AK BUDHE BAAP KI KAHANI | एक बूढ़े बाप की कहानी |









एक बूढ़ा बाप 


एक बार की बात है एक बूढ़ा बाप अपने बेटे और बहू के साथ रहने के लिए उनके शहर गया । उनके अत्यंत बूढ़े हो जाने के कारण उनके हाथ कांपने लगे थे और उन्हें दिखाई भी कम देता था । उनके बेटा और बहू एक छोटे से घर में रहते थे। उनका पूरा परिवार और उसका 4 वर्ष का एक पोता भी था। वह हर रोज एक साथ बैठकर ही खाना खाते थे। तो वह भी उनके साथ खाना खाने लगा। लेकिन बूढ़े होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बहुत दिक्कत होती थी। खाते समय चम्मच से दाने नीचे गिर जाते थे और उनका हाथ कांपने लगता था । कभी-कभी हाथ से दूध भी गिर जाया करता था । तो बेटा बहू कुछ दिनों तक यह सब सहन करते रहे । पर कुछ दिनों बाद उन्हें अपने पिता की इन कामों पर से नफ़रत होने लगी। तभी बेटे ने कहा कि हमें इनका कुछ करना पड़ेगा और बहू ने भी उनकी हां में हां मिलाई ।और कहा आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा करते रहेंगे।  इनकी वजह से हमारे कितनी चीजों का नुकसान भी हो गया है और यह सब मुझसे देखा नहीं जाता। तो अगले दिन बेटे ने अपने पिता के लिए कमरे के कोने में एक पुराना मेज़ लगा दिया। और अपने बूढ़े बाप से कहा कि पिताजी आप यहां पर बैठ कर खाना खाया करो तब से बूढ़ा बाप अकेले ही बैठ कर अपना भोजन करने लगा । यहां तक कि उसे खाने और पीने के लिए भी लकड़ी के बर्तन दिए गए ताकि उनके टूटने पर उनका नुकसान ना हो । और वह तीनों लोग पहले की तरह ही भोजन करने लगे । जब कभी कभी बेटा और बहू अपने बूढ़े बाप की तरफ देखते थे तो उनकी आंखों में कुछ आंसू आ जाते थे लेकिन फिर भी उन्होंने अपना मन नहीं बदला ।वे उनकी छोटी-छोटी गलतियों के कारण उन्हें ढेर सारी बातें सुना देते थे। उनका 4 साल का बेटा यह सब कुछ बड़े ध्यान से देखता रहता था । इसलिए एक दिन खाने से पहले छोटा बेटा अपने माता पिता के साथ जमीन पर बैठ गया और कुछ करने लगा । तभी बेटे के बाप ने पूछा कि तुम यह क्या बना रहे हो तो बच्चे ने मासूमियत के साथ जवाब दिया कि मैं आप लोगों के लिए लकड़ी का एक कटोरा बना रहा हूं ।ताकि जब आप बूढ़े हो जाओ तो मैं आपको इसमें खाना दे सकूं और यह कह कर वह बच्चा अपने काम पर फिर से लग गया । इस बात पर उसके माता-पिता को बहुत गहरा असर पड़ा । उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। उन दोनों को अपनी गलती का एहसास हुआ वे दोनों बिना कुछ बोले ही समझ चुके थे कि उन्हें क्या करना है  । उस रात वे अपने बूढ़े पिता को वापिस डिनर टेबल पर ले आए और उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया ।



 हमारी जिंदगी भी बिल्कुल ऐसे ही हैं हम अच्छे कर्म करें या बुरे कर्म । हमें अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना पड़ता है। इसीलिए समय रहते ही अपने बुरे कर्मों को अच्छे कर्मों में बदल दें क्योंकि अगर वक्त ने बदला तो बहुत तकलीफ होगी।



an old father


Once upon a time an old father went to live with his son and daughter-in-law in their city. Due to his very old age, his hands started trembling and he could see less. His son and daughter-in-law lived in a small house. He also had a whole family and a 4-year-old grandson. They used to eat food every day sitting together. So he also started eating food with them. But due to old age, that person had a lot of difficulty in eating. While eating, the grains used to fall down from the spoon and his hand used to tremble. Sometimes even milk used to fall from his hand. So the son-in-law continued to bear all this for a few days. But after a few days, he started hating his father for these works. Then the son said that we have to do something for them and the daughter-in-law also said yes to her. And said how long will we continue to enjoy our food because of them. Because of these, so many things have been lost to us and all this is not seen from me. So the next day the son put up an old table for his father in the corner of the room. And told his old father that father, you sit here and eat food, since then the old father started eating his food sitting alone. Even wooden utensils were given to him to eat and drink so that they would not be damaged if they broke. And those three people started eating as before. Whenever son and daughter-in-law used to look at their old father, some tears would come in their eyes but still they did not change their mind. They used to tell them many things because of their small mistakes. His 4-year-old son used to watch all this very carefully. So one day before eating, the younger son sat down with his parents on the ground and started doing something. Then the son's father asked what are you making this, the child replied with innocence that I am making a wooden bowl for you guys. So that when you are old I can give you food in it and it Saying that the child resumed his work. This had a profound effect on his parents. Not a single word came out of his mouth and tears started flowing from his eyes. Both of them realized their mistake, without saying anything, both of them understood what they had to do. That night he brought his old father back to the dinner table and did not misbehave with him.



 Our life is also like this, whether we do good deeds or bad deeds. We have to bear the fruits of our actions in this birth. That is why in time change your bad deeds into good deeds because if time changes then there will be a lot of trouble.

Why did Putna get heaven? Who was Putna in her first birth? पूतना को क्यों मिला स्वर्ग ? पूतना पहले जन्म में कौन थी ?












पूतना राक्षसी पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री थी। बात तब की है जब राजा बलि जो भक्त प्रहलाद के पौत्र थे वे अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे ।अपने यज्ञ का पूर्ण फल पाने के लिए वे अपने द्वार से किसी भी भिक्षुक को खाली हाथ नही भेजते थे। जब भगवान वामन देव का अवतार हुआ और वे राजा बलि के द्वार पर तीन पग भूमि मांगने आए तब राजा बलि की पुत्री ने उन्हे देखा और सोचा कि काश! ये मेरा पुत्र होता तो मैं इसे अपना दूध पिलाती। भगवान वामन देव जी ने उसके इस भाव को ग्रहण किया।परंतु जब वामन देव ने तीन पग भूमि नापने के लिए अपने रूप को विराट बनाया। तब उन्होंने पहले और दूसरे पग में सारी सृष्टि को नाप दिया तब उन्होंने राजा बलि से कहा कि वे अपने तीसरे पग में क्या नापे?। तब वामन देव जी ने तीसरा पग राजा बलि के कथन अनुसार उनके  सिर पर रखा। और तीसरे पग में उन्होंने राजा बलि को नापा।और उन्हे पाताल का राजा बना दिया । इस पर उनकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया और उसके मन  में विचार आया कि अगर मेरा ऐसा पुत्र होता तो मैं इसे विष पिलाकर मार देती। भगवान वामन देव जी ने उसके इस भाव को भी ग्रहण किया और मन में ही कहा कि ऐसा ही हो । तब अगले जन्म में राजा बलि की पुत्री पूतना राक्षसी बनी। जब कृष्ण भगवान का जन्म हुआ। और उन्हे गोकुल में नंद बाबा के घर रात को चोरी छिपे लाया गया । नंद बाबा के घर कृष्ण जन्म का उत्सव मनाया गया।आकाशवाणी के अनुसार कंस को कृष्ण भगवान से अपनी मृत्यु का भय था। इसलिए उसने कई असुरों को उन्हे मारने के लिए भेजा। परंतु वे कृष्ण भगवान का कुछ नही बिगाड़ सके। तब कंस ने पूतना  राक्षसी को कृष्ण भगवान को मारने के लिए भेजा। पूतना का काम छोटे छोटे बच्चो को जहर पिलाकर मारने का था। इसी तरह वो कृष्ण भगवान को मारना चाहती थी। वो एक सुंदर सी युवती बनकर अपने स्तनों में विष लगाकर नंद बाबा के घर आई। और यशोदा मैया से बोली कि वो एक सिद्ध ब्राह्मणी है और वो कान्हा जी को अपना दूध पिलाकर उन्हे आशीर्वाद देना चाहती है । उसने जैसे ही कृष्ण भगवान को अपना विष वाला दूध पिलाया तब भगवान ने विष के साथ साथ उसके प्राणों को भी हर लिया। कृष्ण भगवान ने पूतना राक्षसी को वही धाम दिया जो उन्होंने यशोदा मैया और देवकी मैया के लिए सोच रखा था।

तो भक्तों , इस कथा के अनुसार हमे यही सीखने को मिलता है कि हम भगवान को जैसे भाव से भजते है भगवान हमारे उसी भाव को ग्रहण करते है।


Putana Rakshasi was the daughter of King Bali in a previous life. It is a matter of when King Bali, who was the grandson of the devotee Prahlad, was performing the Asvamedha Yagya. To get the full fruit of his sacrifice, he did not send any beggar from his door empty-handed. When Lord Vamana was incarnated and he came to King Bali's door asking for three steps of land, the daughter of King Bali saw him and thought that I wish! If it were my son, I would have given him my milk. Lord Vaman Dev ji accepted this feeling of his. But when Vaman Dev made his form huge to measure the land three steps. Then he measured the whole creation in the first and second step, then he asked King Bali what should he measure in his third step?. Then Vaman Dev ji placed the third step on his head as per the statement of King Bali. And in the third step, he measured King Bali. And made him the king of Hades. On this his daughter got very angry and thought came in her mind that if I had such a son, I would have killed him by drinking poison. Lord Vamana Dev ji also accepted this sentiment of his and said in his mind that it should be so. Then in the next birth, Putna, the daughter of King Bali, became a demonic. When Lord Krishna was born. And he was brought secretly at night to Nanda Baba's house in Gokul. Krishna's birth was celebrated at Nanda Baba's house. According to Akashvani, Kansa was afraid of his death from Lord Krishna. So he sent many asuras to kill him. But they could not harm Lord Krishna. Then Kansa sent the demon Putana to kill Lord Krishna. Putna's job was to kill small children by drinking poison. Similarly she wanted to kill Lord Krishna. She came to Nand Baba's house as a beautiful girl, putting poison in her breasts. And Yashoda said to Maiya that she is a perfect Brahmin and she wants to bless Kanha ji by drinking her milk. As soon as he made Lord Krishna drink milk containing his poison, the Lord took away the poison as well as his life. Lord Krishna gave the same place to the demon Putana, which he had thought for Yashoda Maiya and Devaki Maiya.

So devotees, according to this story, we get to learn that the way we worship God, God accepts our same feeling.


Why did Lord Ganesha have 2 marriages? Who cursed Lord Ganesha? भगवान गणेश के क्यों हुए 2 विवाह ? भगवान गणेश को किसने दिया श्राप ?















तुलसी हिंदू धर्म में एक पवित्र पौधा माना जाता है। यह एक औषिधिक के रूप में काम करता है। यह हर घर में पाई जाती हैं। तुलसी का प्रयोग पूजा में किया जाता है किंतु तुलसी का इस्तेमाल कभी गणेश भगवान की पूजा में नहीं किया जाता। आज की इस कथा में हम जानेंगे की क्यों भगवान गणेश जी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती। 

एक बार की बात है भगवान गणेश गंगा के तट पर बैठ कर भगवान शिव की तपस्या कर रहे थे। तभी अचानक वहां से तुलसी जी गुजर रही थी । गणेश भगवान ने पीले रंग के वस्त्र धारण किए हुए थे और गले में मोतियों की माला और माथे पर चंदन का तिलक लगाया  हुआ था। गणेश भगवान को इस रूप को देख कर तुलसी जी का मन भगवान गणेश पर मोहित हो गया। और तुलसी जी गणेश भगवान के पास गई और विवाह का प्रस्ताव रखा। तो गणेश भगवान जी स्वयं को ब्रह्मचारी बता कर विवाह के  प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस पर तुलसी जी बहुत क्रोधित हो गई और गणेश भगवान जी को श्राप दिया  कि उनके दो विवाह होगे तो इस बात पर गुस्सा होकर गणेश भगवान जी ने भी तुलसी जी को श्राप दिया कि उनका विवाह शंखाचूर असुर से होगा| गणेश जी के श्राप को सुन कर तुलसी जी को अपनी गलती का अहसास हुआ तो  उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी। गणेश जी ने तुलसी जी को क्षमा कर दिया। और उन्हे आशीर्वाद दिया कि वे विष्णु भगवान की प्रिया हो जाए परंतु साथ में उन्होंने ये भी कहा कि तुम्हारा प्रयोग मेरी पूजा में कभी नहीं किया जाएगा।

Tulsi is considered a sacred plant in Hinduism. It works as a medicine. It is found in every house. Tulsi is used in worship but Tulsi is never used in worship of Lord Ganesha. In today's story we will know why Tulsi is not offered to Lord Ganesha.

Once upon a time Lord Ganesha was doing penance to Lord Shiva while sitting on the banks of the Ganges. Then suddenly Tulsi ji was passing from there. Lord Ganesha was dressed in yellow clothes and had a garland of pearls around his neck and a sandalwood tilak on his forehead. Seeing this form of Lord Ganesha, Tulsi ji's mind was fascinated by Lord Ganesha. And Tulsi ji went to Lord Ganesha and proposed marriage. So Lord Ganesha rejected the marriage proposal by calling himself a celibate. Tulsi ji became very angry on this and cursed Lord Ganesha that he would have two marriages, then angry on this, Lord Ganesha also cursed Tulsi ji that he would be married to Shankhachur Asura. Hearing the curse of Ganesh ji, Tulsi ji realized his mistake, then he apologized to Ganesh ji. Ganesh ji forgave Tulsi ji. And blessed him that he should become the beloved of Lord Vishnu, but together he also said that you will never be used in my worship.






How did Lord Shiva become Pashupatinath? भगवान शिव कैसे बने पशुपतिनाथ ?

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

तारकासुर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस था । उसने सृष्टि में चारों ओर हाहाकार मचा रखा था। उसे ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु शिव जी के पुत्र द्वारा होगी। शिव पार्वती के विवाह के पश्चात जब उनके पुत्र कार्तिक महाराज जी का जन्म हुआ। तब कार्तिक महाराज ने तारकासुर से युद्ध करके उसका वध कर दिया। सारे देवी देवताओं ने कार्तिक महाराज की जय जयकार की। तारकासुर के तीन पुत्र थे। तारकाक्ष, कमलाक्ष और विदुनमाली। तीनों पुत्रों ने मिलकर अपने पिता तारकासुर की मौत का बदला लेना चाहा । तीनों भाइयों ने मिलकर ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। और उनसे वरदान मांगने को कहा। उन तीनों ने अमर होने का वरदान मांगा।ब्रह्माजी ने कहा ये असंभव है इस सृष्टि में जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित हैं। इसलिए मैं तुम्हें ये वरदान नहीं दे सकता।कुछ और वरदान मांगो। इसके बाद तीनों भाईयों ने वरदान मांगा कि हमारी मृत्यु उस परिस्थिति में होनी चाहिए जब हम तीनों भाई एक साथ इक्कठे हो। और तीनों भाइयों ने अपने लिए अलग अलग भवनों के निर्माण की मांग की। तारकाक्ष ने अपने लिए स्वर्ण का, कमलाक्ष ने चांदी का और विदुनमाली ने लोहे के भवन की मांग की।ब्रह्माजी ने कहा तथास्तु। ऐसा ही हो। ये कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए। अब तीनों भाइयों ने सोचा कि अब से वे तीनों अलग अलग रहेंगे । ना ही हम तीनों इक्कठे होंगे और ना ही हमारी मृत्यु होंगी । तीनों भाइयों ने अलग अलग रहना शुरु कर दिया।तीनों भाईयों के अंदर से मृत्यु का डर खत्म हो गया था ।इसलिए तीनों भाई इंद्रादी सभी देवी देवताओं को परेशान करते थें। सभी देवता त्राहि त्राहि कर रहे थें। चारों ओर अधर्म फैल गया था।सभी देवता मिलकर शिव जी के पास गए। और अपनी समस्या को बताया। शिव जी ने कहा कि तुम सारे पशुओं का रूप धारण करों और मैं तुम सब का मालिक बनूंगा। सभी देवताओं ने ऐसा ही किया।  सभी देवी देवताओं ने पशुओं का रूप धारण कर तीनों लोकों में हड़कंप मचा दिया और तीनों भाइयों को अपने भवनों से बाहर निकाल कर एक जगह इक्कठा कर दिया। तब शिव जी ने नंदी का रूप धारण किया । शिव जी ने ताराकाक्ष  और विदुनमाली पर अपने सींगों से प्रहार किया। इतने में कमलाक्ष ने पीछे से आकर शिव जी के नंदी रूप के सिर पर प्रहार किया तब वो शीश कटकर नेपाल में जा गिरा। जहां पर शिव जी को पशुपतिनाथ के रूप में पूजा जाता है। और शिव के उस नंदी के रूप की जिसका शीश कट चुका था  केदारनाथ में पूजा की जाती है। तब  शिव ने क्रोध में आकर अपना असली रूप बनाया और तीनों भाइयों को अपने त्रिशूल से वध कर दिया।सब पशुओं का मालिक होने से भगवान शिव को पशुपतिनाथ कहा जानें लगा।  तीनों भाइयों के वध के बाद सभी देवता  वापिस अपने रूप में आ गए । और  शिव की चारों ओर जय जयकार होने लगी। देवी देवताओं ने फूलों की वर्षा की। गंधर्व गान करने लगे। अप्सराएं नृत्य करने लगी।प्रसन्न होकर सभी देवता अपने अपने लोक को चले गए।
तो भक्तों ये थी कथा भगवान शिव के पशुपतिनाथ रूप धारण करने की। जब भी इस सृष्टि पर संकट आता है भगवान भोले नाथ अपने भक्तों की रक्षा के लिए कोई भी रूप धारण कर लेते हैं।

How did Lord Shiva become Pashupatinath?
There was a mighty demon named Tarakasur. He had created an uproar all around in the universe. He had a boon from Brahma that he would die by the son of Shiva. After the marriage of Shiva Parvati, when his son Kartik Maharaj was born. Then Kartik Maharaj fought with Tarakasur and killed him. All the gods and goddesses hailed Kartik Maharaj. Tarakasur had three sons. Tarakaksha, Kamalaksha and Vidunmali. The three sons together wanted to avenge the death of their father Tarakasur. The three brothers together did severe penance for Brahmaji. Pleased with his penance, Brahmaji appeared to him. And asked him to ask for a boon. All three of them asked for the boon of being immortal. Brahmaji said that it is impossible, the one who has taken birth in this world is sure to die. That's why I cannot give you this boon. Ask for some more boon. After this, the three brothers asked for a boon that we should die in that situation when all three of us are together. And the three brothers demanded the construction of separate buildings for themselves. Tarakaksha asked for gold, Kamalaksha asked for silver, and Vidunmali asked for an iron building. Brahmaji said good. I hope so. Saying this Brahma ji became indignant. Now the three brothers thought that from now on all three of them would be separate. Neither the three of us will be together nor will we die. The three brothers started living separately. The fear of death was over from the inside of the three brothers. Therefore all the three brothers Indradi used to trouble all the deities. All the gods were wailing. Unrighteousness was spread all around. All the gods together went to Shiva. and told his problem. Shiva said that you take the form of all animals and I will be the master of all of you. All the gods did the same. All the gods and goddesses took the form of animals and created a stir in the three worlds and took the three brothers out of their buildings and gathered them at one place. Then Shiva took the form of Nandi. Shiva struck Tarakaksha and Vidunmali with his horns. In this, Kamalaksha came from behind and hit the head of Nandi form of Shiva, then he fell in Nepal after cutting his head. Where Shiva is worshiped as Pashupatinath. And that Nandi form of Shiva whose head was cut off is worshiped in Kedarnath. Then Shiva got angry and made his real form and killed the three brothers with his trident. Lord Shiva was known as Pashupatinath because of being the owner of all the animals. After the killing of the three brothers, all the gods returned in their form. And there was hailing of Shiva all around. The gods and goddesses showered flowers. Gandharvas started singing. Apsaras started dancing. All the gods went to their respective worlds after being pleased.
So devotees, this was the story of Lord Shiva taking the form of Pashupatinath. Whenever there is a crisis on this creation, Lord Bhole Nath takes any form to protect his devotees.


भगवान जननाथ को क्यों लगता है हर रोज बाजरे की खिचड़ी का भोग ? Why does Lord Jannath feel that Bajra khichdi is enjoyed everyday?





















बहुत पहले की बात हैं। राजस्थान के एक गांव में एक जाट किसान रहता था। उसकी एक बेटी थी ।जिसका नाम कर्माबाई था।वो उमर में बहुत छोटी थी । उसके पिता भोजन करने से पहले भगवान कृष्ण को भोग लगाया करते थे। फिर बाद में खुद खाते थे।एक दिन उन्हे किसी काम से दूसरे गांव जाना पड़ा । जाते हुए वो अपनी बेटी से कहकर गए कि शायद मुझे आने में रात हो जाएगी इसलिए तुम भगवान जी का भोग लगा देना और उसके बाद ही भोजन करना। बेटी बोली ठीक है पिता जी, मैं ऐसा ही करूंगी। कर्माबाई को बाजरे की खिचड़ी के अलावा और कुछ भी नही आता था। इसीलिए उसने बाजरे की खिचड़ी बना दी।और भोग लगाने के लिए खिचड़ी को कृष्ण भगवान के सामने रख दिया। और हाथ जोडकर बोली कि भगवान जी भोग लगाइए। परंतु खिचड़ी तो ज्यों कि त्यों थाली में रखी रही। उधर करमाबाई को बहुत जोर से भूख लग रही थी। फिर उसने सोचा कि कहीं आज खिचड़ी में घी तो कम नहीं हैं। पिताजी ज्यादा घी डाल कर भोग लगाते होंगे। इसलिए उसने खिचड़ी में और घी डाल दिया लेकिन खिचड़ी ऐसी ही रखी रही। कान्हा जी ने भोग नही लगाया। कर्माबाई जोर जोर से रोने लगी। और कहने लगी कि हे कान्हा जी मुझ से कोई गलती हो गई हो तो कृपा मुझे माफ कर दो  और खिचड़ी का भोग लगाओ। छोटी सी बच्ची की पुकार सुनकर कान्हा जी को दया आ गई और वह छोटे से बालक के रूप में आकर भोग लगाने लगे। फिर कर्माबाई ने भी भोजन कर लिया। जब उसके पिता आए तो उन्होंने कर्माबाई से पूछा कि भगवान को भोग लगाया था या नही।  उसने कहा हां पिता जी भगवान ने भोजन कर लिया था । और बोली कि अब मैं ही भगवान जी को भोग लगाया करूंगी। अब रोज कर्माबाई कान्हा जी को खिचड़ी खिलाने लगी। कान्हा जी बालक के रूप में आते और खिचड़ी खाकर चले जाते। एक दिन उसके पिता ने कान्हा जी को बालक के रूप में खिचड़ी खाते देख लिया। और हाथ जोडकर उन्हे प्रणाम किया और अपने प्राण त्याग दिए। उसके बाद कर्मा बाई अकेली रह गई। कुछ साल बाद कर्माबाई उस गांव को छोड़ कर जगन्नाथ पुरी में आकर रहने लगी। वो नियम से रोज सुबह कान्हा जी के लिए खिचड़ी बनाती और उन्हे भोग लगाती। 
समय बीतने के साथ साथ वह बूढ़ी हो रही थी। सुबह के नित्य स्नान आदि क्रिया में उसे भोजन बनाने में समय लग जाता था। कान्हा जी बालक का रूप धारण करके उस के पास बैठे रहते थे और कहते थे मां जल्दी भोजन बनाओ मुझे बहुत भूख लग रही है उसने कहा अब मैं बूढ़ी हो गई हूं अब मुझसे जल्दी भोजन नही बनता। कान्हा जी बोले मां अब तुम सुबह को स्नान आदि मत किया करो पहले मुझे खिचड़ी बना कर दिया करो। बाद में स्नान करती रहना। उस दिन कान्हा जी ने जल्दी जल्दी में खिचड़ी खाई क्योंकि पुजारी के कपाट खोलने से पहले उन्हे मंदिर में जाना था। तो जल्दबाजी में कान्हा जी के मुख पर खिचड़ी लगी रह गई। पुजारी ने देखा तो सोचा कि अभी तो भगवान जी को किसी ने भोग नही लगाया है। तो ये भगवान के मुख पर खिचड़ी कहां से आई। उसी रात को पुजारी के सपने में जगन्नाथ भगवान ने कर्माबाई की खिचड़ी वाली बात बताई। एक दिन कर्मा बाई के द्वार पर एक साधू आया और उसने देखा कि  वो बिना नहाये भगवान के लिए खिचड़ी बना रही हैं। साधू बोला तुम्हे नहा धोकर भोजन बनाना चाहिए। कर्माबाई बोली कि मुझे तो भगवान ने कहा है कि अब तुम बिना नहाए ही भोजन बनाया करो। यह सुन कर साधू बोला कि मैं इतना बड़ा तपस्वी हूं लेकिन आज तक भगवान ने मुझे दर्शन नही दिए और तुम कहती हो कि भगवान तुम्हारे नहाए बिना ही तुम्हारे हाथो का बना भोजन ग्रहण करते हैं। साधू ने उसका बहुत अपमान किया और सारे गांव वाले भी  उसकी हसीं उड़ाने लगे क्योंकि किसी को भी इस बात पर विश्वास नहीं था। उसी रात को साधू के सपने में भगवान ने आकर कर्माबाई से माफी मांगने को कहा। अगले दिन साधू ने कर्माबाई से जाकर माफी मांगी और कहा कि तुम्हारा मुझ पर बड़ा उपकार है जो आज तुम्हारी वजह से भगवान ने सपने में मुझे दर्शन दिए।  
कुछ वर्षों बाद कर्माबाई की मृत्यु हो गई। मंदिर में आ कर जब पुजारी ने देखा कि भगवान जगन्नाथ की आंखो से आंसू बह रहे है उसने तुरंत राजा को बुलाया। राजा और पुजारी दोनो भगवान के सामने हाथ जोडकर कहने लगे कि हे जगन्नाथ भगवान ऐसा हमसे क्या अपराध हो गया है कि आप की आंखो में आंसू है। उसी रात को जगन्नाथ भगवान ने राजा और पुजारी के सपने में आ कर कर्माबाई की मृत्यु की बात बताई और कहा कि उसकी बनाई खिचड़ी मुझे बहुत पसंद थी। कर्माबाई तो मृत्यु के बाद  मेरे धाम को चली गई है अब मुझे बाजरे की खिचड़ी कौन बना कर खिलाएगा। अगली सुबह राजा ने पुजारी से कहा कि अब से रोज सुबह भगवान को  कर्माबाई के नाम से बाजरे की खिचड़ी का भोग लगा करेगा । आज भी जगननाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को बाजरे की खिचड़ी का ही भोग लगता है।

तो भक्तो, भगवान तो भाव के भूखे होते है। अगर उन्हें प्रेम से खिचड़ी भी खिलाए उसे भी वे छप्पन भोग की तरह स्वीकार करते है।

Why does Lord Jannath feel that Bajra khichdi is enjoyed everyday?

It's a long time ago. A Jat farmer lived in a village in Rajasthan. She had a daughter. Whose name was Karmabai. She was very young in age. His father used to offer bhog to Lord Krishna before having his meal. Then later used to eat himself. One day he had to go to another village for some work. While leaving, he went to tell his daughter that maybe it will be night for me to come, so you should offer God ji and eat food only after that. Daughter said okay father, I will do the same. Karmabai could not know anything other than millet khichdi. That's why he made khichdi of millet. And put the khichdi in front of Lord Krishna to enjoy. And with folded hands said that God should offer it. But the khichdi remained as it was on the plate. On the other hand, Karmabai was feeling very hungry. Then he thought that there is no less ghee in the khichdi today. Father would be offering it by adding more ghee. So he put more ghee in the khichdi but the khichdi remained the same. Kanha ji did not enjoy. Karmabai started crying loudly. And started saying that O Kanha ji, if I have made any mistake, please forgive me and enjoy khichdi. Hearing the call of the little girl, Kanha ji felt pity and came in the form of a small child and started offering it. Then Karmabai also had dinner. When his father came, he asked Karmabai whether she had offered bhog to God or not. He said yes father, God had eaten. And said that now I will offer Bhog to God. Now every day Karmabai started feeding khichdi to Kanha ji. Kanha ji would come as a child and go away after eating khichdi. One day his father saw Kanha ji eating khichdi as a child. And bowed to him with folded hands and gave up his life. After that Karma Bai was left alone. After a few years, Karmabai left that village and started living in Jagannath Puri. She would make khichdi for Kanha ji every morning as per the rules and offer her bhog.
She was getting old with the passage of time. He used to take time to prepare food in the morning routine bath etc. Kanha ji used to take the form of a child and used to sit beside him and used to say mother, cook fast food, I am feeling very hungry, he said that now I am old, now I do not cook food quickly. Kanha ji said mother, now you don't take bath etc. in the morning, first make me khichdi. Take a shower afterwards. That day Kanha ji ate khichdi in a hurry because he had to go to the temple before the priest opened the doors. So in haste, khichdi remained on Kanha ji's face. When the priest saw it, he thought that no one has offered Bhog to Lord ji yet. So where did this khichdi on the face of God come from? On the same night, in the dream of the priest, Jagannath Bhagwan told about Karmabai's khichdi. One day a monk came to Karma Bai's door and saw that she was making khichdi for the Lord without taking a bath. The sage said you should take a bath and prepare food. Karmabai said that God has told me that now you should cook food without taking bath. Hearing this, the sage said that I am such a great ascetic, but till date God has not appeared to me and you say that God takes food prepared by your hands without taking your bath. The sadhu insulted him a lot and all the villagers also started laughing at him because no one believed in this. On the same night, in the dream of the sage, God came and asked Karmabai to apologize. The next day the sage went to Karmabai and apologized and said that you owe me a lot, which today because of you God appeared to me in my dream.
Karmabai died a few years later. Coming to the temple, when the priest saw that Lord Jagannath's eyes were flowing with tears, he immediately called the king. Both the king and the priest started saying with folded hands in front of God that O Lord Jagannath, what crime has happened to us that you have tears in your eyes. On the same night, Lord Jagannath appeared in the dream of the king and the priest and told about the death of Karmabai and said that I liked the khichdi made by him. Karmabai has gone to my abode after death, now who will feed me by making millet khichdi. The next morning the king told the priest that every morning from now onwards, he would offer bajra khichdi to the Lord in the name of Karmabai. Even today, in Jagannath Puri, Lord Jagannath enjoys only bajra khichdi.

So devotees, God is hungry for emotion. Even if you feed them khichdi with love, they also accept it as fifty-six bhog.