कर्म बड़ा या भाग्य
दो दोस्त आपस में लड़ रहे थे । एक कर्म को बड़ा बता रहा था और दूसरा भाग्य को । तभी उनके पास से एक गुरुजी जा रहे थे । उन्होंने उन गुरु जी को रोका और उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि हे गुरुदेव ! अब आप ही हमें बताइए कि हम में से कौन सही है । कर्म बड़ा है या भाग्य । गुरूदेव सोचने लगे कि इन्हें यह बात कैसे समझाऊं ? तब गुरूदेव बोले कि मैं इस बात का जवाब तुम्हें कल सुबह दूंगा । लेकिन इससे पहले तुम्हें आज रात एक कमरे में बंद रहना होगा , तुम्हें खाने पीने के लिए कुछ नही दिया जाएगा । तुम्हे भूखा ही रहना होगा । तब अगली सुबह मैं तुम्हारे इस सवाल का जवाब दूंगा । दोनों दोस्त तैयार हो गए । रात्रि हुई दोनों गुरुदेव के पास आए । तब गुरुदेव ने एक कमरे में दोनों को बंद कर दिया । जो दोस्त कर्म में विश्वास रखता था वह बोला अरे ! यार बहुत भूख लग रही है । दूसरा दोस्त बोला कि हमारे भाग्य में ही जब आज भूखा रहना है , तो हम क्या कर सकते हैं ? परंतु पहला दोस्त बोला कि नहीं , मैं कर्म पर विश्वास रखता हूं भाग्य को नहीं मानता । इस कमरे में खोजता हूं कि कहीं शायद कुछ खाने को रखा हुआ हो । तो पहला दोस्त उस कमरे में चारों तरफ को धीरे-धीरे हाथ बढ़ाने लगा , तो उसके हाथ एक कटोरा लगा । उस कटोरे में भीगे हुए चने थे । वह दोस्त उस कटोरे को लेकर अपने दूसरे दोस्त के पास आया और बोला कि – देखा , मैंने कहा था ना कि कर्म बड़ा है । कल गुरुदेव कर्म को ही बड़ा बताएंगे । देखो , इस कटोरे में भीगे हुई चने हैं चलो खाते हैं । दूसरा दोस्त बोला कि नहीं मुझे भाग्य पर भरोसा है मैं नहीं खाऊंगा , तुम ही खाओ । तो पहला दोस्त जब चने खाने लगा तो उसके मुंह में कंकड़ आई । उसने दूसरे दोस्त से कहा कि लो , तुम ये चने नहीं खाओगे तो इन कंकड़ को ही पकड़ो । उसने धीरे धीरे सारे कंकड़ दूसरे दोस्त को दे दिए । दूसरे दोस्त ने भी उन कंकड़ों को संभाल कर अपनी जेब में रख लिया । अगली सुबह गुरुदेव ने जब कमरा खोला । पहले दोस्त ने गुरुदेव से कहा कि रात जब आपने हमें कमरे में बंद किया था तो मुझे बहुत भूख लगी और मैंने कर्म पर विश्वास रख कर , उस अंधेरे कमरे में कुछ खोजा , तो मुझे एक कटोरा मिला । उस कटोरे में कुछ भीगे हुए चने थे। मैंने उन चनों को खाकर अपनी भूख शांत की । यह बेचारा भाग्य पर विश्वास रखकर भूखा ही रहा । । इसलिए गुरुदेव कर्म ही सबसे बड़ा है । गुरुदेव ने दूसरे दोस्त से कहा कि दिखाओ , तुम्हे जो कंकड़ मिले थे , कहां पर हैं ? तो दूसरे दोस्त ने जैसे ही जेब में हाथ डाला और कंकड़ गुरु को दिखाएं । तो वे कंकड़ नहीं थे , वे हीरे थे । तब पहला दोस्त हैरान हो गया । तब गुरुदेव ने कहा कि – तुम्हें कर्म से चने खाने को मिले थे । लेकिन तुम्हारे भाग्य में हीरे नहीं थे । इसलिए तुमने वे हीरे कंकड़ समझ कर दूसरे दोस्त को दे दिए । और इसके भाग्य में हीरे थे इसीलिए इसने भी इन हीरों को फेंका नहीं , बल्कि उन्हें संभाल कर अपनी जेब में रख लिया । गुरुदेव ने दूसरे दोस्त से कहा कि तुम्हें कर्म करना चाहिए था । कर्म के बिना भाग्य नहीं बनता । कर्म और भाग्य साथ – साथ ही चलते हैं । मुझे लगता है कि अब तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब मिल गया होगा । दोनों दोस्त गुरुदेव की बात से सहमत हो कर कहने लगे कि ना कर्म बड़ा है , ना भाग्य बड़ा है । कर्म और भाग्य दोनों ही साथ साथ चलते हैं ।
तो दोस्तों , हमे भाग्य पर विश्वास रखते हुए कर्म करना चाहिए । यदि हम कर्म ही नहीं करेंगे तो भाग्य हमारा साथ कैसे देगा ।
