How did Lord Shiva become Pashupatinath? भगवान शिव कैसे बने पशुपतिनाथ ?

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

तारकासुर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस था । उसने सृष्टि में चारों ओर हाहाकार मचा रखा था। उसे ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु शिव जी के पुत्र द्वारा होगी। शिव पार्वती के विवाह के पश्चात जब उनके पुत्र कार्तिक महाराज जी का जन्म हुआ। तब कार्तिक महाराज ने तारकासुर से युद्ध करके उसका वध कर दिया। सारे देवी देवताओं ने कार्तिक महाराज की जय जयकार की। तारकासुर के तीन पुत्र थे। तारकाक्ष, कमलाक्ष और विदुनमाली। तीनों पुत्रों ने मिलकर अपने पिता तारकासुर की मौत का बदला लेना चाहा । तीनों भाइयों ने मिलकर ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। और उनसे वरदान मांगने को कहा। उन तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा।ब्रह्माजी ने कहा ये असंभव है इस सृष्टि में जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित हैं। इसलिए मैं तुम्हें ये वरदान नहीं दे सकता।कुछ और वरदान मांगो। इसके बाद तीनों भाईयों ने वरदान मांगा कि हमारी मृत्यु उस परिस्थिति में होनी चाहिए जब हम तीनों भाई एक साथ इक्कठे हो। और तीनों भाइयों ने अपने लिए अलग अलग भवनों के निर्माण की मांग की। तारकाक्ष ने अपने लिए स्वर्ण का, कमलाक्ष ने चांदी का और विदुनमाली ने लोहे के भवन की मांग की।ब्रह्माजी ने कहा तथास्तु। ऐसा ही हो। ये कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए। अब तीनों भाइयों ने सोचा कि अब से वे तीनों अलग अलग रहेंगे । ना ही हम तीनों इक्कठे होंगे और ना ही हमारी मृत्यु होंगी । तीनों भाइयों ने अलग अलग रहना शुरु कर दिया।तीनों भाईयों के अंदर से मृत्यु का डर खत्म हो गया था ।इसलिए तीनों भाई इंद्रादी सभी देवी देवताओं को परेशान करते थें। सभी देवता त्राहि त्राहि कर रहे थें। चारों ओर अधर्म फैल गया था।सभी देवता मिलकर शिव जी के पास गए। और अपनी समस्या को बताया। शिव जी ने कहा कि तुम सारे पशुओं का रूप धारण करों और मैं तुम सब का मालिक बनूंगा। सभी देवताओं ने ऐसा ही किया।  सभी देवी देवताओं ने पशुओं का रूप धारण कर तीनों लोकों में हड़कंप मचा दिया और तीनों भाइयों को अपने भवनों से बाहर निकाल कर एक जगह इक्कठा कर दिया। तब शिव जी ने नंदी का रूप धारण किया । शिव जी ने ताराकाक्ष  और विदुनमाली पर अपने सींगों से प्रहार किया। इतने में कमलाक्ष ने पीछे से आकर शिव जी के नंदी रूप के सिर पर प्रहार किया तब वो शीश कटकर नेपाल में जा गिरा। जहां पर शिव जी को पशुपतिनाथ के रूप में पूजा जाता है। और शिव के उस नंदी के रूप की जिसका शीश कट चुका था  केदारनाथ में पूजा की जाती है। तब  शिव ने क्रोध में आकर अपना असली रूप बनाया और तीनों भाइयों को अपने त्रिशूल से वध कर दिया।सब पशुओं का मालिक होने से भगवान शिव को पशुपतिनाथ कहा जानें लगा।  तीनों भाइयों के वध के बाद सभी देवता  वापिस अपने रूप में आ गए । और  शिव की चारों ओर जय जयकार होने लगी। देवी देवताओं ने फूलों की वर्षा की। गंधर्व गान करने लगे। अप्सराएं नृत्य करने लगी।प्रसन्न होकर सभी देवता अपने अपने लोक को चले गए।
तो भक्तों ये थी कथा भगवान शिव के पशुपतिनाथ रूप धारण करने की। जब भी इस सृष्टि पर संकट आता है भगवान भोले नाथ अपने भक्तों की रक्षा के लिए कोई भी रूप धारण कर लेते हैं।

