Why is sex, sexuality considered the biggest sin ? कामवासना , कामुकता को क्यों सबसे बड़ा पाप माना गया है ?

 कामवासना , कामुकता को क्यों सबसे बड़ा पाप माना गया है , 

दोस्तों ये एक ऐसी लत है जो बाकि सभी लत से ज्यादा खतरनाक है , और ये ज्यादा खतरनाक इस लिए भी हो जाती है क्योकि इसमें कम से कम 2 लोगो की जरूरत होती है ( पुरुष और महिला ) जो बाकि किसी लत में चाहे वो नसे की लत हो , जुवे की लत हो या कोई और उसमे ये जरूरत नहीं होती , 



आइये इसके बारे में विस्तार से जानते है , ये एक ऐसी आदत है जो किसी भी राजा , असुर और यहाँ तक की देवताओ के भी पतन का कारण बनी है , ऐसा व्यक्ति दिन रात सब कुछ भूल जाता है और उसका ध्यान सिर्फ एक ही तरफ लगा रहता है , तो काम वासना के बारे में दिन रात सोचने से क्या होता है , 



चाणक्य निति में कामुकता के बारे में विस्तार से बताया गया है , आचार्य चाणक्य कहते है की कामवासना के सामान दुनिया में कोई रोग नहीं है, मोह के सामान कोई शत्रु नहीं , क्रोध के समान कोई अग्नि नहीं , और ज्ञान से बड़ी सुख देने वाली कोई और वस्तु नहीं , आचार्य चाणक्य कहते है की जो मनुष्य कामवासना से लिप्त हो जाता है उसके दिमाग में कोई और बात आ ही नहीं सकती वह औरत हो या पुरुष उसके दिमाग मे हमेशा विपरीत लिंग के लिए ही भावनाए जाग्रत होती रहती है , आचार्य चाणक्य का कहना है की कामवासना आपके शरीर तक रहती है तो ठीक है लेकिन जब ये आपके दिमाग पर असर करने लगती है तब आपका विनाश निश्चित है , 



ऐसा पुरुष या फिर स्त्री पर पुरुष की और भी आकर्षित रहते है और इससे उनके दाम्पत्य जीवन पर भी असर पड़ता है , 

इसके बाद चाणक्य समझाते हुए कहते है की की शरीर के किसी भी अंग को अगर बहुत ज्यादा महत्व देना चाहिए तो वो हमारा दिमाग है और इससे अलग कोई नहीं , 



चाणक्यनीति की तरह ही ययाति ग्रन्थ मे भी कामुकता के बारे मे उल्लेख मिलता है , इस ग्रन्थ के अनुसार राजा ययाति 1000 वर्षो तक भोग विलाश मे लिप्त रहे लेकिन इसके बाद भी उन्हें तृप्ति या शांति नहीं मिली , इसके बाद जब गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें वृद्ध , बड़े हो जाने का श्राप दिया तो वो कुछ विद्याओ के द्वारा अपने छोटे पुत्र की जवानी लेकर कई वर्षो तक काम वासना मे लिप्त रहे , 



लेकिन कुछ समय पश्चात जब उन्हें लगने लगा की इससे भी उनकी तृप्ति नहीं हो रही है तो उन्हें अपने आप से घृणा होने लगी और उन्होंने अपने पुत्र का यौवन लौटा दिया , और खुद वैराग्य धारण कर लिया , 



इसके बाद उन्होंने कहा की हम भोग नहीं भोगते , बल्कि भोग ही हमें भोगते है , हम तप नहीं करते बल्कि हम स्वयं ही तप्त हो गए है , काल कभी समाप्त नहीं होता हम समाप्त हो जाते है , और तृष्णा जीर्ण नहीं हुयी है हम ही जीर्ण हुए है , 


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