देवों के देव महादेव यानि भगवान शिव बड़े ही निराले है ! उनके अस्त्र , शस्त्र , वस्त्र और आभूषण भी सभी देवों से अलग है ! जहां एक ओर त्रिशूल धारी भगवान शिव वस्त्र के रूप में बाघ की छाल पहनते है वहीं सिर पर चन्द्रमा और गले में नाग की माला धारण करते है ! आज हम आपको भगवान शिव के गले में लिपटे रहने वाले नाग के बारे में बताने जा रहे है! जिससे आप जानेंगे कि वो नाग कौन है और वो भगवान शिव के गले में कैसे आया ! भगवान शिव के गले में लिपटे रहने वाले नाग नागराज वासुकि है ! नागराज वासुकि ही शिव जी के गले में हर समय लिपटे रहते है ! नागराज वासुकि ऋषि कश्यप के दूसरे पुत्र थे ! कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की दो पुत्रियां थी - वनिता और कद्रू ! इनका विवाह ऋषि कश्यप से हुआ था ! विवाह के कुछ दिन बाद ऋषि कश्यप ने अपनी दोनों पत्नियों की सेवा से प्रसन्न होकर एक वरदान मांगने को कहा ! जिसके बाद कद्रू ने ऋषि कश्यप से अपने लिए एक हज़ार पुत्रों का वरदान माँगा ! जबकि वनिता ने अपने लिए सिर्फ दो पुत्रों का वरदान माँगा ! पर शर्त ये रखी कि मेरे दोनों पुत्र कद्रू के हज़ार पुत्रों से शक्तिशाली हो ! ऋषि कश्यप ने तथास्तु कहकर उन्हें इच्छापूर्ति का वरदान दे दिया !
कुछ समय बाद ऋषि कश्यप के वरदान के अनुसार कद्रू ने हज़ार पुत्रों को जन्म दिया ! जिनमे सबसे पहले और सबसे बड़े पुत्र के रूप में शेषनाग पैदा हुए ! शेषनाग के बारे में ऐसा माना जाता है कि उनके हज़ार मस्तक है जिनका कोई अंत नहीं ! इसीलिए उन्हें अनंत भी कहा जाता है ! साथ ही ये भी माना जाता है कि पृथ्वी पर सब जीव-जंतु के अंत होने के बाद भी शेषनाग मौजूद रहेंगे ! भगवान विष्णु की शैय्या शेषनाग के बारे में ये भी कहा जाता है कि उनके ही फन पर ये धरती टिकी हुई है ! ऐसा करने का वरदान शेषनाग को ब्रह्मा जी ने दिया था ! नागपुत्रों में सबसे बड़ा होने के कारण शेषनाग नागलोक के राजा बने ! लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के बाद धरती के नीचे जाने से पहले उन्होंने अपने छोटे भाई वासुकि को नागलोक का राजा बना दिया ! वासुकि नाग कद्रू और ऋषि कश्यप के दूसरे सबसे बड़े पुत्र थे ! वे भी शेषनाग के जितना तो नहीं लेकिन बड़े ही पराक्रमी और शक्तिशाली थे ! ऐसा माना जाता है कि वासुकि नाग ने ही बारिश और यमुना के तूफान से श्री कृष्ण और उनके पिता वासुदेव की रक्षा की थी जब वो अपने पुत्र श्री कृष्ण को कंस से बचाने के लिए यमुना पार करके नंदगाव जा रहे थे ! इतना ही नहीं भविष्य पुराण में तो इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि वासुकि नाग के सिर पर ही नागमणि विराजमान है ! वासुकि ने भगवान शिव की सेवा के लिए शेषनाग की तरह ही राजपाठ का त्याग कर अपने छोटे भाई ततक्षत का राजतिलक कर दिया था ! वासुकि नाग भगवान शिव के गले में कैसे पहुंचे इसके पीछे धर्म ग्रंथों में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है जिसमे से सबसे पहली कथा के अनुसार नागों ने ही सबसे पहले भगवान शिव की शिवलिंग के रूप में पूजा की थी ! उस समय वासुकि नाग ही नागों के राजा हुआ करते थे ! एक दिन वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा ! जिस पर वासुकि ने वरदान के रूप में शिवजी के समीप रहकर उनके दूसरे गणों की तरह सेवा करने की इच्छा जताई ! जिसके बाद वासुकि नाग से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में धारण कर लिया ! वहीं दूसरी कथा समुद्र मंथन के समय की है ! समुद्र मंथन के लिए रस्सी के रूप में वासुकि नाग को ही मंदराचल पर्वत के चारों ओर लपेटा गया था ! मंथन के पश्चात् वासुकि नाग का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था ! फिर भी भगवान शिव को जब विष पीना पड़ा तब वासुकि नाग सहित सभी नागों ने भगवान शिव की सहायता की और विष को ग्रहण किया ! उसके बाद वासुकि नाग की नि:स्वार्थ भक्ति देखकर भगवान शिव ने वासुकि नाग को अपने गले में धारण कर लिया !
जबकि तीसरी कथा भगवान शिव और माता आदि शक्ति की अवतार सती के विवाह से जुडी हुई है ! कथा के अनुसार जब भगवान शिव और माता सती का विवाह होना था तब सभी देवगणों ने भगवान शिव से कहा - हे प्रभु ! आप श्रृंगार कर ले जबकि भगवान शिव का श्रृंगार से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था ! देवगणों के आग्रह पर भगवान शिव ने अपने श्रृंगार की जिम्मेदारी नागों को सौंप दी जिसके बाद श्रृंगार करते समय वासुकि नाग स्वंय भगवान शिव के गले में आभूषण की तरह लिपट गए ! वासुकि नाग का अपने प्रति समर्पण देखकर भगवान शिव अति प्रसन्न हुए ! उन्होंने अपने विवाह के बाद भी वासुकि नाग को अपने गले में लिपटे रहने दिया ! मित्रों ! ये तीनों कथाएं भगवान शिव के गले में वासुकि नाग को लिपटे रहने के विषय में बहुत प्रचलित है ! लेकिन आपको ये बता दे कि वासुकि नाग भगवान शिव के गले में केवल आभूषण की तरह विराजमान नहीं है बल्कि उन्होंने ऐसे भी कार्य किये है जो उनके शिव के प्रति समर्पण को दर्शाते है ! त्रिपुरदाह के समय वासुकि नाग शिव के धनुष की डोर बन गए थे ! शिव जी वासुकि को अपनी सवारी नंदी की तरह ही प्रेम करते है और यही वजह है कि शिव और शिवलिंग को वासुकि नाग के बिना अधूरा माना जाता है ! शिव की नगरी काशी में एक मंदिर नाग वासुकि के नाम से प्रसिद्ध है ! यह माना जाता है कि सच्चे मन से इस मंदिर में की गयी पूजा से कालसर्प दोष दूर होता है !
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