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 नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण है। कृष्ण वर्ण के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा जाता है।

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 स्वरूप:

इन देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। मां कालरात्रि के चार हाथ हैं। उनके एक हाथ में खड्ग (तलवार), दूसरे लौह शस्त्र, तीसरे हाथ में वरमुद्रा और चौथा हाथ अभय मुद्रा में हैं।

 

कथा:

जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध करके अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। जब माँ दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारा, तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां दुर्गा ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।

 

मां कालरात्रि पूजन विधि-

 

नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि का पूजन किया जाता है। माता रानी को अक्षत, पुष्प, धूप, गंधक और गुड़ आदि का भोग लगाएं। मां कालरात्रि को रातरानी पुष्प अतिप्रिय है। पूजन के बाद मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करना चाहिए। व अंत में आरती उतारें।

 

महत्त्व:

ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि के सातवें दिन को दुर्गा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली माता हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों पर मां दुर्गा की विशेष कृपा बनी रहती है।

मां कालरात्रि का ध्यान- 

 

करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।

कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥




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Maa Kalratri is worshiped on the seventh day of Navratri. The color of Maa Kalratri is Krishna. They are called Kalratri because of Krishna Varna.


 


 Form:


These goddesses have three eyes. All these three eyes are round like the universe. Fire keeps coming out of their breath. She rides on a donkey. Maa Kalratri has four hands. He holds a Khadga (Sword) in one hand, Iron weapon in the other, Varamudra in the third hand and Abhaya Mudra in the fourth hand.


 


Story:


When the demons Shumbh-Nishumbha and Raktabeej had created an outcry in the three worlds, all the deities, worried about this, went to Shiva and prayed for their protection. Lord Shiva asked Mata Parvati to protect her devotees by killing the demons. Mother Parvati took the form of Durga and killed Shumbha-Nishumbha by obeying Shiva. When Maa Durga put the demon Raktabeej to death, millions of Raktabeej demons were born from the blood that came out of her body. Seeing this, Durga created Kalratri with her brilliance. After this, when Maa Durga killed the demon Raktabeej and the blood coming out of his body, Maa Kalratri filled her mouth before falling on the ground. In this way, Maa Durga killed Raktabeej by slitting everyone's throat.


 


Maa Kalratri worship method-


 


Maa Kalratri is worshiped on the seventh day of Navratri. Offer Akshat, flowers, incense, sulfur and jaggery etc. to Mother Rani. Raatrani flower is very dear to Maa Kalratri. After the worship, the mantras of Maa Kalratri should be chanted. And finally perform the aarti.


 


Importance:


It is said that worshiping Maa Kalratri on this day fulfills all the wishes. The seventh day of Navratri is also known as Durga Saptami. On this day there is a law to worship Maa Kalratri. According to religious beliefs, Maa Kalratri is the destroyer of the wicked. According to astrologers, the special grace of Maa Durga remains on the devotees who worship Maa Kalratri.


Meditation of Maa Kalratri


 


Karalvandana Dhoran Muktkeshi Chaturbhujam.


kalratri karalinka divyaan vidyutmala vibhushitam॥

नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है NAVRATRI KA 6 DAY | कात्यायनी देवी | स्वरूप : |पूजा विधि :कथा: महत्व उपासना मंत्र: | Katyayani Devi is worshiped with full devotion on the sixth day of Navratri NAVRATRI KA 6 DAY | Katyayani Devi | Form : | Worship Method : Story : Significance Worship Mantra:

 नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। कात्यायनी देवी दुर्गा जी का छठा अवतार हैं ।

 


 

 

स्वरूप :

दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समान चमकीला है। चार भुजा धारी माँ कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं।

 

पूजा विधि :

गोधूली वेला के समय पीले या लाल वस्त्र धारण करके इनकी पूजा करनी चाहिए। इनको पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करें। इनको शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है। देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए।

 

कथा:

कत नामक एक प्रसिद्द महर्षि थे,उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्द महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती अम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की और देवी इनकी पुत्री कात्यायनी कहलाईं।

महत्व

 शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए। इनकी पूजा करने से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनको रोग, संताप और अनेकों प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि मां के इस स्वरुप की पूजा करने से विवाह में आ रहीं रुकावटें दूर होती हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरुप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है। मां दुर्गा के छठवें रूप की पूजा से राहु और कालसर्प दोष से जुड़ी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

उपासना मंत्र:

चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना|

कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि||

 

देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।



navratri ka 6 din images

6th day of Navratri katha

seventh navratri

Bhog for 6 days of Navratri

Katyayani Mata Aarti

katyayani devi photo hd

Meaning of Katyayani Mantra


Katyayani Devi is worshiped with full devotion on the sixth day of Navratri. Katyayani is the sixth incarnation of Goddess Durga.


 


 


 


Form :


Divine Rupa Katyayani Devi's body is as shiny as gold. Mother Katyayani with four arms is riding on Singh. He holds a sword in one hand and a lotus flower in the other. The other two hands are in Varamudra and Abhayamudra. His vehicle is a lion.


 


Worship Method:


They should be worshiped wearing yellow or red clothes at the time of Twilight Vela. Offer yellow flowers and yellow naivedya to him. Offering honey to them is especially auspicious. The importance of honey has been told in the worship of the goddess. Madhu i.e. honey should be used in prasad on this day.


 


Story:


There was a famous Maharishi named Kat, his son was Rishi Katya. The world famous Maharishi Katyayan was born in the gotra of this Katya. While worshiping Bhagwati Amba, he did very hard penance for many years. His wish was that Mother Bhagwati should be born in his house as a daughter. Mother Bhagwati accepted his prayer. Maharishi Katyayan first worshiped her and the goddess was called her daughter Katyayani.


Importance


 Devotees striving in the field of education must worship the mother. By worshiping them devotees easily attain Artha, Dharma, Kama and Moksha. He gets freedom from disease, suffering and many kinds of sufferings. It is believed that by worshiping this form of the mother, the obstacles coming in marriage are removed. According to Devi Bhagwat Purana, by worshiping this form of Goddess, the body becomes radiant. Worshiping them makes household life happy. Worshiping the sixth form of Maa Durga removes the problems related to Rahu and Kaal Sarp Dosh.


Worship Mantra:


Chandra Hasojj Valkara Shardu Lover Vahana|


Katyayani Shubham Dadya Devi Demon Ghatini||


 


Goddess Sarvabhuteshu Maa Katyayani Rupena Sanstha.


Namastasya Namastasya Namastasya Namo Namah.


मां स्कंदमाता स्वरूप: मां स्कंदमाता पूजा विधि : मां स्कंदमाता कथा: मां स्कंदमाता मंत्र , Mother Skandmata Swaroop: Maa Skandmata Worship Method: Maa Skandmata Story: Maa Skandmata Mantra,

 मां स्कंदमाता स्वरूप:




श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। सिह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथो वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है। माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं । चार भुजाओं से सुशोभित माता के दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प लिए हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है

मां स्कंदमाता पूजा विधि :
पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक केचार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए “सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी अब पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा कीजिए। स्‍कंदमाता को भोग स्‍वरूप केला अर्पित करना चाहिए। मां को पीली वस्‍तुएं अति प्रिय होती हैं, इसलिए केसर डालकर खीर बनाएं और उसका भी भोग लगा सकते हैं।

मां स्कंदमाता कथा: 
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।

मां स्कंदमाता मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

ध्यान मंत्र:
 देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। 
 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है।इनकी उपासना करने से भक्तों को अलौकिक तेजोमयी प्रकाश की प्राप्ति होती है। यह अलौकिक प्रभामंडल में प्रतिक्षण योगक्षेम का निर्वहन करती है। एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। और माँ की प्रेम भाव से आराधना करने पर भक्तों को हर प्रकार के सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस घोर भवसागर के सभी दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग दिखलाने वाली ही एक ही ऐसी माता है जो अपने भक्त को सभी पापों से मुक्त कर क्षमा करके मोक्ष का द्वार दिखती है।   


स्कंदमाता इमेजेज
स्कंदमाता png
स्कंदमाता मंदिर
स्कंदमाता का भोग
स्कंदमाता आरती
स्कंदमाता स्तोत्र
स्कंदमाता मंत्र
स्कंदमाता कथा
Mother Skandmata Swaroop: Maa Skandmata Worship Method: Maa Skandmata Story: Maa Skandmata Mantra,

Mother Skandmata Swaroop:
The fifth form of Shri Durga is Shri Skandmata. Being the mother of Sri Skanda (Kumar Kartikeya), she is called Skandmata. Sitting on the seat of a lion and adorned with lotus flowers, Yashaswini Devi with two hands, Skandmata is auspicious. Mother Skandmata is the presiding deity of the solar system. Adorned with four arms, the lower arm on the right side of the mother, which is raised upwards, has a lotus flower. In the upper arm on the left side, there are lotus flowers in the pose and in the lower arm which is raised upwards. His character is completely auspicious. She sits on the lotus seat. That is why she is also called Padmasana Devi. Lion is also their vehicle

Maa Skandmata Puja Method:
For worship, the worship process should be started by sitting on the holy seat of Kush or blanket in the same way as you have done in the four days so far, then you should pray to the Goddess with this mantra “Singhasanagata Nityam Padmashritkardvaya. Shubhdastu Sad Devi Skandmata Yashaswini Now worship Goddess Skandmata with Panchopchar method. Banana should be offered to Skandmata as an offering. Yellow things are very dear to the mother, so make kheer by adding saffron and you can also enjoy it.

Maa Skandmata Story:
Skandmata, who created the new consciousness in the worldly beings living on the mountains. This goddess is worshiped on the fifth day of Navratri. It is said that even a fool becomes wise by his grace. She is named as Skandamata because of the mother of Skanda Kumar Kartikeya. In his deity, Lord Skanda is seated in his lap in the form of a child. This goddess has four arms. He is holding Skanda in his lap with the upper arm on the right side. There is a lotus flower in the lower arm. On the left side, in the upper arm, there is a lotus flower in the upper arm and in the lower arm. His character is pure. She sits on the lotus seat. That is why it is also called Padmasana. The lion is their vehicle. This goddess is the power to produce scholars and servants. That is, the creator of consciousness. It is said that the Raghuvansham epic and Meghdoot compositions composed by Kalidas became possible only by the grace of Skandmata.

Maa Skandmata Mantra
Thronegata nityam padyanchitkardvaya.
Shubhdastu Sad Devi Skandmata Yashaswini

Meditation Mantra:
 Goddess Sarvabhuteshu Maa Skandmata Rupena Sanstha.
 Namastasya Namastasya Namastasya Namo Namah.

By worshiping them, the accomplishments that arise from the awakening of the Vishuddha Chakra are automatically achieved. By worshiping them, a person attains happiness and peace. By worshiping them, devotees get supernatural radiant light. It discharges Pratikshan Yogakshema in the supernatural aura. By praising the mother by purifying the mind with concentration, the path of salvation is accessible by getting freedom from sorrows. And by worshiping the mother with love, devotees get all kinds of happiness and peace. After getting rid of all the sorrows of this terrifying ocean, there is only one mother who shows the way to salvation, who frees her devotee from all sins and shows the door to salvation by forgiving her.

Skandmata Images
skandmata png
Skandmata Temple
Skandmata's Bhog
Skandmata Aarti
Skandmata Stotra
Skandmata Mantra
skandmata story

मां कूष्मांडा का स्वरूप: मां कूष्मांडा को पूजा विधि: मां कूष्मांडा व्रत कथा: , Form of Maa Kushmanda: Worship method to Mother Kushmanda: Mother Kushmanda Vrat story:

 मां कूष्मांडा का स्वरूप:



पौराणिक कथाओं के अनुसार माता ने अपनी मंद मुस्कान से सृष्टि की रचना की थी, इसलिए माता को सृष्टि की आदिशक्ति भी कहा जाता है। माता को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है, क्योंकि माता की आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प,कलश, चक्र और गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियां और निधियों को देने वाली माला है. देवी के हाथों में जो अमृत कलश है, वह अपने भक्तों को दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य का वर देती है. मां सिंह की सवारी करती हैं, जो धर्म का प्रतीक है.

मां कूष्मांडा को पूजा विधि: 
नवरात्र में हरे या संतरी रंग के कपड़े पहनकर मां कूष्मांडा का पूजन करें. पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित करें. मां कूष्मांडा को उतनी हरी इलाइची अर्पित करें जितनी कि आपकी उम्र है. हर इलाइची अर्पित करने के साथ "ॐ बुं बुधाय नमः" कहें. सारी इलाइची को एकत्र करके हरे कपड़े में बांधकर रखें. इलाइची को शारदीय नवरात्रि तक अपने पास सुरक्षित रखें
इसके बाद उनके मुख्य मंत्र "ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः" का 108 बार जाप करें. चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं.

मां कूष्मांडा व्रत कथा:
पराणिक कथाओं के अनुसार मां कुष्मांडा का जन्म दैत्यों का संहार करने के लिए हुआ था। कुष्मांडा का अर्थ कुम्हड़ा होता है। कुम्हड़े को कुष्मांड कहा जाता है इसीलिए मां दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कुष्मांडा रखा गया था । देवी का वाहन सिंह है। जो भक्त नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की विधिवत तरीके से पूजा करता है उससे बल, यश, आयु और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। मां कुष्मांडा को लगाए गए भोग को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करती हैं। यह कहा जाता है कि मां कुष्मांडा को मालपुए बहुत प्रिय हैं इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन उन्हें मालपुए का भोग लगाया जाता है।

मां कूष्मांडा महामंत्र:
वन्दे वाछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वीनाम्।।
या 
देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


भागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती के विवाह के बाद से लेकर कार्तिकेय के जन्म के बीच का है. इस रूप में देवी संपूर्ण सृष्टि को धारण करने वाली है. मान्यता है कि संतान की इच्छा रखने वालों भक्तो को मां की उपासना करनी चाहिए. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो देवी के इस स्वरूप की उपासना से कुंडली के बुध से जुड़ी परेशानियां दूर हो सकती है. इनकी उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं.


मां कुष्मांडा के मंत्र
मां कुष्मांडा की उत्पत्ति
मां कुष्मांडा की आरती
कुष्मांडा देवी का बीज मंत्र
माँ कुष्मांडा फोटो
कुष्मांडा का अर्थ
कुष्मांडा फल
कूष्माण्ड होम
Form of Maa Kushmanda:
According to mythology, Mother created the universe with her dim smile, hence Mother is also called the Adishakti of the universe. Mata is also called Ashtabhuja Devi, because she has eight arms. In his seven hands, respectively, there are kamandal, bow, arrow, lotus flower, kalash, chakra and mace. In the eighth hand, there is a garland that gives all accomplishments and funds. The nectar urn in the hands of the goddess blesses her devotees with longevity and good health. The mother rides a lion, which is a symbol of religion.

Worship method to Maa Kushmanda:
Worship Maa Kushmanda in Navratri wearing green or orange colored clothes. During the worship, offer green cardamom, fennel or Kumhda to the mother. Offer as much green cardamom to Maa Kushmanda as you are of age. Say "Om Bu Budhay Namah" with each cardamom offering. Collect all the cardamom and keep it tied in a green cloth. Keep cardamom with you till Sharadiya Navratri
After this chant his main mantra "Om Kushmanda Devyai Namah" 108 times. If you want, you can also recite Siddha Kunjika Stotra.

Maa Kushmanda Vrat Story:
According to the legends, Maa Kushmanda was born to kill the demons. Kushmanda means pot. Kumhada is called Kushmanda that is why the fourth form of Maa Durga was named Kushmanda. The vehicle of the goddess is a lion. The devotee who worships Maa Kushmanda on the fourth day of Navratri in a proper manner, gets strength, fame, age and health. Maa happily accepts the bhog offered to Kushmanda. It is said that Maa Kushmanda is very dear to Malpua, that is why she is offered Malpua on the fourth day of Navratri.

Maa Kushmanda Mahamantra:
Vande wanted kamarthechandraghkritshekharam.
Sinharudha Ashtabhuja Kushmandayashwinam.
either
Goddess Sarvabhuteshu Maa Kushmanda Rupen Sanstha.
Namastasya Namastasya Namastasya Namo Namah.


According to the Bhagavata Purana, between the marriage of Goddess Parvati to the birth of Kartikeya. In this form, the Goddess is the one who holds the entire creation. It is believed that the devotees who wish to have children should worship the mother. If astrologers are to be believed, then by worshiping this form of Goddess, the problems related to Mercury in the horoscope can be overcome. By worshiping her, all the diseases and sorrows of the devotees are destroyed.

Mantras of Maa Kushmanda
Origin of Maa Kushmanda
Aarti of Maa Kushmanda
Beej Mantra of Kushmanda Devi
maa kushmanda photo
Meaning of Kushmanda
kushmanda fruit
Kushmand Home

नवरात्रि के दूसरे दिन पढ़ें व्रत कथा: नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा विधि

 मां ब्रह्मचारिणी का श्लोक:

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु| देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||




 मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान मंत्र :
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥

स्वरूप:

माता रानी के स्वरूप की बात करें तो शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण किए हैं और दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए सुशोभित हैं।

नवरात्रि का दूसरा दिन - दुर्गा मां के भक्तों को नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार रहता है. लोग हर साल इसे बड़ी आस्था के साथ मनाते हैं। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। वहीं दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी (Mata Brahmacharini) को समर्पित है। ब्रह्मचारिणी शब्द का मतलब ब्रह्म यानि तपस्या का आचरण करने वाली। इसके साथ ही इनका एक दूसरा नाम भी है जो की तपस्चारिणी है। आज मां के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी माता की पूजा की जाएगी और उन्हें प्रसन्न किया जाएगा। लेकिन किसी भी देवी-देवता की पूजा से जुड़ा व्रत कर रहे हैं तो ऐसे में व्रत कथा पढ़नी बहुत जरूरी है। वरना पूजा अधूरी रह सकती है. ऐसे मे आपको ब्रह्मचारिणी मां की व्रत कथा के बारे में पता होना चाहिए । आज का हमारा यही विषय है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि ब्रह्मचारिणी मां की व्रत कथा क्या है. 




नवरात्रि के दूसरे दिन पढ़ें व्रत कथा: 

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, पार्वती माता ने पुत्री के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया। माता पार्वती भगवान शंकर को पति के रूप में पाना चाहती थीं। तब नारद जी ने उन्हे सलाह दी कि उन्हें शिव को पति रूप में पाने के लिए उन्हे तपस्या करनी होगी । तब माता ने कठोर तप किया। तपस्या के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी रखा गया। 1000 सालों तक इन्होंने फल और फूल खाकर अपना समय व्यतीत किया।कहते हैं कि कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर माता ने तपस्या की । जब माता ने फल और पत्तों को बिना खाएं तपस्या की तब इनका एक नाम अपर्णा भी पड़ा । तब जाकर शिव जी ने इन्हें दर्शन दिए ।

नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले स्नान करें। उसके बाद जमीन पर आसन या कोई कपड़ा बिछा ले और माता की मूर्ति या फोटो के सामने लाल फूल, माला, चावल, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। अब पंचामृत चढ़ाकर मिठाई का भोग लगाएं और माता के सामने पान, सुपारी, लौंग, इलाइची चढ़ाए। अब मंत्र का जप करें उसके बाद मां की आरती जरूर गाएं। क्योंकि बिना आरती के पूजा सफल नही मानी जाती। 
और इसी तरह आपको शाम के समय में भी आरती करके पूजा करनी है। 


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Shloka of Maa Brahmacharini:

Dadhana karpadmabhyamakshamalakamandalu. Devi Prasidatu Mayi Brahmacharinyanuttama ||





 Meditation Mantra of Maa Brahmacharini:
Japamalakamandalu Dharabrahmacharini Shubham Gauvarna Swadhisthanasthita II Durga Trinetram. Dhaval costumed brahmarupa pushpalankar bhushitam.

Form:

Talking about the nature of Mata Rani, according to the scriptures, Mother Brahmacharini is dressed in white clothes and is adorned with a garland of Ashtdal in her right hand and a kamandal in her left hand.

Second day of Navratri - The devotees of Durga Maa eagerly wait for Navratri. People celebrate it every year with great faith. Maa Shailputri is worshiped on the first day. The second day is dedicated to Maa Brahmacharini. The word Brahmacharini means Brahma i.e. one who practices penance. Along with this, she also has another name which is Tapascharini. Today Brahmacharini Mata, another form of mother, will be worshipped and she will be pleased. But if you are fasting related to the worship of any deity, then it is very important to read the fast story. Otherwise the worship may remain incomplete. In such a situation, you should know about the fast story of Brahmacharini Maa. This is our topic for today. Today we will tell you through this article what is the fast story of Brahmacharini Maa.




