नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां दुर्गा के मां महागौरी स्वरूप की उपासना की जाती है। डमरू धारण करने के कारण मां को शिवा के नाम से भी जाना जाता है।मां महागौरी का रंग पूर्णता गोरा होने के कारण ही इन्हें महागौरी या श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है ।
स्वरूप :
महागौरी का वर्ण रूप से गौर अर्थात सफेद हैं और इनके वस्त्र व आभूषण भी सफेद रंग के ही हैं। मां का वाहन वृषभ अर्थात बैल है, जो भगवान शिव का भी वाहन है। मां का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशुल है। महागौरी के ऊपर वाले हाथ में शिव का प्रतिक डमरू है। मां का नीचे वाला हाथ अपने भक्तों को अभय देता हुआ वरमुद्रा में हैं और मां शांत मुद्रा में दृष्टिगत है।
पूजा विधि:
। नवरात्र की अष्टमी तिथि को मां को नारियल का भोग लगाने की पंरपरा है। भोग लगाने के बाद नारियल को या तो ब्राह्मण को दे दें अन्यथा प्रशाद रूप में वितरण कर दें। जो भक्त आज के दिन कन्या पूजन करते हैं, वह हलवा-पूड़ी, सब्जी और काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है। महागौरी को गायन और संगीत अतिप्रिय है। भक्तों को पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना चाहिए। गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है।इनका राहु ग्रह पर आधिपत्य है, यही कारण है कि राहुदोष से मुक्ति पाने के लिए मां महागौरी की पूजा की जाती है।
महागौरी की कथा
देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती का जन्म पर्वतों के राजा हिमालय के घर हुआ था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। अपनी तपस्या के दौरान माता केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। बाद में माता ने केवल वायु पीकर तप करना आरंभ कर दिया। तपस्या से देवी पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था इसलिए उनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे गंगा स्नान करने के लिए कहा। जिस समय मां पार्वती स्नान करने गईं तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाईं। गौरी रूप में माता अपने हर भक्त का कल्याण करती हैं और उनको समस्याओं से मुक्त करती हैं। जो व्यक्ति किन्हीं कारणों से नौ दिन तक उपवास नहीं रख पाते हैं, उनके लिए नवरात्र में प्रतिपदा और अष्टमी तिथि को व्रत रखने का विधान है। इससे नौ दिन व्रत रखने के समान फल मिलता है।
महत्त्व:
मान्यता है कि मां महागौरी की पूजा करने से धन व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं। यह धन-वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस दिन दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।
मंत्र:
सर्वमंगल मांग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।
स्तोत्र मंत्र-
सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
Maa Mahagauri form of Maa Durga is worshiped on the Ashtami date of Navratri. Due to wearing Damru, the mother is also known as Shiva. She is also called Mahagauri or Shwetambardhara due to the complexion of Maa Mahagauri.
Form :
Mahagauri's character is Gaur i.e. white and her clothes and ornaments are also of white color. The vehicle of the mother is Vrishabha i.e. bull, which is also the vehicle of Lord Shiva. The right hand of the mother is in Abhayamudra and the lower hand holds the Trishul symbolizing the power of Durga. The symbol of Shiva in the upper hand of Mahagauri is Damru. The lower hand of the mother is in vermillion giving blessings to her devotees and the mother is seen in a calm posture.
Worship Method:
, There is a tradition of offering coconut to the mother on the Ashtami date of Navratri. After offering the bhog, either give the coconut to the Brahmin or else distribute it in the form of Prasad. The devotees who worship the girl on this day, pudding-puri, vegetables and black gram prasad are specially made. Mahagauri loves singing and music. Devotees should wear pink colored clothes while worshiping. The color pink is a symbol of love. She is the ruler of the planet Rahu, which is why Maa Mahagauri is worshiped to get rid of Rahudosha.
Story of Mahagauri
According to Devi Bhagwat Purana, Goddess Parvati was born in the house of Himalaya, the king of mountains. Mother Parvati started penance to get Lord Shiva as her husband. During her penance, the mother used to eat only tuberous fruits and leaves. Later the mother started doing penance by drinking only air. Goddess Parvati had attained great glory by penance, hence she was named Mahagauri. Pleased with her penance, Lord Shiva asked her to take a bath in the Ganges. When Mother Parvati went to take a bath, a form of the goddess appeared with a dark complexion, which was called Kaushiki and a form appeared like Ujjwal Chandra, which was called Mahagauri. In the form of Gauri, the mother blesses every devotee and frees them from problems. For those who are unable to keep fast for nine days due to any reason, there is a law to keep fast on Pratipada and Ashtami Tithi in Navratri. This gives the same result as fasting for nine days.
Importance:
It is believed that worshiping Maa Mahagauri brings wealth and happiness and prosperity. For her devotees, she is the form of Annapurna. She is the presiding deity of wealth and prosperity and happiness and peace. Reciting the medium character of Durga Saptashati on this day is considered particularly fruitful.
mantra:
Sarvmangal Mangalye, Shiva Sarvartha sadhike.
Sharanye Tryambake Gauri Narayani Namostute.
stotra mantra-
Sarvasankat Hantritvamhidhan Aishwarya Pradayanim.
Jnanadachaturvedmayi, Mahagauripranamamyam.
Pleasure peace benefactor, providing wealth and food grains.
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