अब वह रोज मांस तोलने के लिए उसी पत्थर का इस्तेमाल करता था। परंतु उसको उस पत्थर में कुछ अजीब सा लगा। क्योंकि जब भी वह मांस तोलता तो पत्थर अपने वजन को मांस के अनुसार ढाल लेता । जितना वजन उसको तोलना होता पत्थर उतने ही वजन का हो जाता था। उसको यह लगा कि यह पत्थर कोई आम पत्थर नहीं है इसमें जरूर कोई चमत्कारी शक्ति है। धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि सदना कसाई के पास एक ऐसा पत्थर है जो जितना चाहते हैं पत्थर उतना ही तोल देता है ।धीरे-धीरे इस चमत्कारी पत्थर के कारण उसके यहां लोगों की भीड़ जुटने लगी ।भीड़ के साथ ही सदना की दुकान की बिक्री भी बढ़ गई थी। फिर कुछ समय बाद एक शुद्ध ब्राह्मण वहां पर पहुंचे हालांकि वे ऐसी अशुद्ध जगहों पर नहीं जाते थे जहां पर मांस कटता या बिकता हो किंतु उस चमत्कारी पत्थर को देखकर उसकी उत्सुकता बढ़ गई और वह सदना की दुकान पर चला गया फिर दूर दूर खड़ा सदना कसाई को मास तोलते हुए देखने लगे जब सदना कसाई ने ब्राह्मण को देखा तो वह चौक गया। उसने बड़ी नम्रता से ब्राह्मण को बैठने के लिए स्थान दिया और पूछा कि वह उनकी क्या सेवा कर सकता है। तभी ब्राह्मण बोले मैं तुम्हारे इस चमत्कारी पत्थर को देखने के लिए आया हूं। ऐसा कह सकते हो कि यह पत्थर ही मुझे तुम्हारी दुकान पर खींच लाया है फिर कसाई ने ब्राह्मण को सारी बात बताई किस तरह यह पत्थर अपने आप वजन तोलता है । ब्राह्मण ने उनको बताया कि यह कोई आम पत्थर नहीं है बल्कि यह शिव का शालिग्राम है जो कि भगवान का स्वरूप होता है और साथ में उन्होंने यह भी बताया कि शालीग्राम जी को इस तरह से मांस के बीच में भगवान को रखना बहुत बड़ा पाप है। जब ब्राह्मण ने यह बात बोली तो सदना को लगा कि उसने जाने अनजाने में कितना बड़ा पाप कर दिया है। फिर सदना ने हाथ जोड़कर ब्राह्मण से कहा कि हे ब्राह्मण आप इस शालीग्राम को अपने साथ ले जाइए। इसलिए ब्राह्मण शालीग्राम को अपने साथ बड़े सम्मान से घर ले आए। घर आकर उन्होंने श्री शालीग्राम को स्नान करवाया और पंचामृत से अभिषेक किया व उनकी पूजा अर्चना आरंभ कर दी।
कुछ दिनों बाद ब्राह्मण के सपने में भगवान शिव आए और कहा कि हे ब्राह्मण मैं तुम्हारी सेवाओं से बहुत प्रसन्न हूं पर तुम मुझे वापस उसी कसाई के पास छोड़ आओ। फिर ब्राह्मण ने स्वपन में ही भगवान शिव से कारण पूछा तो उन्हें उत्तर मिला कि तुम मेरी अर्चना पूजा करते हो । मुझे अच्छा लगता है परंतु जो मेरे नाम का गुणगान कीर्तन करते रहते हैं। उनको मैं अपने आपको भी सौप देता हूं। सदना तुम्हारी तरह मेरी अर्चना नहीं करता फिर भी वह हर समय मेरा नाम गुनगुनाता रहता है। जो कि मुझे बहुत अच्छा लगता है। इसीलिए तो मैं उसके पास गया था। अगले दिन ब्राह्मण कसाई के पास गए और सदना को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और उनको अपने स्वपन की सारी बात बताई और शालीग्राम को सौंप दिया। ब्राह्मण की बात सुनकर सदना की आंखों में आंसू आ गए। मन ही मन उसने मांस बेचने और खरीदने के कार्य को तिलांजलि देने की सोची और यह फैसला किया कि अगर मेरे भगवान को मेरा कीर्तन पसंद है तो मैं और भी ज्यादा उनके नाम का कीर्तन करूंगा।
तो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जरूरी नहीं है कि जो शुद्ध है, पवित्र है, शाकाहारी है सिर्फ वह ही भगवान की भक्ति कर सकते है। अगर मनुष्य का मन सच्चा है और उसमें भगवान की पूजा करने की लगन है तो चाहे वो किसी भी जाति या धर्म का हो भगवान को पा सकता है।
Why did Lord Shiva ask the butcher?
Once upon a time there was a butcher whose name was Sadana. He was a very honest man. He used to indulge in kirtan of Lord Shiva. Even while cutting the meat, he kept on humming the name of Lord Shiva. One day he was going somewhere in his tune when suddenly his foot hit a black round stone. He picked up the stone and saw it, then he felt that this stone can be used to weigh his flesh, so he kept the stone in his pocket and went back towards the house.
Now he used to use the same stone to weigh meat every day. But he felt something strange in that stone. Because whenever he weighed the meat, the stone would adjust its weight according to the meat. The amount of weight he had to weigh, the stone would have become the same weight. He felt that this stone is not a common stone, it must have some miraculous power. Slowly it started spreading that Sadna Butcher has such a stone which gives as much weight as the stone wants. Gradually due to this miraculous stone, people started gathering here. Sales had also increased. Then after some time a pure Brahmin reached there, although he did not go to such unclean places where meat is cut or sold, but seeing that miraculous stone, his curiosity increased and he went to the shop of Sadna, then the Sadna butcher standing far away When the Sadana butcher saw the Brahmin, he was shocked. He politely gave the brahmin a place to sit and asked what he could do to serve them. Then the brahmin said, I have come to see this miraculous stone of yours. You can say that it is this stone that has dragged me to your shop, then the butcher told the whole thing to the brahmin, how this stone weighs itself. The Brahmin told him that this is not a common stone but it is the Shaligram of Shiva, which is the form of God and also he told that it is a great sin to keep the Lord in the middle of the flesh in this way. When the brahmin spoke this, Sadhana felt that she had committed a great sin knowingly and unknowingly. Then Sadna said with folded hands to the brahmin that oh brahmin, take this Shaligram with you. So the Brahmins brought Shaligram home with them with great respect. After coming home, he bathed Shri Shaligram and anointed him with Panchamrit and started worshiping him.
After some days Lord Shiva came in the Brahmin's dream and said that O Brahmin, I am very happy with your services, but you leave me back to the same butcher. Then the brahmin asked Lord Shiva the reason in his dream and he got the answer that you worship my archana. I like it but those who keep praising my name. I give myself to them too. Sadhana does not worship me like you, yet he keeps on humming my name all the time. Which I like very much. That's why I went to him. The next day the brahmin went to the butcher and bowed down to Sadna with folded hands and told her all about his dream and handed it over to Shaligram. Tears welled up in Sadana's eyes after listening to the Brahmin. In his mind, he thought of giving up the business of selling and buying meat and decided that if my Lord liked my kirtan, then I would chant his name even more.
So from this story we get a lesson that it is not necessary that one who is pure, pure, vegetarian, only he can worship God. If a man's mind is sincere and has the passion to worship God, then he can find God, irrespective of caste or religion.
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