पुत्रो के किये गए पिंड दान से दुबारा बनता है मनुष्य शरीर , पढ़िए पहले से लेकर दसवे पिंड दान से किस तरह बनता है मनुष्य शरीर ?
नमस्कार दोस्तों ...
दोस्तों आज इस पोस्ट में हम बात करेंगे एक बहुत ही गहराई की , इसमें आपको बताएंगे मरने के बाद इंसान के साथ क्या क्या होता है , यमलोक तक पहुंचते पहुंचते क्या क्या भोगना पड़ता है ,
बच्चो के हाथो किये हुए पिंड दान क्या मायने रखते है ,
सबसे पहले आपको बताते है जब किसी इंसान की मृत्यु होने वाली होती है तो क्या क्या होता है
मरते हुए इंसान को बहुत सारी चिंताए घेरे रखती है उसे अपने परिवार वालो की , अपनी पत्नी की और सब की चिंता होती है लेकिन इस समय वह चाह कर भी कुछ कह नहीं पाता , उसके परिवार वाले उसे बुलाते है परन्तु यमदूतो के फ़ांस में बंधा हुवा वह मनुष्य कुछ बोल नहीं पाता , इस प्रकार जो व्यक्ति अपने परिवार के भरण पोषण में जिंदगी भर लगा रहा अंत में वह व्यक्ति बहुत कुछ कहना चाहते हुए मगर बेबस अपने प्राण त्याग देता है ,
उस समय जब मृत्यु होने वाली होती है तब यम के दूत जो की दिखने में बहुत भयंकर काले मुँह वाले , बड़े दांतो वाले उसके पास आते है जिसे देखकर व्यक्ति भय भीत हो जाता है और मुँह से लार निकलने लगती है और अपने परिवार जनो को रोता बिलखता छोड़ यमदुतो के द्वारा गले में फ़ांस से बंधा हुआ यमदुतो के साथ चल देता है ,
यमदुतो के भयंकर शब्द उसे डराते है , रास्ते में उसे कुत्ते काटते है , इस समय अपने पापो का समरण करता हुआ वह जीव यम मार्ग पर आगे बढ़ता है ,
वह जीव भूखा होता है ,प्यासा होता है ,सूरज की तेज धुप , पेरो के नीचे गर्म रेत और पीठ पर यमदुतो के कोड़े खाता हुआ वह व्यक्ति निर्बल और असमर्थ होते हुए भी आगे बढ़ता है ,
थक कर बार बार गिरता है ,पीठ पर फिर कोड़े बरसाए जाते है और वह फिर उठ कर चलता है ,
दो अथवा तीन बार में रास्ते की यातना भोगता हुआ वह व्यक्ति यम लोक तक पहुंचाया जाता है , इसके बाद यम की आज्ञा से वह जीव पुनः इस दुनिया में चला आता है ,
मनुष्य लोक में आकर वह दुबारा किसी भी जीव देह में प्रवेश होने की इच्छा रखता है , किन्तु यमदूत उसे पकडे रखते है और भूख और प्यास से पीड़ित होकर वह बार बार रोता है ,
यही पर वह जीव पुत्रो के होठो दिए गए पिंड दान को प्राप्त करता है लेकिन इससे उसकी तृप्ति नहीं होती ,जो पापी पुरुष होता है उसके पास पिंड दान नहीं पहुँचता ,
जिनका पिंड दान नहीं होता वह प्रेत योनि में जाते है ,और लाखो वर्षो तक जब तक वह अपने हर पाप का फल भोग नहीं लेता तब तक भटकता फिरता है ,
इसके आगे विष्णु जी गरुड़ से कहते है की पुत्रो को 10 दिन तक लगातार पिंड दान करना चाहिए , प्रतिदिन वे पिंड दान चार भागो में बात जाते है और इनका एक हिस्सा ही और आत्मा को प्राप्त होता है , नो रात दिनों में पिंड को प्राप्त करके प्रेत का शरीर बनता है और दसवे दिन उसमे बल्कि प्राप्ति होती है ,
इसके बाद विष्णु जी गरुड़ को बताते है की व्यक्ति के शरीर के जल जाने पर पिंड के द्वारा फिर से शरीर बनता है ,जिसके द्वारा वह प्राणी रास्ते में शुभ और अशुभ कर्मो के फल भोगता है ,
पहले दिन जो पिंड दान किया जाता है उसका सिर बनता है
दूसरे दिन के पिंड से गर्दन और कंधे बनते है
तीसरे दिन के पिंड से ह्रदय बनता है
चौथे दिन के पिंड से पीठ बनती है
पाचवे दिन के पिंड से नाभि बनती है
छठे दिन के पिंड से कमर
सातवे दिन के पिंड से जांघो और कमर के बीच का शरीर बनता है
आठवे दिन के पिंड से जाँघे
और नवे पिंड से टांगे और पैर बनते है
इस प्रकार नो पिंडो से शरीर बन जाता है
और दसवे पिंड से उसमे भूख और प्यास जाग्रत हो जाती है ,
इस पिंडो से बने शरीर से जीव ग्यारवे और बाहरवें दिन भोजन करता है
तेहरवे दिन वह व्यक्ति अकेला यम मार्ग पर चलता है
परमाणो के अनुसार यमलोक के मार्ग की दुरी छियासी हजार योजन है ( 1 योजन 13 से 16 किमी का होता है )
यह सभी जानकारी गरुड़ पुराण से ली गई है
मरने से पहले क्या क्या होता है
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