रिक्शे वाले की दरियादिली
साहब ! किधर जाओगे ,? रिक्शा चालक ने स्टेशन से बाहर आते हुए एक यात्री से पूछा । चर्च रोड जाना है , चलोगे ? हां , हां , साहब चलूंगा । बैठिए आप । उस अधेड़ उम्र के रिक्शा चालक ने रिक्शे की सीट को अपने हाथ से थपथपा कर झाड़ा । आज रात की ट्रेन बहुत लेट थी और अब तो रात के 11:30 बज गए थे । डेविड जी अपने ऑफिस की ऑडिट टीम के साथ अभी-अभी ट्रेन से उतरे थे । ट्रेन से उतरते ही उन्हें घर पहुंचने की जल्दी होने लगी थी । दरअसल कल क्रिसमस है और आज उनकी पत्नी रोजी उनके संग चर्च जाने का इंतजार करती हुई कहीं थक्कर ना सो जाए । ये सोचकर स्टेशन से चर्च रोड पर थोड़ी ही दूर अपना घर होने के बावजूद भी डेविड जी ने रिक्शा पकड़ कर अपने घर जाने का फैसला किया । तब रिक्शे पर बैठते ही डेविड जी की नजर रिक्शा चालक के पहनावे पर गई । उसने अपने कानों को एक मफलर से लपेटा हुआ था । दिसंबर की इस ठंड में भी मात्र शरीर पर एक कुर्ता पहने देख , डेविड जी जिसने की जैकेट और दस्ताने पहने हुए थे , उनके शरीर में भी एक सिहरन सी दौड़ गई । अरे यार ! तुम्हें ठंड नहीं लगती , कम से कम एक स्वेटर तो पहन लिया करो । खुद से कम उम्र के उस रिक्शा चालक को डेविड जी ने डांटा । लेकिन रिक्शा चालक ने अपने रिक्शे के पेंडल पर जोर लगाते हुए सफाई दी । घर से स्वेटर पहन कर ही आया था , साहब । फिर उतार क्यों दिया ? डेविड जी ने हैरानी से पूछा । लेकिन रिक्शा चालक ने स्टेशन के बाहर बैठे हुए दोनों पैरों से अपाहिज एक भिखारी की ओर इशारा किया । अब क्या बताएं , साहब ! उसे ठंड से ठिठुरते देख मुझसे रहा नहीं गया । उस रिक्शा चालक की दरियादिली देख डेविड जी दंग रह गए । स्टेशन पर आते जाते लोगों में से कौन इतना गोर देता है कि – किसके तन पर कपड़ा है और कौन ठंड से कांपता हुआ जमीन पर पड़ा है । डेविड जी की नजर भी तभी उस भिखारी पर पड़ी थी । जब रिक्शा चालक ने उसकी ओर इशारा किया । वरना डेविड जी वहां कहां देखने वाले थे । एक गरीब का दूसरे गरीब के प्रति यह संवेदनशीलता देख डेविड जी कुछ सोच में पड़ गए । इधर वह रिक्शा चालक अपने रिक्शे के पैडल पर जोर लगाते हुए स्टेशन की भीड़ से डेविड जी को चर्च रोड पर ले आया था । जरा रुको , कुछ छूट गया है क्या साहब ! डेविड को अपने छोटे से ट्रॉली बैग का लॉक खोल कर देख रिक्शा चालक ने अनायास ही पूछ लिया । बिना कुछ जवाब दिए डेविड जी ने अपने ट्रॉली बैग से एक नया जैकेट निकालकर रिक्शा चालक की ओर बढ़ा दिया । इसे पहन लो । यह तो बहुत महंगा होगा साहब । नहीं , आज इतनी ठंड में तुम्हारे उस इकलौते स्वेटर के सामने मेरी इस एक्स्ट्रा जैकेट की कोई कीमत नहीं । नहीं , नहीं साहब मैं नहीं ले सकता । कल क्रिसमिस है , इसे क्रिसमस का उपहार समझकर ही ले लो । डेविड जी मुस्कुराए और उनकी यह बात सुनकर रिक्शा चालक हैरान हो गया । साहब ! वो लाल जैकेट पहनकर , दाढ़ी लगाए जो बूढ़ा आदमी सब से हाथ मिला कर बच्चों को क्रिसमस का उपहार देता है । उसको आप लोग क्या कहते हैं ? वह रिक्शा चालक खुश होकर डेविड जी के हाथ से जैकेट लेते हुए पूछ बैठा । उसकी बात सुनकर डेविड जी हंस पड़े सैंटा क्लॉस , सैंटा क्लॉस कहते हैं हम उसे । तो साहब ! आज तो आप मेरे लिए सचमुच के सैंटा क्लॉस ही हो गए । डेविड जी उसकी बात सुनकर बहुत जोर से हंस पड़े ।
दोस्तों , जितना हम से हो सके हमें जरूरतमंदों की सहायता करनी चाहिए । क्योंकि जब कोई सच्चे दिल से दुआ देता है तो उसकी दुआ में बहुत असर होता है ।
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