हर गरीब चोर नहीं होता। रोटी की कीमत
कक्षा की एक छात्रा बहुत जोर जोर से रो रही थी । अध्यापिका उसके पास गई और उससे पूछा कि – बेटा तुम क्यों रो रही हो ? उसने उत्तर दिया कि – मेरी फीस के पैसे चोरी हो गए हैं , मैंने तो बैग में ही रखे थे । पता नहीं किसने चुरा लिए । अध्यापिका ने एक लड़की की ओर इशारा करके कहा कि दरवाजा बंद कर दो , सब की तलाशी होगी । अध्यापिका ने सामने की 3 लाइन की खुद तलाशी ली और फिर उन्हें पूरी क्लास की छात्राओं के बैग और जेब की तलाशी लेने के लिए कहा । कुछ देर बाद दो लड़कियां तलाशी लेती हुई निशा नाम की एक लड़की के पास पहुंची । लेकिन निशा अपने बैग की तलाशी लेने से उन्हें रोक रही थी । उन लड़कियों ने ये बात जाकर अध्यापिका को बताई तो अध्यापिका निशा के पास आ गई और उसके बैग की तलाशी लेने लगी । लेकिन निशा ने अध्यापिका को भी अपने बैग की तलाशी लेने के लिए मना कर दिया । अध्यापिका को बहुत ही गुस्सा आया और वह कहने लगी कि – हो ना हो इसके बैग में ही पैसे हैं और इसी ने पैसे चुराए हैं । तभी तो यह अपने बैग की तलाशी नहीं लेने दे रही । निशा ने रोते हुए कहा कि – नहीं , टीचर जी मैंने पैसे नहीं चुराए हैं । मैं चोर नहीं हूं । टीचर गुस्से से बोली – चोर नहीं हो तो फिर बैग की तलाशी लेने दो , मना क्यों कर रही हो । निशा ने कहा – नहीं , मैं अपने बैग की तलाशी नहीं लेने दूंगी । अध्यापिका आगे बढ़ी और निशा से बैग छीनने की कोशिश करने लगी । लेकिन वो असफल रही । तब अध्यापिका ने गुस्से में आकर निशा को थप्पड़ मार दिया । निशा जोर जोर से रोने लगी । तभी पीछे से आवाज आई – रुको । अध्यापिका ने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे प्रिंसिपल मैडम खड़ी थी । उन्होंने अध्यापिका और निशा को अपने ऑफिस में बुलाया । तब प्रिंसिपल मैडम ने अध्यापिका से पूछा कि – क्या मामला है ? अध्यापिका ने सारी बात प्रिंसिपल मैडम को बता दी । तब प्रिंसिपल मैडम ने बड़ी ही विनम्रता से निशा से पूछा कि – बेटा , क्या तुमने पैसे चुराए हैं ? नहीं मैडम जी – निशा ने सहमते हुए उत्तर दिया । साथ ही उसकी आंखों में आंसू भी आ गए थे । प्रिंसिपल मैडम ने कहा – ठीक है , मान लेते हैं तुमने पैसे नहीं चुराए , पर तुम अध्यापिका को अपने बैग की तलाशी क्यों नहीं लेने दे रही थी । निशा खामोशी से प्रिंसिपल मैडम की ओर देख रही थी और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे । प्रिंसिपल मैडम समझ गई थी कि जरूर कोई बात है , जिसके कारण निशा अपना बैग चेक करने नहीं दिया । अध्यापिका कुछ बोलना चाह रही थी । लेकिन प्रिंसिपल मैडम ने उन्हें रोक दिया और उन्हें वापस क्लास में जाने के लिए कहा । जब अध्यापिका क्लास में चली गई , तब प्रिंसिपल मैडम ने निशा को अपने सामने वाली सीट पर बैठाया और प्यार से पूछा कि – बताओ बेटा , क्या बात है ? तब निशा ने झट से अपना बैग प्रिंसिपल मैडम को दे दिया । प्रिंसिपल मैडम ने बड़ी ही उत्सुकता और जिज्ञासा से उसके बैग को खोला । मगर यह क्या , किताबों और कापियों के अलावा एक काले रंग का थैला भी बैग से बाहर निकल आया । उस वक्त