भगवान विष्णु ही इस संसार के पालनहार है और भगवान शिव को इस संसार का संहारक माना जाता है ! ये दोनों ही सर्वशक्तिमान है और माना जाता है कि दोनों ही एक दूसरे के परमभक्त है ! लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ था ! बहुत ही कम लोगों को यह बात पता है ! लेकिन क्या आप ये जानते है कि ये युद्ध कितने दिनों तक चला था और इस युद्ध का इस संसार पर क्या प्रभाव पड़ा था ! युद्ध में कौन विजयी हुआ था ? कथा के अनुसार - एक दिन जब माता लक्ष्मी अपने पिता समुद्र देव से मिलने आयी तब उन्होंने देखा उनके पिता काफी चिंतित प्रतीत हो रहे थे ! उन्होंने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा तब समुद्र देव ने कहा - पुत्री मै तुम्हारे लिए अति प्रसन्न हूँ कि तुम्हारा विवाह श्री हरी विष्णु के साथ हुआ है लेकिन तुम्हारी 5 बहने सुवेशा , सुकेशी , समेशी ,सुमित्रा और वेधा भी मन ही मन विष्णु देव को अपना पति मान चुकी है और उनको पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही हैं ! यह बात सुनकर माता लक्ष्मी अत्यंत चिंतित हुई और बैकुंठ धाम वापिस आ गयी ! वापिस आकर माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा - हे प्राणनाथ आप मुझे विश्वास दिला दीजिये कि आपके सम्पूर्ण ह्रदय में केवल और केवल मेरा स्थान है !
भगवान विष्णु ने कहा - देवी आप इस सत्य से अनभिज्ञ नहीं है कि मेरे ह्रदय के आधे भाग में केवल महादेव है ! मै ये कैसे कह सकता हूँ कि मेरे ह्रदय में केवल आप है ! इस पर देवी लक्ष्मी ने कहा - तो शेष आधा भाग तो केवल मेरे लिये होना चाहिए ! भगवान विष्णु ने कहा - देवी मै जगत का पालनहार हूँ , शेष आधे भाग में मेरे अनेक भक्त जो मुझे प्रिय है , ये संसार जो मुझे प्रिय है , ये सब भी मेरे ह्रदय के आधे भाग में आपके साथ ही रहते है ! देवी लक्ष्मी ने कहा - ये संसार मुझे भी प्रिय है स्वामी ! किन्तु मेरे ह्रदय में केवल आप है ! मुझे आपका प्रेम सम्पूर्ण रूप से ही चाहिए ! यदि ये सम्भव नहीं तो आप मुझे अपने ह्रदय से निकाल दीजिये ! और इधर दूसरी तरफ देवी लक्ष्मी की पाँचों बहनें तपस्या में सफल हुई और भगवान विष्णु ने पाताल लोक आकर उन्हें दर्शन दिये और उन्हें मनवांछित वर मांगने को कहा ! तब उन पाँचों बहनों ने वर माँगा कि हे भगवन आप हम पाँचों बहनों के पति बन जाये और अपनी सारी स्मृतियो को भूलकर संसार को भुलाकर हमारे साथ ही पाताल लोक में निवास करे ! तब भगवान विष्णु ने उन्हें तथास्तु कहा ! और उनके साथ ही पाताल लोक में निवास करने लगे ! भगवान विष्णु के पाताल लोक चले जाने से संसार का संतुलन बिगड़ने लगा ! माता लक्ष्मी भी बहुत व्याकुल हो गयी और भगवान शिव के पास गयी ! वहां माता पार्वती ने उनसे कहा - हे देवी भगवान विष्णु तो जगत पालक है ! आप उनसे यह आशा कैसे रख सकती है कि उनके सम्पूर्ण ह्रदय में केवल आपका ही स्थान हो ! मेरे पति महादेव के ह्रदय में भी भगवान विष्णु है और उनके समस्त भक्तों के साथ मै भी हूँ और मै इस बात से खुश भी हूँ कि उनके ह्रदय में मेरा एक विशेष स्थान है ! यह बात सुनकर देवी लक्ष्मी को अपनी भूल का अहसास हो गया ! भगवान शिव यह देखकर अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने इस संसार के संतुलन को पुन्नः स्थापित करने का और भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापिस लेन का निर्णय किया ! भगवान शिव ने वृष्भ अवतार लेकर पाताल लोक पर आक्रमण कर दिया !
उन्हें देखकर भगवान विष्णु अत्यंत क्रोधित हुए और महादेव के सामने आ गए और उन दोनों के बीच युद्ध प्रारम्भ हो गया ! भगवान विष्णु ने महादेव पर अनेकों अस्त्रों से प्रहार करना आरम्भ कर दिया ! महादेव भी अपने वृष्भ स्वरूप में सभी प्रहारों को विफल करते गए ! दोनों ही सर्व शक्तिमान थे अतः युद्ध बिलकुल बराबरी का चल रहा था ! ये युद्ध अनेकों वर्षों तक चलता रहा ! किसी को भी इस युद्ध की समाप्ति का उपाय समझ नहीं आ रहा था ! भगवान विष्णु का क्रोध इतना बढ़ गया कि उन्होंने अपने नारायण अस्त्र से महादेव पर प्रहार कर दिया ! महादेव ने भी उन पर पाशुपास्त्र से प्रहार कर दिया ! इस कारण दोनों ही एक दूसरे के अस्त्र में बंध गए ! यह सब देख गणेश जी माता लक्ष्मी की उन पांचों बहनों के पास गए और बोले - भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों में बंध गए है यदि भगवान विष्णु की स्मृति वापिस नहीं आयी तो ये दोनों अनंत काल तक ऐसे ही बंधे रहेंगे और इस समस्त सृष्टि का सर्वनाश हो जायेगा ! यह सुनकर पाँचों बहनें बोली कि हे भगवान विष्णु हम आपको हमारे सारे वचनो से मुक्त करती है ! उनके वचनों से मुक्त होते ही भगवान विष्णु की सारी स्मृति वापिस आ गयी और फिर उन्होंने भगवान शिव को अपने अस्त्रों से मुक्त कर दिया ! भगवान शिव ने भी उन्हें मुक्त कर दिया ! दोनों अपने साकार रूप में आ गए और फिर भगवान शिव भगवान विष्णु को लेकर बैकुंठ धाम आ गए !
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