नवरात्रि के आखिरी दिन यानी नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं। यह मां दुर्गा का नौंवा रूप हैं। इस दिन भी कई भक्त अपने घरों में कंजकाओ को बिठाते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं।
स्वरूप:
कमल पर विराजमान चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में विराजित हैं। इनके चारों हाथों में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल रहता है। सिर पर ऊंचा सा मुकूट और चेहरे पर मंद मुस्कान ही मां सिद्धिदात्री की पहचान है।
कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही 8 सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व शामिल हैं। इन्हीं माता की वजह से भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर नाम मिला, क्योंकि सिद्धिदात्री के कारण ही शिव जी का आधा शरीर देवी का बना। हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
मां दुर्गा का यह रूप अत्यंत शक्तिशाली है क्योंकि यह शक्ति सभी देवी देवताओं के तेज से प्रकट हुई हैं। मां का यह स्वरूप सभी सिद्धियों को देने वाला है।
पूजा विधि :
मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें। मां को रोली कुमकुम लगाएं। मां को मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें। माता सिद्धिदात्री को प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए। घी का दीपक जलाने के साथ-साथ मां सिद्धिदात्री को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा जो भी फल या भोजन मां को अर्पित करें वो लाल वस्त्र में लपेट कर दें। निर्धनों को भोजन कराने के बाद ही खुद खाएं। अत: मां को खीर का भोग लगाना चाहिए।
जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। इनकी उपासना करने से अष्ट सिद्धि और नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।
मंत्र:
ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:।'
मां सिद्धिदात्री स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
मां सिद्धिदात्री प्रार्थना मंत्र
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
पूजा मंत्र
अमल कमल संस्था तद्रज:पुंजवर्णा,
कर कमल धृतेषट् भीत युग्मामबुजा च।
मणिमुकुट विचित्र अलंकृत कल्प जाले;
भवतु भुवन माता संत्ततम सिद्धिदात्री नमो नम:।
ओम देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
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