महाभारत के युद्ध में कौरवो की ओर से 11 अक्षौहिणी सेना और पांडवो की ओर 7 अक्षौहिणी सेना ने भाग लिया था !अक्षौहिणी यानी अत्यंत विशाल और चतुरंगिणी सेना जिसमे 109350 पैदल , 65610 घोड़े , 21870 रथ , 21870 हाथी होते है अर्थात वह सेना जिसमे अनेक हाथी , घोड़े , रथ और पैदल सिपाही हो ! यानि इस युद्ध में सभी महारथियों और सेनाओं को मिलाकर करीब 50 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया था ! लेकिन यहां अब सवाल यह उठता है कि इतनी विशालकाय सेना के लिए युद्ध के दौरान भोजन कौन बनाता था और कैसे ये सब प्रबंध करता था और सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब हर दिन हज़ारों लोग मारे जाते थे तो शाम को खाना किस हिसाब -किताब से बनता था ! दोस्तों - महाभारत को हम सही मायने में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध भी कह सकते है क्योंकि उस समय शायद ही ऐसा कोई राज्य था जिसने इस युद्ध में भाग न लिया हो ! उस काल में आर्यवर्त के सभी राजा या तो कौरव या फिर पांडव के पक्ष में खड़े दिख रहे थे ! हम सभी जानते है कि श्री बलराम और रुक्मी ये दो ही व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था किन्तु एक और राज्य ऐसा था जो युद्ध क्षेत्र में होते हुए भी युद्ध से विरक्त था और वो था दक्षिण के उड्डपी का राज्य ! महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार जब उड्डपी के राजा अपनी सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुंचे तो कौरव और पांडव दोनों उन्हें अपने -अपने पक्ष में लेने का प्रयत्न करने लगे लेकिन उड्प्पी के राजा बहुत ही दूरदर्शी थे उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा कि हे माधव दोनों ओर से जिसे देखो युद्ध के लिए ललायित दिखता है किन्तु क्या किसी ने सोचा है कि दोनों ओर से उपस्थित इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा ! इस पर श्री कृष्ण ने कहा महाराज आपने बिलकुल सही सोचा है आपकी इस बात से मुझे प्रतीत होता है कि आपके पास इसकी कोई योजना है अगर ऐसा है तो कृपया बताएं ! उसके बाद उड्प्पी नरेश बोले - हे वासुदेव सत्य तो यह कि भाइयों के बीच हो रहे इस युद्ध को में उचित नहीं मानता ! इसी कारण इस युद्ध में भाग लेने की इच्छा मुझें नहीं है !
किन्तु ये युद्ध अब टाला भी नहीं जा सकता इस कारण मेरी यह इच्छा है कि मैं अपनी पूरी सेना के साथ यहां उपस्थित सभी सेना के लिए भोजन का प्रबंध करूं ! इस पर श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले - महाराज आपका विचार अति उत्तम है इस युद्ध में करीब 50 लाख योद्धा भाग लेंगे और अगर आप जैसा कुशल राजा उनके भोजन के प्रबंध को देखेगा तो हम सभी उस ओर से निश्चिंत ही रहेंगें ! वैसे भी मुझे पता है सागर जैसी इस विशाल सेना को भोजन का प्रबंध करना आप से और भीमसेन के अतिरिक्त और किसी के लिए भी सम्भव नहीं है किन्तु भीम सेन इस युद्ध से विरक्त नहीं हो सकते ! इसलिए मेरी आप से प्रार्थना है कि आप अपनी सेना सहित दोनों ओर की सेनाओं के भोजन का भार सम्भालिये ! इस प्रकार उड्प्पी के महाराजा ने सेना के भोजन का भार संभाला ! पहले दिन उन्होंने उपस्थित सभी योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध किया ! उनकी कुशलता ऐसी थी कि दिन के अंत तक एक दाना भी अन्न का बर्बाद नहीं होता था ! जैसे-जैसे दिन बीतते गए योद्धाओं की संख्या भी कम होती गयी ! दोनों ओर के योद्धा ये देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे कि हर दिन के अंत तक उड्प्पी नरेश केवल उतने ही लोगों के लिए भोजन बनवाते थें जितने वास्तव में उपस्थित रहते थें ! किसी को समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें ये कैसे पता चल जाता है कि आज कितने योद्धा मृत्यु को प्राप्त होंगे ताकि उस आधार पर भोजन की व्यवस्थता करवा सके ! इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध करना अपने आप में ही एक आश्चर्य था और उस पर भी इस प्रकार कि एक अन्न का दाना भी बर्बाद ना हो ! ये तो किसी चमत्कार से कम नहीं था ! जब 18 दिन बाद युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों की जीत हुई तो अपने राज्याभिषेक के दिन आख़िरकार युधिष्ठिर से रहा नहीं गया और उन्होंने उड्प्पी नरेश से पूछ ही लिया कि हे महाराज समस्त देशो के राजा हमारी प्रशंशा कर रहे है कि कैसे हमने कम सेना होते हुए भी उस सेना को परास्त कर दिया जिसका नेतृत्व पितामह भीष्म , गुरु द्रोण और हमारे ज्येष्ठ भ्राता कर्ण जैसे महारथी कर रहे थे किन्तु मुझे लगता है कि हम सबसे अधिक प्रशंशा के पात्र तो आप है जिन्होंने ना केवल इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध किया अपितु ऐसा प्रबंध किया कि एक दाना भी अन्न का व्यर्थ ना हो पाया ! मैं आपसे इस कुशलता का रहस्य जानना चाहता हूँ ! इस पर उड्प्पी नरेश ने मुस्कुराते हुए कहा - सम्राट आपने जो इस युद्ध में विजय पायी है उसका श्रेय किसे देंगें !
इस पर युधिष्ठिर ने कहा - श्री कृष्ण के अतिरिक्त इसका श्रेय और किसी को जा ही नहीं सकता अगर वे न होते तो कौरव सेना को परास्त करना असम्भव था ! तब उड्प्पी नरेश ने कहा - हे महाराज आप जिसे मेरा चमत्कार कह रहे है वो भी श्री कृष्ण का ही प्रताप है ! ऐसा सुनकर वहा उपस्थित सभी लोग आश्च्रियचकित हो गए तब उड्प्पी नरेश ने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और कहा हे महाराज श्री कृष्ण प्रतिदिन रात्रि को मूंगफली खाते थे ! मैं प्रतिदिन उनके शिविर में गिनकर मूंगफली रखता था और उनके खाने के पश्चात् गिनकर देखता था कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है वे जितनी मूंगफली खाते थे उसके ठीक हज़ार गुना सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे अर्थात अगर वे 50 मूंगफली खाते थे तो मैं समझ जाता था कि अगले दिन 50 हज़ार योद्धा युद्ध में मारे जायेंगे उसी अनुपात में मैं अगले दिन भोजन कम बनाता था ! यही कारण था कि कभी भी कुछ व्यर्थ नहीं हुआ ! श्री कृष्ण के इस चमत्कार को सुनकर सभी उनके आगे नतमस्तक हो गए ! ये कथा महाभारत की सबसे दुर्लभ कथाओं में से एक है ! कर्नाटक के उड्प्पी जिले में स्थित कृष्ण मठ में ये कथा हमेशा सुनाई जाती है ! ऐसा माना जाता है कि इस मठ की स्थापना उड्प्पी के सम्राट द्वारा ही करवाई गयी थी जिसे बाद में श्री माधव आचार्य जी ने आगे बढ़ाया !