आखिर क्यों परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली थे दानवीर महायोद्धा कर्ण के बाण ? आज के परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली थे महाभारत के कर्ण के बाण .

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महारथी कर्ण महाभारत युद्ध के एक ऐसे महान योद्धा थे जिन्हे अपने जीवन में काल में बार-बार अपमानित होना पड़ा ! जन्म लेते ही उन्हें जन्म देने वाली माता ने त्याग दिया ! शिक्षा ग्रहण करने जब गुरु द्रोणाचार्य के पास गए तो उन्होंने कर्ण को सूत पुत्र होने के कारण शिक्षा देने से मना कर दिया ! तब उन्होंने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर बभगवान विष्णु  के अंश अवतार परशुराम से शिक्षा ग्रहण की लेकिन वहां भी उन्हें अपमानित ही होना पड़ा क्योंकि शिक्षा पूर्ण होने के बाद जब गुरु परशुराम को ये बात पता चली कि वो एक ब्राह्मण पुत्र नहीं बल्कि एक सूत पुत्र है तो उन्होंने कर्ण को एक श्रापित जीवन जीने को विवश कर दिया ! लेकिन कर्ण ने कभी हार नहीं मानी और अपने बाहुबल से उन्होंने भारतीय पौराणिक इतिहास में वो ख्याति हांसिल की जिसके वो हकदार थे !

आज हम आपको कर्ण के पराक्रम से अवगत कराएंग और जानेंगे कि उनके पास वे कौन-कौन से अस्त्र -शस्त्र और दिव्यास्त्र थे जिन्होंने उन्हें महारथी बनाया ! कर्ण महाभारत के वे योद्धा थे 
जिन्होंने अधर्म यानि दुर्योधन की ओर से युद्ध लड़ा था पर उन्होंने कभी भी युद्ध नीति को भंग नहीं किया और नाहिं कौरव सेना के सेनापति रहते हुए कोई छल होने दिया ! महारथी कर्ण के पास जो सबसे शक्तिशाली अस्त्र था वह था गुरु परशुराम का दिया हुआ विजिया धनुष ! हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार पौराणिक काल में दिव्यास्त्रों के संधान के लिए एक दिव्य धनुष की आवश्यकता होती थी क्योंकि साधारण धनुष से दिव्यास्त्रों का संधान नहीं किया जा सकता था  ! कर्ण का ये धनुंष एक दिव्य धनुष था जिसे उन्हें उनके गुरु परशुराम ने दिया था ! दरअसल जब गुरु द्रोणाचार्य ने सूत पुत्र होने के कारण उन्हें शिक्षा देने से मना कर दिया तो वे अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा पाने के लिए एक ब्राह्मण पुत्र बनकर गुरु परशुराम के पास पहुंचे ! क्योंकि उन्हें डर था कहीं सूत पुत्र होने के कारण परशुराम भी उन्हें अपना शिष्य बनाने से मना न कर दे ! ब्राह्मण के वेश में ही कर्ण ने परशुराम से अस्त्रों-शस्त्रों का ज्ञान तो प्राप्त कर लिया लेकिन एक दिन जब कर्ण की शिक्षा पूर्ण हो चुकी थी तभी उनके गुरु को पता चला किकर्ण किसी ब्राह्मण का पुत्र नहीं बल्कि एक सूत पुत्र है तभी अपने क्रोध के लिए विख्यात परशुराम ने कर्ण को श्राप दे दिया कि तुमने मुझसे धोखे से शिक्षा प्राप्त की है इसलिए जब तुम्हे मेरी दी हुई शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब तुम सब कुछ भूल जाओंगे ! परन्तु जब कर्ण ने वेश बदलने का कारण बताया तब गुरु परशुराम का क्रोध शांत हुआ ! तब उनका मन व्यथित हो उठा तब परशुराम ने कर्ण से कहा कि हे वत्स !

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 मैं अपना दिया हुआ श्राप तो वापिस नहीं ले सकता लेकिन मैं तुम्हे धनुष रूपी एक कवच देता हूँ जब तक ये धनुष तुम्हारे हाथों में रहेगा तब तक तीनों लोकों का कोई भी योद्धा तुमसे जीत नहीं पायेगा ! गुरु परशुराम का ये ही धनुष विजिया धनुष था ! कर्ण ने इस धनुष का इस्तेमाल या तो दिव्यास्त्र चलाने के लिए किया या फिर अर्जुन से युद्ध करते समय ! बांकी का सारा समय वे साधारण धनुष से ही कुरुक्षेत्र में युद्ध करते रहते ! महासर्प अश्वसेन नाग -  महाभारत युद्ध के 17 दिन अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध चल रहा था ! तभी कर्ण ने एक बाण अर्जुन पर चलाया जो साधारण बाणों से अलग था ! इस बाण को अर्जुन की ओर आता देख भगवान श्री कृष्ण समझ गए कि वो बाण नहीं बल्कि बाण रूपी अश्वसेन नाग हैं ! तब उन्होंने अर्जुन को बचाने के लिए अपने पैर से रथ को दबा दिया भगवान श्री कृष्ण के ऐसा करने से रथ के पहिये जमीन में धंस गए साथ ही रथ के घोड़े भी झुक गए तब वह बाण रूपी अश्वसेन अर्जुन की जगह अर्जुन के सिर के मुकुट पर जा लगा ! वार के खाली जाने के बाद अश्वसेन कर्ण के तरकश में दुबारा वापिस आ गया और अपने वास्तविक रूप में आकर कर्ण से बोला कि हे अंगराज ! अबकी बार ज्यादा सावधानी से बाण संधान करना इस बार अर्जुन का वध होना ही चाहिए ! मेरा विष उसे जीवित नहीं रहने देगा ! तब कर्ण ने उससे पूछा कि आप कौन हैं और अर्जुन को क्यों मारना चाहते हैं ! तब अश्वसेन ने कहा में नागराज ततक्षत का पुत्र अश्वसेन हूँ ! मैं और मेरे माता-पिता खांडव वन में रहा करते थे ! एक दिन अर्जुन ने उस वन में आग लगा दी उसके बाद में और मेरी माता आग में फँस गए ! जिस समय वन में आग लगी उस वक्त मेरे पिता नागराज वन में नहीं थे ! 

