3 friends | Gyan Ganga | three friends of human | इंसान के 3 मित्र












 


एक बार की बात है एक आदमी था। उसके तीन मित्र थें। उन चारों में बहुत गहरी मित्रता थी। एक दिन वह आदमी बहुत बीमार पड़ गया । उसने गांव के कई वैद्यों से अपना उपचार कराया । लेकिन कोई भी उसकी बीमारी का पता नहीं लगा पाया । अंत में सभी वैद्यों ने यही कहा कि हम इसे नहीं बचा पाएंगे । ऐसा कहकर सभी वैद्य अपने घर  चले गए ।जब उस आदमी  को ऐसा लगा कि अब उसका अंतिम समय आ चुका है तो उसने  अपने तीनों मित्रों को अपने पास बुलाया और अपने पहले मित्र से पूछा कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो।  तो उसने कहा मैं तुमसे सबसे अधिक प्यार करता हूं । तो आदमी ने कहा कि क्या तुम मेरा साथ मौत के बाद भी दोगे? मित्र ने अपने कदम पीछे कर लिए और कहा कि मैं तुम्हारा साथ सिर्फ इस जन्म तक ही दे सकता हूं  । आदमी ने यही  सवाल अपने दूसरे मित्र से किया कि क्या तुम मेरा साथ मृत्यु के बाद भी दोगे? तो दूसरे मित्र ने कहा कि मैं तुम्हारे मरने पर तुम्हारा अंतिम संस्कार अच्छे तरीके से करूंगा। पर मैं तुम्हें ये वादा नहीं कर सकता कि मैं तुम्हारा साथ मौत के बाद भी दूंगा । फिर आदमी ने अपने तीसरे मित्र से पूछा कि क्या तुम मेरा साथ मृत्यु के बाद भी दोगे । तो तीसरे मित्र ने कहा जरूर मैंने तुम्हारा साथ जिंदगी भर दिया है और मृत्यु के बाद भी दूंगा । आदमी खुश हो जाता है । दोस्तों यही हमारी जिंदगी है हमारी जिंदगी में भी हमारे तीन मित्र हैं पैसा, परिवार और कर्म । हमारा पहला मित्र यानि कि पैसा वह हमारे साथ तब तक है जब तक हम इस दुनिया में हैं । हमारी मृत्यु के बाद पैसा कोई मायने नहीं रखता ।  हमारा दूसरा मित्र है परिवार जो कि हमारा साथ जिंदगी भर निभाते हैं और हमारे मरने के बाद हमारा अंतिम संस्कार करके हमें मुक्ति दिलाते हैं । और उसके बाद  हमारे लिए उनका कोई महत्व नहीं होता । लेकिन हमारा तीसरा मित्र यानी कि कर्म यही वह है जो हमारे जीवन भर और हमारे मरने के बाद भी हमेशा हमारे साथ रहता है। इसलिए जिंदगी में हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए क्योंकि एक कर्म ही है जो मृत्यु के बाद भी हमारा साथ देता है।


Once upon a time there was a man. He had three friends. The four of them had a very close friendship. One day the man fell very ill. He got his treatment done by many Vaidyas of the village. But no one could trace his illness. In the end all the doctors said that we will not be able to save it. Saying this all the doctors went to their homes. When the man felt that his last time had come, he called his three friends to him and asked his first friend how much you love me. So he said I love you the most. So the man said will you support me even after death? The friend took his step back and said that I can support you only till this birth. The man asked the same question to his other friend that will you accompany me even after death? So another friend said that I will do your last rites in a good way when you die. But I cannot promise you that I will support you even after death. Then the man asked his third friend whether you would accompany me even after death. So the third friend said, I have definitely supported you for life and will give it to you even after death. The man becomes happy. Friends, this is our life, in our life also we have three friends money, family and karma. Our first friend i.e. money is with us as long as we are in this world. Money doesn't matter after our death. Our second friend is the family, who support us throughout our life and after our death, after performing our last rites, liberates us. And after that they are of no importance to us. But our third friend i.e. karma is the one who always stays with us throughout our life and even after we die. That is why one should always do good deeds in life because there is only one karma which supports us even after death.

सम्राट और बोध भिक्षुक की कहानी | The Story of the Emperor and the Bodh Bhikkhu























 


पुराने समय की बात है एक बार एक सम्राट था। वह बहुत ही बहादुर और शक्तिशाली था। वह बहुत ही दयालु हृदय भी था। वह अपनी प्रजा को बहुत ही खुश रखता था । वह अपने शासनकाल का अब तक का सबसे प्रिय और सफल शासक था। उसका एक पुत्र भी था । वह भी अपने पिता की तरह एक सफल शासक और सबका प्रिय बनना चाहता था। परंतु वह सबकी नजरों में अच्छा बनने के लिए जो कर्म करता उसमें कुछ ना कुछ कमी रह जाती। जिससे कि वह बहुत ही अशांत हो जाता और दिन भर अपने उस कमी के बारे में सोच सोच कर परेशान हो जाता था। वह सोचता था कि ऐसा क्या करें जिससे कि वह अपने पिता की तरह बन सके। उन्हीं दिनों उनके नगर में एक बौद्ध भिक्षुक अपने शिष्यों के साथ आए हुए थे । बौद्ध भिक्षुक बहुत ही ज्ञानी थे । राजकुमार अपनी समस्या के समाधान के लिए उन बौद्ध भिक्षुक के पास गया ।बौद्ध भिक्षुक के पास जाकर राजकुमार ने उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया । बौद्ध भिक्षुक ने राजकुमार से उसके आने का कारण पूछा । तब राजकुमार ने अपनी सारी समस्या उन्हें बता दी । बौद्ध भिक्षुक ने कहा मैं तुम्हारी समस्या का समाधान कर सकता हूं । पर तुम्हें इसके लिए कुछ कीमत चुकानी होगी । राजकुमार ने बड़े अभिमान से कहा कि मैं राजा का पुत्र हूं मैं कुछ भी कीमत चुका सकता हूं । बौद्ध भिक्षुक ने कहा कि यहां कीमत का अर्थ किसी सोना चांदी से  नहीं है बल्कि तुम्हें मुझसे कोई प्रश्न पूछे बिना एक कार्य करना है । राजकुमार ने कुछ सोचकर हां कह दी। बौद्ध भिक्षुक ने कहा कि तुम्हें बाजार में एक बड़े कबाड़ी वाले के पास जाना है । और उससे कुछ खराब लोहा लेकर आना है। राजकुमार ने कहा कि क्या वह अपने नौकरों से पुराने लोहे को मंगवा सकता है । बौद्ध भिक्षुक ने मना कर दिया और कहा कि सिर्फ तुम्हें ही पैदल चलकर वहां पर जाना है और पुराना लोहा लेकर आना है । राजकुमार पैदल चल दिया । राजकुमार को बहुत दुख हो रहा था क्योंकि वह कभी भी महल के बाहर पैदल नहीं निकला था । जब भी वह महल से बाहर जाता हमेशा रथ और घोड़े की सवारी से ही जाता । लेकिन आज वह कड़ी धूप में पैदल चल रहा था । चलते चलते उसने सोचा कि मुझे सब देख रहे हैं ये मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे कि राजा का पुत्र और पैदल चल रहा है । कहीं राजा ने इसे महल से तो नहीं निकाल दिया । रास्ते में उसे सब लोगों को देखकर बार-बार मन में यही ख्याल आ रहा था कि ये सब मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे । अंत में वह एक कबाड़ी की दुकान पर पहुंचा । कबाड़ी की दुकान पर जाकर उसने उससे खराब लोहा मांगा । वहां पर भी वह यही सोच रहा था कि कबाड़ीवाला मेरे बारे में क्या सोचता होगा । कबाड़ी वाले ने उसे खराब लोहा दिया और उसे लेकर राजकुमार बौद्ध भिक्षुक के पास आ गया । अब बौद्ध भिक्षुक ने उसे एक लोहार की दुकान पर जाने को कहा । और कहा कि वह इससे एक तलवार बनाकर लेकर आए । राजकुमार लोहार की दुकान पर चला गया ।वहां जाकर राजकुमार ने लोहे को पिघलाकर तलवार को बनाना शुरू कर दिया ।जब उसने एक तलवार बनाई तो उसे उस तलवार को देख कर बहुत खुशी हुई और उसने महसूस किया कि जब वह तलवार बना रहा था । तो उसके मन में किसी भी तरह का कोई विचार नहीं आया । वह तलवार को देखकर बहुत खुश हो रहा था कि उसने अपने हाथों से यह तलवार बनाई है । उस तलवार को लेकर वह बौद्ध भिक्षुक के पास चला आया । बौद्ध भिक्षुक  ने कहा कि अब तुम्हें एक काम और करना है तुम्हें वापस कबाड़ी वाले के पास जाना है और रास्ते में जो भी दुकानदार या लोग तुमने जिन्हे देखा था । उनसे अपने बारे में यह पूछना है कि क्या उन्होंने थोडे समय पहले तुम्हें यहां देखा था । राजकुमार वापिस कबाड़ी वाली दुकान पर चला जाता है । वह वहां जाकर कबाड़ी वाले से पूछता है कि जब वह लोहे का सामान ले रहा था तो वो उसके बारे में क्या सोच रहा था । तो कबाड़ी वाले ने कहा कि उसके महंगे वस्त्रों को देखकर उसने सोचा कि वह किसी अमीर घराने से है बस इसके बाद मैं अपने काम में लग गया । इसके बाद उसने कुछ नहीं सोचा । उसके बाद राजकुमार एक दुकानदार के पास गया और दुकानदार से पूछा कि क्या आपने थोड़े समय पहले उसे यहां देखा था ।  दुकानदार ने कहा कि नहीं ,मैंने आपको नहीं देखा था । मेरे दुकान पर इतने ग्राहक आए हुए थे।  मैं उन में व्यस्त था । तब राजकुमार ने रास्ते में कुछ लोगो से पूछा कि क्या थोड़े समय पहले उन्होने उसे यहां देखा था ।तो उन लोगों ने कहा कि नहीं, हमने आपको यहां नहीं देखा । हम सब अपने काम में व्यस्त थे । तब राजकुमार बौद्ध भिक्षुक के पास आ गया और सारी बात बताई । तब बौद्ध भिक्षुक ने कहा कि राजकुमार यही आपकी समस्या का समाधान है । राजकुमार ने कहा कि परंतु मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आया । तब उसने कहा कि जब हम किसी कार्य को करें तो हमारा ध्यान उसी कार्य में होना चाहिए । हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि अन्य लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे और हां ,अगर हमारे काम में कुछ कमी रह गई है तो उस कमी को बार-बार सोचने की बजाय हमें उस कमी को ठीक करने के बारे में सोचना चाहिए । कि अगर हम दोबारा यह काम करें तो हम से यह गलती ना हो ।बल्कि यह नहीं कि पूरा दिन उस कमी के बारे में सोच सोच कर अपना सारा दिन खराब करें या अपना मन परेशान रखें । जिन्हें कुछ काम नहीं होगा । वही दूसरे लोगों के बारे में बुरा सोचते हैं इसलिए हमें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए । राजकुमार को बौद्ध भिक्षु की बात समझ में आ गई बौद्ध भिक्षु ने कहा कि जब तुम तलवार बना रहे थे क्या तुम्हारे मन में कोई विचार उठे तब राजकुमार ने कहा– नहीं ,उस समय मेरा ध्यान तलवार बनाने में था । तो बौद्ध भिक्षुक ने कहा कि जब भी तुम्हारे मन में कोई बुरे विचार या किसी तरह के  विचारों का समुद्र उमड़ पड़े तब तुम्हें किसी कलात्मक कार्य में लग जाना चाहिए। कोई मन पसंदीदा कार्य जिसे करने में तुम्हारी इच्छा हो । यही तुम्हारी समस्या का समाधान है। राजकुमार को बौद्ध भिक्षुक की बात समझ आ गई। अब वह महल में आकर प्रजा को खुश करने के लिए कार्य करता। धीरे-धीरे उसका मन शांत होने लगा था और वह खुश भी रहने लगा था ।

Once upon a time there was an emperor. He was very brave and powerful. He also had a very kind heart. He used to keep his subjects very happy. He was by far the most beloved and successful ruler of his reign. He also had a son. Like his father, he also wanted to be a successful ruler and loved by all. But the work that he would do to become good in the eyes of everyone, there would have been some deficiency in it. So that he became very restless and used to get upset thinking about his lack throughout the day. He wondered what to do so that he could become like his father. In those days a Buddhist monk was coming to his town with his disciples. Buddhist monks were very knowledgeable. The prince went to the Buddhist monk to solve his problem. Going to the Buddhist monk, the prince bowed to him with folded hands. The Buddhist monk asked the prince the reason for his coming. Then the prince told all his problems to him. The Buddhist monk said I can solve your problem. But you have to pay some price for it. The prince said with great pride that I am the son of the king, I can pay any price. The Buddhist monk said that here the price does not mean any gold or silver, but you have to do one thing without asking me any question. After thinking something, the prince said yes. The Buddhist monk said that you have to go to a big junk shop in the market. And he has to bring some bad iron from him. The prince asked if he could get the old iron from his servants. The Buddhist monk refused and said that only you have to go there on foot and bring the old iron. The prince went on foot. The prince was feeling very sad because he had never walked outside the palace. Whenever he went out of the palace, he always went by chariot and horse ride. But today he was walking in the scorching sun. While walking, he thought that everyone is watching me, what would they be thinking about me that the son of the king is walking on foot. Somewhere the king did not remove it from the palace. Seeing all the people on the way, this thought was coming in my mind again and again that what all of them must be thinking of me. Finally he reached a junk shop. Going to the scrap shop, he asked for a bad iron from him. Even there, he was thinking the same thing about what the scrap dealer would have thought of me. The scrap dealer gave him a bad iron and the prince came to the Buddhist monk with him. Now the Buddhist monk asked him to go to a blacksmith shop. And said that he made a sword out of it and brought it. The prince went to the blacksmith's shop. Going there, the prince started making swords by melting iron. When he made a sword, he was very happy to see that sword and he felt that while he was making a sword. So no thought of any kind came in his mind. He was getting very happy seeing the sword that he had made this sword with his own hands. With that sword he went to the Buddhist monk. The Buddhist monk said that now you have to do one more thing, you have to go back to the scrap dealer and whatever shopkeepers or people you saw on the way. Ask him about himself whether he saw you here a while back. The prince goes back to the scrap shop. He goes there and asks the scrap dealer what he was thinking about when he was taking the iron goods. So the scrap dealer said that seeing his expensive clothes, he thought that he was from some rich family, just after that I got busy in my work. After that he didn't think anything. After that the prince went to a shopkeeper and asked the shopkeeper whether you had seen him here a while back. The shopkeeper said no, I did not see you. There were so many customers coming to my shop. I was busy with them. Then the prince asked some people on the way whether they had seen him here a while back. So those people said that no, we did not see you here. We were all busy with our work. Then the prince came to the Buddhist monk and told everything. Then the Buddhist monk said that this prince is the solution to your problem. The prince said that but I did not understand anything. Then he said that when we do any work, then our attention should be in that work. We should not think about what other people will think about us and yes, if there is something missing in our work, instead of thinking about that deficiency again and again, we should think about correcting that deficiency. That if we do this work again, then we should not make this mistake. Rather, it is not that the whole day, thinking about that deficiency, spoil your whole day or keep your mind disturbed. Which will not work. They think badly about other people, so we should focus on our work. The prince understood the point of the Buddhist monk, the Buddhist monk said that when you were making a sword, did any thought arise in your mind, then the prince said – No, at that time my focus was on making the sword. So the Buddhist monk said that whenever you have any bad thoughts or some kind of ocean of thoughts, then you should engage in some artistic work. Any favorite work that you wish to do. This is the solution to your problem. The prince understood the point of the Buddhist monk. Now he would come to the palace and work to please the subjects. Slowly his mind started to calm down and he was also happy.

समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता | Gyan Ganga | bhagya ke likhe lekh nhi badalte |




















 


एक गांव में एक सेठ और सेठानी रहते थें।उनकी एक बेटी थी। जिसकी शादी उन्होंने बड़ी धूम धाम से एक बहुत ही सम्पन्न परिवार में की थी। परंतु शादी के कुछ वर्षों बाद ही बेटी के ससुराल में उसके सास और ससुर परलोक सिधार गए। उसके पति के व्यवसाय में भी हानि होती जा रही थी।सेठ और सेठानी अपनी तरफ से उसकी बहुत मदद कर रहे थे। परंतु उनके कुछ दिन अच्छी तरह से व्यतीत हो जाते और फिर वही हाल हो जाता । उसका पति जिस भी व्यवसाय को शुरू करता उसी में उसे हानि हो जाती। सेठ और सेठानी ने उन्हे अपने यहां आकर रहने को कहा किंतु उन दोनों ने साफ मना कर दिया। अब तो सेठ जी भी उनकी मदद करके तंग आ चुके थें । इसलिए उन्होंने सोचा कि जब उनके भाग्य में ही इस समय सुख नही है तो उनकी मदद करने से कोई फायदा नही। इसलिए सेठ जी ने उन्हे उनके हाल पर छोड़ दिया। परंतु मां तो मां होती हैं। सेठानी जी उनकी अब भी मदद करना चाहती थी। एक दिन सेठानी ने अपनी बेटी को बुलावा भिजवा कर मिलने के लिए बुलाया। परंतु उस दिन उसकी बेटी की तबियत ठीक नहीं थीइसलिए उसने अपने पति को भेज दिया । और कहा कि तुम जाकर मां से मिल आओ, उन्हे मेरी तबियत के बारे मे कुछ भी नही बताना। पति ने कहा ठीक है और मिलने चला गया। उस समय सेठ जी घर पर नही थें।सेठानी ने अपने दामाद की खूब मेहमानी की। सेठानी ने सोचा कि अगर मैं पैसे से इन्हे  मदद करू तो कहीं सेठ जी बुरा ना मान जाएं। इसलिए सेठानी ने कुछ लड्डू बनाए। लड्डू बनाते समय उसने एक लड्डू काफी बड़ा बनाया और उसमे अपनी हीरे की अंगूठी छुपा दी ।उसने चलते हुए वो डिब्बा अपने दामाद को दे दिया । और दामाद वहां से चल दिया। रास्ते में उसने एक हलवाई की दुकान देखी। उसने सोचा कि क्यों ना इस लड्डू के डिब्बे को बेचकर कुछ पैसे ले लेता हूं। पैसे होंगे तो कुछ काम ही आयेंगे। उसने हलवाई से जाकर ये बात कहीं। पहले तो हलवाई ने मना कर दिया लेकिन दामाद के बहुत कहने पर वो मान गया। हलवाई ने उसे पैसे दे दिए । दामाद पैसे लेकर अपने घर चला गया। रास्ते में उधर से सेठ जी आ रहे थे ।उन्होंने हलवाई की वहीं दुकान देखी और सोचा कि सेठानी के लिए कुछ मिठाई खरीद लेता हूं। सेठ जी ने हलवाई से मिठाई देने को कहा। और भाग्य से हलवाई ने वही मिठाई का डिब्बा दे दिया जो उसका दामाद बेचकर गया था। सेठ जी ने लड्डुओं का डिब्बा खरीदा और घर चले गए। घर जाकर उन्होने वो डिब्बा सेठानी को दे दिया। सेठानी ने डिब्बा खोलकर जैसे ही लड्डू को उठाकर खाया उस लड्डू में से उसकी हीरे की अंगूठी मिली। उसने सेठ जी से पूछा कि वे ये लड्डू कहां से लाए है तो सेठ जी ने हलवाई की दुकान का जिक्र किया और पूछा कि तुम ये सब क्यों पूछ रही हो। तब सेठानी ने कहा कि आप सही कहते थें कि जब किसी के भाग्य में कुछ मिलना नहीं होता तो उसे नही मिलता । सेठ जी ने कहा कि तुम ऐसा क्यो कह रही हो? तब सेठानी ने सारी बात बता दी। सेठ जी ने जाकर हलवाई से पूछा कि बताओ तुम्हे ये लड्डू कहां से मिले थें । तब हलवाई ने बताया कि एक आदमी उसे ये लड्डुओं का डिब्बा देकर गया था। उसके बाद सेठ और सेठानी ने घर जाकर भगवान से अपनी बेटी और दामाद के दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए बहुत सी प्राथनाएं और व्रत किए। फिर कई वर्षों बाद उनकी बेटी का भाग्योदय हुआ ।उसके पति का व्यवसाय भी ठीक चलने लगा। तब जाकर सेठ और सेठानी ने राहत की सांस ली। 

तो भक्तो, इस कथा से हमे यही सीख मिलती है कि जो हमारे भाग्य में लिखा होता है हमें वही मिलता है।जब तक भाग्य साथ नहीं देता तब तक कुछ नही मिलता ।

A Seth and Sethani lived in a village. They had a daughter. Whom he married with great pomp in a very wealthy family. But after a few years of marriage, her mother-in-law and father-in-law went to the next world in the daughter's in-laws' house. There was also a loss in her husband's business. Seth and Sethani were helping him a lot on their behalf. But some of his days would go well and then the same thing happened. Whatever business her husband started, he would have suffered a loss. Seth and Sethani asked him to come and stay with them but both of them flatly refused. Now even Seth ji was fed up with helping him. That's why they thought that when there is no happiness in their fate at this time, then there is no use in helping them. So Seth ji left him on his condition. But a mother is a mother. Sethani ji still wanted to help them. One day Sethani sent a call to his daughter and called to meet her. But that day her daughter was not feeling well, so she sent her husband. And said that you go and meet your mother, don't tell her anything about my health. Husband said ok and went to meet. Seth ji was not at home at that time. Sethani made his son-in-law very hospitable. Sethani thought that if I help them with money, then Seth ji should not feel bad. So Sethani made some laddus. While making laddus, he made a laddu big enough and hid his diamond ring in it. He gave the box to his son-in-law while walking. And the son-in-law left from there. On the way he saw a confectionery shop. He thought that why not sell this box of laddoos and take some money. If there is money, then some work will come. He went to the confectioner and said this. At first, the confectioner refused, but on the request of the son-in-law, he agreed. The confectioner gave him the money. The son-in-law took the money and went to his house. On the way, Seth ji was coming from there. He saw the confectionery shop there and thought that I would buy some sweets for Sethani. Seth ji asked the confectioner to give sweets. And luckily, the confectioner gave the same box of sweets that his son-in-law had sold. Seth ji bought a box of laddoos and went home. After going home, he gave that box to Sethani. As soon as Sethani opened the box, picked up the laddu and ate it, he found his diamond ring from that laddoo. He asked Seth ji from where he had brought these laddus, then Seth ji mentioned the confectionery shop and asked why are you asking all this. Then Sethani said that you used to rightly say that when one does not get anything in one's fate, then he does not get it. Seth ji said why are you saying this? Then Sethani told the whole thing. Seth ji went and asked the confectioner that from where did you get these laddus. Then the confectioner told that a man had given him a box of laddoos. After that Seth and Sethani went home and made many prayers and fasts to God to convert the misfortune of their daughter and son-in-law into good fortune. Then after many years her daughter got lucky. Her husband's business also started doing well. Then Seth and Sethani heaved a sigh of relief.

So devotees, the only lesson we get from this story is that we get what is written in our destiny. Nothing gets done until fate favors us.