सब कुछ पाना जनता हूँ , POEM , POEM

सब कुछ पाना जनता हूँ 





में किस्मत को अपनी आजमाना जनता हूँ 

ये जो खड़े है सर उठाए उन्हें झुकाना जनता हूँ 

हालात से अपने लड़ जाना जानता हूँ 

कुछ भी ना हो मुझ पे फिर भी सब कुछ पाना जानता हूँ ,,


हूँ में सूरज अँधेरे से लड़ जाना जानता हूँ 

वक्त से आगे अब निकल जाना जानता हूँ 

जहा ना मिले इज़्ज़त वहां से खुद को बचाना जानता हूँ 

कुछ भी ना हो मुझ पे फिर भी सब कुछ पाना जानता हूँ ,,


ठोकरे खायी है बहुत अब संभल जाना जानता हूँ 

दुनिया में सब कुछ है पैसा उसे अब में कमाना जानता हूँ 

वक्त से लड़ा हूँ बहोत , वक्त से आगे निकल जाना जानता हूँ 

कुछ भी ना हो मुझ पे फिर भी सब कुछ पाना जानता हूँ ,,


खड़े है मखोटे के पीछे जो कपटी ,

उन्हें अब में पहचान जाना जानता हूँ 

गिरे हुए को कुछ उठाना जानता हूँ 

मदद के लिए हाथ बढ़ाना जानता हूँ 

और कुछ भी ना हो मुझ पे 

फिर भी सब कुछ पाना जानता हूँ  

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