बहुत पहले की बात हैं। राजस्थान के एक गांव में एक जाट किसान रहता था। उसकी एक बेटी थी ।जिसका नाम कर्माबाई था।वो उमर में बहुत छोटी थी । उसके पिता भोजन करने से पहले भगवान कृष्ण को भोग लगाया करते थे। फिर बाद में खुद खाते थे।एक दिन उन्हे किसी काम से दूसरे गांव जाना पड़ा । जाते हुए वो अपनी बेटी से कहकर गए कि शायद मुझे आने में रात हो जाएगी इसलिए तुम भगवान जी का भोग लगा देना और उसके बाद ही भोजन करना। बेटी बोली ठीक है पिता जी, मैं ऐसा ही करूंगी। कर्माबाई को बाजरे की खिचड़ी के अलावा और कुछ भी नही आता था। इसीलिए उसने बाजरे की खिचड़ी बना दी।और भोग लगाने के लिए खिचड़ी को कृष्ण भगवान के सामने रख दिया। और हाथ जोडकर बोली कि भगवान जी भोग लगाइए। परंतु खिचड़ी तो ज्यों कि त्यों थाली में रखी रही। उधर करमाबाई को बहुत जोर से भूख लग रही थी। फिर उसने सोचा कि कहीं आज खिचड़ी में घी तो कम नहीं हैं। पिताजी ज्यादा घी डाल कर भोग लगाते होंगे। इसलिए उसने खिचड़ी में और घी डाल दिया लेकिन खिचड़ी ऐसी ही रखी रही। कान्हा जी ने भोग नही लगाया। कर्माबाई जोर जोर से रोने लगी। और कहने लगी कि हे कान्हा जी मुझ से कोई गलती हो गई हो तो कृपा मुझे माफ कर दो और खिचड़ी का भोग लगाओ। छोटी सी बच्ची की पुकार सुनकर कान्हा जी को दया आ गई और वह छोटे से बालक के रूप में आकर भोग लगाने लगे। फिर कर्माबाई ने भी भोजन कर लिया। जब उसके पिता आए तो उन्होंने कर्माबाई से पूछा कि भगवान को भोग लगाया था या नही। उसने कहा हां पिता जी भगवान ने भोजन कर लिया था । और बोली कि अब मैं ही भगवान जी को भोग लगाया करूंगी। अब रोज कर्माबाई कान्हा जी को खिचड़ी खिलाने लगी। कान्हा जी बालक के रूप में आते और खिचड़ी खाकर चले जाते। एक दिन उसके पिता ने कान्हा जी को बालक के रूप में खिचड़ी खाते देख लिया। और हाथ जोडकर उन्हे प्रणाम किया और अपने प्राण त्याग दिए। उसके बाद कर्मा बाई अकेली रह गई। कुछ साल बाद कर्माबाई उस गांव को छोड़ कर जगन्नाथ पुरी में आकर रहने लगी। वो नियम से रोज सुबह कान्हा जी के लिए खिचड़ी बनाती और उन्हे भोग लगाती।
समय बीतने के साथ साथ वह बूढ़ी हो रही थी। सुबह के नित्य स्नान आदि क्रिया में उसे भोजन बनाने में समय लग जाता था। कान्हा जी बालक का रूप धारण करके उस के पास बैठे रहते थे और कहते थे मां जल्दी भोजन बनाओ मुझे बहुत भूख लग रही है उसने कहा अब मैं बूढ़ी हो गई हूं अब मुझसे जल्दी भोजन नही बनता। कान्हा जी बोले मां अब तुम सुबह को स्नान आदि मत किया करो पहले मुझे खिचड़ी बना कर दिया करो। बाद में स्नान करती रहना। उस दिन कान्हा जी ने जल्दी जल्दी में खिचड़ी खाई क्योंकि पुजारी के कपाट खोलने से पहले उन्हे मंदिर में जाना था। तो जल्दबाजी में कान्हा जी के मुख पर खिचड़ी लगी रह गई। पुजारी ने देखा तो सोचा कि अभी तो भगवान जी को किसी ने भोग नही लगाया है। तो ये भगवान के मुख पर खिचड़ी कहां से आई। उसी रात को पुजारी के सपने में जगन्नाथ भगवान ने कर्माबाई की खिचड़ी वाली बात बताई। एक दिन कर्मा बाई के द्वार पर एक साधू आया और उसने देखा कि वो बिना नहाये भगवान के लिए खिचड़ी बना रही हैं। साधू बोला तुम्हे नहा धोकर भोजन बनाना चाहिए। कर्माबाई बोली कि मुझे तो भगवान ने कहा है कि अब तुम बिना नहाए ही भोजन बनाया करो। यह सुन कर साधू बोला कि मैं इतना बड़ा तपस्वी हूं लेकिन आज तक भगवान ने मुझे दर्शन नही दिए और तुम कहती हो कि भगवान तुम्हारे नहाए बिना ही तुम्हारे हाथो का बना भोजन ग्रहण करते हैं। साधू ने उसका बहुत अपमान किया और सारे गांव वाले भी उसकी हसीं उड़ाने लगे क्योंकि किसी को भी इस बात पर विश्वास नहीं था। उसी रात को साधू के सपने में भगवान ने आकर कर्माबाई से माफी मांगने को कहा। अगले दिन साधू ने कर्माबाई से जाकर माफी मांगी और कहा कि तुम्हारा मुझ पर बड़ा उपकार है जो आज तुम्हारी वजह से भगवान ने सपने में मुझे दर्शन दिए।
कुछ वर्षों बाद कर्माबाई की मृत्यु हो गई। मंदिर में आ कर जब पुजारी ने देखा कि भगवान जगन्नाथ की आंखो से आंसू बह रहे है उसने तुरंत राजा को बुलाया। राजा और पुजारी दोनो भगवान के सामने हाथ जोडकर कहने लगे कि हे जगन्नाथ भगवान ऐसा हमसे क्या अपराध हो गया है कि आप की आंखो में आंसू है। उसी रात को जगन्नाथ भगवान ने राजा और पुजारी के सपने में आ कर कर्माबाई की मृत्यु की बात बताई और कहा कि उसकी बनाई खिचड़ी मुझे बहुत पसंद थी। कर्माबाई तो मृत्यु के बाद मेरे धाम को चली गई है अब मुझे बाजरे की खिचड़ी कौन बना कर खिलाएगा। अगली सुबह राजा ने पुजारी से कहा कि अब से रोज सुबह भगवान को कर्माबाई के नाम से बाजरे की खिचड़ी का भोग लगा करेगा । आज भी जगननाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को बाजरे की खिचड़ी का ही भोग लगता है।
तो भक्तो, भगवान तो भाव के भूखे होते है। अगर उन्हें प्रेम से खिचड़ी भी खिलाए उसे भी वे छप्पन भोग की तरह स्वीकार करते है।
Why does Lord Jannath feel that Bajra khichdi is enjoyed everyday?
It's a long time ago. A Jat farmer lived in a village in Rajasthan. She had a daughter. Whose name was Karmabai. She was very young in age. His father used to offer bhog to Lord Krishna before having his meal. Then later used to eat himself. One day he had to go to another village for some work. While leaving, he went to tell his daughter that maybe it will be night for me to come, so you should offer God ji and eat food only after that. Daughter said okay father, I will do the same. Karmabai could not know anything other than millet khichdi. That's why he made khichdi of millet. And put the khichdi in front of Lord Krishna to enjoy. And with folded hands said that God should offer it. But the khichdi remained as it was on the plate. On the other hand, Karmabai was feeling very hungry. Then he thought that there is no less ghee in the khichdi today. Father would be offering it by adding more ghee. So he put more ghee in the khichdi but the khichdi remained the same. Kanha ji did not enjoy. Karmabai started crying loudly. And started saying that O Kanha ji, if I have made any mistake, please forgive me and enjoy khichdi. Hearing the call of the little girl, Kanha ji felt pity and came in the form of a small child and started offering it. Then Karmabai also had dinner. When his father came, he asked Karmabai whether she had offered bhog to God or not. He said yes father, God had eaten. And said that now I will offer Bhog to God. Now every day Karmabai started feeding khichdi to Kanha ji. Kanha ji would come as a child and go away after eating khichdi. One day his father saw Kanha ji eating khichdi as a child. And bowed to him with folded hands and gave up his life. After that Karma Bai was left alone. After a few years, Karmabai left that village and started living in Jagannath Puri. She would make khichdi for Kanha ji every morning as per the rules and offer her bhog.
She was getting old with the passage of time. He used to take time to prepare food in the morning routine bath etc. Kanha ji used to take the form of a child and used to sit beside him and used to say mother, cook fast food, I am feeling very hungry, he said that now I am old, now I do not cook food quickly. Kanha ji said mother, now you don't take bath etc. in the morning, first make me khichdi. Take a shower afterwards. That day Kanha ji ate khichdi in a hurry because he had to go to the temple before the priest opened the doors. So in haste, khichdi remained on Kanha ji's face. When the priest saw it, he thought that no one has offered Bhog to Lord ji yet. So where did this khichdi on the face of God come from? On the same night, in the dream of the priest, Jagannath Bhagwan told about Karmabai's khichdi. One day a monk came to Karma Bai's door and saw that she was making khichdi for the Lord without taking a bath. The sage said you should take a bath and prepare food. Karmabai said that God has told me that now you should cook food without taking bath. Hearing this, the sage said that I am such a great ascetic, but till date God has not appeared to me and you say that God takes food prepared by your hands without taking your bath. The sadhu insulted him a lot and all the villagers also started laughing at him because no one believed in this. On the same night, in the dream of the sage, God came and asked Karmabai to apologize. The next day the sage went to Karmabai and apologized and said that you owe me a lot, which today because of you God appeared to me in my dream.
Karmabai died a few years later. Coming to the temple, when the priest saw that Lord Jagannath's eyes were flowing with tears, he immediately called the king. Both the king and the priest started saying with folded hands in front of God that O Lord Jagannath, what crime has happened to us that you have tears in your eyes. On the same night, Lord Jagannath appeared in the dream of the king and the priest and told about the death of Karmabai and said that I liked the khichdi made by him. Karmabai has gone to my abode after death, now who will feed me by making millet khichdi. The next morning the king told the priest that every morning from now onwards, he would offer bajra khichdi to the Lord in the name of Karmabai. Even today, in Jagannath Puri, Lord Jagannath enjoys only bajra khichdi.
So devotees, God is hungry for emotion. Even if you feed them khichdi with love, they also accept it as fifty-six bhog.
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