Read the fast story on the second day of Navratri:

According to mythological beliefs, Parvati Mata was born as a daughter in the house of the mountain king Himalaya. Mother Parvati wanted to have Lord Shankar as her husband. Then Narad ji advised her that she would have to do penance to get Shiva as her husband. Then the mother did severe penance. Due to penance, she was named Brahmacharini. For 1000 years, she spent her time eating fruits and flowers. It is said that for several thousand years, the mother did penance after being waterless and helpless. When the mother did penance without eating fruits and leaves, then she also got a name Aparna. Then Shiva ji appeared to them.

Worship method of the second day of Navratri
First of all get up in Brahma Muhurta and take bath. After that, spread a seat or any cloth on the ground and offer red flowers, garlands, rice, roli, sandalwood etc. in front of the idol or photo of the mother. Now offer sweets by offering Panchamrit and offer paan, betel nut, clove, cardamom in front of the mother. Now chant the mantra, after that definitely sing the aarti of the mother. Because worship without aarti is not considered successful.
And in the same way you have to worship by performing aarti in the evening time also.


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how to avenge evil for good ? अच्छे का बदला बुराई कैसे ?





















 


एक गांव में एक बुढ़िया और उसका एक बेटा रहता था। उसने अपने बेटे की शादी बचपन में ही कर दी थी ।परंतु उसकी बहु अपने मायके में ही रहती थी ।कई वर्षों बाद जब उसका बेटा गोपाल बड़ा हो गया तो बुढ़िया ने सोचा कि अब इसकी बहू को मायके से बुला लेती हूं। वह अपने बेटे से बोली कि जा गोपाल बेटा ,अपनी बहू को उसके मायके से गौना करवा कर ले आओ। गोपाल अपनी मां की बात मानकर अपनी ससुराल चल पड़ा । रास्ते में वो एक जंगल से गुजरा।उसने देखा की एक पेड़ के नीचे बिखरे हुए पत्तो में आग लगी हुई है। उसी पेड़ की जड़ में एक बिल था। जिसमे से एक सांप कभी अपना फन बाहर निकाल रहा था कभी अंदर कर रहा था। वो बहुत डरा हुआ था और बाहर नहीं आ पा रहा था क्योंकि उसे डर था कि अगर वह बाहर जाएगा तो वह उस आग में जल जाएगा  । जब गोपाल उस पेड़ के पास से गुजरा तो सांप ने पीछे से आवाज लगाई और कहा कि मेरी मदद करो । मुझे इस आग से बचा लो । मुझे बाहर आना है । गोपाल पहले तो डर जाता है क्योंकि उसके मन में होता है कि कहीं सांप उसे काट ना ले । इसीलिए गोपाल बोलता है कि मैं तुम्हें एक ही शर्त पर बाहर निकालूंगा ।अगर तुम मुझे वादा करो कि तुम मुझे नहीं काटोगे। सांप कहता है – तुम कैसी बात कर रहे हो मैं तुम्हे क्यों काटूंगा ?  तुम तो मेरी मदद करोंगे। मैं तुम्हे नहीं काटूंगा । गोपाल अपनी लाठी की मदद से सांप को बाहर निकाल देता है और आग भी बुझा देता है । पर जैसे ही सांप बाहर आता है । वह गोपाल से कहता है कि अब मैं तुम्हें डस लूंगा । इस पर गोपाल कहता है कि तुमने मुझसे वादा किया था ? कि तुम मुझे नहीं मारोगे तो सांप हंसते हुए कहता हैं कि यह कलयुग है । यहां पर अच्छाई के बदले बुराई ही मिलती है । तो गोपाल को यह बात समझ नहीं आती और जैसे ही सांप गोपाल को डसने लगता है । गोपाल कहता है , रुको । पहले मुझे तुम अपनी कही हुई बात को सही साबित करके दिखाओ । तो  सांप और गोपाल जंगल में अन्दर की ओर निकल जाते हैं। रास्ते में उन्हें एक गाय दिखाई देती है तो गोपाल उस गाय से पूछता है कि क्या यही कलयुग का धर्म है ? यहां पर अच्छाई के बदले सिर्फ बुराई ही मिलती है । तो गाय सर हिलाते हुए कहती है बिल्कुल सही। तो गोपाल पूछता है कि कैसे ? गाय कहती हैं कि अब तुम मुझे ही देख लो ,मैं सबको दूध देती हूं ।और लोग मेरी पूजा भी करते हैं । लेकिन मेरे बूढ़े हो जाने के बाद लोग मुझे कसाई को दे देते हैं । गाय की यह बात सुनकर गोपाल को विश्वास नहीं होता । क्योंकि गाय बिल्कुल सच कह रही होती है । तो सांप कहता है कि तुमने देख लिया कि यहां पर अच्छाई के बदले सिर्फ बुराई ही मिलती है ।  गोपाल कहता है– रुको । जरा हमें किसी और से भी पूछना चाहिए । तो गोपाल अपने पास खड़े हुए पेड़ से पूछता है कि क्या कलयुग में भलाई का बदला बुराई से दिया जाता है ? पेड़ कहता है बिल्कुल सही।  मैं सबको फल देता हूं,लोगों को छाया देता हूं, लोग मेरी लकड़ी का इस्तेमाल भी करते हैं । लेकिन फिर भी लोग मुझे जला देते हैं । तब गोपाल हार मानते हुए कहता हैं कि ठीक है सांप तुम मुझे डस सकते हो । लेकिन मरने से पहले मेरी एक अंतिम इच्छा है मैंने शादी के बाद से अपनी पत्नी को नहीं देखा । क्योंकि हमारी शादी बचपन में ही हो गई थी। मैं उसे वापस लेने के लिए जा रहा था । अगर तुम्हारी इच्छा हो तो क्या मैं मरने से पहले एक बार अपनी बीवी को देख सकता हूं ? तो सांप ने कहा ठीक है । लेकिन तुम उससे कोई बात नहीं करोगे । सिर्फ उसे देख कर ही वापस आ जाओगे ।गोपाल हां कहते हुए अपने बीवी के गांव की ओर चल पड़ता है। अपनी ससुराल जाते ही गोपाल को उसकी पत्नी घर के बाहर झाड़ू लगाती हुई नजर आती है। गोपाल उसको एक झलक देखकर ही वापिस आने लगता है ।तभी उसकी पत्नी उसको देख लेती है और सोचती है कि ये तो मुझे लेने आए थे । तो ये मुझे बिना लिये कैसे जा सकते हैं ?और इनके चेहरे पर यह किस बात की परेशानी थी ? पत्नी सोचती है कि मुझे भी इनके पीछे-पीछे जाना चाहिए । और वह गोपाल का पीछा करने लगती है। जब गोपाल साँप के पास पहुंच जाता है । तो वह कहता है कि मैं मरने के लिए तैयार हूं। जैसे ही सांप गोपाल को डसने लगता है ।उसी समय उसकी पत्नी आकर बीच में खड़ी हो जाती है। अपनी पत्नी को देख कर के गोपाल को विश्वास नहीं होता और सांप कहता है कि गोपाल मैंने तुम्हें मना किया था कि अपनी पत्नी से कुछ मत कहना। पर तुम तो इसे अपने साथ ले आए । इस पर पत्नी बोलती है कि इन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की । बल्कि मैं खुद ही इनके पीछे पीछे चली आई।  पत्नी पूछती है कि मेरे पति ने ऐसा क्या गुनाह किया है ? जो आप इन्हे  मारना चाहते हैं। तो गोपाल पूरी बात अपनी पत्नी को बताता है तो पत्नी थोड़ी देर के लिए सोचती है। और फिर बोलती है कि तुम ऐसा कैसे कर सकते हो ? यह मेरे  पति हैं और मैं इनके बिना नहीं रह सकती। अगर तुमने इन्हे ही मार दिया तो मैं अपना जीवन कैसे व्यतीत करूंगी ? इस पर सांप बोलता है कि वह सामने जो पेड़ देख रही हो जाकर उसके सात चक्कर लगाओ और सात चक्कर के बाद तुम मेरे बिल को खोदना, तुम्हें ढेर सारे हीरे और जवाहरात मिलेंगे। जिनके सहारे तुम अपना पूरी जिंदगी आराम से व्यतीत कर सकोगी। तो पत्नी पेड़ के पास जाती है और चक्कर लगाना शुरु कर देती हैं। छ: चक्कर लगाने के बाद जैसे ही पत्नी अपना सातवा चक्कर लगाने लगती है तो वो अपने पति के हाथ से लाठी लेकर सांप पर वार करती है। और साँप के शरीर से खून निकलने लगता है। सांप तड़पते हुए पूछता है कि मैंने तो तुम्हारा भला करना चाहा और तुमने मुझे ही मार डाला । ऐसा क्यों किया तुमने ? तो पत्नी बोली कि ये कलयुग है यहां अच्छाई के बदले सिर्फ बुराई ही मिलती है। साँप तड़पते हुए मर जाता है और गोपाल और उसकी पत्नी वापस घर आ जाते है।


