Seven wife, and importance of Kartik Snan | सात बहू , और कार्तिक सनान का महत्व
















 

एक समय की बात है ।एक बूढ़ा व्यक्ति था । उसके सात पुत्र थें । सातों पुत्रों का विवाह हो चुका था ।  सातों बहुओं में से सबसे बड़ी बहू एक नेक, दयालु और अच्छे स्वभाव की थी । किंतु छ: बहुएं लालची , घमंडी और कामचोर थी । एक समय कार्तिक मास आ रहा था । तो बूढ़े व्यक्ति ने अपनी सातों बहुओं से कहा कि मैं कार्तिक स्नान करना चाहता हूं । तो तुम सातों में से कौन मुझे कार्तिक का स्नान करवाएगी । तो सबसे बड़ी बहू बोली पिता जी मैं आपका कार्तिक स्नान करवाऊंगी । बाकी की बहुओं ने अपने ससुर को मना कर दिया कि हम से ये सब नही होगा। बूढ़ा व्यक्ति अगले दिन अपनी सबसे बड़ी बहू के घर कार्तिक स्नान करने के लिए गया । कार्तिक स्नान में ब्रह्म मुहूर्त में ही स्नान करना होता है। जैसे ही वह सुबह– सुबह स्नान करके बाहर आया, उसने अपनी  गीली धोती को रस्सी पर डाल दिया । उसकी गीली धोती की बूंदे जमीन पर गिरने लगी । वह पानी की बूंदे मोतियों में बदल गई ।यह देखकर बाकी छह बहुओं के मन में लालच जाग गया और उन्होंने कहा पिताजी अब आप हमारे घर पर ही कार्तिक स्नान करें । तो बूढ़े ने कहा कि मुझे क्या ,मुझे तो केवल स्नान करने से मतलब है । कल से तुम्हारे यहां स्नान कर लिया करूंगा। अगले दिन बूढ़ा व्यक्ति अपनी दूसरी बहू के पास गया और कार्तिक स्नान किया । स्नान करने के बाद जब उसने अपनी गीली धोती रस्सी पर डाली , तो उसकी धोती में से पानी की बूंदे जमीन पर गिरी और पानी की बूंदे कीचड़ में बदल गई । यह देख कर के बहू को बहुत गुस्सा आया और उसने बूढ़े व्यक्ति को अपने यहां कार्तिक स्नान करने से मना कर दिया। बूढ़ा व्यक्ति फिर से अपनी बड़ी बहू के यहां स्नान करने लग गया । फिर कुछ दिनों बाद कार्तिक स्नान बीत गया । फिर एक दिन बूढ़े के मन में विचार आया कि क्यों ना मैं सभी परिवार को कार्तिक स्नान के पूर्ण होने पर एक अनुष्ठान करूं और पूरे परिवार को भोजन खिलाऊं। तो बूढ़े व्यक्ति ने अपनी सबसे बड़ी बहू से कहा कि मैं पूरे परिवार को भोजन खिलाना  चाहता हूं । बहू ने कहा क्यों नहीं पिताजी जैसा आप कहें । बूढ़ा व्यक्ति भोजन का न्यौता देने के लिए बाकी छह बहुओं के पास गया । तो छह की छह बहुओं ने कहा कि जब हम सब भोजन करने आए तो सबसे बड़ी बहू वहां नहीं होनी चाहिए वरना हम नहीं आएंगे । उनकी इस बात को सुनकर बूढ़ा परेशान हो गया कि वह अपनी सबसे बड़ी बहू को यह बात कैसे बताएगा ?  वह वापस घर आ गया और बहू को सारी बात बताई । तो बडी बहू ने बड़े प्यार से कहा ,कोई बात नहीं पिताजी अगर वह सब मेरे साथ भोजन नहीं करना चाहते तो कोई बात नहीं ।मैं खेत पर चली जाऊंगी और जाने से पहले सबके लिए खाना बना के रख दूंगी । बहू बिल्कुल वैसा ही करती है जैसा उसने कहा होता है । अगले दिन वह अपने लिए चार रोटी बांधकर खेत की ओर निकल जाती है और वहां पर जाकर के पक्षियों को खाना खिलाती है । उसी समय उसकी छह बहुएं दावत के लिए पहुंच जाती हैं और खाना खाने के बाद बहुएं रसोई में जाकर बचे खाने में कंकड़ और पत्थर डाल देती हैं । ताकि सबसे बड़ी बहू खाना ना खा पाए और अपने घर वापिस आ जाती हैं ।  फिर जब बड़ी बहू वापस घर आती है और खाना खाने के लिए रसोई घर में जाती है, बर्तन का ढक्कन उठा कर देखती है । उसको देखने के बाद उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होता । क्योंकि कंकड़ और पत्थर हीरे और मोतियों में बदल चुके थे ।उसने देखा कि रसोई घर के सारे बर्तन हीरे और जेवरात से भर गए हैं । यह देखकर वह अपने ससुर को आवाज लगाती है। ससुर  रसोई घर में आता है और पहले तो सब कुछ देख कर वह थोड़ा चौंक जाता है । पर बाद में वह धीरे से मुस्कुराता है और कहता है कि यह तुम्हारे सच्चे मन से की गई तपस्या और तुम्हारे परिश्रम का फल है।


Seven Bahus, and importance of Kartik Sanan


Once upon a time there was an old man. He had seven sons. Seven sons were married. The eldest daughter-in-law among the seven daughters-in-law was noble, kind and good-natured. But the six daughters-in-law were greedy, arrogant and sleazy. Once, Kartik month was coming. So the old man told his seven daughters-in-law that I want to take a Kartik bath. So which of the seven of you will make me take Kartik's bath? So the eldest daughter-in-law said, Father, I will get you Kartik bath. The rest of the daughters-in-law refused their father-in-law that all this would not happen to us. The next day the old man went to his eldest daughter-in-law's house for Kartik's bath. In Kartik bath one has to take bath only in Brahma Muhurta. As soon as he came out after taking a bath early in the morning, he put his wet dhoti on the rope. Drops of his wet dhoti started falling on the ground. Those drops of water turned into pearls. Seeing this, greed awakened in the minds of the other six daughters-in-law and they said, Father, now you should take a Kartik bath at our house. So the old man said what to me, I mean only by taking a bath. I will take bath with you from tomorrow. The next day the old man went to his other daughter-in-law and took Kartik's bath. After bathing when she put her wet dhoti on the rope, drops of water from her dhoti fell on the ground and the water droplets turned into mud. Seeing this, the daughter-in-law got very angry and she refused to let the old man take a Kartik bath in her place. The old man again started taking bath at his elder daughter-in-law's place. Then after a few days Kartik bath passed. Then one day the thought came in the mind of the old man that why not do a ritual on the completion of Kartik Snan for all the family and feed the whole family. So the old man told his eldest daughter-in-law that I want to feed the whole family. The daughter-in-law said why not father as you say. The old man went to the other six daughters-in-law to invite him for food. So the six daughters-in-law of the six said that when we all came to have food, the eldest daughter-in-law should not be there or else we would not come. Hearing this, the old man got upset that how would he tell this to his eldest daughter-in-law? He came back home and told everything to the daughter-in-law. So the elder daughter-in-law said very lovingly, "It's okay, dad, if they all don't want to have food with me, then it doesn't matter. I will go to the farm and prepare food for everyone before leaving." The daughter-in-law does exactly as she is told. The next day she leaves for the field after tying four rotis for herself and goes there and feeds the birds. At the same time her six daughters-in-law arrive for the feast and after having dinner, the daughters-in-law go to the kitchen and put pebbles and stones in the remaining food. So that the eldest daughter-in-law is not able to eat food and comes back to her home. Then when the elder daughter-in-law comes back home and goes to the kitchen to eat, she lifts the lid of the pot and sees it. He couldn't believe his eyes after seeing him. Because the pebbles and stones had turned into diamonds and pearls. He saw that all the utensils in the kitchen were filled with diamonds and jewellery. Seeing this, she calls out to her father-in-law. Father-in-law comes to the kitchen and is a bit shocked to see everything at first. But later he smiles softly and says that this is the result of your sincere penance and hard work.

औरत की शक्ति ब्रह्मा ,विष्णु और महेश तीनो को बना दिया छोटा बालक , The power of woman made Brahma, Vishnu and Mahesh all three small children.