निशा को ऐसा लगा कि जैसे उसका दिल ही बाहर निकल कर आ गया हो । जब प्रिंसिपल मैडम ने वह काले रंग का थैला खोला तो उसमें आधे खाए हुए बर्गर , पिज्जा के टुकड़े , समोसे , चटनी , दही थी । तब सारा मामला प्रिंसिपल मैडम की समझ में आ गया था । प्रिंसिपल मैडम ने यह सब देखते ही निशा को गले से लगा लिया । निशा ने प्रिंसिपल मैडम को बताया कि वह घर में सबसे बड़ी है और उसकी दो छोटी बहनें हैं । उसके पिताजी एक चपरासी की नौकरी करते हैं और कुछ महीने पहले उन्हें लकवा मार गया है । तब से वो बिस्तर पर ही है। घर में कोई भी कमाने वाला नहीं है । थोड़ी बहुत पेंशन आ जाती है , पर उस से घर का गुजारा नहीं चलता । एक दिन तो एक रात बिना खाए ही गुजारी और ना ही सुबह नाश्ते में कुछ था । जब निशा कॉलेज के लिए निकली , तो भूख के कारण उस से चला नहीं जा रहा था । उसे चक्कर आ रहे थे , तब रास्ते में एक छोटे से होटल के सामने से गुजरी , तो देखा कि कचरे के डिब्बे में समोसे , आधा पिज़्ज़ा के टुकड़े , दही और चटनी पड़ी है । यह देख कर उससे रहा नहीं गया और उसने वह खा लिया और सामने के नल से पानी पिया । भगवान का धन्यवाद किया और कॉलेज आ गई । ऐसा कई बार हुआ । मैं कॉलेज आते हुए यह बचा हुआ खाना ले आती हूं , और घर जाकर इसे अपनी बहनों को दे देती हूं । मेरे पिता जब हम बहनों को ऐसे खाना खाते देखते हैं , तो वे बहुत ही दुखी होते हैं । मेरी बहनें अभी छोटी है , इसलिए अभी उन्हें नहीं पता कि यह खाना कहां से आता है । यह कहते हुए निशा जोर जोर से रोने लगी थी ।…
कर्म बड़ा या भाग्य। एक फूल वाले की कहानी
एक फूल बेचने वाला था । वह मंदिर के बाहर ही अपनी फूलों की टोकरी में कई तरह के रंग बिरंगे फूल लेकर बैठता था । जब भी मैं मंदिर में जाता , उससे फूल लेकर मंदिर में चढ़ाता था । एक दिन मैंने उससे फूल खरीदे , मंदिर में चढ़ाए , भगवान के दर्शन किए और वापस आते हुए उस फूल वाले के पास बैठ गया । मैं उससे बातें करने लगा , बातों ही बातों उसके साथ मेरी परिश्रम और भाग्य पर बात शुरू हो गई । मैंने उस फूल वाले से एक सवाल पूछा कि – आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से ? उस फूल वाले ने जो जवाब दिया , उस जवाब को सुनकर मेरे दिमाग में कर्म और भाग्य को लेकर सारी शंका दूर हो गई । वह फूल वाला बोला कि आपका किसी बैंक में लॉकर तो जरूर होगा ? मैंने कहा – हां । तो उस फूल वाले ने कहा कि उस लॉकर की चाबी ही मेरा जवाब है । हर लॉकर की दो चाबियां होती है – एक आपके पास होती है और एक मैनेजर के पास । आपके पास जो चाबी है – वह है परिश्रम की चाबी और जो चाबी मैनेजर के पास है – वह है भाग्य की चाबी । जब तक दोनों चाबियां नहीं लगती , तब तक लॉकर का ताला नहीं खुल सकता । आप कर्म योगी पुरुष है और मैनेजर भगवान । आपको अपनी चाबी से कोशिश करते रहना चाहिए पता नहीं कब ऊपरवाला अपनी चाबी लगा दे और आपकी किस्मत खुल जाए । ऐसा ना हो कि भगवान अपनी भाग्य वाली चाबी लगा रहा हो और आप परिश्रम वाली चाबी ना लगा पाए और हमारा ताला खुलने से रह जाए
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