विद्यापति नाम के एक श्रेष्ठ कवि थे । वह शिव के परम भक्त थे । एक दिन शिव शंकर भगवान उनके भक्ति भाव से प्रसन्न होकर सोचने लगे कि क्यों ना अपने इस भक्त के घर पर जाकर कुछ इसकी सेवा की जाए । ये मेरा नाम हमेशा जपता रहता है । क्यों ना कुछ दिन अपने इस भक्त के साथ रहा जाए। शिव शंकर ने एक साधारण से व्यक्ति का रूप बनाया और विद्यापति के घर आ गए और उनसे कहा कि महाराज , मुझे नौकरी की बहुत जरूरत है । मुझे अपने यहां काम पर रख लीजिए । विद्यापति बोले कि – मैं तुम्हें काम पर नहीं रख सकता । मैं तो अपने परिवार के ही खाने की व्यवस्था बहुत मुश्किल से कर पाता हूं । लेकिन शिव जी बोले कि – महाराज , आप जो खाएंगे उसमें से थोड़ा सा मुझे भी दे देना और यदि आप भूखे रहेंगे तो मैं भी भूखा रह लूंगा। परंतु मुझे अपनी सेवा में रख लीजिए । शिव जी बार बार विनती करने लगे । विद्यापति को उन पर दया आ गई और उनसे उनका नाम पूछा । तब शिवजी ने कहा कि – मेरा नाम उगना है । विद्यापति ने उन्हें अपने यहां नौकर रख लिया । एक बार विद्यापति राजा से मिलने के लिए जा रहे थे । तब वह उगना सेवक बोला कि – मैं भी आपके साथ चलूंगा । विद्यापति ने कहा – ठीक है , चलो । वे जंगल के रास्ते जा रहे थे । विद्यापति को प्यास लगी , लेकिन वहां पर दूर – दूर तक कहीं पानी नजर नहीं आया। तब विद्यापति ने अपने सेवक उगना से कहा कि – जाओ , कहीं से पानी की व्यवस्था करके आओ । बहुत प्यास लगी है। कंठ सूखा जा रहा है। उगना ने कहा – ठीक है , उगना थोड़ी दूरी पर गए और अपनी जटा से गंगाजल भरकर ले आए । और विद्यापति से कहा कि –लो मालिक ,जल पी लीजिए । विद्यापति ने कहा – अरे उगना बहुत जल्दी जल ले आए । ये कहते हुए विद्यापति ने जैसे ही जल पिया , तो उसे जल का स्वाद कुछ अलग लगा । तब उन्होंने उगना से पूछा कि इस जल्द का स्वाद ऐसा क्यों लग रहा है ? जैसे यह गंगाजल हो । तब विद्यापति को उगना पर शक हुआ । और बोले कि सच – सच बताओ , तुम कौन हो ? यदि तुमने मुझे अपना सत्य नहीं बताया , तो मैं यहीं अपने प्राण त्याग दूंगा । विद्यापति के ऐसा कहते ही उगना अपने असली रूप में प्रकट हो गए । शिव जी को देखते ही विद्यापति उनके चरणों में गिर पड़े और रोने लगे कि प्रभु मेरे हाथों यह क्या अपराध हो गया ? मैंने आपको अपना सेवक बनाया , आपसे अपनी सेवा करवाई । बल्कि मुझे आप की सेवा करनी चाहिए । तब शिवजी ने कहा कि – नहीं , इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । मैं तुम्हारी भक्ति से इतना प्रसन्न हूं कि मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं । और तुम्हारी सेवा करना चाहता हूं । यदि तुम मुझे अपने साथ नहीं रखोगे , तो मैं तुमसे रूष्ट हो जाऊंगा । विद्यापति ने कहा कि – नहीं , भगवान ! आप मुझसे नाराज मत होइए । यदि आप मुझसे नाराज हो जाएंगे , तो फिर तो मेरे इस जीवन का कुछ भी महत्व नहीं है । यदि आप को यही मंजूर है , तो आप मेरे साथ ही रहना । तब शिव जी ने कहा कि – तुम्हें मुझे एक वचन और देना होगा कि यह बात तुम किसी को नहीं बताओगे कि मैं शिव हूं । यदि तुमने अपना वचन तोड़ा तो मैं उसी क्षण तुम्हें छोड़ कर चला जाऊंगा । विद्यापति ने कहा – ठीक है भगवन, जैसी आपकी इच्छा । तब से विद्यापति भगवान शिव से सबके सामने बहुत ही संभल कर काम करवाते थें। उन्हें डर था कि भगवान से कुछ ऐसा काम ना कराया जाए जिससे भगवान को कष्ट हो । एक दिन विद्यापति को किसी काम से बाहर जाना पड़ा । घर पर उगना सेवक ही थे । विद्यापति की पत्नी चूल्हे पर खाना बना रही थी और उन्होंने उगना सेवक को कुछ काम सौंप दिया । उस काम को करने में उगना सेवक को विलंब ( देर ) हो गया । इस पर विद्यापति की पत्नी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने जलते चूल्हे से लकड़ी निकालकर उगना की खूब पिटाई की । उगना सेवक चुपचाप पिटते रहे । इतने में विद्यापति घर पर आ गए और उन्होंने ये सब देखा । तो उन्होंने दौड़ कर अपनी पत्नी से लकड़ी छीन कर फेंक दी । और कहने लगे कि– हे दुर्भाग्यवान , ये तुमने क्या कर दिया , तुमने हमारे जन्म – जन्म के पापों को बढ़ा लिया । तुम्हें पता है , तुम किसकी पिटाई कर रही थी । ये तो साक्षात शिव भगवान है । जैसे ही विद्यापति ने यह बात कही उगना सेवक वहां से अंतर्ध्यान हो गया । क्योंकि विद्यापति ने अपने वचन को तोड़ दिया था । ये देखते ही विद्यापति भागकर जंगल की ओर आए और वहां बैठकर जोर – जोर से रोने लगे और भगवान शिव को पुकारने लगे , कि हे भगवान ! एक बार आ जाओ । मुझे अपने दर्शन दो । मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगा । वह बहुत ही जोर – जोर से रो – रो कर प्रार्थना कर रहा था । उसकी करुण प्रार्थना सुनकर भोले बाबा प्रकट हुए । विद्यापति ने शिव शंकर भगवान के चरण पकड़ लिए और अपने पापों के लिए क्षमा मांगने लगा । शिव जी बोले कि – इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । मैं तुमसे अब भी बहुत प्रसन्न हूं , बोलो क्या चाहते हो ? तब विद्यापति बोले कि – प्रभू, मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ हमेशा रहे । तब भोले बाबा ने कहा कि – जिस स्थान पर तुमने रो-रोकर मुझे पुकारा है मैं यहीं पर अपने शिवलिंग रूप में स्थापित रहूंगा और मेरा नाम उगना महादेव के नाम से जाना जाएगा ।
तो भक्तों, भगवान को अपने भक्तों के लिए क्या-क्या रूप धारण करने पड़ते हैं । जिस तरह एक सच्चे भक्त को अपने भगवान से मिलने की चाहत रहती है , उसी तरह भगवान भी अपने भक्तों से मिलने के लिए उतावले रहते हैं । आज भी शिव शंकर भगवान हमारे भारतवर्ष में उगना महादेव के रूप में हमारे साथ विराजमान है।
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