How did Lord Shiva become Pashupatinath?
There was a mighty demon named Tarakasur. He had created an uproar all around in the universe. He had a boon from Brahma that he would die by the son of Shiva. After the marriage of Shiva Parvati, when his son Kartik Maharaj was born. Then Kartik Maharaj fought with Tarakasur and killed him. All the gods and goddesses hailed Kartik Maharaj. Tarakasur had three sons. Tarakaksha, Kamalaksha and Vidunmali. The three sons together wanted to avenge the death of their father Tarakasur. The three brothers together did severe penance for Brahmaji. Pleased with his penance, Brahmaji appeared to him. And asked him to ask for a boon. All three of them asked for the boon of being immortal. Brahmaji said that it is impossible, the one who has taken birth in this world is sure to die. That's why I cannot give you this boon. Ask for some more boon. After this, the three brothers asked for a boon that we should die in that situation when all three of us are together. And the three brothers demanded the construction of separate buildings for themselves. Tarakaksha asked for gold, Kamalaksha asked for silver, and Vidunmali asked for an iron building. Brahmaji said good. I hope so. Saying this Brahma ji became indignant. Now the three brothers thought that from now on all three of them would be separate. Neither the three of us will be together nor will we die. The three brothers started living separately. The fear of death was over from the inside of the three brothers. Therefore all the three brothers Indradi used to trouble all the deities. All the gods were wailing. Unrighteousness was spread all around. All the gods together went to Shiva. and told his problem. Shiva said that you take the form of all animals and I will be the master of all of you. All the gods did the same. All the gods and goddesses took the form of animals and created a stir in the three worlds and took the three brothers out of their buildings and gathered them at one place. Then Shiva took the form of Nandi. Shiva struck Tarakaksha and Vidunmali with his horns. In this, Kamalaksha came from behind and hit the head of Nandi form of Shiva, then he fell in Nepal after cutting his head. Where Shiva is worshiped as Pashupatinath. And that Nandi form of Shiva whose head was cut off is worshiped in Kedarnath. Then Shiva got angry and made his real form and killed the three brothers with his trident. Lord Shiva was known as Pashupatinath because of being the owner of all the animals. After the killing of the three brothers, all the gods returned in their form. And there was hailing of Shiva all around. The gods and goddesses showered flowers. Gandharvas started singing. Apsaras started dancing. All the gods went to their respective worlds after being pleased.
So devotees, this was the story of Lord Shiva taking the form of Pashupatinath. Whenever there is a crisis on this creation, Lord Bhole Nath takes any form to protect his devotees.


भगवान जननाथ को क्यों लगता है हर रोज बाजरे की खिचड़ी का भोग ? Why does Lord Jannath feel that Bajra khichdi is enjoyed everyday?





















बहुत पहले की बात हैं। राजस्थान के एक गांव में एक जाट किसान रहता था। उसकी एक बेटी थी ।जिसका नाम कर्माबाई था।वो उमर में बहुत छोटी थी । उसके पिता भोजन करने से पहले भगवान कृष्ण को भोग लगाया करते थे। फिर बाद में खुद खाते थे।एक दिन उन्हे किसी काम से दूसरे गांव जाना पड़ा । जाते हुए वो अपनी बेटी से कहकर गए कि शायद मुझे आने में रात हो जाएगी इसलिए तुम भगवान जी का भोग लगा देना और उसके बाद ही भोजन करना। बेटी बोली ठीक है पिता जी, मैं ऐसा ही करूंगी। कर्माबाई को बाजरे की खिचड़ी के अलावा और कुछ भी नही आता था। इसीलिए उसने बाजरे की खिचड़ी बना दी।और भोग लगाने के लिए खिचड़ी को कृष्ण भगवान के सामने रख दिया। और हाथ जोडकर बोली कि भगवान जी भोग लगाइए। परंतु खिचड़ी तो ज्यों कि त्यों थाली में रखी रही। उधर करमाबाई को बहुत जोर से भूख लग रही थी। फिर उसने सोचा कि कहीं आज खिचड़ी में घी तो कम नहीं हैं। पिताजी ज्यादा घी डाल कर भोग लगाते होंगे। इसलिए उसने खिचड़ी में और घी डाल दिया लेकिन खिचड़ी ऐसी ही रखी रही। कान्हा जी ने भोग नही लगाया। कर्माबाई जोर जोर से रोने लगी। और कहने लगी कि हे कान्हा जी मुझ से कोई गलती हो गई हो तो कृपा मुझे माफ कर दो  और खिचड़ी का भोग लगाओ। छोटी सी बच्ची की पुकार सुनकर कान्हा जी को दया आ गई और वह छोटे से बालक के रूप में आकर भोग लगाने लगे। फिर कर्माबाई ने भी भोजन कर लिया। जब उसके पिता आए तो उन्होंने कर्माबाई से पूछा कि भगवान को भोग लगाया था या नही।  उसने कहा हां पिता जी भगवान ने भोजन कर लिया था । और बोली कि अब मैं ही भगवान जी को भोग लगाया करूंगी। अब रोज कर्माबाई कान्हा जी को खिचड़ी खिलाने लगी। कान्हा जी बालक के रूप में आते और खिचड़ी खाकर चले जाते। एक दिन उसके पिता ने कान्हा जी को बालक के रूप में खिचड़ी खाते देख लिया। और हाथ जोडकर उन्हे प्रणाम किया और अपने प्राण त्याग दिए। उसके बाद कर्मा बाई अकेली रह गई। कुछ साल बाद कर्माबाई उस गांव को छोड़ कर जगन्नाथ पुरी में आकर रहने लगी। वो नियम से रोज सुबह कान्हा जी के लिए खिचड़ी बनाती और उन्हे भोग लगाती। 
समय बीतने के साथ साथ वह बूढ़ी हो रही थी। सुबह के नित्य स्नान आदि क्रिया में उसे भोजन बनाने में समय लग जाता था। कान्हा जी बालक का रूप धारण करके उस के पास बैठे रहते थे और कहते थे मां जल्दी भोजन बनाओ मुझे बहुत भूख लग रही है उसने कहा अब मैं बूढ़ी हो गई हूं अब मुझसे जल्दी भोजन नही बनता। कान्हा जी बोले मां अब तुम सुबह को स्नान आदि मत किया करो पहले मुझे खिचड़ी बना कर दिया करो। बाद में स्नान करती रहना। उस दिन कान्हा जी ने जल्दी जल्दी में खिचड़ी खाई क्योंकि पुजारी के कपाट खोलने से पहले उन्हे मंदिर में जाना था। तो जल्दबाजी में कान्हा जी के मुख पर खिचड़ी लगी रह गई। पुजारी ने देखा तो सोचा कि अभी तो भगवान जी को किसी ने भोग नही लगाया है। तो ये भगवान के मुख पर खिचड़ी कहां से आई। उसी रात को पुजारी के सपने में जगन्नाथ भगवान ने कर्माबाई की खिचड़ी वाली बात बताई। एक दिन कर्मा बाई के द्वार पर एक साधू आया और उसने देखा कि  वो बिना नहाये भगवान के लिए खिचड़ी बना रही हैं। साधू बोला तुम्हे नहा धोकर भोजन बनाना चाहिए। कर्माबाई बोली कि मुझे तो भगवान ने कहा है कि अब तुम बिना नहाए ही भोजन बनाया करो। यह सुन कर साधू बोला कि मैं इतना बड़ा तपस्वी हूं लेकिन आज तक भगवान ने मुझे दर्शन नही दिए और तुम कहती हो कि भगवान तुम्हारे नहाए बिना ही तुम्हारे हाथो का बना भोजन ग्रहण करते हैं। साधू ने उसका बहुत अपमान किया और सारे गांव वाले भी  उसकी हसीं उड़ाने लगे क्योंकि किसी को भी इस बात पर विश्वास नहीं था। उसी रात को साधू के सपने में भगवान ने आकर कर्माबाई से माफी मांगने को कहा। अगले दिन साधू ने कर्माबाई से जाकर माफी मांगी और कहा कि तुम्हारा मुझ पर बड़ा उपकार है जो आज तुम्हारी वजह से भगवान ने सपने में मुझे दर्शन दिए।  
कुछ वर्षों बाद कर्माबाई की मृत्यु हो गई। मंदिर में आ कर जब पुजारी ने देखा कि भगवान जगन्नाथ की आंखो से आंसू बह रहे है उसने तुरंत राजा को बुलाया। राजा और पुजारी दोनो भगवान के सामने हाथ जोडकर कहने लगे कि हे जगन्नाथ भगवान ऐसा हमसे क्या अपराध हो गया है कि आप की आंखो में आंसू है। उसी रात को जगन्नाथ भगवान ने राजा और पुजारी के सपने में आ कर कर्माबाई की मृत्यु की बात बताई और कहा कि उसकी बनाई खिचड़ी मुझे बहुत पसंद थी। कर्माबाई तो मृत्यु के बाद  मेरे धाम को चली गई है अब मुझे बाजरे की खिचड़ी कौन बना कर खिलाएगा। अगली सुबह राजा ने पुजारी से कहा कि अब से रोज सुबह भगवान को  कर्माबाई के नाम से बाजरे की खिचड़ी का भोग लगा करेगा । आज भी जगननाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को बाजरे की खिचड़ी का ही भोग लगता है।

तो भक्तो, भगवान तो भाव के भूखे होते है। अगर उन्हें प्रेम से खिचड़ी भी खिलाए उसे भी वे छप्पन भोग की तरह स्वीकार करते है।

Why does Lord Jannath feel that Bajra khichdi is enjoyed everyday?

It's a long time ago. A Jat farmer lived in a village in Rajasthan. She had a daughter. Whose name was Karmabai. She was very young in age. His father used to offer bhog to Lord Krishna before having his meal. Then later used to eat himself. One day he had to go to another village for some work. While leaving, he went to tell his daughter that maybe it will be night for me to come, so you should offer God ji and eat food only after that. Daughter said okay father, I will do the same. Karmabai could not know anything other than millet khichdi. That's why he made khichdi of millet. And put the khichdi in front of Lord Krishna to enjoy. And with folded hands said that God should offer it. But the khichdi remained as it was on the plate. On the other hand, Karmabai was feeling very hungry. Then he thought that there is no less ghee in the khichdi today. Father would be offering it by adding more ghee. So he put more ghee in the khichdi but the khichdi remained the same. Kanha ji did not enjoy. Karmabai started crying loudly. And started saying that O Kanha ji, if I have made any mistake, please forgive me and enjoy khichdi. Hearing the call of the little girl, Kanha ji felt pity and came in the form of a small child and started offering it. Then Karmabai also had dinner. When his father came, he asked Karmabai whether she had offered bhog to God or not. He said yes father, God had eaten. And said that now I will offer Bhog to God. Now every day Karmabai started feeding khichdi to Kanha ji. Kanha ji would come as a child and go away after eating khichdi. One day his father saw Kanha ji eating khichdi as a child. And bowed to him with folded hands and gave up his life. After that Karma Bai was left alone. After a few years, Karmabai left that village and started living in Jagannath Puri. She would make khichdi for Kanha ji every morning as per the rules and offer her bhog.
She was getting old with the passage of time. He used to take time to prepare food in the morning routine bath etc. Kanha ji used to take the form of a child and used to sit beside him and used to say mother, cook fast food, I am feeling very hungry, he said that now I am old, now I do not cook food quickly. Kanha ji said mother, now you don't take bath etc. in the morning, first make me khichdi. Take a shower afterwards. That day Kanha ji ate khichdi in a hurry because he had to go to the temple before the priest opened the doors. So in haste, khichdi remained on Kanha ji's face. When the priest saw it, he thought that no one has offered Bhog to Lord ji yet. So where did this khichdi on the face of God come from? On the same night, in the dream of the priest, Jagannath Bhagwan told about Karmabai's khichdi. One day a monk came to Karma Bai's door and saw that she was making khichdi for the Lord without taking a bath. The sage said you should take a bath and prepare food. Karmabai said that God has told me that now you should cook food without taking bath. Hearing this, the sage said that I am such a great ascetic, but till date God has not appeared to me and you say that God takes food prepared by your hands without taking your bath. The sadhu insulted him a lot and all the villagers also started laughing at him because no one believed in this. On the same night, in the dream of the sage, God came and asked Karmabai to apologize. The next day the sage went to Karmabai and apologized and said that you owe me a lot, which today because of you God appeared to me in my dream.
Karmabai died a few years later. Coming to the temple, when the priest saw that Lord Jagannath's eyes were flowing with tears, he immediately called the king. Both the king and the priest started saying with folded hands in front of God that O Lord Jagannath, what crime has happened to us that you have tears in your eyes. On the same night, Lord Jagannath appeared in the dream of the king and the priest and told about the death of Karmabai and said that I liked the khichdi made by him. Karmabai has gone to my abode after death, now who will feed me by making millet khichdi. The next morning the king told the priest that every morning from now onwards, he would offer bajra khichdi to the Lord in the name of Karmabai. Even today, in Jagannath Puri, Lord Jagannath enjoys only bajra khichdi.

So devotees, God is hungry for emotion. Even if you feed them khichdi with love, they also accept it as fifty-six bhog.


