धर्म ग्रंथों के अनुसार – कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है । इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि इस दिन यमुना ने अपने भाई यमराज जी का आदर सत्कार करके उनसे वरदान प्राप्त किया था ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार – सूर्य भगवान की पत्नी का नाम संध्या था । उनकी एक पुत्री और एक पुत्र था । उनकी पुत्री का नाम यमुना और पुत्र का नाम यमराज था । संध्या सूर्यदेव का तेज सहन नहीं कर पाती थी और एक दिन वो अपनी छाया को छोड़कर तपस्या करने के लिए चली गई । छाया से भी सूर्य देव को एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई । पुत्र का नाम शनि देव और पुत्री का नाम ताप्ती था । यमराज और यमुना में आपस में बहुत स्नेह था । भगवान के आदेशानुसार – यमराज ने पापियों को दंड देने का कार्यभार संभाला । और उन्होंने अपनी यमपुरी नगरी की रचना की । उधर यमुना भी नदी के रूप में परिवर्तित हो गई । इसी तरह समय बीतता चला गया । यमराज अपनी बहन से बहुत ही स्नेह करते थे । उन्हें अपनी बहन की बहुत याद सताती थी । किंतु अधिक व्यस्त होने के कारण वे अपनी बहन यमुना से मिलने नहीं जा पाते थे । यमुना अपने भाई यमराज को अपने घर आने का कई बार निमंत्रण देती थी । परंतु यमराज जी जा ही नहीं पाते थे । एक दिन यमुना ने अपने भाई यमराज को वचन देकर अपने घर भोजन निमंत्रण के लिए बुलाया । यमराज ने सोचा कि मैं तो काल हूं । मैं सबके प्राणों का हरण करता हूं । मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाता । सब मुझे अपने घर बुलाने से डरते हैं । लेकिन मेरी बहन जिस सदभावना से मुझे बुला रही है , उसका पालन करना मेरा धर्म है । इसलिए यमराज ने अपनी बहन के घर जाते समय नरक भोग रहे सारे जीवो को मुक्त कर दिया । उस दिन यमपुरी में उत्सव मनाया गया । और यमराज जी अपनी बहन यमुना के घर चले गए । यमुना अपने भाई को देखकर बहुत खुश हुई । यमुना ने अपने भाई के आने की खुशी में बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन बनाए और उनका बहुत ही आतिथ्य सत्कार किया । यमराज जी उनके आतिथ्य सत्कार से बहुत ही प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा । तब यमुना जी ने कहा कि – भैया , आप आज के दिन प्रतिवर्ष मेरे घर आया करो । और आज के दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर उससे तिलक करवाए और उसका आतिथ्य सत्कार ग्रहण करें । उसे तुम्हारा भय नहीं होना चाहिए और ना ही उसकी अकाल मृत्यु होनी चाहिए । यमराज जी ने "तथास्तु "कहा । यमराज जी ने अपनी बहन को बहुत से उपहार दिए और अपनी यमपुरी को प्रस्थान किया । तभी से यह भैया दूज मनाने की परंपरा चली आ रही है । मान्यता के अनुसार इस दिन यमराज जी और यमुना जी का पूजन करना चाहिए । इस दिन भाई – बहन को यमुना नदी में स्नान करना चाहिए और यमुना देवी का पूजन करना चाहिए। जो भी प्राणी इस दिन यमुना जी में स्नान करता है , उसे काल का भय नहीं होता और उसके सारे कष्ट का निवारण हो जाता है । वह प्राणी मृत्यु के पश्चात यमलोक में नहीं जाता उसकी सद्गति होती है ।
कहते है – इसी दिन श्री कृष्ण भगवान ने नरकासुर का वध किया था और उसके वध के पश्चात श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के घर गए । सुभद्रा ने अपने भाई श्री कृष्ण को तिलक लगाकर आरती की और उनका बहुत ही आतिथ्य सत्कार किया ।
इस दिन शाम के समय यम के नाम से घर के बाहर चहुमुखी दीया जलाना चाहिए ।
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