 






















































एक बहुत ही प्रसिद्ध और ज्ञानी मुनि थे । जिनका नाम था ऋषि अत्रि ।उनकी पत्नी बहुत ही सुंदर और पतिव्रता थी । जिसका नाम देवी अनुसूया था । दोनों पति पत्नी बहुत ही धर्मात्मा और भगवान की भक्ति करने वाले थे । देवी अनुसूया के  पतिव्रत धर्म की बहुत ही श्रेष्ठता थी । उनके पतिव्रता होने की बात दूर-दूर तक फैली हुई थी । एक दिन कैलाश पर्वत पर माता सरस्वती, माता लक्ष्मी और माता पार्वती आपस में अपने– अपने पतिव्रत धर्म को श्रेष्ठ बता रही थी । तीनों माताएं कह रही थी कि उन तीनों से ज्यादा कोई भी इस संसार में पतिव्रत धर्म का पालन नहीं कर सकती।  इतने में ही वहां पर नारद ऋषि आए । नारद ऋषि ने माताओं को हाथ जोड़कर प्रणाम किया । नारद ऋषि बोले माता यह बात सत्य है कि आप तीनों का पतिव्रत धर्म सर्वश्रेष्ठ है । परंतु ..........! पार्वती माता बोली परन्तु !  क्या देवऋषि नारद। आपने ये परन्तु शब्द क्यों लगाया । क्या कोई और भी है जिसका पति व्रत धर्म हम से भी ज्यादा श्रेष्ठ है ।नारद जी बोले माता पृथ्वी पर देवी अनुसूया के पतिव्रता धर्म की बहुत ही श्रेष्ठता है । ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव भी उनके पति व्रत धर्म की श्रेष्ठता को मानते हैं । तब देवी सरस्वती ने ब्रह्मा जी को ,देवी लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को ,और माता पार्वती ने भोलेनाथ से देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म के बारे में बात की । तब तीनों देव ने यही बताया कि पृथ्वी पर अनुसूया का पतिव्रत धर्म सबसे श्रेष्ठ है । तब तीनो माताओं ने तीनों देवो से माता अनुसुइया की पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए कहा । तीनों देवताओं को माताओं के हट के आगे झुकना पड़ा । और ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश तीनों देवता पृथ्वी पर देवी अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए आ गए । ब्रह्मा विष्णु महेश ने ब्राह्मणों का रूप बनाया और ऋषि अत्रि के आश्रम में आए । उस समय ऋषि अत्रि आश्रम से बाहर गए हुए थे ।आश्रम में केवल देवी अनुसूया ही थी ।तब तीनो ब्राह्मणों ने माता अनुसुइया से भोजन के लिए आग्रह किया ।देवी अनुसूया ने तीनों ब्राह्मणों को हाथ जोड़कर प्रणाम किया ।और कहा कि हे ब्राह्मणों मैं आपकी किस प्रकार से सेवा कर सकती हूं । तब तीनों ब्राह्मणों ने देवी अनुसूया से भोजन के लिए आग्रह किया और कहा कि उन्हें बहुत भूख लग रही है । उन्होंने कई दिनों से कुछ नहीं खाया ।परंतु हमारी एक शर्त है अगर आप उस शर्त को माने तभी हम भोजन ग्रहण करेंगे । वरना हम आपके द्वार से भूखे ही लौट जाएंगे । तब देवी अनुसूया ने कहा कि हे ब्राह्मणों बताइए आपकी क्या शर्त है ? ब्राह्मणों ने कहा कि यदि आप हमें भोजन कराना चाहती हैं तो आपको अपनी मान , मर्यादा और लज्जा को त्याग कर हमें भोजन कराना होगा । अन्यथा हम भोजन नहीं करेंगे ।तो देवी अनुसूया ने कहा कि ब्राह्मणों आप यह क्या कह रहे हो ? मैं किसी परपुरुष के आगे कैसे अपनी मान मर्यादा को त्याग सकती हूं । मैं एक पतिव्रता नारी हूं । लेकिन ब्राह्मणों ने कहा कि – हम कुछ नहीं जानते । अगर आप हमें भोजन कराएं, तो इसी प्रकार कराएं वरना हम आपके द्वार से भूखे जा रहे हैं । अपने द्वार से भूखे ब्राह्मणों को भेजना बहुत बड़ा पाप होता है। तब तुम ही इस पाप का फल भोगोगी। तब देवी अनुसूया ने सोचा कि ये तो बहुत ही बड़ा धर्म संकट आ गया । देवी अनुसूया असमंजस में पड़ गई । उन्होंने अपने पति ऋषि अत्रि का ध्यान करते हुए जैसे ही आंखें बंद की तो उन्हें तीनों ब्राह्मणों में ब्रह्मा ,विष्णु और महेश का दर्शन हुआ । देवी अनुसूया ने जब आंखे खोली तो उनके चेहरे पर एक मंद मुस्कान थी ।क्योंकि वे जान गई थी कि यह तीनों ब्राह्मण ब्रह्मा ,विष्णु और महेश है जो उनकी परीक्षा लेने आए हैं । तब देवी अनुसूया ने कहा कि –ठीक है ब्राह्मण देवताओं , मैं आपको अपनी मान मर्यादा और लज्जा को त्याग कर ही भोजन कराऊंगी । आइए आप मेरी कुटिया में पधारिए । देवी अनुसूया ने तीनों ब्राह्मणों को बैठने के लिए आसन प्रदान किए और  कहा कि – यदि मैंने अपने पतिव्रत धर्म का निष्ठा से पालन किया है तो यह तीनों ब्राह्मण तीन छोटे– छोटे शिशु के रूप में बदल जाए । यह कहते ही तीनों ब्राह्मण तीन छोटे-छोटे शिशुओं में बदल गए और रोने लगे । तब देवी अनुसूया ने एक-एक करके तीनों शिशुओं को अपना दूध पिलाया और उनकी भूख को शांत किया । जब अत्रि ऋषि आए और उन्होंने आश्रम में बालकों के रोने का स्वर सुना तो उन्होंने पूछा कि देवी अनुसुइया यह तीन शिशु आश्रम में कौन है ? इन्हे कौन लाया है ? यह किसके बच्चे हैं ? तब देवी अनुसूया ने कहा कि ये हमारे पुत्र हैं ।और उन्होने ऋषि अत्रि को सारी बात बता दी । उधर कैलाश पर्वत पर माता सरस्वती ,माता लक्ष्मी और माता पार्वती ने देखा कि बहुत समय व्यतीत हो गया है । लेकिन तीनों देव अब तक माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेकर नहीं आए तो उन्हें बहुत ही चिंता होने लगी और वे तीनों ऋषि अत्रि के आश्रम में आ गई । वहां आकर उन्होंने देखा कि ब्रह्मा ,विष्णु और महेश वहां नहीं है ।तब उन्होंने देवी अनुसूया से पूछा कि तीनों देव कहां पर हैं ? तो देवी अनुसूया ने उन छोटे – छोटे बच्चों की ओर इशारा करके कहा कि यह तीनों बच्चे ब्रह्मा ,विष्णु और महेश है । तो तीनों देवियों को विश्वास नहीं हुआ और कहा कि यह कैसे हो सकता है ? जगत की रचना करने वाले , जगत का पालन करने वाले और जगत का संघार करने वाले ब्रह्मा ,विष्णु और महेश को ऐसा कौन है ?जिन्होंने इन्हें शिशु बना दिया ? ऐसी कौन सी शक्ति है जो इन त्रिदेव की शक्ति से भी बढ़कर हो गई है ? तब ऋषि अत्रि और माता अनुसूया ने उन्हें सारी बात बताई । तब माता सरस्वती, माता लक्ष्मी और माता पार्वती ने देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की श्रेष्ठता को स्वीकार किया । और कहा कि हे देवी – अब आप अपनी शक्ति से तीनों शिशुओं को वापस इन के रूप में ला दीजिए , नहीं तो संसार की व्यवस्था नष्ट हो जाएगी । तब माता अनुसूया ने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से तीनों शिशुओ को देवताओं के रूप में प्रकट कर दिया । तब ब्रह्मा ,विष्णु और महेश ने कहा क – हे देवी अनुसूय तुम्हारी जैसी पतिव्रत धर्म सबसे श्रेष्ठ है । तुम्हारे पतिव्रत धर्म की शक्ति ने ही हम तीनों देवताओं को शिशुओं के रूप में बदल दिया । तब माता अनुसूया ने कहा कि हे देवताओं मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूं कि मुझे तीनों देवताओं की माता होने का सुख प्राप्त हुआ है ।चाहे वह सुख थोड़े ही समय के लिए क्यों न था । तब ब्रह्मा ,विष्णु और महेश ने माता अनुसूया को आशीर्वाद दिया कि उनके घर दत्तात्रेय नाम का पुत्र पैदा होगा ।जो ब्रह्म देव,विष्णु देव और भगवान शंकर की शक्ति का ही स्वरूप होगा ।उसे भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाएगा । यह सुनकर ऋषि अत्रि और माता अनुसूया बहुत ही प्रसन्न हुई । तब तीनों देवियां और तीनों देव वापस अपने अपने धाम को पहुंच गए ।

तो भक्तों, यह कथा माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की है । पतिव्रत धर्म में इतनी शक्ति होती है कि पतिव्रता नारी के सामने देवी देवताओं को भी झुकना पड़ता है ।


The power of woman made Brahma, Vishnu and Mahesh all three small children.

He was a very famous and knowledgeable sage. Whose name was Rishi Atri. His wife was very beautiful and virtuous. Whose name was Devi Anusuya. Both husband and wife were very pious and devoted to God. Goddess Anusuya's pativrata religion had great excellence. The talk of his being virtuous was spread far and wide. One day, on Mount Kailash, Mata Saraswati, Mata Lakshmi and Mata Parvati were telling each other that their husband's religion was superior. All the three mothers were saying that no one can follow the religion of religion in this world more than the three of them. Just then Narada Rishi came there. Narada sage bowed to the mothers with folded hands. Narad Rishi said mother, it is true that the husband religion of all three of you is the best. but ..........! Mother Parvati said but! What is the god sage Narada? Why did you use this but word? Is there anyone else whose husband's fasting religion is more superior than us. Narad ji said that Goddess Anusuya's virtuous religion has great superiority on Mother Earth. Brahma, Vishnu and Mahesh Tridev also recognize the superiority of her husband's fasting religion. Then Goddess Saraswati spoke to Brahma ji, Goddess Lakshmi ji to Lord Vishnu, and Mother Parvati spoke to Bholenath about the virtuous religion of Goddess Anusuya. Then all the three Gods told that Anusuya's pativrata religion is the best on earth. Then the three mothers asked all the three gods to take the test of Mother Anusuiya's virtuous religion. The three deities had to bow before the hut of the mothers. And the three gods Brahma, Vishnu, Mahesh came to earth to test Goddess Anusuya. Brahma Vishnu Mahesh took the form of Brahmins and came to the hermitage of sage Atri. At that time sage Atri had gone out of the ashram. There was only Goddess Anusuya in the ashram. Then the three brahmins requested Mother Anusuya for food. How can I serve? Then the three brahmins requested Goddess Anusuya for food and said that she was feeling very hungry. They didn't eat anything for many days. But we have one condition if you follow that condition then we will take food. Otherwise we will come back hungry from your door. Then Goddess Anusuya said that oh brahmins, tell me what is your condition? The Brahmins said that if you want to feed us, then you have to give food to us by sacrificing your honor, dignity and shame. Otherwise we will not eat food. So Devi Anusuya said that Brahmins, what are you saying? How can I give up my honor and dignity in front of any other person? I am a chaste woman. But the brahmins said that we do not know anything. If you feed us, then do it this way, otherwise we are going hungry from your door. It is a great sin to send hungry brahmins through your door. Then only you will suffer the consequences of this sin. Then Goddess Anusuya thought that this was a big religious crisis. Goddess Anusuya got confused. As soon as she closed her eyes while meditating on her husband Rishi Atri, she saw Brahma, Vishnu and Mahesh among the three brahmins. When Goddess Anusuya opened her eyes, she had a dim smile on her face. Because she had come to know that it was Brahma, Vishnu and Mahesh who had come to test her. Then Goddess Anusuya said, "Okay Brahmin gods, I will give you food by sacrificing my dignity and shame. Come come to my hut. Goddess Anusuya provided seats for the three brahmins to sit on and said that - If I have followed my husband's dharma faithfully, then these three brahmins will turn into three small children. As soon as this was said, the three brahmins turned into three small babies and started crying. Then Goddess Anusuya fed her milk to the three babies one by one and quenched their hunger. When Atri Rishi came and heard the crying of the children in the ashram, he asked who is the goddess Anusuiya in these three infant ashrams? Who has brought them? Whose children are these? Then Goddess Anusuya said that these are our sons. And she told the whole thing to Sage Atri. On the other hand, on Mount Kailash, Mata Saraswati, Mata Lakshmi and Mata Parvati saw that a lot of time had passed. But the three gods had not yet brought the test of Mother Anusuya's virtuous religion, so they started worrying a lot and all three of them came to the ashram of sage Atri. Coming there, he saw that Brahma, Vishnu and Mahesh were not there. Then he asked Goddess Anusuya where are the three gods? So Goddess Anusuya pointed to those small children and said that these three children are Brahma, Vishnu and Mahesh. So the three goddesses did not believe and said how can this happen? Who is the creator of the world, the maintainer of the world and the creator of the world, Brahma, Vishnu and Mahesh? Who made them babies? What is the power that has exceeded the power of these trinity? Then sage Atri and mother Anusuya told him the whole thing. Then Mata Saraswati, Mata Lakshmi and Mata Parvati accepted the superiority of Goddess Anusuya's pativrata religion. And said that O Goddess - now with your power, bring the three babies back in the form of these, otherwise the system of the world will be destroyed. Then Mother Anusuya took the power of her husband's religion.

From this, the three children were revealed as gods. Then Brahma, Vishnu and Mahesh said that – O Goddess Anusuya, a pure religion like yours is the best. It is the power of your Pativrat Dharma that transformed all three of us into the form of babies. Then Mother Anusuya said that O Gods, I am very fortunate that I have got the pleasure of being the mother of all the three Gods. Even if that happiness was only for a short time. Then Brahma, Vishnu and Mahesh blessed Mother Anusuya that a son named Dattatreya would be born in their house. Who would be the form of the power of Brahma Dev, Vishnu Dev and Lord Shankar. He would be considered as an incarnation of Lord Vishnu. Hearing this, sage Atri and mother Anusuya were very happy. Then the three goddesses and all the three gods went back to their respective abode.

So devotees, this story is about the husbandry religion of Mother Anusuya. There is so much power in the virtuous religion that even the gods and goddesses have to bow down in front of the virtuous woman.

जो होता है अच्छे के लिए होता है , whatever happens happens for good

























 


एक बार नारद ऋषि पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे ।तब उन्होंने देखा कि पृथ्वी पर ज्यादातर प्राणी जो धर्मात्मा पुरुष है, संत है ,दूसरों की भलाई करते हैं । वह ज्यादातर दुखी रहते हैं । यह सब देख कर उनका मन बेचैन हो उठा । और वे अपनी शंका के समाधान के लिए वैकुंठ लोक में विष्णु जी के पास गए । वहां पर जाकर उन्होंने श्री विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी जी को प्रणाम किया । नारद को देखकर विष्णु भगवान ने कहा – आओ नारद ।  क्या बात है तुम बहुत ही चिंतित दिखाई देते हो ।तुम्हारी चिंता का क्या कारण है ? नारद ऋषि बोले, भगवन ! मैं अभी पृथ्वी का भ्रमण करके आ रहा हूं ।मैंने देखा है कि ज्यादातर प्राणी जो आपका सिमरन करते हैं ,जो सच्चाई की राह पर चलते हैं ,उन्हें हमेशा दुख ही क्यों मिलता है ? इस पर विष्णु भगवान जी मुस्कुराए और नारद ऋषि से कहा कि चलो नारद ,आज मैं भी तुम्हारे साथ पृथ्वी का भ्रमण करता हूं । तब विष्णु भगवान और नारद जी ने ब्राह्मणों का रूप बनाया और पृथ्वी पर आ गए । विष्णु भगवान बोले कि नारद मुझे बहुत भूख लग रही है , चलो कहीं चल कर भोजन करते हैं । तब वे एक गांव में गए । वहां पर एक सेठ जी का घर था । सेठ जी बहुत ही धनवान थे । विष्णु भगवान और नारद जी सेठ जी के घर के द्वार पर पहुंचकर भोजन के लिए भिक्षा मांगने लगे। सेठ जी बाहर आए उन्होंने देखा कि उनके द्वार पर दो ब्राह्मण लोग खड़े हैं । सेठ जी को आता देखकर नारद जी बोले कि हे  सेठ जी हमने 2 दिन से कुछ नहीं खाया  । बहुत जोर से भूख लग रही है । कृपा करके हमें भोजन करा दे ।सेठ जी ने गुस्से में आकर कहा कि यहां पर तुम जैसे लोगों के लिए कोई भोजन नहीं है । पता नहीं कहां-कहां से आ जाते हैं ?जैसे कि यहां पर कोई खजाना रखा हो । सेठ जी ने उन दोनों ब्राह्मणों को वहां से भगा दिया । नारद जी को बहुत ही क्रोध आ गया । उन्होंने विष्णु भगवान से कहा कि हे भगवन ,आप इस सेठ को श्राप दे दीजिए । यह सेठ बहुत ही क्रोधी स्वभाव का है और कंजूस भी है । तब विष्णु भगवान जी मुस्कुराए और जैसे ही पीछे मुड़कर विष्णु भगवान ने सेठ जी को देखा । तो विष्णु भगवान के मुख से निकला कि जाओ सेठ जी तुम्हारे घर में लक्ष्मी की खूब वृद्धि हो । यह सुनकर नारदजी आश्चर्य में पड़ गए और कहा कि हे  भगवन, इसे तो आपको श्राप देना था और आपने इसे लक्ष्मी वृद्धि का वरदान दे दिया । विष्णु भगवान मुस्कुराए और कहा कि चलो नारद यहां से चलो , भोजन के लिए कहीं और चलते हैं । मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है । तब दोनों ब्राह्मण चलते चलते एक कुटिया के समीप पहुंचे । उस कुटिया में एक बुढ़िया मां रहती थी । तब उन दोनों ब्राह्मणों ने कुटिया के बाहर जाकर भोजन के लिए भिक्षा मांगी । तब बुढ़िया मां बोली कि– मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है , परंतु मेरे पास एक बूढ़ी गाय है ।  यह थोड़ा सा जो भी दूध देती है उसे मैं आप लोगों को पिला दूंगी ।आप कृपया करके पधारिए । बुढ़िया ने दोनों ब्राह्मणों को बैठने के लिए आसन दिए । तब बुढ़िया मां गाय का दूध निकाल कर लाई और थोड़ा थोड़ा दूध विष्णु भगवान जी और नारद जी को दे दिया । दोनों ने दूध पीकर अपनी भूख को शांत किया । तब दोनों ब्राह्मण वहां से चल दिए । नारद जी बहुत खुश हो रहे थे । उन्होंने विष्णु भगवान से कहा कि हे भगवन ,यह बुढ़िया मां तो बहुत ही अच्छी है । इन्होंने अपने घर में भोजन ना होते हुए भी हमें अपनी गाय का दूध पिलाया है । आप कृपा करके इसे कोई वरदान दीजिए ।तब विष्णु भगवान जी ने जैसे ही पीछे मुड़कर  बुढ़िया मां की ओर देखा तो विष्णु भगवान के मुख से निकला कि जाओ  मां तुम्हारी यह गाय मर जाए ।  विष्णु जी के मुख से यह वचन सुनते ही नारद जी आश्चर्य में पड़ गए और बोले कि हे भगवन ,जहां आप को श्राप देना था वहां तो आपने वरदान दे दिया और जहां आपको वरदान देना था वहां आपने श्राप दे दिया ।तब विष्णु भगवान मुस्कुराए और बोले कि नारद यह बुढ़िया मां मेरी बहुत ही बड़ी भक्त है । मैं नहीं चाहता इसे किसी तरह का दुख हो। नारद जी बोले परंतु भगवन, जब इसकी गाय मर जाएगी तो इसे बहुत दुख होगा और आप कह रहे हैं कि आप इसे दुखी नहीं देखना चाहते ।विष्णु भगवान भोले हां नारद , क्योंकि  प्राण छोड़ते समय यदि इसका ध्यान इसकी गाय में रहा कि मेरी गाय का क्या होगा ,कहीं मेरे मरने के पश्चात इसे कसाई तो नहीं ले जाएंगे। अगर यह इन सब बातों को सोचती हुई मृत्यु को प्राप्त हुई तो इस बुढ़िया मां को अगले जन्म में गाय का ही शरीर मिलेगा । इसलिए मैं नहीं चाहता कि बुढ़िया मां के साथ ऐसा हो । इसलिए बुढ़िया मां की मृत्यु से पहले मैंने इसकी गाय मरने के लिए कह दिया । मैं चाहता हूं कि यह बुढ़िया मां मृत्यु के बाद मेरे परम धाम को आए और इस बुढ़िया मां को मोक्ष की प्राप्ति हो । वही जो वह कंजूस सेठ था । उसे मैंने लक्ष्मी वृद्धि का आशीर्वाद इसीलिए दिया ताकि वह लक्ष्मी , धन संपदा के बढ़ने पर और लालची हो जाए और जिस तरह एक सांप अपने धन की रखवाली करता है उसी प्रकार जब यह सेठ मृत्यु को प्राप्त होगा तो वह भी उस धन दौलत के बारे में सोचेगा कि मेरे मरने के बाद इस धन दौलत का क्या होगा , मेरा परिवार इस धन दौलत को कैसे संभालेगा । तो मरते समय जब वह इस तरह के विचार अपने मन में लाएगा । तो उसे अगले जन्म में नाग योनि प्राप्त होगी ।  हे नारद मुनि मैं चाहता हूं कि मेरे भक्त लालच, अहंकार, क्रोध ,काम, मद इन सब से दूर रहे । बहुत से धर्मात्मा सेठ ऐसे भी हैं जिनके पास खूब धन दौलत है लेकिन उनमें जरा सा भी अहंकार नहीं और वह दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं ।अपनी धनसंपदा को गरीब और लाचार व्यक्तियों में बांटते हैं । और भूखे को भोजन कराते हैं ।वह भी मुझे बहुत ही प्रिय होते हैं । जो निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते हैं ।वे लोग पृथ्वी पर सारे सुखों को भोग कर अंत में मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं ।


Once Narada Rishi was traveling the earth. Then he saw that most of the living beings on earth who are virtuous men, saints, do good to others. He is mostly sad. Seeing all this, his mind became restless. And for the solution of his doubts he went to Vishnu in Vaikuntha Loka. Going there, he bowed to Lord Vishnu and Mata Lakshmi ji. Seeing Narada, Lord Vishnu said - Come Narada. What's the matter, you look very worried. What is the reason for your worry? Narad Rishi said, Lord! I am just coming from a tour of the earth. I have seen that most of the living beings who follow you, who walk on the path of truth, why do they always get hurt? Lord Vishnu smiled on this and told Narad Rishi that come on Narada, today I also travel the earth with you. Then Lord Vishnu and Narad ji took the form of Brahmins and came to earth. Lord Vishnu said that Narada, I am feeling very hungry, let's go somewhere and have food. Then they went to a village. There was a Seth ji's house there. Seth ji was very rich. Lord Vishnu and Narad ji reached the door of Seth ji's house and started begging for food. Seth ji came out and saw two Brahmin people standing at his door. Seeing Seth ji coming, Narad ji said that O Seth ji, we have not eaten anything for 2 days. Feeling very hungry. Please give us food. Seth ji got angry and said that there is no food for people like you here. Don't know where they come from? As if some treasure is kept here. Seth ji drove those two brahmins away from there. Narad ji got very angry. He told Lord Vishnu that O Lord, you curse this Seth. This Seth is of a very angry nature and is also a miser. Then Lord Vishnu smiled and as soon as Lord Vishnu looked back, he saw Seth. So it came out from the mouth of Lord Vishnu that Go Seth ji, there should be a lot of growth of Lakshmi in your house. Hearing this, Naradji was surprised and said that O Lord, you had to curse him and you gave him the boon of increasing Lakshmi. Lord Vishnu smiled and said that let's go Narada from here, let's go somewhere else for food. I am feeling very hungry. Then both the brahmins while walking came near a hut. An old mother lived in that hut. Then both those brahmins went outside the hut and begged for food. Then the old mother said - I have nothing to eat, but I have an old cow. Whatever little milk it gives, I will give it to you guys. Please come and do it. The old lady gave seats to the two brahmins to sit on. Then the old mother brought out the cow's milk and gave some milk to Vishnu Bhagwan ji and Narad ji. Both of them quenched their hunger by drinking milk. Then both the brahmins left from there. Narad ji was getting very happy. He told Lord Vishnu that O Lord, this old mother is very good. They have fed us their cow's milk even though there is no food in their house. Please give him some boon. Then as soon as Lord Vishnu looked back and looked at the old lady, Lord Vishnu came out of the mouth that mother, this cow of yours should die. On hearing this word from the mouth of Vishnu ji, Narad ji was astonished and said that oh Lord, where you had to curse, you gave a boon and where you had to give a boon, you cursed. Then Lord Vishnu smiled and said. Narada said that this old lady is my great devotee. I don't want it to cause any pain. Narad ji said but God, when its cow dies, it will be very sad and you are saying that you do not want to see it sad. What will happen, after my death, it will not be taken to the butcher. If she died thinking all these things, then this old mother would get the body of a cow in her next birth. That's why I don't want this to happen to the old mother. Therefore, before the death of the old mother, I asked her cow to die. I want this old lady to come to my supreme abode after death and this old lady should attain salvation. That miserly Seth was the same. I blessed him with the growth of Lakshmi so that he becomes more greedy when Lakshmi increases wealth, and like a snake guards his wealth, in the same way when this Seth dies, he will also talk about that wealth. Will think that after my death what will happen to this wealth, how will my family handle this wealth. So while dying he will bring such thoughts in his mind. So he will get a snake yoni in the next birth. O Nārada Muni, I wish that my devotees should stay away from all these greed, ego, anger, lust and materialism. There are also many virtuous Seths who have a lot of wealth but there is no ego in them and they are always ready to help others. They distribute their wealth among poor and helpless people. And feed the hungry. They are also very dear to me. Those who serve the people selflessly. Those people, after enjoying all the pleasures on earth, finally reach my supreme abode.