Story of Lord Krishna and Stolen Clothing , भगवान श्री कृष्ण और चोरी के वस्त्र की कहानी

 




























एक गांव में राधा कृष्ण की भक्ति करने वाले पति और पत्नी रहते थी। उनकी शादी को कई साल बीत चुके थे किंतु उनकी कोई संतान नहीं थी। वे हर रोज राधा कृष्ण की पूजा किया करते थे। एक दिन उनके गांव से कुछ औरते वृंदावन में बांके बिहारी के दर्शन के लिए जा रही थी। उस औरत ने भी अपने पति से उनके साथ जाने की इच्छा व्यक्त की। पति  ने कहा ठीक है तुम चली जाना परंतु मैं नहीं जा सकता। क्योंकि उनके घर में उसकी बुढिया मां भी थी। पति ने कहा तुम अकेली ही चली जाओ। वह औरत जाने की तैयारी करने लगी। अगली सुबह सब औरते मिल कर वृंदावन के लिए निकल गाई। जब वे वृंदावन पहुंची तो वहां का दृश्य देखकर वे सब बहुत प्रसन्न हुई। हर तरफ राधे राधे का नाम गूंज रहा था। सभी औरतें मिल कर एक धर्मशाला ने ठहरी। अगली सुबह जब वे बांके बिहारी के मंदिर में दर्शन के लिए जा रही थी तो सीढ़िया चढ़ते हुए वो औरत पीछे रह गई उसकी साथ की सारी औरते आगे निकल गई। भीड़ के कारण जब उस औरत को धक्का लगा तो जैसे ही वो सीढ़ियों से गिरने लगी तभी एक छोटी से लड़की ने उसका हाथ पकड़ लिया। और उसको गिरने से बचा लिया। फिर वो औरत उस लड़की का हाथ पकड़ कर एक तरफ बैठ गई। फिर वो दोनो आपस में बाते करने लगे। उस औरत ने उस लड़की के पूछने पर अपने बारे में सब कुछ बता दिया कि कैसे वो अपनी इच्छा पूरी करने के लिए वृंदावन आई है। औरत की बाते सुन कर लड़की के मुख पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गाई थी। उसके बाद वो औरत दर्शन करके अपनी धरमशाल में वापिस आ गई। अगले दिन जब वो फिर से मंदिर में दर्शन करने के लिए गई तो उसे सीढ़ियों पर पीछे से किसी ने मईया कह कर पुकारा। जब उस औरत ने पीछे मुड कर देखा तो उसे वही कल वाली लड़की दिखाई दी। उस लड़की ने उस औरत को सीढ़ियों पर एक तरफ बैठने को कहा। फिर तो ये रोज का सिलसिला हो गया था। वे दोनो मंदिर की सीढ़ियों पर मिलने लगी। एक दिन जब वो लड़की उस औरत से मिलने आई तो उसके साथ एक उसकी ही उम्र का एक लड़का  भी था उसने कहा कि ये उसका सखा है । मईया ये भी आपसे मिलना चाहता था। उस औरत ने कहा हम दो दिन बाद वापिस अपने गांव जा रहे है। अगले दिन जब वो शाम को औरत मंदिर में दर्शन के लिए जा रही थी तो रास्ते में उसे राधे कृष्णा के वस्त्र वाली एक ठेला दिखा तो उसको मन से खयाल आया की गांव जाने से पहले उसे राधा कृष्ण को कुछ भेट करना चाहिए। तो उसने वहां से राधा और कृष्ण के कपड़े और मुरली खरीदी। परंतु औरत राधा के जोड़े का घोटा पसंद नही आया तो उसने अलग से घोटा ख सेट रीदा और धर्मशाला जा कर हाथ से घोटा लगाने लगी। उसने जोड़े को तैयार कर के अलग रख दिया। वह सोच ही रही थी कल वापिस जाने से पहले मंदिर में जा कर  जोड़ा चढा आयेगी। तभी उसे बाहर से उस छोटी से लड़की की आवाज सुनाई पड़ी। और वह बाहर आई और देखा की छोटी लड़की और उसका सखा खड़े है। लड़की ने कहा मईया आज मैने आपको दुकान से सुंदर से कपड़े खरीदते देखा था। मुझे भी उन कपड़ो को देखना है। उस औरत ने उन जोड़ो को उन्हें दिखाया। उन्हे वे कपड़े बहुत पसंद आए। लड़की ने मईया से कपड़े मांगे तो मईया ने मना कर दिया। कहा की ये कपड़े तो मैंने मंदिर के लिए खरीदे है मैं कल तुमने जाने से पहले तुम्हे दूसरे कपड़े दिला दुगी। परंतु वे दोनो नही माने और कपड़ो को लेकर भाग गए। रात होने के कारण वो मंदिर के लिए दूसरे कपड़े भी नहीं खरीद पाई। अगली सुबह जब वो दर्शन के लिए मंदिर गई और राधा कृष्ण के दर्शन कर के हैरान हो गई। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। क्योंकि उसने देखा राधा रानी और बिहारी जी ने जो वस्त्र धारण किए है वे वही वस्त्र है जो रात में लड़की और उसका सखा ले कर भाग गए थे।और बिहारी जी के हाथ में  भी मुरली थी। उसने मंदिर के पुजारी से पूछा कि आज राधा और कृष्ण जी ने जो वस्त्र पहने है वे वस्त्र उन्हे कहां से मिले तो पुजारी ने बताया कि आज सुबह जब उन्होंने बिहारी जी और राधा रानी का श्रृंगार करने  के लिए मंदिर का परदा हटाया तो उन्हें ये वस्त्र वहां रखे मिले। पुजारी ने सोचा कि शायद आज भगवान जी को ये वस्त्र पहनने की इच्छा है इसी कारण ये वस्त्र यहां रखे हुए है। तो हमने इन्हीं वस्त्रों से इनका श्रृंगार कर दिया। उस औरत को समझ में आया कि वो दोनो राधा कृष्ण थें।
फिर तो वो औरत राधे राधे करती  हुई इधर उधर भागने लगी। तभी वहां पर उसके गांव की जो औरतें थी वे वहां पर आई और उसे अपने साथ ले गई। वे सब अपने गांव वापिस चली गई।और जाकर उस औरत को उसके घर पहुंचा दिया । उस औरत ने अपने पति और सास को सारी बात बताई। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था।एक वर्ष बाद उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया।उसका नाम उन्होंने राधा रखा ।जब दोनो पति पत्नी बूढ़े हो गए थें तब दोनों जीवन के अंतिम दिनों में वृन्दावन गए।वहां जाकर वे राधे राधे कहकर गली गली घूमने लगे। कई दिनों बाद उन्हे फिर से उसी छोटी सी लडकी के दर्शन हुए।उसे देखते ही उस औरत ने उसे पहचान लिया और दोनो पति पत्नी उनके चरणों में गिर गए ।तभी दोनो के शरीर से एक ज्योति निकलकर उस छोटी सी लड़की में समा गई।

तो भक्तों, भगवान किसी भी रूप में दर्शन दे सकते है बस हमे उन्हे पहचानने की जरूरत है। सृष्टि के कण कण में भगवान बसे हुए है।


In a village, there lived a husband and wife who worshiped Radha Krishna. Many years had passed since their marriage but they had no children. He used to worship Radha Krishna everyday. One day some women from their village were going to Vrindavan to visit Banke Bihari. The woman also expressed her desire to accompany her husband to her. Husband said okay you go but I cannot go. Because his old mother was also in his house. Husband said you go alone. The woman started preparing to leave. The next morning all the women together left for Vrindavan. When they reached Vrindavan, they were all very happy to see the scene there. Radhe Radhe's name was echoing everywhere. All the women together stayed in a dharamsala. The next morning when she was going to visit the temple of Banke Bihari, the woman was left behind while climbing the stairs, all the women with her went ahead. When the woman was shocked due to the crowd, as soon as she started falling from the stairs, a small girl grabbed her hand. and saved him from falling. Then the woman sat on one side holding the girl's hand. Then both of them started talking amongst themselves. The woman told everything about herself when she asked that how she had come to Vrindavan to fulfill her wish. A sweet smile appeared on the girl's face after listening to the woman's words. After that the woman came back to her Dharamshal after having darshan. The next day when she went to visit the temple again, someone called her from behind on the stairs as Mayya. When the woman looked back, she saw the same girl as yesterday. The girl asked the woman to sit on one side of the stairs. Then it became a daily routine. They both started meeting on the steps of the temple. One day when that girl came to meet the woman, there was a boy of her same age with her and she said that this is her friend. Maya also wanted to meet you. The woman said that we are going back to our village after two days. The next day, when the woman was going to visit the temple in the evening, on the way she saw a handcart with Radhe Krishna's clothes, so she thought that she should present something to Radha Krishna before going to the village. So he bought Radha and Krishna's clothes and murli from there. But the woman did not like the scam of Radha's couple, so she went to Rida and Dharamsala separately and started scolding by hand. He prepared the couple and set them aside. She was thinking that before going back tomorrow, she would go to the temple and offer a pair. Then he heard the voice of that little girl from outside. And she came out and saw the little girl and her friend standing. The girl said, Maya, today I saw you buying beautiful clothes from the shop. I want to see those clothes too. The woman showed those couples to him. He really liked those clothes. When the girl asked for clothes from Mayya, Mayya refused. Said that I have bought these clothes for the temple, I will get you other clothes tomorrow before you leave. But both of them did not listen and ran away with the clothes. Due to nightfall, she could not even buy other clothes for the temple. The next morning when she went to the temple for darshan and Radha was surprised to see Krishna. He couldn't believe his eyes. Because he saw that the clothes Radha Rani and Bihari ji were wearing are the same clothes that the girl and her friend had run away in the night. And Bihari ji also had a murli in his hand. He asked the priest of the temple that from where did he get the clothes that Radha and Krishna ji were wearing today, the priest told that this morning when he removed the veil of the temple to make up Bihari ji and Radha Rani, he got these clothes. Keep it there. The priest thought that perhaps Lord ji has a desire to wear these clothes today, that is why he is keeping these clothes here. So we adorned them with these clothes. The woman understood that both of them were Radha Krishna.
Then the woman started running here and there while doing Radhe Radhe. Then the women of his village who were there came there and took him with them. They all went back to their village. And went and took that woman to her house. The woman told everything to her husband and mother-in-law. No one could believe. Started walking around the street. After several days, he again had a vision of the same little girl. On seeing her, the woman recognized her and both husband and wife fell at their feet. Then a light emerged from both of their bodies and engulfed the little girl.

