किसी गांव में एक आदमी के पास बहुत सारी बकरियां थी । वह बकरियों का दूध बेचकर ही अपना गुजारा करता था । एक दिन उनके गांव में बहुत से महात्मा आए । उन सब ने गांव के बाहर जंगलों में आकर यज्ञ किया। उनमें से कुछ महात्मा वृक्षों के पत्तों को तोड़ कर उस पर चंदन से कृष्ण कृष्ण नाम लिख रहे थे । वह आदमी बकरियों को घास चराने गांव से बाहर ही जाया करता था । कुछ दिनों बाद साधु अपना यज्ञ हवन करके वहां से चले गए । लेकिन कुछ कृष्ण नाम लिखे पत्ते वहीं पर पड़े रह गए । वह आदमी जब वहां पर घास चराने आया तो उनमें से एक बकरी ने उस कृष्ण नाम के लिखे हुए पत्ते को खा लिया । आदमी बकरी चराने के बाद अपने घर चला गया । घर जाकर सब बकरियां मैं मैं कर रही थी । लेकिन सिर्फ एक ही बकरी कृष्ण का नाम जप रही थी । क्योंकि उसने कृष्ण रूपी पत्ते को खा लिया था । उसके अंदर कृष्ण वास करने लगे थे । कृष्ण नाम जपने से उसका मैं (अंहकार) तो अपने आप ही खत्म हो गया था । तब सब बकरियां ने उसे अपनी भाषा में समझाया कि तू अपनी भाषा छोड़कर यह क्या कृष्ण कृष्ण नाम जप रही है । तब वह कहती कि मैंने कृष्ण नाम का पत्ता अपने अंदर ले लिया है और मेरे मुख से अपने आप ही कृष्ण कृष्ण निकल रहा है । तब सब बकरियों ने फैसला किया कि हमें इसे अपनी टोली से बाहर कर देना चाहिए । सब बकरियों ने सींग मार कर उसे अपने बाड़े से बाहर कर दिया । सुबह जब उसका मालिक आता है , तो देखता है कि वह बकरी बाड़े से बाहर खड़ी है मालिक उसे पकड़कर बाड़े के अंदर कर देता है । लेकिन सब बकरियां उसे फिर से सींग मार कर बाहर कर देती है । मालिक को कुछ समझ नहीं आता कि सब बकरियां इसकी दुश्मन क्यों बन गई है । तब वह सोचता है कि जरूर इसको कुछ बीमारी होगी , तभी सब बकरियां इसे अपने पास नहीं आने दे रही है । कहीं एक बकरी की वजह से सारी बकरियां बीमार ना हो जाए । मालिक उस बकरी को रात में जंगल में छोड़ आता है । जंगल में अकेली खड़ी बकरी को देख एक आदमी जो चोर होता है , उस बकरी को लेकर भाग जाता है और किसी दूर गांव में जाकर एक किसान को बेच देता है । किसान बेचारा बहुत ही भोला भाला होता है । उसे समझ में नहीं आता कि बकरी मैं मैं कर रही है , या फिर कृष्ण कृष्ण । बकरी सारा दिन कृष्ण कृष्ण करती रहती थी । किसान उसका दूध बेच कर अपना गुजारा करता था । कृष्ण नाम के प्रभाव से बकरी बहुत ही ज्यादा और मीठा दूध देती थी ।दूर-दूर से सब लोग उस किसान से उस बकरी का दूध लेने आते थे । दूध की बिक्री की वजह से अब उस किसान की हालत भी सुधरने लगी थी । एक दिन राजा का मंत्री और सैनिक उस गांव से गुजर रहे थे । उन्हें बहुत ही भूख लगी । उन्हें किसान का घर दिखाई दिया । किसान ने उन्हें बकरी का दूध पिलाया । बकरी का मीठा और अच्छा दूध पीकर सैनिक और मंत्री बहुत ही खुश हुए और कहने लगे कि उन्होंने कभी भी ऐसा दूध पहले नहीं पिया है । तब किसान बोला कि यह तो इस बकरी का दूध है , जो सारे दिन कृष्ण कृष्ण कहती है । मंत्री और सैनिक बकरी को देखकर हैरान हो गए। बाद में मंत्री किसान का धन्यवाद कहकर अपने राज महल में चले गए । कुछ दिनों के बाद राज महल की राजमाता बीमार हो गई । कई वैद्य ने उनका उपचार किया , परंतु वे ठीक नहीं हो रही थी । तब वैद्य जी ने राजा से कहा कि अब इनका ठीक होना बहुत मुश्किल है । अब तो भगवान ही इन्हें बचा सकते हैं । तब राजगुरु जी ने राजा से कहा कि आपको अब इनके पास बैठ कर इन्हें भगवान का नाम याद कराना चाहिए । लेकिन राजा अपने काम में इतने व्यस्त थें कि वे चाहकर भी राजमाता के पास बैठकर ठाकुर जी का नाम नहीं जप सकते थे । तभी राजा के मंत्री को उस बकरी की याद आई और उन्होंने बकरी के बारे में सारी बात राजा को बताई । पहले तो राजा को उनकी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ । परंतु जब मंत्री राजा को किसान के घर लेकर पहुंचा तो राजा यह सब देख कर हैरान हो गया । राजा ने किसान से कहा कि यह बकरी उसे दे दे । तब किसान ने हाथ जोड़कर नम्रता पूर्वक राजा से कहा कि इस बकरी के कारण ही मेरे घर की दशा में सुधार आया है । यदि यह बकरी मैं आपको दे दूंगा तो मैं फिर से भूखा मर जाऊंगा । राजा ने कहा कि आप इस बात की चिंता मत करो । मैं आपको इतना धन दे दूंगा कि आप की गरीबी दूर हो जाएगी । तब किसान ने बकरी राजा को दे दी और राजा बकरी को राज महल में ले आया । अब तो बकरी राजमाता के पास बैठकर सारे दिन कृष्ण कृष्ण नाम का जाप करती रहती थी । सारे दिन कानों में कृष्ण का नाम जाने से और बकरी का मीठा दूध पीने से राजमाता धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी और वह अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी । अब तो वह बकरी राजा के साथ राज महल में ही रहने लगी । उस बकरी के कृष्ण कृष्ण नाम के जप से सारे राजमहल में कृष्ण का नाम समा गया। अब तो सभी कृष्ण का नाम जपते थें। कृष्ण नाम के प्रभाव से राजा का यश चारों ओर फैल गया और वह बहुत से दान और पुण्य करने लगा । अपने अंत समय में बकरी और राजमहल के सभी लोग वैकुंठ धाम को चले गए।
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