एक बार श्री कृष्ण भगवान और जामवंत जी के बीच भयानक युद्ध हुआ । युद्ध में जामवंत जी परास्त हो गए । तब जामवंत जी बोले कि – आप कौन हैं ? मुझे तो इस धरती पर केवल प्रभु श्रीराम ही परास्त कर सकते थे । और आप तो श्री राम नही है। फिर आप कौन हैं ? तब श्री कृष्ण ने अपने श्री राम रूप के दर्शन जामवंत जी को कराए । और कहा कि – जामवंत , मैंने ही अब श्री कृष्ण रूप में अवतार लिया है । तब जामवंत जी बहुत ही खुश हुए और उन्होंने प्रभु को स्यामंतक मणि लौटा दी । तब जामवंत जी बोले कि – प्रभु , मेरी आपसे एक विनती है । त्रेता युग में मैंने अपनी पुत्री के विवाह के लिए आपको कहा था । परंतु तब आपने कहा कि – मैं एक पत्नी व्रत धारण कर चुका हूं । इसलिए मैं इस जन्म में एक से अधिक विवाह नहीं करूंगा । तब आपने मुझे कहा था कि – जब मैं श्री कृष्ण रुप में आऊंगा । तब तुम्हारी पुत्री से विवाह करूंगा । इसलिए हे कृपा निधि, आप मेरी जामवंती पुत्री से विवाह कीजिए । तब श्री कृष्ण भगवान ने अपने वचन अनुसार जामवंत की पुत्री जामवंती से विवाह किया । जामवंती बिल्कुल जामवंत के जैसी थी क्योंकि वह एक रीछ जाति से संबंध रखती थी । उसका रूप रंग आकार सब एक रीछनी की भांति ही था । परंतु कृष्ण भगवान ने अपने वचन के अनुसार उस से विवाह किया और उसे द्वारिका ले आए । श्री कृष्ण भगवान ने रास्ते में जामवंती से कहा कि – जब तक मैं ना कहूं , तब तक तुम ना तो अपना घूघंट हटाओगी और ना ही कुछ बोलोंगी । द्वारिका पहुंचकर रुकमणी जी ने कृष्ण भगवान की आरती उतारी । और पूछा कि – प्रभु , ये आपके साथ कौन है ? इसने इतना लंबा घुंघट क्यों ओढ़ रखा है ? और यह सिर से पांव तक इस तरह कपड़ों से क्यों ढकी हुई है कि इसके पैर का एक नाखून भी दिखाई नहीं दे रहा है । तब श्री कृष्ण ने कहा कि ये जामवंती है और मैंने इससे विवाह किया है । यह बहुत ही सुंदर है और अपना रूप किसी को दिखाना नहीं चाहती । तब रुकमणी जी ने उसका घूंघट उठाने का प्रयास किया क्योंकि वे उसका चेहरा देखना चाहती थी । किंतु जामवंती ने अपने घूंघट को कसकर पकड़ रखा था । रुकमणी जी उसके घूंघट को उठाने का प्रयास कर रही थी क्योंकि वे उसका मुख देखना चाहती थी । परंतु जामवंती ने अपना घुंघट नहीं उठाने दिया । ऐसा होते देख रुकमणी जी को क्रोध आ गया और उन्होंने जामवंती को श्राप दिया कि – " तुम्हे अपने रुप रंग पर बहुत ही अभिमान है, तुम अपने आप को हमसे ज्यादा खुबसूरत समझती हो । इसलिए हमे अपना रुप नही दिखाना चाहती। जाओ , मैं तुम्हे श्राप देती हूं कि तुम रुप रंग में मेरे जैसी हो जाओ। " रुकमणी के ऐसा कहते ही जामवंती का रीछनी रूप एक सुंदर सी नारी में बदल गया । तब श्री कृष्ण ने जामवंती का घूंघट हटवाया । जामवंती ने रुकमणी जी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया । और बोली कि – दीदी , यदि मेरे व्यवहार से आपको कोई कष्ट हुआ हो तो मुझे अपनी छोटी बहन समझकर क्षमा करें । जामवंती के ऐसा कहते ही रुक्मणी जी का क्रोध शांत हो गया । उसके बाद जामवंती का द्वारिका में भव्य स्वागत हुआ ।
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