So devotees, God can appear in any form, we just need to recognize Him. God resides in every particle of the universe.



When Lord Shiva himself came to Kedarnath Dham to meet the devotee , जब केदारनाथ धाम पर भगवान शिव खुद आये भक्त से मिलने














बहुत पुराने समय की बात है। एक गांव के कुछ लोग  केदारनाथ के दर्शन के लिए जा रहे थे। तभी गांव के एक आदमी ने सोचा कि मैं भी इनके साथ चलता हूं। लेकिन वे उसे अपने साथ लेकर नहीं गए। उस आदमी के पास अपना कोई साधन नहीं था जिससे वो केदारनाथ जा सके। परंतु उस आदमी के अंदर केदारनाथ के दर्शन की इतनी प्रबल इच्छा थी कि वो अकेला पैदल ही चलने को तैयार हो गया। रास्ता बहुत कठिन था पर फिर भी वह केदारनाथ के दर्शन की मन में अभिलाषा लिए चलता रहा। और भोले बाबा का नाम मुख से लेता रहा। केदारनाथ पहुंचने में उसे कई महीने लग गए थे। जब वो केदारनाथ पहुंचा तो देखा कि सभी भगतजन दर्शन करके वापिस आ रहे थे। उस आदमी ने देखा कि पुजारी ने मंदिर के कपाट बंद कर दिए है। उसने पुजारी से कहा कि वो बहुत दूर से पैदल चल कर आया है। कृपा करके एक बार कपाट खोल कर भोले बाबा के दर्शन करा दो। लेकिन मंदिर के पुजारी ने मना कर दिया। उसने कहा किसी के लिए भी नियम को बदला नहीं जा सकता। केदारनाथ में मंदिर के कपाट भक्तो के लिए सिर्फ 6 महीने ही खुलते है। और 6 महीने बंद रहते है। और आज आखरी दिन था। पुजारी ने कहा कि अब तो ये कपाट 6 महीने बाद ही खुलेंगे। तुम 6 महीने बाद ही आना क्योंकि यहां पर अब 6 महीने बहुत बर्फ पड़ेगी। कोई भी यहां पर 6 महीने नही रुक सकता। उस आदमी ने पुजारी से बहुत विनती की परंतु पुजारी ने उसके लिए अपने नियमों को नही बदला और पुजारी वहां से चला गया। उस आदमी ने देखा वहा पर को नहीं था। तो वो निराश होकर वही बैठ गया। रात का समय हो चुका था और उसे भूख भी बहुत जोर से लग रही थी। लेकिन वहा खाने के लिए कुछ नहीं था। काफी रात बीत चुकी थी उसे बहुत ठंड लग रही थी। उसके पास ओढ़ने को नही था।परंतु वो भोले बाबा का नाम जपता हुआ रोने लगा। उसे समझ नही आ रहा था कि अब वो क्या करे? तभी वहां पर एक अघोरी बाबा आया और उससे आकर पूछा की बेटा तुम क्यों रो रहे हो। उस आदमी ने अपनी सारी बात बताई। अघोरी बाबा ने उसे शांत किया और कुछ खाने को दिया। और वे दोने आपस में बहुत देर तक बाते करते रहे। काफी रात बीत चुकी थी। अब उस आदमी को थकान के कारण नींद आने लगी थी। उस अघोरी बाबा ने उसे ओढ़ने के लिए अपना कंबल दिया और वो आदमी वही पर सो गया और अघोरी बाबा वहा से चले गए। अगले दिन जब उस आदमी की आंख खुली तो उसने सामने से मंदिर के पुजारी को आते देखा और उनसे पूछा कि आप यहां आज क्यों आए हो। आप तो 6 महीने बाद आने वाले थे। पुजारी ने उस आदमी को देखते ही पहचान लिया और चौक उठे। कहा की तुम अब तक यही हो। तुम 6 महीने तक बिना खाए पिए कैसे जिंदा रह सकते हो। आदमी ने कहा मैं आपसे कल ही तो मिला था जब आपने मंदिर के कपाट बंद कर दिए थे तो आप 6 महीने बाद की बात क्यों कर रहे हो। पुजारी ने कहा पर मैं तो 6 महीने बाद ही आया हूं। उस आदमी को यकीन नहीं हुआ कि ये कैसे हो सकता है। वो एक रात में ही 6 महीने कैसे बीत सकते है वहां पर खड़े सभी लोगो विश्वास नही हो रहा था। उस आदमी ने पुजारी को रात में उसके पास आए अघोरी बाबा के बारे में बताया। पुजारी ने घुटनों के बल बैठ कर उस आदमी के आगे हाथ जोड़कर कहा कि वो अघोरी बाबा नही थे बल्कि वे तो स्वयं भगवान भोलेनाथ थे जिन्होंने  तुम्हारे लिए अघोरी बाबा का रूप धारण किया और तुम्हे भोजन कराया और अपनी माया से एक रात को 6 महीने में बदल दिया। तुम पूरे 6 महीने बाद सो कर उठे हो। हम कई वर्षो से भगवान शिव की पूजा कर रहे है किंतु उन्होंने हम आज तक दर्शन नही दिए और तुम्हे एक ही रात में दर्शन दे दिए।

