हिंदी कहानिया। वैश्या और भगवान। शिव की परीक्षा। अर्जुन का घमंड। शिव के तीन वरदान


 
 

वैश्या और भगवान 

एक बार एक बहुत ही प्रसिद्ध संत थें। वे अपने शिष्यों के साथ रंगनाथ जी के दर्शन के लिए जा रहे थे । रास्ते में उन्होंने एक बहुत ही सुंदर सा आमों का बगीचा देखा । उस बगीचे को देखकर संत जी के मन में वहां थोड़ी देर विश्राम करने का विचार आया। संत जी ने वहीं पर अपनी झोली में से अपने प्रभु की मूर्ति निकाली और उनका भजन करने लगे । तभी वहां पर एक डाली से आम टूटकर गिरा । संत जी ने उस आम का भोग भगवान जी को लगाया और अपने शिष्यो में भी बांट दिया । तभी वहां से एक आदमी गुजर रहा था । उन संत जी ने आदमी से पूछा कि – यह सुंदर सा बगीचा किसका है ? इसके फल तो बहुत ही मीठे हैं । तब उस आदमी ने कहा कि –  यह बगीचा यहां की एक प्रसिद्ध वैश्या का है । यह सुनते ही संत जी सोचने लगे कि हमसे ये क्या अपराध हो गया । हमने एक वैश्या के बगीचे का आम खाया और अपने प्रभु को भी उसका भोग लगाया । इतने में ये खबर उस वैश्या तक पहुंच गई कि – उसके बगीचे में कुछ साधु संत रुके हैं । वैश्या ने जब यह सुना , तो वह बहुत ही खुश हुई और एक थाली में सोने , चांदी , हीरे , मोती के आभूषण और दूसरी टोकरी में कंदमूल फल लेकर उन साधु-संतों के पास आई और कहने लगी कि – हे संत महाराज जी , कृपया यह सब ग्रहण कीजिए और मेरा उद्धार कीजिए । तब संत जी बोले – हमें इसमें से कुछ भी नहीं चाहिए ।  हमें सोने चांदी की आवश्यकता नहीं है । हमें तो अपने प्रभु के नाम का ही धन प्यारा लगता है । इसलिए आप कृपया अपना यह सामान वापस ले जाइए । हमारा धन तो मेरे रंगनाथ जी है। लेकिन उस वैश्या के बहुत कहने पर संत जी बोले – यदि तुम इतनी जिद कर रही हो , तो तुम यह जो सोना चांदी लाई हो इससे एक रंगनाथ भगवान जी के लिए मुकुट बनवाओ । हम उस मुकुट को रंगनाथ जी को पहना देंगे । तब उस वैश्या ने अपने पास जितने भी कीमती हीरे मोती थे । सब एक सुनार को ले जाकर दे दिए और कहा कि इनसे एक रंगनाथ जी के लिए सुंदर सा मुकुट तैयार करो । सुनार ने एक बहुत ही अद्वितीय सुंदर मुकुट बनाया। वेश्या उस मुकुट को लेकर जैसे ही रंगनाथ जी के मंदिर में पहुंचने वाली थी । तभी कुछ दूरी पर उसे मासिक धर्म शुरू हो गया और वह मंदिर के बाहर ही खड़ी हो गई । उसने संत जी को बुलवाया और कहा कि – आप यह मुकुट रंगनाथ जी को पहना दो । मैं इस समय मासिक धर्म से हूं । और वैसे भी मैं एक वैश्या हूं , मैं अपने हाथों से भगवान को छूकर अपवित्र नही करना चाहती । मैं कुछ दिनो बाद आकर तब दूर से ही भगवान के दर्शन कर लूंगी । संत जी ने वह मुकुट वहां के पुजारी को दे दिया और कहा कि रंगनाथ भगवान को मुकुट पहनाओं । जैसे ही पुजारी भगवान को मुकुट पहनाने लगे , तो रंगनाथ जी का सिर ऊंचा हो गया । पुजारी ने एक लकड़ी का मेज रखा और उस पर चढ़कर मुकुट पहनाने लगे , तो रंगनाथ जी का सिर नीचा हो गया । यह एक बहुत ही अद्भुत चमत्कार था । पुजारी जी रंगनाथ जी को मुकुट नहीं पहना पा रहे थे । सब ये देखकर हैरान हो गए थे तब संत जी ने रंगनाथ जी से पूछा कि हे भगवान , ये क्या हो रहा है । आप मुकुट क्यों नहीं पहन रहे हो? कृपया इसका कारण बताइए । तब रंगनाथ जी की मूर्ति में से एक आवाज आई कि जिस ने मेरे लिए मुकुट बनवाया है , वही मुझे मुकुट पहनाए तो मैं पहन लूंगा । तब सब आपस में सोचने लगे कि यह मुकुट तो एक वैशया ने बनवाया है । यदि एक वेश्या अपवित्र अवस्था में मंदिर में आएगी तो अनर्थ हो जाएगा ।  लेकिन संत जी बोले कि जब भगवान का यही आदेश है तो हमें यह मानना होगा ।  तब संत जी वैश्या के पास गए और कहा कि – तुम्हें मंदिर में जाकर स्वयं भगवान को मुकुट पहनाना है । यही रंगनाथ जी का आदेश है । जैसे ही वैश्या मंदिर में गई और भगवान को मुकुट पहनाने लगी तो रंगनाथ भगवान ने बहुत ही आराम से मुकुट अपने सिर पर धारण कर लिया था । पुजारी जी कहने लगे कि प्रभु , आपने एक वैश्या और वह भी मासिक धर्म की अवस्था में थी , उसके हाथ से मुकुट पहन लिया । हम आप के मंदिर में नित्य प्रतिदिन पूजा अर्चना करते हैं और आपने हमारे हाथ से मुकुट नहीं पहना । अब हम में और एक वैश्या में क्या अंतर रह जाएगा ।  तब रंगनाथ जी बोले कि पुजारी जी क्रोधित मत होइए । हमारा तो नाम ही पतित पावन है । इस वेश्या ने अपनी जीवन भर की कमाई को हमारी सेवा में अर्पण किया है । और इसके मन में इस समय पश्चाताप की अग्नि है । इसने यह मुकुट बहुत ही श्रद्धा भाव से हमारे लिए बनवाया है । मैं तो इसके श्रद्धा भाव से ही बहुत प्रसन्न हो गया । और इसके हाथों जो मैंने ये मुकुट पहना है , वह इसी की श्रद्धा है । क्योंकि मुकुट लाते समय यह सोच रही थी कि यदि यह इस जन्म में एक वैश्या ना होती , तो आज यह मुकुट अपने हाथों से मुझे पहनाती।  मैंने तो बस इसकी यह इच्छा पूरी की है ।  यह बात सुनकर मंदिर में रंगनाथ जी के जयकारे गूंज उठे और उस वैश्या ने फैसला किया कि आज से वह इस वेश्यावृत्ति को छोड़कर साधारण जीवन व्यतीत करेगी ।


शिव की परीक्षा। 


माता पार्वती ने शिव शंकर भगवान को पति रूप में पाने के लिए हजारों वर्षों तक बहुत कठिन तपस्या की थी । उनकी कठिन तपस्या से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए । तब माता पार्वती ने कहां कि  – प्रभु ,  मैं आपको पति के रूप में पाना चाहती हूं । इसीलिए मैंने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की है । तब शिव शंकर भगवान ने उन्हें वर दिया कि – मैं तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होऊंगा । माता पार्वती इस वरदान को पाकर बहुत खुश हुई । अपनी तपस्या सफल होने के बाद वे अपने महलों की ओर जाने लगी । तभी रास्ते में उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक तालाब में एक मगरमच्छ ने एक बालक को पकड़ा हुआ है । वह बालक जोर-जोर से चिल्ला रहा है कि बचाओ , मुझे बचाओ । माता पार्वती उस बालक की आवाज सुनकर तालाब के पास गई । वह बालक माता पार्वती को देखकर जोर-जोर से रोने लगा और कहने लगा कि – मुझे बचाइए। तब माता पार्वती ने हाथ जोड़कर मगरमच्छ से कहा कि – कृपया करके आप इस बालक को छोड़ दीजिए । तब मगरमच्छ बोला कि – यह तो मेरा आहार है , मैं इसे कैसे छोड़ सकता हूं । यदि मैं अपना आहार छोड़ने लगा तो मैं तो भूखा मर जाऊंगा । तब माता पार्वती बोली – लेकिन , मैं इस बालक को मरने नही दूंगी।  तब मगरमच्छ ने कहा – भगवान ने हमें ऐसा ही बनाया है , हम अपना आहार नहीं छोड़ सकते । तब माता पार्वती ने कहा कि कोई तो दूसरा उपाय होगा । तब मगरमच्छ बोला कि –मैंने सुना है कि आप ने शिवजी को पाने के लिए बहुत ही तपस्या की है । माता पार्वती बोली –  हां । तो मगरमच्छ ने कहा कि आप मुझे अपनी संपूर्ण तपस्या का फल दे दीजिए । जिसके प्रभाव से मैं इस मगर की योनि से मुक्त हो जाऊंगा और मेरा कल्याण हो जाएगा । फिर मैं किसी के भी प्राण नहीं लूंगा । माता पार्वती बिना क्षण की देरी किए अपनी समस्त तपस्या का फल देने को तैयार हो गई । तब मगरमच्छ ने कहा कि – देवी आप एक बार दोबारा सोच लीजिए , आपने यह तपस्या शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए की थी । यदि आप मुझे सारी तपस्या का फल दे देंगी , तो आपको शिवजी पति के रूप में प्राप्त नहीं होंगे । तब माता पार्वती बोली कि – मेरे जीवन का उद्देश्य शिव जी की अर्धांगिनी बनकर उनकी सेवा करना है , चाहे मुझे उसके लिए दोबारा हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या क्यों न करनी पड़े । मुझे इसकी चिंता नहीं है । बस आप इस बालक को छोड़ दीजिए ।  माता पार्वती अपनी तपस्या का फल उस मगरमच्छ को देने के लिए जैसे ही संकल्प करने लगी । तभी वह मगरमच्छ और वह बालक उस तालाब से अदृश्य हो गए और वहां पर शिव शंकर भगवान साक्षात प्रकट हो गए । तब भगवान बोले कि –  पार्वती , मैं ही इस मगरमच्छ के रूप में तुम्हारी परीक्षा लेने आया था । मैं जानना चाहता था कि तुम्हारे ह्रदय में दूसरों के प्रति कितनी दया और कितनी करुणा है । तुम मेरी इस परीक्षा में सफल हो गई । तुमने बिना देरी किए अपने हजारों वर्षों की तपस्या के फल को मगरमच्छ को देने को तैयार हो गई । तुम इस जगत की माता बनने के योग्य हो । क्योंकि एक माता अपने बच्चों को कभी दुखी नहीं देख सकती । अपने बच्चों को बचाने के लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार रहती है ।


अर्जुन का घमंड 

एक बार अर्जुन को अपने धनुर्धर होने का बहुत ही अभिमान हो गया था । उसने सोचा कि इस धरती पर मुझसे बलशाली धनुर्धर कोई भी नहीं है । कोई भी मेरा सामना नहीं कर सकता । जब कृष्ण भगवान ने देखा कि उनके सखा अर्जुन को अभिमान होने लगा है , तो उन्होंने इस अभिमान को दूर करने का उपाय सोचा । तब उन्होंने हनुमान जी को आदेश दिया कि – हनुमान , अर्जुन के इस अहंकार को दूर करो । प्रभु की आज्ञा से हनुमान जी की भेंट अर्जुन से हो गई । अर्जुन को पता नहीं था कि – ये पवन पुत्र हनुमान है । अर्जुन ने उन्हें कोई साधारण सा वानर समझा । और बातों ही बातों में रामसेतु पर बात होने लगी । अर्जुन ने कहा कि श्रीराम ने पत्थरों का सेतु क्यों बनाया । यदि मैं उनकी जगह होता , तो मैं अपने बाणों  का सेतु बनाता । तब हनुमान जी बोले कि – प्रभु श्री राम ने बाणों का सेतु इसलिए नहीं बनाया , क्योंकि उनकी सेना में एक से एक बलशाली वानर और योद्धा थे । कहीं उनके पैरों से बाणों का सेतु टूट ना जाए । इसीलिए उन्होंने एक मजबूत पत्थरों का सेतु बनाया । तब अर्जुन बोला कि –  श्रीराम के बाण में इतनी ताकत नहीं थी कि उनके योद्धाओं का वजन झेल सके । मुझे लगता है कि श्री राम मेरे जैसे बलशाली धनुर्धर नहीं थे । मेरे बाणों में बहुत ही शक्ति है । हनुमान जी सोचने लगे कि – अब तो इनके अहंकार को तोड़ना ही पड़ेगा । अर्जुन बोले कि –  मेरे बनाए हुए बाणों के पुल को कोई तोड़ नहीं सकता । तब हनुमान जी बोले कि – चलो देखते हैं , तुम्हारे बाणों में कितनी ताकत है । यदि मैंने तुम्हारे बाणों का सेतु तोड़ दिया , तो फिर क्या करोगे ? तब अर्जुन ने कहा कि – तब मुझे इस धरती पर सर्वश्रेष्ठ योद्धा कहलाने का कोई हक नहीं होगा । तब हनुमानजी ने कहा – ठीक है , तुम बाणों का सेतु बनाओ । तब अर्जुन ने वहां समुद्र के ऊपर एक बाणों का सेतु बनाया । जैसे ही हनुमान जी ने उस पर पैर रखा , वह टूट गया । दूसरी बार फिर अर्जुन ने अपनी पूरी शक्ति के साथ बाणों का सेतु बनाया । लेकिन हनुमान जी के पैर से रखने से वह फिर टूट गया । तब अर्जुन को आभास हुआ कि यह कोई साधारण वानर नहीं है । और उन्होंने हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगी और पूछा कि –  आप कौन हैं ? तब वे बोले कि मैं हनुमान हूं । तब अर्जुन को अपनी गलती पर पश्चाताप होने लगा । उन्होंने कहा कि – मुझे माफ कर दे ? मुझे अपनी शक्ति पर इतना अहंकार हो गया था कि मैंने प्रभु श्री राम को भी अपने सामने तुच्छ समझा । तभी वहां पर श्री कृष्ण भी प्रकट हो गए और उन्होंने अर्जुन से कहा कि –  अर्जुन , यह सब मेरी लीला थी । तुम्हें अहंकार हो गया था और मैं अपने भक्तों को अहंकार के कभी भी आधीन नहीं होने देता । इसलिए मैंने हनुमान से कहकर तुम्हारे इस अहंकार को दूर करवाया है।  लेकिन अर्जुन को अपने आप से बहुत ही घृणा सी होने लगी थी , क्योंकि उन्होंने अहंकार के चलते हनुमान जी और श्री राम जी को पता नहीं क्या क्या कह दिया था । तब हनुमान जी कहने लगे कि हे अर्जुन तुम्हें अपने आप से ग्लानि करने की कोई आवश्यकता नहीं है  , क्योंकि मैंने तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं माना । मैं तो एक दास हूं और दास को अपने अपमान और सम्मान की कोई परवाह नहीं होती । उसका तो सिर्फ एक ही धर्म होता है सिर्फ अपने प्रभु की आज्ञा का पालन करना और वही मैंने किया ।


शिव के तीन वरदान 

एक परिवार में पति-पत्नी और एक उनका एक 10 साल का बच्चा था । वह बहुत ही गरीब थे  । दोनों पति-पत्नी बहुत ही मंदबुद्धि थे । एक बार शिव शंकर भगवान और माता पार्वती जब पृथ्वी भ्रमण के लिए निकले , तो माता पार्वती की नजर उस परिवार पर पड़ी। माता पार्वती को उन पर दया आ गई । तब माता पार्वती ने भगवान से इनकी गरीबी को दूर करने के लिऐ कहा । तब शिव जी बोले कि – पार्वती , इनके भाग्य में गरीबी दूर होना नहीं लिखा है । इनका जीवन अभी इसी प्रकार व्यतीत होगा । तब माता पार्वती के बार बार निवेदन करने पर भोलेनाथ ने कहा कि –  ठीक है , यदि तुम कहती हो , तो मैं एक बार कोशिश अवश्य करता हूं । माता पार्वती और भगवान शिव उन पति पत्नी के पास गए और उनसे कहा कि – मैं तुम तीनों को एक एक वरदान देना चाहता हूं , जो चाहो मुझसे मांग लो । तो पहले पत्नी बोली कि कि –  प्रभु , सबसे पहले मुझे वरदान दीजिए । भोलेनाथ बोले – मांगों क्या चाहिए ? तब  पत्नी ने कहा कि मुझे आप 16 साल की एक खूबसूरत लड़की के रूप में बदल दीजिए । भोलेनाथ बोले – तथास्तु , ऐसा ही हो । उसकी पत्नी 16 साल की एक खूबसूरत लड़की के रूप में बदल गई । जब उसके पति ने देखा कि – उसकी पत्नि ने धन दौलत की बजाय जवानी मांगी है , तो उसे बहुत ही गुस्सा आया और उसने भोलेनाथ से कहा कि – हे प्रभु , अब मुझे वरदान दीजिए । भोलेनाथ ने कहा – ठीक है  , मांगों क्या चाहिए ? तब उसने क्रोध में आकर कहा कि – मेरी पत्नी को 100 साल की बुढ़िया बना दो । भोलेनाथ ने कहा – तथास्तु ऐसा ही हो । उसकी पत्नी देखते ही देखते 100 साल की बुढ़िया में बदल गई । अब दोनों के वरदान भी पूरे हो चुके थे । अब सिर्फ बच्चे का वरदान बचा हुआ था , तब भोलेनाथ ने कहा कि – बताओ , बेटा तुम्हें क्या चाहिए ? अब तुम्हारी बारी है । तब वह छोटा सा नन्हा बालक रोने लगा और कहने लगा – मुझे मेरी मां चाहिए । भोलेनाथ ने कहा – तथास्तु ऐसा ही हो । तब उसकी मां जैसी थी , वह वैसी ही हो गई और भगवान भोलेनाथ वहां से अंतर्ध्यान हो गए । तब दोनों पति-पत्नी सिर पकड़ कर रोने लगे कि हमें भगवान ने तीन – तीन वरदान दिए थे और हम उसका लाभ नहीं उठा पाए। हमारी किस्मत में रोना ही लिखा है । तब भोले बाबा कैलाश पर्वत पर जाकर माता पार्वती से कहने लगे कि – यदि उनके भाग्य में सुख होता तो वे एक ही वरदान में मुझसे सब कुछ मांग सकते थे । लेकिन पार्वती तुम चिंता मत करो , कुछ समय बाद उनके घर बेटी का जन्म होगा और उसके भाग्य से उनकी गरीबी धीरे – धीरे  मिट जाएगी ।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें