आदि के आधार पर बनाई जाती है ! यहा तक कि कुंडली मिलान से यह भी पता लगाया जा सकता है कि लड़का और लड़की विवाह के पश्चात एक दूसरे के साथ भाग्यशाली और सुखद जीवन व्यतीत करेंगें या नहीं या फिर एक के ग्रह दूसरे के जीवन पर कैसा प्रभाव डाल सकते है और उसके परिणाम क्या होंगें ! तो आइये जानते है कि दोनों कि कुंडली में किन-किन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है ! विवाह के लिए दो लोगों के 36 में से कम से कम 18 गुणों का मिलना आवश्यक होता है ! विवाह से पहले जब दो लोगों कि कुंडली मिलाई जाती है तो लड़के कि कुंडली में बहु विवाह योग , विदुर योग और मार्ग भटकने का योग देखा जाता है ! बहु विवाह योग में कुंडली के द्वारा यह देखा जाता है कि लड़के के जीवन में एक से अधिक विवाह ना हो ! विदुर योग में देखा जाता है कि लड़के का उसकी पत्नी के साथ सम्बन्ध कैसा होगा ! दोनों के मध्य कोई क्लेश या भेदभाव के ग्रह तो नहीं बन रहे या फिर लड़की की अकाल मृत्यु तो नहीं हो जाएगी इन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है ! मार्ग भटकने का अर्थ है कि लड़का भविष्य में गलत आदतों जैसे जुंआ, शराब, असत्य , बुरे विचार आदि मार्गों का अनुसरण ना करें अन्यथा लड़की का जीवन बहुत कठिन होगा ! यदि कुंडली में इस प्रकार के दोष पाएं जातें है तो विवाह में कठिनाइयां आती है !
वहीँ लड़की कि कुंडली में वैधव्य योग ,विषकन्या योग और बहुपति योग देखे जातें है ! वैधव्य योग में देखा जाता है कि दोनों में से किसी की भी अकाल मृत्यु तो नहीं होंगी ! फिर यह देखा जाता है कि लड़की की कुंडली में विषकन्या योग ना हो क्योंकि इस योग के कारण लड़की सुखी नहीं रह पाती ! उसके जीवन में दुःख और दुर्भाग्य आते ही रहते है ! बहुपति योग में देखा जाता है की लड़की की कुंडली में एक से अधिक विवाह ना हो ! इसके समाधान के लिए लड़की का विवाह पहले किसी वृक्ष से करवाया जाता है जिससे इस दोष को निष्प्रभाव किया जा सके ! वर और कन्या की कुंडलियों के आधार पर कुल 8 गुणों का विश्लेषण किया जाता है ! इन गुणों की कर्म संख्या के आधार पर ही इनका अंक माना गया है जैसे पहले गुण का अंक 1 है दूसरे का 2 आदि और इस प्रकार सारे अंकों का योग 36 होता है ! इसलिए कुल मिलाकर 36 गुणों का आंकलन करके निर्धारित किया जाता है कि दोनों एक दूसरे से विवाह करने के योग्य है या नहीं ! तो आइये जानते है कि ये 8 गुण कौनसे है !
1 . वर्ण - जिसमे कन्या और वर के वर्ण अर्थात जाति का मिलान किया जाता है ! वर का वर्ण कन्या के वर्ण से उच्च या समान होना चाहिए ! इस गुण में दोनों के मध्य सामंजस्य को भी देखा जाता है !
2 . वश्य - इस गुण में देखा जाता है कि दोनों में से कौन अधिक प्रभावशाली है और दोनों में से जीवनसाथी के प्रति किसकी नियंत्रण क्षमता अधिक है !
3 . तारा - इस गुण में दोनों के नक्षत्रों की तुलना की जाती है ! यह दोनों के मध्य सम्बन्ध में स्वस्थ भागफल को दर्शाता है !
4 . योनि - इस गुण में दोनों के मध्य योन संगता को देखा जाता है !
5 . गृह मैत्री - इस गुण के द्वारा जाँच की जाती है दोनों में मैत्री का व्यवहार कैसा है ! वर और वधु के विचार,मानसिक और बौद्धिक क्षमता कैसी रहेगी !
6 . गण - यह गुण दोनों के व्यक्तित्व और दृष्टिकोण के सामंजस्य को दर्शाता है !
7 . भकूट - दोनों की कुंडली के आधार पर देखा जाता है कि भविष्य में परिवार ,कल्याण,समृद्धि आदि कि स्थिति कैसी होगी !
8 . नाड़ी - इस गुण का अंक सबसे अधिक है इसलिए इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ! इसका सीधा संबंध संतान उत्पत्ति से है यदि दोनों की नाड़ी एक है तो संतान में दोष पाए जा सकते है ! इस गुण का आंकलन ब्लड ग्रुप से भी किया जा सकता है ! यदि वर और वधु दोनों का ही ब्लड ग्रुप एक है तो संतान के स्वास्थ्य पर उसका नकारात्मक प्रभाव होता है ! नाड़ी दोष कुंडली में सबसे बड़ा दोष है ! इसी कारण सनातन धर्म में समान नाड़ी के लोगों का विवाह ठीक नहीं माना गया है ! कुंडली मिलान से यही निर्धारित किया जाता है कि प्रत्येक दृष्टिकोण से वर और वधु एक दूसरे के प्रति भाग्यशाली हो और दोनों का जीवन बेहतरीन ढंग से व्यतीत हो ! वैसे तो जिसके भाग्य में जो है वो होता ही है परन्तु कुंडली मिलान एक अच्छा प्रयास है जिसके माध्यम से यह देखा जा सकता है कि एक दम्पति का जीवन खुशहाल व्यतीत हो और दोस्तों इसलिए ही सनातन धर्म में विवाह से पूर्व कुंडली मिलाने का प्रावधान है !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें