पहले हुई मृत्यु। फिर जीवित हुआ और मिला स्वर्ग से सुन्दर नगर। एकादशी व्रत कथा | First death. Then he came alive and got a beautiful city from heaven. ekadashi fasting story

















 कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं । यह एकादशी करने से बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है । भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से इस एकादशी का महत्व बताते हुए कहा कि  –

हे राजन ! प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का एक राजा था । वह बहुत ही धर्मात्मा और न्याय प्रिय था । मुचुकुंद राजा बहुत बड़े विष्णु भक्त थे । राजा के धर्म पालक और न्याय प्रिय होने के कारण देवराज इंद्र और अन्य सभी देवता भी उनका बहुत सम्मान करते थे । राजा की एक पुत्री थी । उसका नाम चंद्रभागा था । राजा ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रसेन राजा के पुत्र शोभन के साथ किया था । शोभन शारीरिक रूप से बहुत ही दुर्बल थे । एक बार शोभन अपनी पत्नी चंद्रभागा के साथ अपनी ससुराल आए हुए थे । उन्हीं दिनों कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी भी आने वाली थी । एकादशी के व्रत से कुछ दिन पहले चंद्रभागा के मन में अत्यन्त सोच उत्पन्न हो गया कि मेरे पति एकादशी का व्रत कैसे करेंगे ? वे तो शरीर से बहुत ही कमजोर है । क्योंकि मेरे पिता एकादशी के दिन किसी को भी भोजन ग्रहण नहीं करने देते  । मुचुकुंद राजा ने दशमी के दिन सारे नगर में ढोल बजवा कर घोषणा करवा दी कि कल एकादशी को कोई भी भोजन ग्रहण नहीं करेगा । घोषणा के सुनते ही शोभन के मन में चिंता उत्पन्न हो गई कि वह कैसे एक दिन बिना भोजन के रहेंगे । शोभन ने अपनी पत्नी से कहा कि – तुम तो जानती हो , मैं एक समय भी बिना भोजन के नहीं रह सकता ।  तो फिर कल मैं एकादशी के दिन कैसे बिना भोजन के रहूंगा । ऐसे तो मेरे प्राण ही चले जाएंगे । पत्नी ने कहा –  स्वामी !  मेरे पिता का आदेश बहुत ही कठोर है । वह अपने राज्य में एकादशी के दिन किसी को भी भोजन ग्रहण नहीं करने देते । हमारे राज्य में गाय , घोड़ा , हाथी , बिल्ली आदि जीव – जंतु घास और जल नहीं ग्रहण कर सकते , तो फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है । अगर आपको कल एकादशी को भोजन करना है , तो आप यहां से किसी दूसरे राज्य या फिर दूसरे स्थान पर चले जाना । तभी आपका भोजन ग्रहण करना संभव हो सकता है  । अन्यथा मेरे पिता के राज में ऐसा होना संभव नहीं है । शोभन ने कहा –  नहीं , मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा । यदि कल तुम भी व्रत करोगी , तो मैं भी तुम्हारे साथ व्रत करूंगा । जो होगा देखा जाएगा । अगले दिन शोभन ने एकादशी का व्रत रखा । वह भूख से सारा दिन बहुत ही व्याकुल रहा । जब सूर्य नारायण अस्त हो गए । रात्रि में जागरण का समय आया , तो सब भक्त जन खुशी-खुशी जागरण करने लगे और भगवान विष्णु के नाम का जप करने लगे । परंतु शोभन के लिए यह सब बहुत ही दुखदाई था । अगले दिन प्रातः काल में ही शोभन की मृत्यु हो गई । राजा ने शोभन का अंतिम संस्कार किया । उसकी पुत्री चंद्रभागा भी उसके साथ सती होना चाहती थी । किंतु उसके पिता ने उसे सती नहीं होने दिया । अपने पिता की आज्ञा मानकर वह सती नहीं हुई  ।और अपने पति की मृत्यु के बाद अपने पिता के घर में ही रहने लगी । शोभन ने रमा एकादशी का व्रत किया था । इसी कारण शोभन को मृत्यु के बाद  मंदराचल पर्वत पर एक बहुत ही वैभवशाली और धन-धान्य से संपूर्ण देवपुर की प्राप्ति हुई । वह नगर स्वर्ण के खंभों से बना हुआ था । उस नगर के भवन मणियों और रत्नों से जड़े हुए थे । उस नगर में स्वर्ग की तरह सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध थी । और शोभन उस रत्न जड़ित सिंहासन पर बैठा हुआ ऐसा लगता था जैसे कि दूसरा इंद्र ही विराजमान हो । समय बीतता गया । एक समय में मुचुकुंद राजा के नगर का ही सोम शर्मा नाम का ब्राह्मण तीर्थ यात्रा पर निकला । और घूमते – घूमते मंदराचल पर्वत पर उसी देवपुर नगर में गया । उसने वहां पर शोभन को देखकर पहचान लिया और सोचा कि यह तो मुचुकुंद राजा का दामाद है । शोभन ने भी उन ब्राह्मण को पहचान कर प्रणाम किया , और सबकी कुशल मंगल पूछी । ब्राह्मण ने राजा मुचुकुंद और चंद्रभागा  की कुशल मंगल बताई । परंतु ब्राह्मण ने शोभन से पूछा कि – राजन तुम्हें यह अदभुत दिव्य भवन जैसा नगर कैसे प्राप्त हुआ है ?  यह तो ऐसा लग रहा है जैसे मानो दूसरा स्वर्ग ही हो ।  तब शोभन ने कहा कि – मैंने रमा एकादशी का व्रत किया था । उसी के पुण्य से मुझे यह स्वर्ग के जैसा देवपुर प्राप्त हुआ है । परंतु यह नगर स्थिर नहीं है । यह अस्थिर है । तब ब्राह्मण ने पूछा – ऐसा क्यों ? तब शोभन ने कहा कि – मैंने रमा एकादशी का व्रत श्रद्धा भाव के बिना किया था । मुझे मजबूरी में वह व्रत रखना पड़ा । इसी वजह से मेरा यह नगर अस्थिर है । यदि आप राजा मुचुकुंद और मेरी पत्नी को यह बात बता दे , तो हो सकता है कि वे कुछ ऐसा उपाय करें कि मेरा यह नगर स्थिर हो जाए । तब ब्राह्मण ने वापस जा कर यह बात राजा मुचुकुंद और चंद्रभागा को बताई कि – चंद्रभागा आपके पति मंदराचल पर्वत पर एक देवतुल्य नगर में विराजमान है । चंद्रभागा को ब्राह्मण की बात पर विश्वास नहीं हुआ और वह बोली कि –  ब्राह्मण देव , कही आपने कोई स्वपन तो नहीं देखा ?  मेरे पति की तो मृत्यु हो चुकी है । तब ब्राह्मण देव बोले कि – नहीं  पुत्री , मैंने प्रत्यक्ष ही तुम्हारे पति को देखा है और उन्होंने ही मुझे यह सारा वृत्तांत तुम्हें सुनाने को कहा था । तब चंद्रभागा बोली कि –  हे ब्राह्मण देव , आप मुझे कृपया करके उस स्थान पर लेकर चलिए जहां मेरे पति हैं । मैं अपने पति से मिलना चाहती हूं । यदि आप मुझे मेरे पति के दर्शन करा दे तो मैं आपकी बहुत ही आभारी रहूंगी । तब ब्राह्मण देव चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत पर गए । मंदराचल पर्वत के पास ही वामदेव ऋषि का आश्रम था । तब चंद्रभागा और ब्राह्मण ने सारी बात वामदेव ऋषि को बताई । तो वामदेव ऋषि ने अपने मंत्र के उच्चारण से और एकादशी के व्रत के पुण्य के प्रभाव से चंद्रभागा का शरीर दिव्य कर दिया। और चंद्रभागा को दिव्य गति प्राप्त हुई । तब वह अपने पति से मिलने के लिए उस देवपुर नगर में पहुंची । अपनी पत्नी को आते देख कर शोभन बहुत ही खुश हुआ और उसने उसे अपने सिंहासन पर बाई तरफ बैठाया । तब चंद्रभागा ने कहा कि –  स्वामी ! आप मेरे एकादशी व्रत के पुण्य को ग्रहण कीजिए । क्योंकि मैं अपने पिता के घर में  8 वर्ष की आयु से ही एकादशी का व्रत करते आ रही हूं । मैं आपको अपने सारे पुण्य प्रदान करती हूं । जिससे आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और इसे कोई भी देव या दानव जीत नहीं सकेगा  । यह नगर प्रलय के अंत तक रहेगा । तब चंद्रभागा अपने पति के साथ उस नगर में आराम से सुखदायक जीवन व्यतीत करने लगी ।


तब श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि –हे धर्मराज युधिष्ठिर यह व्रत समस्त पापों का नाश कर देता है । इस एकादशी के व्रत करने से ब्रह्महत्या का पाप भी नष्ट हो जाता है । कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आने वाली दोनों एकादशी का फल एक समान होता है । इनमें कोई भी अंतर नहीं होता । जो भी भक्तजन इस महात्म्य को सुनते हैं वह अंत में समस्त पापों से छूट कर विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं । 

                    ।।।।।   जय श्री कृष्ण    ।।।।।

First death. Then he came alive and got a beautiful city from heaven. ekadashi fasting story


Ekadashi of Krishna Paksha of Kartik month is called Rama Ekadashi. By observing this Ekadashi, great sins are destroyed. Describing the importance of this Ekadashi, Lord Krishna told Dharmaraja Yudhishthira that –

Hey Rajan! In ancient times there was a king named Muchukunda. He was very pious and justice loving. Muchukunda Raja was a great devotee of Vishnu. Devraj Indra and all the other gods also respected him very much because of the king's righteous and justice-loving. The king had a daughter. Her name was Chandrabhaga. The king had married his daughter to Shobhan, the son of Chandrasen Raja. Shobhan was physically very weak. Once Shobhan was visiting his in-laws' house with his wife Chandrabhaga. At the same time, Rama Ekadashi of Krishna Paksha of Kartik month was also going to come. A few days before the Ekadashi fast, a lot of thought arose in Chandrabhaga's mind that how will my husband observe the Ekadashi fast? He is very weak in body. Because my father does not allow anyone to take food on Ekadashi. Muchukunda king made an announcement by playing drums in the whole city on the day of Dashami that no one would take any food on Ekadashi tomorrow. On hearing the announcement, Shobhan was worried about how he would go without food for a day. Shobhan told his wife that – You know, I cannot live without food even for a single time. Then how will I be without food tomorrow on Ekadashi? In this way my life will be gone. The wife said - Swami! My father's order is very strict. He does not allow anyone to take food on the day of Ekadashi in his kingdom. In our state, animals like cow, horse, elephant, cat etc. cannot take grass and water, so what is the matter of human beings. If you have to eat on Ekadashi tomorrow, then you have to move from here to another state or to another place. Only then can it be possible to take your food. Otherwise it would not have been possible under my father's rule. Shobhan said – No, I will not go anywhere except you. If tomorrow you will also fast, then I will also fast with you. will be seen what happens . The next day Shobhan observed Ekadashi fast. He was very disturbed the whole day with hunger. When Surya Narayana set. When the time of awakening came in the night, then all the devotees started awakening happily and started chanting the name of Lord Vishnu. But it was all very sad for Shobhan. Shobhan died the next day early in the morning. The king performed the last rites of Shobhan. His daughter Chandrabhaga also wanted to do sati with him. But her father did not allow her to commit sati. By following her father's orders, she did not commit sati. And after the death of her husband, she started living in her father's house. Shobhan observed Rama Ekadashi fast. For this reason Shobhan got a very splendid and full of wealth Devpur after his death on the Mandarachal mountain. The city was built with pillars of gold. The buildings of that city were studded with gems and gems. All the amenities were available in that city like heaven. And Shobhan, sitting on that gem-studded throne, looked as if another Indra was sitting there. Time passed by . Once upon a time a Brahmin named Som Sharma from the town of Muchukund Raja went on a pilgrimage. And roaming around, he went to the same Devpur city on the Mandarachal mountain. He recognized Shobhan there and thought that it was Muchukunda Raja's son-in-law. Shobhan also recognized those Brahmins and bowed down, and asked everyone's well-being. The Brahmin told the well-being of King Muchukunda and Chandrabhaga. But the brahmin asked Shobhan that - Rajan, how have you got this wonderful divine building-like city? It is as if there is another heaven. Then Shobhan said that – I had fasted on Rama Ekadashi. By virtue of that I have got this heaven-like Devpur. But this city is not stable. It is unstable. Then the brahmin asked - why so? Then Shobhan said that – I had fasted Rama Ekadashi without devotion. I had to keep that fast under compulsion. For this reason this city of mine is unstable. If you tell this to King Muchukunda and my wife, they may take some measures to make this city of mine stable. Then the Brahmin went back and told this to King Muchukunda and Chandrabhaga that – Chandrabhaga, your husband, is sitting in a godlike city on the Mandarachal mountain. Chandrabhaga did not believe the words of the Brahmin and she said that - Brahmin God, have you not seen any dream? My husband has already died. Then the Brahmin Dev said - No daughter, I have seen your husband directly and he had asked me to narrate the whole story to you. Then Chandrabhaga said - O Brahmin god, please take me to the place where my husband is. I want to meet my husband. I will be very grateful to you if you can take me to see my husband. Then the Brahmin god took Chandrabhaga to the Mandarachal mountain. Vamdev Rishi had an ashram near Mandarachal mountain. Then Chandrabhaga and the Brahmin told the whole thing to Vamdev Rishi. So Vamdev sage made Chandrabhaga's body divine by the recitation of his mantra and by virtue of the virtue of fasting on Ekadashi. And Chandrabhaga got divine speed. Then she reached that Devpur city to meet her husband. your wife Seeing Ni coming, Shobhan was very happy and he made her sit on his throne on the left side. Then Chandrabhaga said - Swami! You accept the virtue of my Ekadashi fast. Because I have been observing Ekadashi fast since the age of 8 in my father's house. I give you all my virtues. Due to which this city of yours will be stable and no god or demon will be able to conquer it. This city will remain till the end of the Holocaust. Then Chandrabhaga along with her husband started living a comfortable life in that city.


Then Shri Krishna told Dharmaraja Yudhishthira that – O Dharmaraja Yudhishthira, this fast destroys all sins. By observing this Ekadashi fast, the sin of killing Brahma is also destroyed. The results of both Ekadashi falling in Krishna Paksha and Shukla Paksha are same. There is no difference between them. All the devotees who listen to this greatness, in the end, freed from all sins, they reach the world of Vishnu.

                    , Long live Shri Krishna    .....

क्या होता अगर भीष्म पितामह को गंगा मे बहा देते ? भीष्म पितामह और गंगा की कहानी . What if Bhishma had thrown Pitamah into the Ganges? Story of Bhishma Pitamah and Ganga














 

बात उस समय की है जब हस्तिनापुर के राजा शांतनु हुआ करते थे । राजा शांतनु एक दिन शिकार खेलने वन में गए और शिकार खेलते – खेलते गंगा नदी के तट पर आ पहुंचे । गंगा नदी के तट पर उन्होंने एक बहुत ही सुंदर स्त्री को देखा । जिस पर वे मोहित हो गए और उन्होंने उस स्त्री से उसका परिचय पूछा  ?  स्त्री ने कहा कि – मेरा नाम गंगा है , मैं देव नदी गंगा हूं । अब तो राजा शांतनु प्रतिदिन गंगा नदी के तट पर आकर देवी गंगा से मिलने लगे । और एक दिन उन्होंने देवी गंगा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा । देवी गंगा ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया ,परंतु  उनसे एक वचन मांगा कि विवाह के पश्चात्  राजा, देवी गंगा के द्वारा किए गए कार्य में कभी भी कोई प्रश्न नहीं करेंगे । यदि राजा अपने इस वचन को तोड़ेंगे , तो देवी गंगा उनका साथ उसी समय छोड़ देगी । राजा शांतनु ने देवी गंगा को यह वचन दे दिया कि वे उनसे कभी भी कोई भी प्रश्न नहीं करेंगे । देवी गंगा और राजा शांतनु का विवाह हो गया । विवाह के पश्चात दोनों का समय सुख पूर्वक बीता और कुछ समय पश्चात देवी गंगा गर्भवती हो गई । राजा शांतनु बहुत ही खुश थे और उन्हें अपने आने वाले युवराज की बेसब्री से प्रतीक्षा थी। समय आने पर देवी गंगा ने एक पुत्र को जन्म दिया  । परंतु जन्म के बाद ही वे उस पुत्र को नदी के तट पर ले गई और ले जाकर उसे नदी में बहा दिया ।  राजा शांतनु देवी गंगा के पीछे पीछे आए और यह सब देखते रहे , लेकिन उन्होंने देवी गंगा से कोई भी प्रश्न नहीं किया क्योंकि उन्होंने देवी गंगा को वचन दिया था । उन्हें डर था कि कहीं उनके प्रश्न पूछने पर देवी गंगा उन्हें छोड़कर ना चली जाए ।  