तो भक्तों, जो भक्त भगवान शिव की भक्ति में रम जाता है भगवान भोलेनाथ उसके लिए कुछ भी कर सकते है। भगवान भोलेनाथ अपने भक्तो को कभी निराश नहीं करते। वे असंभव को भी संभव कर देते है।

Long time ago. Some people of a village were going to see Kedarnath. Then a man from the village thought that I should also go with them. But they did not take him with them. The man had no means of his own so that he could go to Kedarnath. But that man had such a strong desire to visit Kedarnath that he agreed to walk alone. The path was very difficult, but still he kept on walking with the desire to see Kedarnath in his mind. And kept taking the name of Bhole Baba from his mouth. It took him several months to reach Kedarnath. When he reached Kedarnath, he saw that all the devotees were coming back after having darshan. The man saw that the priest had closed the doors of the temple. He told the priest that he had come from a long distance on foot. Please open the door once and give darshan of Bhole Baba. But the temple priest refused. He said that the rule cannot be changed for anyone. The doors of the temple in Kedarnath are open for the devotees only for 6 months. and remain closed for 6 months. And today was the last day. The priest said that now these doors will open only after 6 months. You come only after 6 months because it will snow here for 6 months now. No one can stay here for 6 months. The man pleaded with the priest a lot but the priest did not change his rules for him and the priest left from there. The man saw that but Ko was not there. So he sat there disappointed. It was night time and he was feeling very hungry too. But there was nothing to eat there. It had been a long night and he was feeling very cold. He did not have a cover to wear. But he started crying while chanting the name of Bhole Baba. He didn't know what to do now? Then an Aghori Baba came there and asked him why are you crying son. The man told everything he had to say. Aghori Baba pacified him and gave him something to eat. And they kept talking to each other for a long time. A long night had passed. Now that man was falling asleep due to fatigue. That Aghori Baba gave him his blanket to cover him and the man slept on it and Aghori Baba left from there. The next day when the man opened his eyes, he saw the priest of the temple coming from the front and asked him why you have come here today. You were supposed to come after 6 months. The priest recognized the man on seeing him and got shocked. Said that you are still here. How can you survive without eating and drinking for 6 months? The man said that I met you only yesterday when you had closed the doors of the temple, then why are you talking about 6 months later. The priest said but I have come only after 6 months. The man couldn't believe how this could happen. How can they pass 6 months in one night, all the people standing there could not believe it. The man told the priest about Aghori Baba who came to him in the night. The priest got down on his knees and folded his hands in front of the man and said that he was not Aghori Baba, but he himself was Lord Bholenath, who took the form of Aghori Baba for you and fed you and with his illusion in one night in 6 months. Changed. You have woken up after a full 6 months. We have been worshiping Lord Shiva for many years, but he has not given us darshan till date and gave you darshan in one night.

So devotees, the devotee who is immersed in the devotion of Lord Shiva, Lord Bholenath can do anything for him. Lord Bholenath never disappoints his devotees. They also make the impossible possible.