एक गांव में रघुनाथ जी का बहुत ही भव्य मंदिर था । उसी गांव में राज कुमार नाम का एक व्यक्ति था। उसकी दो बेटिया थी । वे रघुनाथ जी के अनन्य भक्त थे । वे हर बात पर बस यही कहते थे कि मैं कुछ नहीं जानता , बस रघुनाथ जी ही जाने । वे नित्य प्रति दिन मंदिर में जाया करते थे और रघुनाथ जी की मूर्ति के आगे बैठकर भजन-कीर्तन करते थे । एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि बेटियां बड़ी हो गई हैं । अब हमें उनका विवाह कर देना चाहिए । आप जमींदार से कुछ कर्ज ले लो । बेटियों के विवाह के बाद धीरे-धीरे हम उनका कर्ज चुका देंगे । राजकुमार बोला जैसी रघुनाथ जी की इच्छा । वह जमींदार के पास गया और अपनी बेटी के विवाह के लिए कर्ज लिया । उसने अपनी बेटी का विवाह अच्छे परिवार में संपन्न किया। कुछ दिनों के बाद राजकुमार जमींदार के पास उनका कर्ज चुकाने गए। जमींदार ने पैसे गिने और उन्हें एक कागज दिया । जिस पर लिखा हुआ था कि सारा कर्जा चुका दिया है अब कोई शेष बाकी नहीं है । उस कागज पर राजकुमार को हस्ताक्षर करने के लिए कहा और जमींदार ने स्वयं भी उस कागज पर हस्ताक्षर कर दिए थे । तब राजकुमार बोला कि मुझे तो पढ़ना लिखना नहीं आता , मैं तो अनपढ़ हूं । मैं क्या जानू इस पर क्या लिखा हुआ है । यह सुनते ही जमींदार के मन में लालच आ गया और उसने उस कर्ज वाले कागज को किसी दूसरे कागज से बदल दिया । जिस पर कुछ आड़ी तिरछी रेखाएं खींची थी। राजकुमार ने घर आकर वह कागज रघुनाथ जी के सामने रख दिया । कुछ दिनों के बाद जमींदार ने राजकुमार पर केस कर दिया कि राजकुमार ने उसका पूरा पैसा नहीं लौटाया है। जब राजकुमार को बुलाया गया तो जज साहब ने पूछा कि तुमने इसका पैसा क्यों नहीं लौटाया। तब राजकुमार बोला – हुजूर , मैंने तो सारा पैसा लौटा दिया है और उन्होंने मुझे एक कागज भी दिया है । जिस पर इनके हस्ताक्षर हैं और उस पर लिखा हुआ है कि मैंने इनका सारा कर्जा चुका दिया है । तब जज साहब बोले – क्या तुम्हारे पास वह कागज है , उसे लेकर आओ । जब राज कुमार ने वह कागज अपने घर से मंगा कर जज साहब को दिखाया तो उस पर आड़ी तिरछी रेखाएं खींची थी । तब जज साहब बोले कि इस पर तो यह सब नहीं लिखा हुआ है । तब राजकुमार रोने लगा । जज साहब बोले कि तुम रोओ मत , तुम दोनों के अलावा क्या कोई और तीसरा भी इस बात को जानता है । तब राजकुमार बोला – हां , रघुनाथ जी जानते हैं । जज साहब बोले – ठीक है । जज साहब ने सोचा कि – रघुनाथ जी कोई व्यक्ति होंगे । यह सोचकर उन्होंने रघुनाथ जी के नाम समन भिजवा दिया । और राजकुमार को घर भेज दिया । अदालत का कर्मचारी समन लेकर पूरे गांव में घूमता रहा । पर उसे रघुनाथ नाम का कोई भी व्यक्ति नहीं मिला । जब वह समन लेकर जा रहा था तब मंदिर के बाहर पुजारी जी बैठे हुए थे । उसने पुजारी से पूछा कि – रघुनाथ जी कहां रहते हैं ? पुजारी ने कहा कि यहीं पर रहते हैं । तब उसने वह समन पुजारी को दे दिया और कहा कि रघुनाथ जी को इस समन में जो तारीख लिखी है , उस दिन अदालत में पेश होना है । पुजारी ने वह समन रघुनाथ जी की मूर्ति के पास रख दिया और कहने लगा – क्या पता प्रभु की क्या इच्छा है ? अगली तारीख पर जब सुनवाई हुई , तो जज ने रघुनाथ जी के नाम की हाज़िरी लगवाई कि – रघुनाथ जी हाजिर हो । तब एक बूढ़ा सा व्यक्ति जिसके चेहरे पर एक दिव्य तेज था । लकड़ी के सहारे चलता हुआ अदालत में आया । जज ने पूछा – तुम कौन हो ? तो वह बोला कि मैं रघुनाथ हूं । तब उस रघुनाथ जी ने गवाही दी कि जमींदार झूठ बोल रहा है । राजकुमार ने सारा कर्ज चुका दिया है। और एक कागज पर भी यह सब लिखा हुआ है । वह कागज जमींदार की अलमारी में दराज में रखा हुआ है । जब सिपाहियों को जमींदार के घर भेजा , तो वहां से वह कागज मिला । तब जज साहब ने उस कागज को पढ़ा । और जमींदार को झूठे केस दर्ज करने के जुर्म में सजा सुनाई गई और राजकुमार को बाइज्जत बरी कर दिया गया । तब सब की भीड़ में वह वृद्ध रघुनाथ पता नहीं कहां पर अंतर्ध्यान हो गए । जज साहब ने ऐसा गवाह पहली बार देखा था । तब उन्होंने उस कर्मचारी को बुलाया , जो रघुनाथ जी को समन देकर आया था । उससे पूछा कि तुमने कहां पर समन दिया था । तो उसने मंदिर का पता बता दिया। तब जज साहब उस गांव के मंदिर में गए तो उन्हें रघुनाथ जी की मूर्ति में उस बूढ़े व्यक्ति के दर्शन हुए । जज साहब को यह समझते देर न लगी कि वह बूढ़े व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि भगवान रघुनाथ जी थें । राजकुमार की भक्ति में इतनी शक्ति थी कि स्वयं भगवान उसके लिए गवाही देने आए थे । जज साहब राजकुमार के घर की ओर दौड़े और जाकर उसके चरणों में गिर पड़े । तब राजकुमार बोला कि – जज साहब आप ये क्या कर रहे हैं ? तब जज साहब बोले कि तुम भगवान के सच्चे भक्त हो , जो तुम्हारे लिए स्वयं भगवान गवाही देने आए थे । तब राजकुमार ने बड़े ही भोलेपन से कहा कि – मैं कुछ नहीं जानता , रघुनाथ जी ही जाने ।
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