ससुराल का पहला दिन।
बर्तन गिरने की आवाज से शिखा की आंख खुल गई । घड़ी देखी..... तो 8:00 बज रहे थे । वह हड़बड़ा कर उठी । मम्मी जी ने कहा था – कल सुबह जल्दी उठना है , रसोई की रसम करनी है ... हलवा पूरी बनाना है..... और मैं हूं कि सोती ही रही। अब क्या होगा ...... ? मम्मी जी और पापा जी मेरे बारे में क्या सोचेंगे ...... कहीं मम्मी जी गुस्सा ना हो जाए , हे भगवान .... उसे रोना आ रहा था । सास और ससुराल का नाम उसे डरा रहा था । दादी ने विदा होते वक्त कहा था कि – ससुराल है , जरा संभल कर रहना । किसी को भी कुछ कहने सुनने का मौका मत देना , वरना सारी उम्र ताने सुनने पड़ेंगे । सुबह – सुबह उठ जाना , नहा धोकर साड़ी पहन कर तैयार हो जाना , फिर अपने सास-ससुर के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेना , कोई भी ऐसा काम मत करना जिससे तुम्हें या तुम्हारे मां-बाप को कुछ उल्टा सीधा सुनना पड़े । शिखा के मन में एक के बाद एक दादी जी की बातें गूंजने लगी थी । किसी तरह वह भागा दौड़ी करके तैयार हुई , ऊंची नीची साड़ी बांधकर वह बाहर निकल ही रही थी कि आईने में अपना चेहरा देखकर वापस भागी , ना बिंदी ना सिंदूर आदत नहीं थी , तो सब लगाना भूल गई थी । ढूंढ कर बिंदी का पत्ता निकाला , फिर सिंदूर दानी ढूंढने लगी , जब नहीं मिली तो लिपिस्टिक से मांग पर सीधी लाइन खींच कर बाहर निकल आई । जिस हड़बड़ी से शिखा कमरे से बाहर आई थी । वह उसके चेहरे से और उसकी चाल से साफ झलक रही थी । लगभग भागती हुई सी वो रसोई में गई , वहां जाकर वह एकदम से ससक गई । उसे इस तरह हड़बड़ाते हुए देखकर उसकी सासू मां ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा । फिर ऊपर से नीचे तक उसे निहारकर फिर धीरे से मुस्कुरा कर बोली – आओ बेटा , नींद आई ठीक से या नहीं । शिखा अचकचा कर बोली – जी , मम्मी जी ! नींद तो आई मगर जरा देरी से आई , इसलिए सुबह आंख नहीं खुली , सॉरी ...... बोलते हुए उसके चेहरे से डर साफ झलक रहा था । सासू मां बोली – कोई बात नहीं बेटा , नई जगह है हो जाता है । शिखा हैरान होकर उनकी ओर देखने लगी । फिर बोली मगर मम्मी जी , वो हलवा... पूरी..... सासू मां ने प्यार से उसकी तरफ देखा और पास रखी हलवे की कढ़ाई उठाकर शिखा के सामने रख दी और शहद जैसे मीठे स्वर में बोली – हां बेटा , यह लो इसे हाथ से छू दो , शिखा ने प्रश्न भरी निगाहों से उनकी ओर देखा । उन्होंने उसकी ठोड़ी को स्नेह भरे हाथों से छूकर कहा – बनाने को तो सारी उम्र पड़ी है, मेरी अभी इतनी प्यारी गुड़िया जैसी बहू के अभी तो हंसने खेलने के दिन है , उसे मैं अभी से रसोई का काम थोड़ी ही ना करवाऊंगी , तुम बस अपनी प्यारी सी मीठी मुस्कान के साथ सबको परोस देना , आज की रस्म के लिए बस इतना ही काफी है । यह सब सुनकर शिखा की आंखों में आंसू भर आए , वह अपने आप को रोक ना सकी और लपक कर उनके गले से लग गई । उसके रुंधे हुए गले से सिर्फ एक ही शब्द निकला – मां ..... मेरी मां ।
क्यों मनाई जाती है मकर सक्रांति
हिंदू धर्म में सूर्य देव से जुड़े कई त्योहारों को मनाने की परंपरा है – उन्हीं में से एक त्यौहार है मकर सक्रांति। शीत ऋतु के पौष मास में जब सूर्य देव भगवान उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं , तब मकर सक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। हिंदू धर्म में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार – शनि देव भगवान का अपने पिता सूर्यदेव से वैरभाव था । क्योंकि सूर्य देव ने शनि देव की माता छाया को अपनी पहली पत्नी के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते देख लिया था । इस बात से नाराज होकर सूर्य भगवान ने छाया और शनि देव को अपने से अलग कर दिया था । इससे रुष्ट होकर शनिदेव और उनकी माता छाया ने सूर्य भगवान को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया । अपने पिता सूर्य देव को कुष्ठ रोग से पीड़ित देख कर उनके पुत्र यमराज काफी दुखी हुए । यमराज ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलवाने के लिए बहुत तपस्या की । लेकिन सूर्य भगवान ने क्रोधित होकर शनि देव महाराज के घर जाकर कुंभ जिसे शनि की राशि भी कहा जाता है , उसे जला दिया । जिससे शनिदेव और उनकी माता छाया को बहुत कष्ट भोगना पड़ा था । यमराज जी ने अपने भाई शनिदेव और माता छाया को कष्ट में देखकर सूर्य देव भगवान को बहुत समझाया । तब यमराज जी के समझाने पर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे । कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था । उस समय शनिदेव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था । इसलिए शनि देव ने सूर्य देव की काले तिल से पूजा की । शनिदेव की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि शनिदेव का दूसरा घर यानी मकर राशि सूर्य भगवान के आने से धन-धान्य से भर जाएगा । तिल के कारण ही शनिदेव को अपना वैभव दोबारा प्राप्त हुआ इसीलिए शनि देव को काले तिल बहुत ही प्रिय हैं । इसी समय से मकर सक्रांति पर सूर्य देव और शनि देव की तिल द्वारा पूजा करने का नियम शुरू हुआ।
महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने आज ही के दिन यानी मकर सक्रांति के दिन ही अपने प्राणों को त्यागने का निर्णय लिया था । मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिल गई थी ।
शास्त्रों में मकर सक्रांति के दिन स्नान , ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है । मकर सक्रांति को देवताओं का दिन बताया जाता है । इस दिन किया हुआ दान सौ गुना होकर वापस प्राप्त होता है ।
tags :
hindi story reading
hindi story for kids
love story in hindi
story in hindi with moral
short hindi story
bedtime stories in hindi
hindi story time
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें