How did an ordinary child get Lord Vishnu's lap? Story of Dhruv Tara and Lord Vishnu , कैसे मिली एक साधारण बच्चे को भगवन विष्णु की गोद ? ध्रुव तारा और भगवन विष्णु की कहानी


 


बहुत साल पहले उत्तानपाद नाम का एक राजा था।उसकी दो पत्नियां थी। पहली पत्नी का नाम सुनीति और दूसरी पत्नी का नाम सुरुचि था । सुरुचि बहुत सुंदर थी इसीलिए राजा अधिक से अधिक समय अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि के साथ बिताते थे। वह पूरे महीने में एक ही बार सुनीति से मिलने जाता था सुनीति के पुत्र का नाम दुर्वा था एक दिन सुरुचि का बेटा अपने पिता की गोद में खेल रहा था और राजा के बगल में ही सुरुचि बैठी हुई थी तो यह दृश्य देखकर ध्रुवा के मन में विचार आया कि मुझे भी पिताजी के साथ खेलना है इसलिए वह भाग कर के अपने पिता की गोद में बैठ गया लेकिन जब सुरुचि ने यह देखा तो उसे गुस्सा आ गया और उसने ध्रुवा को अपने पति की कोशिश छीन कर के वापस जमीन पर उतार दिया। और उससे कहा कि अगर तुम्हें महाराज की गोद में खेलना है तो तुम्हें उसके लिए अगले जन्म तक का इंतजार करना होगा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या करनी होगी तब जाकर ही तुम्हें मेरे पुत्र होने का सुख मिलेगा यह सुनकर जो वह भागकर महल से बाहर निकल जाता है और जोर जोर से रोने लगता है तभी उसकी मां यानी कि सुनी थी वहां आती है और ध्रुवा को रोते हुए देख कर उसके रोने का कारण पूछती है ध्रुव सारे बाद अपनी माता को बताता है तो माता उदास होकर कहती हैं कि पुत्र अगर तुम चाहते हो कि तुम्हें अपने पिता का प्यार मिले तो तुम्हें इसके लिए भगवान शिव की तपस्या करनी पड़ेगी तुम्हें उनका नाम जपना होगा और जब वह तुम्हारे सामने स्मरण हो जाएंगे तुम उनसे अपने पिता की प्यार की इच्छा रखना वह तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करेंगे यह सुनकर ध्रुव ने फैसला किया कि वह भगवान शिव की तपस्या जरूर करेगा और उसने अपने सारे राज्य आभूषण उतार दिए और साधु का रूप धारण किया और 1 की ओर चला गया और रास्ते में उसे नारद भगवान मिले नारद जी ने उसे कहा कि यहां पर बहुत अंधेरा होने वाला है और इस जंगल में बहुत जंगली जानवर हैं जो तुम्हें हानि पहुंचा सकते हैं तुम वापस अपने गांव की ओर चले जाओ ध्रुवा ने नाराजी से हाथ जोड़कर कहा नहीं महाराज मैं यहां से वापस तभी जाऊंगा जब मुझे भगवान शिव या भगवान कृष्ण के दर्शन होंगे नाराज जी उसकी इस इच्छा को देखकर प्रसन्न हुए और दुकान में एक मंत्र बोला उस मंत्र को सुनकर ध्रुव को बहुत ही आश्चर्य हुआ और उसकी उत्सुकता पहले से 2 गुना बढ़ गई और वह जंगल के बीचो बीच चला गया और नदी किनारे जाकर स्नान किया और तपस्या के लिए बैठ गया पहले महीने में ग्रुप में सिर्फ तीन ही फल खाए दूसरे महीने में उसने कुछ पत्तों का भोजन किया और तीसरे महीने में सिर्फ कुछ ही बार पानी पिया वह अपनी समस्या में बहुत ज्यादा क्लीन था करते करते 5 महीने बीत चुके थे फिर 1 दिन सभी देवी देवता नारा जी के साथ भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश के पास गए उन्होंने हाथ जोड़कर ध्रुवा के बारे में बताया नारद जी ने ब्रह्मा विष्णु महेश जी से कहा कि भगवान जो धरती पर आज की कड़ी तपस्या कर रहा है और उसकी तपस्या का प्रताप हम संभाल नहीं पा रहे हैं कृपया करके उसकी इच्छा पूरी करें तो भगवान विष्णु ने स्वयं ध्रुव की इच्छा पूरी करने का फैसला किया और वह धरती लोग के लिए निकल गए और सीधा दुर्ग के सामने जा पहुंचे और कहा कि ध्रुव अपनी आंखे खोलो मैं तुम्हारी इस तपस्या से प्रसन्न हुआ हूं तुम जो मांगोगे मैं तुम्हें वह दूंगा ध्रुव को यह ग्रुप में यह बात सुनकर के उसे आश्चर्य हुआ परंतु उसने हाथ जोड़कर बंद आंखों से ही माफी मांगी और कहा कि भगवान मुझे यह सूअर काफी समय से अपने कानों में सुनाई पड़ रहा है और हर बार मैं अपनी आंखें खोल लेता हूं और मैं तपस्या भंग हो जाती हैं यदि आप सच में भगवान विष्णु हैं तो आपको मुझे बंद आंखों से ही दर्शन देने होंगे ताकि मुझे विश्वास हो जाए कि सच में आप भगवान ही हैं भगवान विष्णु की बात को सुनकर के हंस पड़ते हैं और अपना चमत्कार से ध्रुव को बंद आंखों से दर्शन दे देते हैं और साथ में यह वरदान देते हैं कि तुम अपने समय के सबसे महान राजा बनोगे तुम्हें माता पिता और राज्य सभी का प्यार समान रूप में मिलेगा और जिंदगी के बाद भी तुम्हें एक उच्च स्थान की प्राप्ति होगी और ऐसा क्या कर के भगवान दुर्ग को वरदान दे देते हैं और ध्रुव अपनी आंखें खोल कर भगवान को देखते हैं अपनी इच्छा पूरी होने पर वह ध्रुव बहुत खुश रहता है और भगवान विष्णु अदृश्य रहते हैं और वापस अपने महल की ओर निकल पड़ता है जैसे ही वह महल के द्वार पर पहुंचता है वह देखता है कि महल के द्वार पर उसके पिता और माता उसका इंतजार कर रहे हैं विभाग के अपने पिता की गोद में जाता है पिता उसे बहुत प्यार करते हैं और भगवान के भगवान विष्णु के कहे अनुसार ध्रुव अपने बड़ा होकर के एक बहुत ही महान राजा बनता है और मरने के बाद ध्रुव तारा बन जाते हैं।


How did an ordinary child get Lord Vishnu's lap? Story of Dhruv Tara and Lord Vishnu


Many years ago there was a king named Uttanapada. He had two wives. The name of the first wife was Suniti and the name of the second wife was Suruchi. Suruchi was very beautiful that's why the king used to spend more and more time with his second wife Suruchi. He used to visit Suniti only once in a whole month. Suniti's son's name was Durva. One day Suruchi's son was playing on his father's lap and Suruchi was sitting next to the king, seeing this scene in Dhruva's mind. The thought came that I also want to play with my father, so he ran and sat on his father's lap, but when Suruchi saw this, he got angry and snatched her husband's efforts and threw Dhruva back on the ground. And told him that if you want to play in Maharaj's lap, then you will have to wait for him till the next birth and do austerity of Lord Shiva, then only you will get the pleasure of being my son after hearing that he runs out of the palace. goes and starts crying loudly, only then his mother i.e. heard him comes there and seeing Dhruva crying, asks the reason for her crying. If you want to get the love of your father, then you will have to do penance to Lord Shiva for this, you will have to chant his name and when he is remembered in front of you, you wish your father's love from him, he will definitely fulfill your wish. decided that he would definitely do penance of Lord Shiva and he took off all his state ornaments and took the form of a monk and went towards 1 and on the way he met Lord Narada. Narad ji told him that it was going to be very dark here. and there are many wild animals in this forest that can harm you. Go towards your village, Dhruva angrily said with folded hands, no sir, I will go back from here only when I see Lord Shiva or Lord Krishna, angry ji was pleased to see his wish and said a mantra in the shop, listening to that mantra Dhruv was very surprised and his curiosity increased 2 times than before and he went to the middle of the forest and went to the river bank and took a bath and sat for penance. In the first month he ate only three fruits in the group, in the second month he did some ate leaves and drank water only a few times in the third month, he was very clean in his problem, 5 months had passed, then on 1 day all the deities went to Lord Brahma Vishnu and Mahesh with Nara ji, they folded their hands. Narad ji told about Dhruva, Brahma Vishnu Mahesh ji said that the Lord who is doing hard penance on earth today and we are not able to handle the glory of his penance, please fulfill his wish, then Lord Vishnu himself did Dhruva. Decided to fulfill the wish and he left for the earth people and went straight to the fort. I went in front and said that Dhruv, open your eyes, I am pleased with your penance, I will give you whatever you ask. Dhruv was surprised to hear this in the group, but he apologized with folded hands and closed eyes and said That Lord I have been hearing this boar in my ears for a long time and every time I open my eyes and I break my penance if you are really Lord Vishnu then you have to see me with closed eyes so that I can Believe that you are really God, listening to the words of Lord Vishnu, laughs and with his miracle, appears to Dhruv with closed eyes and also gives a boon that you will become the greatest king of your time. The love of parents and the state will be received equally, and even after life, you will get a high position and by doing this, God gives a boon to the fort and Dhruva opens his eyes and sees God when his wish is fulfilled. That Dhruva is very happy and Lord Vishnu remains invisible and goes back to his palace. As he reaches the gate of the palace he sees that his father and mother are waiting for him at the gate of the palace. According to this, Dhruva grows up to be a very great king and after his death, Dhruva becomes a star.

कुम्हार की कहानी

 एक गांव में एक गरीब कुम्हार था । वह और उसकी पत्नी दोनों एक झोपड़ी में रहते थे ।उनकी शादी को कई वर्ष बीत चुके थे लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी । कुम्हार माता दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त था । वह हर समय माता दुर्गा का नाम जपता रहता था । जब वह मिट्टी के बर्तन बनाता, तब भी वह माता दुर्गा का नाम जपता रहता और मस्ती से अपना काम करता रहता । जब कई साल बीत गए तब उनके घर मां दुर्गा की कृपा से एक पुत्र का जन्म हुआ । कुम्हार के घर में खुशियां छा गई । उन दोनों ने मां दुर्गा का बहुत-बहुत धन्यवाद किया । जब उनका पुत्र 1 वर्ष का था तो एक दिन की बात है कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को पहले अपने पैरों तले रौंद रहा था  ताकि मिट्टी चिकनी हो जाए और बर्तन आसानी से बन जाए । वह आंखें बंद किए मां दुर्गा का नाम जप रहा था और मिट्टी रौंद रहा था । उसकी पत्नी खाना बना रही थी ।तभी अचानक उसका 1 वर्ष का बेटा खेलता – खेलता घुटनों के बल चलता हुआ उसके पास आया । कुम्हार ने अपनी आंखें बंद की हुई थी इसलिए उसे अपना पुत्र दिखाई नहीं दिया । वह मां दुर्गा के नाम के स्मरण में इतना खोया हुआ था  कि उसे अपने पुत्र के आने का आभास भी नहीं हुआ । उसका पुत्र उसके पास आता चला गया और वह धीरे-धीरे उसे मिट्टी में पैरों से  रौंदता चला गया ।  उसे अपने पुत्र के रोने का स्वर भी नहीं सुनाई दिया। तभी उसकी पत्नी खाना बनाकर जैसे ही बाहर आई तो उसने अपने घर में अपने पुत्र को नहीं देखा । तो वह बाहर अपने पुत्र को देखने आई । जब उसे उसका पुत्र बाहर दिखाई नहीं दिया । तो उसने अपने पति से पूछा । लेकिन उसका पति तो मां दुर्गा के ध्यान में मग्न था । उसे अपनी पत्नी की आवाज सुनाई नहीं दी । जब उसकी पत्नी का ध्यान कुम्हार के पैरों की तरफ गया जहां वह मिट्टी को रौंद रहा था तो उसे अपने बेटे के कपड़ों की कतरन दिखाई दी । कपड़ों को देखकर उसका मन घबराया  और वह बहुत जोर से चिल्लाई । उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर कुम्हार का ध्यान टूटा और उसने पूछा तुम क्यों रो रही हो ?तब उसने कहा कि यह आपने क्या कर दिया ?अपने ही बेटे को मार दिया जब उसकी पत्नी ने मिट्टी में अपने हाथों को डालकर जैसे ही ऊपर उठाया तो उसका बेटा उसके हाथ में आ गया । वह मरा चुका था । मिट्टी में दब जाने के कारण उसकी मौत हो गई थी । वह बहुत जोर जोर से रो रही थी । कुम्हार यह सब देखकर घबरा गया और मन ही मन मां दुर्गा के नाम का जाप करने लगा । और ध्यान मग्न होकर बोला हे ! मां दुर्गा देने वाली भी तू ही है मां और लेने वाली भी तू ही है । अगर मेरा पुत्र मुझसे लेना ही था तो इस तरह ना लेती कि मेरे माथे पर कलंक ही लग गया। मेरा पुत्र मुझे वापस लौटा दो इसलिए नहीं कि मुझे अपने पुत्र से मोह है या मैं अपने पुत्र के बिना नहीं जी सकता बल्कि इसलिए कि कोई यह ना कहे कि मां दुर्गा की भक्ति करते समय इसने अपने पुत्र को मार डाला । मैं अपने पुत्र का हत्यारा नहीं बनना चाहता । मैं इस कलंक के साथ नहीं जी पाऊंगा । और कोई  आपके नाम पर उंगली ना उठा सके । उसने मन ही मन मां दुर्गा से प्रार्थना की कि तभी थोड़ी देर बाद एक चमत्कार हुआ । उसके मरे हुए बेटे में प्राण आ गए और वह अपनी मां की गोद में ही जोर जोर से रोने लगा । कुम्हार की पत्नी यह सब देखकर आश्चर्यचकित हो गई और अपने बेटे को गले से लगा लिया । कुम्हार ने यह सब देखा तो उसकी आंखो से आंसू बहने लगे और उसने मां का धन्यवाद किया । मां दुर्गा ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं । मांगो तुम क्या चाहते हो ? कुछ वर मांगो । कुम्हार बोला मां मुझे कुछ नहीं चाहिए आपने मेरे माथे से यह कलंक हटा दिया । इससे बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है और अगर आप मुझे कोई वर देना ही चाहती हैं तो मुझे यह वर दीजिए कि मैं सदा आपके नाम का सिमरन करता रहूं । मुझे आपकी भक्ति प्राप्त हो । तब मां दुर्गा ने कुम्हार को यही वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गई ।

 

तो  भक्तों , मां दुर्गा अपने भक्तों को कभी मुसीबत में नहीं डालती । जो भक्त मां दुर्गा का नाम सच्चे मन से जपते हैं मां दुर्गा उनके सारे कष्टों को हर लेती है


There was a poor potter in a village. He and his wife both lived in a hut. Many years had passed since their marriage but they had no children. The potter was a great devotee of Mother Durga. He used to chant the name of Mother Durga all the time. Even when he made earthen pots, he kept on chanting the name of Mother Durga and doing his work with fun. When many years passed, a son was born in his house by the grace of Mother Durga. There was happiness in the potter's house. Both of them thanked Maa Durga very much. When his son was 1 year old, it is a matter of one day that the potter was first trampling the clay under his feet to make the pottery so that the clay becomes smooth and the pot can be made easily. He was chanting the name of Maa Durga with his eyes closed and was trampling the soil. His wife was cooking. Then suddenly his 1-year-old son came to him walking on his knees while playing. The potter had closed his eyes so he could not see his son. He was so lost in the remembrance of the name of Maa Durga that he did not even realize the arrival of his son. His son kept coming to him and he slowly trampled him in the mud with his feet. He could not even hear the cry of his son. Then as soon as his wife came out after preparing food, she did not see her son in her house. So she came outside to see her son. When he did not see his son outside. So she asked her husband. But her husband was engrossed in the meditation of Mother Durga. He could not hear his wife's voice. When his wife's attention turned to the potter's feet where he was trampling the clay, she saw the shavings of her son's clothes. Seeing the clothes, her mind panicked and she cried very loudly. Hearing his shouting, the potter's attention broke and he asked why are you crying? Then he said that what have you done? Killed his own son when his wife put her hands in the soil and raised her as soon as she raised it. The son came into his hand. He was dead. He died due to being buried in the soil. She was crying very loudly. The potter was terrified seeing all this and started chanting the name of Maa Durga in his heart. And meditating, he said! You are also the giver of Maa Durga, you are the mother and you are also the taker. If my son had to take it from me, he would not have taken it in such a way that my forehead was tainted. Return my son to me not because I am infatuated with my son or I cannot live without my son, but because no one should say that he killed his son while worshiping Maa Durga. I don't want to be my son's killer. I can't live with this stigma. And no one can point a finger at your name. He prayed to Maa Durga in his heart that only after a while a miracle happened. His dead son came to life and he started crying loudly in his mother's lap. The potter's wife was surprised to see all this and hugged her son. When the potter saw all this, tears started flowing from his eyes and he thanked his mother. Maa Durga appeared to him and said that I am very happy with your devotion. Ask what do you want? Ask for something The potter said – Mother, I do not want anything, you removed this stigma from my forehead. There is nothing more for me than this and if you want to give me any boon, then give me this boon that I will always keep on singing your name. May I have your devotion. Then Mother Durga gave this boon to the potter and she became intrigued.


 


So devotees, Maa Durga never puts her devotees in trouble. Devotees who chant the name of Maa Durga with a sincere heart, Maa Durga takes away all their troubles.

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 नवरात्रि के आखिरी दिन यानी नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती हैं। यह मां दुर्गा का नौंवा रूप हैं।  इस दिन भी कई भक्त अपने घरों में कंजकाओ को बिठाते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं।

 



 

स्वरूप:

कमल पर विराजमान चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में विराजित हैं। इनके चारों हाथों में सुदर्शन चक्रशंखगदा और कमल रहता है। सिर पर ऊंचा सा मुकूट और चेहरे पर मंद मुस्कान ही मां सिद्धिदात्री की पहचान है। 

 

कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही 8 सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन सिद्धियों में अणिमामहिमागरिमालघिमाप्राप्तिप्राकाम्यईशित्व और वशित्व शामिल हैं। इन्हीं माता की वजह से भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर नाम मिलाक्योंकि सिद्धिदात्री के कारण ही शिव जी का आधा शरीर देवी का बना। हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।

 मां दुर्गा का यह रूप अत्यंत शक्तिशाली है क्योंकि यह शक्ति सभी देवी देवताओं के तेज से प्रकट हुई हैं।  मां का यह स्वरूप सभी सिद्धियों को देने वाला है।

 

पूजा विधि :

मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें। मां को रोली कुमकुम लगाएं। मां को मिष्ठानपंच मेवाफल अर्पित करें। माता सिद्धिदात्री को प्रसादनवरस युक्त भोजननौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए। घी का दीपक जलाने के साथ-साथ मां सिद्धिदात्री को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा जो भी फल या भोजन मां को अर्पित करें वो लाल वस्त्र में लपेट कर दें। निर्धनों को भोजन कराने के बाद ही खुद खाएं। अतमां को खीर का भोग लगाना चाहिए।

 

 

 जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। इनकी उपासना करने से अष्ट सिद्धि और नव निधिबुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। 

 

 

 

मंत्र:

 सिद्धिदात्र्यै नम:'

 

मां सिद्धिदात्री स्तुति मंत्र

 

या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

 

मां सिद्धिदात्री प्रार्थना मंत्र

 

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

 

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी

 

पूजा मंत्र

 

अमल कमल संस्था तद्रज:पुंजवर्णा,

 कर कमल धृतेषट् भीत युग्मामबुजा च।

मणिमुकुट विचित्र अलंकृत कल्प जाले;

भवतु भुवन माता संत्ततम सिद्धिदात्री नमो नम:

ओम देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।

 

Maa Siddhidatri is worshiped on the last day of Navratri i.e. Navami. This is the ninth form of Maa Durga. On this day also many devotees make Kanjakao sit in their homes and feed them.
Form:
The four-armed mother Siddhidatri, seated on a lotus, is enshrined in a red sari. Sudarshan Chakra, conch shell, mace and lotus remain in his four hands. A high crown on the head and a dim smile on her face is the identity of Mother Siddhidatri.
Story :
According to the legend, Lord Bholenath had attained 8 siddhis by the grace of Mother Siddhidatri. These siddhis include Anima, Mahima, Garima, Laghima, Prapti, Prakamya, Ishitva and Vashitva. Because of this mother, Lord Shiva got the name Ardhanarishvara, because due to Siddhidatri, half of Shiva's body became that of Goddess. Nanda mountain of Himachal is his famous pilgrimage site.

 This form of Maa Durga is very powerful because this power is manifested by the effulgence of all the deities. This form of mother is the giver of all siddhis.
Worship Method:
Offer white flowers to the mother after bathing. Apply Roli Kumkum to the mother. Offer sweets, punch nuts, fruits to the mother. Mother Siddhidatri should be offered Prasad, food containing Navras, nine types of flowers and only nine types of fruits. Along with lighting a ghee lamp, offering lotus flower to Maa Siddhidatri is considered auspicious. Apart from this, whatever fruit or food is offered to the mother, wrap it in a red cloth. Eat yourself only after feeding the poor. Therefore, kheer should be offered to the mother.
It is not impossible to get anything in life for the one who gets the blessings of the mother. Worshiping them leads to the attainment of Ashta Siddhi and new funds, wisdom and discretion.

mantra:
Om Siddhidatrayai Namah.'
Maa Siddhidatri Praise MantrA
Or Goddess Sarvabhuteshu Maa Siddhidatri Rupen Sanstha.
Namastasya Namastasya Namastasya Namo Namah.
Maa Siddhidatri Prayer Mantra
Siddha Gandharva Yakshadyairsurairmarairpi.
Sevyamana always bhuyat siddhida siddhidayini

 

worship mantra
Amal Kamal Sanstha Tadraj: Punjvarna,
 Kar lotus dhriteshata bhi yugambuza c.
Manimukut bizarre ornate kalpa webs;
Bhavatu Bhuvan Mata Santtam Siddhidatri Namo Namah.
Om Devi Siddhidaatryai Namah.