a true story of vrandavan | वृंदावन के ग्वाले की सच्ची घटना


 

वृंदावन में एक संत जी रहते थे । श्री कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे । उनका एक छोटा सा 8 साल का शिष्य था ।  वह एक अनाथ बालक था । इसीलिए गुरु जी ने बचपन से ही उसे संभाला , उसे अपनी शरण दी और उसका पालन पोषण किया । उस बालक के अंदर कृष्ण भगवान से मिलने की बहुत ही ललक थी । वह गुरु जी से कान्हा जी की कथाएं सुनता था और कथाओं के माध्यम से उसे कृष्ण जी से इतना लगाव हो गया कि वो उनके साक्षात दर्शन करना चाह रहा था । वह बार-बार अपने गुरु से पूछता था कि गुरु जी , मुझे कृष्ण भगवान के दर्शन कब होंगे । तब गुरु ने एक बार उसे कह दिया कि तुम गाय चराने वन में जाया करो । कृष्ण भगवान भी गईया चराने वन में ही जाते थे । तो तुम्हें वहां पर कृष्ण भगवान के दर्शन हो जाएंगे । वह रोज प्रतिदिन आश्रम की गायों को चराने के लिए लेकर जाने लगा । लेकिन उसे कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं हुए । एक दिन उस ने अपने गुरु से पूछा – गुरु जी , मैं तो गाय भी चराने जाता हूं ,लेकिन मुझे अब तक कृष्ण भगवान क्यों नहीं मिले । तब गुरु जी ने कहा कि तुम यमुना पार जाकर गैया चराया करो । वहां कृष्ण भगवान गईयां चराने अवश्य आते होंगे और तुम्हें वहीं पर उनके दर्शन होंगे । गुरु जी के कहे अनुसार वह बालक अगले दिन यमुना पार गया और वहीं पर गैया चराने लगा । लेकिन उसे फिर भी कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं हुए । उसने अगले दिन फिर गुरु जी से पूछा कि – गुरु जी , मुझे कल भी कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं हुए । क्या वे अब गैया चराने नहीं आते । तो गुरुजी ने कहा कि आते हैं ,लेकिन भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं । तुम अपना नित्य कर्म करते रहो । तुम्हें एक दिन भगवान के जरूर दर्शन होंगे । गुरु जी को कुछ दिनों के लिए आश्रम से बाहर जाना पड़ा । कुछ दिनों पश्चात जब वह बालक एक दिन गाय चरा रहा था , तो उसने देखा कि दूर से कोई गाय और बछड़े को चराता हुआ आ रहा है । जब वे उसके पास गए तो वे स्वयं साक्षात ही कृष्ण भगवान और बलराम थे और उनके साथ में उनके ग्वाल बाल सखा भी थें । बालक ने कहा कि – कान्हा , आप इतने दिनों बाद यहां गैया चराने आए हो , मैं आपकी प्रतीक्षा में कब से यहां आता हूं कि मुझे आप के दर्शन होंगे । भगवान ने कहा –  आओ बैठो , मिलकर बातें करते हैं । तब बालक बोला कि – कान्हा, मैं आपके साथ मित्रता करना चाहता हूं । क्या आप मुझे अपना ग्वाल सखा बनाएंगे ? कृष्ण भगवान ने कहा – अवश्य , तुम्हारे जैसा सखा पाकर तो मैं भी धन्य हो जाऊंगा ।  तो आज से हम मित्र हुए –  बालक ने कहा । कृष्ण भगवान के सखा कुछ दाल बाटी बनाने का सामान भी साथ में ले रहे थे । उन्होंने सब ने मिलकर वही भोजन बनाया और खाया । कृष्ण भगवान ने उस बालक से कहा कि – कल जब तुम आओगे , तुम भी दाल बाटी की सामग्री लाना और यहीं पर सब भोजन बनाकर खाएंगे । उसने कहा ठीक है । अगले दिन वह दाल बाटी की सामग्री लेकर गैया चराने गया । वहीं पर उसे फिर से कृष्ण और बलराम के दर्शन हुए । उन सब ने मिलकर दाल बाटी बनाई और वहीं पर खाई । अब तो वह प्रतिदिन दाल बाटी की सामग्री ले जाता और वहीं पर भगवान कृष्ण के साथ मिलकर खाता । गुरु जी आश्रम में आ गए थे । गुरु जी के आते ही उनके दूसरे शिष्यों ने कहा कि – गुरुदेव जब आप यहां पर नहीं थे , तो यह प्रतिदिन दाल बाटी की सामग्री वन में ले जाता था । इससे पूछो कि – ये ऐसा क्यों करता था ? तब गुरुदेव ने उस छोटे से 8 साल के बालक को अपने पास बुलाया और उससे प्यार पूछा । तब उसने बताया कि – गुरु जी , आपने सत्य कहा था , कृष्ण और बलराम वहीं पर गैयां चराने आते हैं । मुझे उनके दर्शन हुए हैं । उन्होंने ही मुझसे दाल बाटी की सामग्री वन में मंगवाई थी और हम सब वहीं पर भोजन बनाकर खाते थे। दूसरे सभी शिष्य उसकी इस बात पर हंस पड़े । परंतु गुरुदेव को उसकी बात पर विश्वास था । क्योंकि वह बालक कभी भी झूठ नहीं बोलता था । तब गुरु जी बोले कि – तुम दाल बाटी की सामग्री लेकर जाओ और कृष्ण भगवान से कहना कि – मैं भी उनके दर्शन करना  चाहता हूं । क्या वे आश्रम में आकर हमारी सेवा स्वीकार करेंगे । उसने कहा ठीक है , मैं अपने कृष्ण सखा से पूछ लूंगा । वह फिर चला गया। बालक ने कृष्ण भगवान से पूछा कि – मेरे गुरुजी भी आपके दर्शन करना चाहते हैं । क्या आप कल हमारे आश्रम में आएंगे ।  तो कृष्ण भगवान ने कहा कि – नहीं , मैं वहां नहीं आ सकता । मैं तुम्हारे गुरु को दर्शन नहीं दे सकता । क्योंकि उनमें अभी तुम्हारे जैसी निष्काम भक्ति नहीं है । यह सुनते ही वह नन्हा सा 8 साल का बालक उठकर चलने लगा । कृष्ण भगवान ने कहा – अरे ! क्या हुआ सखा , तुम कहां चल दिए ? तब वह बालक बड़ी मासूमियत से बोला कि – जब आप मेरे गुरु जी को दर्शन नहीं दोगे , तो मैं भी आपसे मित्रता नहीं करूंगा और ना ही आपसे मिलने यहां आया करूंगा । कृष्ण भगवान उस बालक के भोलेपन पर मोहित हो गए और कहा कि – ठीक है सखा , कल अपने गुरु जी को यही ले आना । मैं उनसे यही मिलूंगा । लेकिन मैं तुम्हारे आश्रम में नहीं जाऊंगा । तब वह बालक बोला ठीक है , कल मैं अपने गुरु जी को अपने साथ ले आऊंगा । उस बालक ने आश्रम में जाकर सारी बात गुरु जी को बताई ।  गुरु जी ने कहा –  ठीक है , जैसी भगवान की इच्छा । अगले दिन वह बालक अपने गुरु जी के साथ दाल बाटी की सामग्री लेकर वन में गैयाँ चराने आ गया । तब वहां एक अद्भुत करिश्मा हुआ । कृष्ण , बलराम और उनके ग्वाल सखा उस नन्हे से बालक को तो नजर आ रहे थे । परंतु उसके गुरु जी को वहां पर कोई भी नजर नहीं आया । वह बालक कृष्ण भगवान से बातें करने लगा । तब उसके गुरुजी बोले कि तुम किस से बात कर रहे हो ? यहां पर तो कोई भी नहीं है । बालक बोला कि – गुरु जी , यहां सामने कृष्ण और बलराम बैठे हैं , मैं उन्हीं से बातें कर रहा हूं और उनके साथ उनके सारे ग्वाल बाल भी हैं । तब गुरु जी ने कहा – लेकिन मुझे तो यहां किसी के भी दर्शन नहीं हो रहे हैं । तब वह बालक बोला कि – हे कान्हा , यह क्या लीला है , आप मुझे तो नजर आ रहे हो ,  लेकिन मेरे गुरुदेव को नहीं । यदि आप ऐसा करोगे तो मैं यहां से उठ कर चला जाऊंगा । तब कृष्ण भगवान बोले – नहीं , नहीं सखा ऐसा मत करना । दरअसल तुम्हारे गुरु जी की भक्ति अभी तुम्हारे जैसी निश्चल नहीं है । इसीलिए मैंने उन्हें दर्शन नहीं दिए , लेकिन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे कहने से मैं तुम्हारे गुरु जी को भी दर्शन देने को तैयार हूं । ऐसा कहते ही कृष्ण भगवान ने गुरु जी को अपने और बलराम जी के और अपने ग्वाल सखा के दर्शन कराएं । गुरु जी कृष्ण भगवान के चरणों में गिर पड़े और बोले कि – भगवन , आपका बड़ा उपकार है ,जो आपने मुझ पर कृपा की और मुझे दर्शन दिए । मेरा तो जन्म सफल हो गया । तब कृष्ण भगवान बोले कि – आपके शिष्य की वजह से ही आपको मेरे दर्शन हो पाए हैं । आपका ये शिष्य बड़ा ही निश्चल और आपका सच्चा सेवक है । जो आपके लिए मेरी मित्रता को त्यागने के लिए भी तैयार है । तब गुरु जी और उस नन्हे से बालक ने भोजन बनाया और कृष्ण , बलराम को भोग लगाया और फिर आपस में मिल बांट कर खाया । उसके पश्चात कृष्ण भगवान वहां से अंतर्ध्यान हो गए। 

  तो भक्तों इस कथा से हमें यही सीख मिलती है कि  भगवान तो प्रेम के भूखे होते हैं । जो उनसे निष्काम भाव से प्रेम करता है , वे उसे अवश्य दर्शन देते हैं ।

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