how to avenge evil for good

In a village lived an old lady and her son. She had married her son in her childhood. But her daughter-in-law used to stay in her maternal home. After many years, when her son Gopal grew up, the old lady thought that now I will call her daughter-in-law from the maternal house. She said to her son that go Gopal son, get your daughter-in-law from her maternal home. Gopal obeyed his mother and went to his in-laws' house. On the way he passed through a forest. He saw that the leaves scattered under a tree were on fire. At the root of that tree was a bill. Out of which a snake was sometimes taking out its hood, sometimes it was doing it inside. He was very scared and was not able to come out because he was afraid that if he went out, he would get burnt in that fire. When Gopal passed by that tree, the snake made a sound from behind and said that help me. Save me from this fire I have to come out. Gopal gets scared at first because he has in his mind that the snake may not bite him. That's why Gopal says that I will kick you out on one condition. If you promise me that you will not bite me. The snake says - what are you talking about, why will I bite you? You will help me. I will not cut you Gopal takes out the snake with the help of his stick and also extinguishes the fire. But as soon as the snake comes out. He tells Gopal that now I will bite you. On this Gopal says that you promised me? If you do not kill me, the snake laughs and says that this is Kaliyuga. Here, instead of good, there is evil. So Gopal does not understand this and as soon as the snake starts biting Gopal. Gopal says wait. First of all, show me by proving what you have said right. So Snake and Gopal go inwards into the forest. When he sees a cow on the way, Gopal asks that cow, is this the religion of Kaliyuga? Here, instead of good, there is only evil. So the cow shakes her head and says absolutely right. So Gopal asks how? The cow says that now you only see me, I give milk to everyone. And people also worship me. But after I am old, people give me to the butcher. Gopal could not believe hearing this talk of the cow. Because the cow is telling the truth. So the snake says that you have seen that instead of good, only evil is found here. Gopal says- wait. We should ask someone else. So Gopal asks the tree standing beside him whether in Kaliyuga good is replaced by evil? The tree says absolutely right. I give fruits to everyone, I give shade to people, people also use my wood. But still people burn me. Then Gopal admits defeat and says that it is okay snake, you can bite me. But before I die I have one last wish I haven't seen my wife since marriage. Because we got married in childhood. I was going to take him back. If you wish, can I see my wife once before I die? So the snake said okay. But you won't talk to him. You will come back only after seeing her. Gopal says yes and walks towards his wife's village. On his way to his in-laws' house, Gopal is seen sweeping his wife outside the house. Gopal starts coming back only after seeing a glimpse of him. Then his wife sees him and thinks that he had come to get me. So how can they go without me? And what was the problem on their face? The wife thinks that I should also go after them. And she starts following Gopal. When Gopal reaches the snake. So he says I am ready to die. As soon as the snake starts biting Gopal. At the same time his wife comes and stands in the middle. Seeing his wife, Gopal does not believe and the snake says that Gopal, I told you not to say anything to your wife. But you brought it with you. On this the wife says that she did not talk to me. Rather, I myself went after them. Wife asks what crime has my husband committed? You want to kill them. So Gopal tells the whole thing to his wife, then the wife thinks for a while. And then she says how can you do that? This is my husband and I cannot live without him. If you kill them, how will I live my life? On this the snake says that he should go seven rounds of the tree which he is seeing in front and after seven rounds you dig my burrow, you will find a lot of diamonds and gems. With the help of which you will be able to live your whole life comfortably. So the wife goes to the tree and starts circling. After six rounds, as soon as the wife starts doing her seventh round, she takes a stick from her husband's hand and strikes the snake. And blood starts coming out of the snake's body. The snake asks in agony that I wanted to do good for you and you killed me. why did you do this? So the wife said that this is Kalyug, here instead of good, only evil is found. The snake dies in agony and Gopal and his wife return home.