मुझे आग में फंसा हुआ देख मेरी माता मुझको निगल गयी और मुझको लेकर उड़ चली परन्तु अर्जुन ने मेरी माता को अपने बाण से मार गिराया लेकिन मैं किसी तरह से बच गया ! जब मुझे ये बात पता चली कि मेरी माता को अर्जुन ने मारा है तभी से मैं अर्जुन से बदला लेना चाहता हूँ और इसी कारण आज मैं बाण का वेश धारण कर आपके तरकश में आ घुसा ! इसके बाद कर्ण ने उसकी सहायता के प्रति कृतग्यता प्रकट करते हुए कहा कि हे अश्वसेन -  मुझे अपनी ही नीति से युद्ध लड़ने दीजिये आपकी अनीति युक्त सहायता लेने से अच्छा मुझे हारना स्वीकार है ! ये शब्द सुनने के बाद कालसर्प कर्ण की नीति निष्ठा को सराहता हुआ वहा से वापिस लौट गया !
इन्द्रास्त या वसावी शक्ति  -   ये तो सभी जानते है कि कर्ण जैसा योद्धा अपनी दान वीरता के कारण जाना जाता है ! इसी दानवीरता के फ़लस्वरुप इंद्र से उन्हें वसावी शक्ति प्राप्त हुई थी ! ये एक ऐसा अस्त्र था जिसे कोई भी अस्त्र काट नहीं सकता था ! दरअसल युद्ध के निश्चित हो जाने के बाद इंद्र देव को अर्जुन की चिंता सताने लगी कि कर्ण के कवच कुंडल रहते हुए मेरा पुत्र उसे परास्त कैसे कर पायेगा ! क्योंकि वे जानते थे कि सूर्य देव का दिया हुआ कवच कुंडल जब तक कर्ण के पास है तब तक उसे कोई नहीं हरा सकता ! इसीलिए इंद्र देव ने छल का सहारा लिया और एक दिन जब कर्ण सुबह के समय सूर्य देव को जल अर्पित कर रहे थे तो इंद्र देव ब्राह्मण का रूप बनाकर उसके पास पहुंचे और कर्ण से उसका दिव्य कवच कुंडल मांग लिया क्योंकि सूर्य को जल अर्पित करते समय कर्ण से कोई भी कुछ मांगता तो वे मना नहीं करते थे इसीलिए उन्होंने ब्राह्मण रूपी इंद्र को अपना कवच कुंडल दान में दे दिया और फिर ब्राह्मण से बोले हे, ब्राह्मण - अब आप अपने असली रूप में आ जाइये क्योंकि मैं जानता हूँ कि आप देवराज इंद्र है और मैं ये भी जानता था कि आज आप मुझसे मेरा कवच कुंडल दान में मांगने वाले है ! कर्ण के मुख से ऐसी बातें सुनकर देवराज इंद्र उसी क्षण अपने असली रूप में आ गए और बोले हे कर्ण -  तुम्हे मेरे बारे में किसने बताया और जब तुम जानते थे तो आज सूर्य को जल अर्पित करने आये ही क्यों
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? तब कर्ण ने कहा हे देवराज इंद्र मुझे ये सारी बातें रात को मेरे पिता सूर्य देव ने बताई थी और मुझे जल अर्पित करने से मना भी किया ! परन्तु हे देवेंद्र - अब आप ही बताइये मैं अपने धर्म से विमुख कैसे हो सकता था ! तब इंद्र  देव ने कहा - कर्ण तुम महान हो ! इस दुनिया में आज तक तुमसे बड़ा दानी ना कभी हुआ है और ना ही पृथ्वी के अंतकाल तक होगा ! आज के बाद तुम महादानवीर कर्ण के नाम से जाने जाओगे ! इसके अलावा मैं तुम्हे अपनी वसावी शक्ति भी देता हूँ जिसका इस्तेमाल तुम सिर्फ एक बार कर सकोगे ! इस शक्ति का जिस किसी पर भी संधान करोगे उसे इस ब्रह्माण्ड की कोई भी शक्ति नहीं बचा सकेगी और इसके बाद देवराज वहा से अंतर्ध्यान हो गए ! जब महाभारत युद्ध शुरू हुआ तो कर्ण ने अपनी ये शक्ति अर्जुन के लिए बचा कर रखी थी लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच को युद्ध में शामिल कर कर्ण को इंद्र की दी हुई वसावी शक्ति को चलाने पर विवश कर दिया ! इन तीनो शक्तियों के अलावा कर्ण के पास आगयेणास्त्र , पाशुपतास्त्र , रुद्रास्त्र ,ब्रह्मास्त्र , ब्रह्मशिरास्त्र , ब्रह्माण्ड अस्त्र , भार्गव अस्त्र , गरुड: अस्त्र , नागास्त्र और नागपास अस्त्र जैसे और भी कई दिव्य अस्त्र थे जिन्हे मंत्रों से प्रकट कर संधान किया जा सकता था ! इन अस्त्रों को चलाने के लिए महारथी कर्ण अपने विजिया धनुष का इस्तेमाल किया करते थे ! महाभारत युद्ध में जिस समय अर्जुन ने कर्ण का वध किया उस समय कर्ण के हाथ में वह विजिया धनुष नहीं था अगर उस समय उनके हाथ में वह धनुष होता तो अर्जुन कभी भी उनका वध नहीं कर पाता ! तो दोस्तों - ये थे कर्ण के अस्त्र और शस्त्र जिन्होंने उन्हें ज्यादा  शक्तिशाली बनाया !   


  

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