समय के साथ साथ देवी गंगा ने अपने दूसरे पुत्र को जन्म दिया और इस पुत्र को भी उन्होंने अपनी धारा में बहा दिया । इस प्रकार देवी गंगा ने अपने सात पुत्रों को अपने जल में बहा दिया और राजा शांतनु यह सब देखते रहते थें। परंतु अपने दिए हुए वचन के कारण वे देवी गंगा से कुछ भी प्रश्न नहीं पूछ पाते थे क्योंकि उन्हें डर रहता था कि कहीं देवी गंगा उन्हें छोड़ कर ना चली जाए । राजा शांतनु बहुत ही निराश हो चुके थे । अपने ही सामने अपने सातों पुत्रों की हत्या का दर्द उन्हें असहनीय पीड़ा दे रहा था । और समय के साथ-साथ देवी गंगा ने आठवें पुत्र को जन्म दिया । आठवे पुत्र को भी लेकर देवी गंगा नदी के तट पर गई और जैसे ही वे उस पुत्र को बहाने लगी तभी राजा शांतनु से रहा नही गया और उन्होने देवी गंगा से अपना पुत्र छीन लिया और उन से क्रोधित होकर पूछा कि वे ऐसा क्यों कर रही है ? तब देवी गंगा बोली कि – मैं एक देवनदी हूं और जिन सातों पुत्रों को मैंने नदी में अपने जल में प्रवाहित किया है वे सब श्रापित वसु थें । राजा शांतनु को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने देवी गंगा से इस सारे रहस्य को बताने को कहा । तब देवी गंगा ने बताया कि – एक बार द्यों आदि आठ वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय को चुरा लिया था । जिसके कारण ऋषि वशिष्ठ ने इन आठों वसुओं को श्राप दे दिया कि ये सब मृत्यु लोक में मनुष्य योनि में जन्म लेंगे और इन सबको उस जन्म में घोर कष्ट उठाना पड़ेगा । तब वसुओ की पुकार सुनकर मैंने उनसे कहा कि मैं उन आठों वसुओं को अपने गर्भ में धारण करूंगी और उन्हें अपने जल में प्रवाहित करके तुरंत मोक्ष दे दूंगी । अपने सात पुत्रों को तो मैंने मोक्ष दे दिया और उन्हें इस जन्म में होने वाले घोर कष्ट से बचा लिया । परंतु यह आठवां द्यो नाम का वसु था जिसे मैं मोक्ष प्रदान करने वाली थी। अगर आप मुझे ना रोकते तो हमारा अगला पुत्र इस संसार के लिए वरदान होता । और इस आठवे वसु को भी मुक्ति मिल जाती । परन्तु  इसे अब पृथ्वी पर रहकर घोर कष्ट उठाने पड़ेंगे । आपने अपने वचन को तोड़ा है , इसलिए अब मैं आपके पास नहीं रहूंगी । मां के अभाव में एक शिशु का अच्छी तरह से पालन पोषण नहीं हो सकता । इसलिए मैं अपने पुत्र को अपने साथ लेकर जा रही हूं और इसे आपके परिवार के योग्य बना कर इसे कुछ वर्षों पश्चात आपको लौटा दूंगी । ऐसा कहकर देवी गंगा वहां से अपने पुत्र को लेकर अपने लोक चली गई ।  देवी गंगा ने अपने पुत्र को  सारी विद्याओं में निपुण कर दिया और उसे युद्ध कौशल भी सिखाया । देवी गंगा के आठवें पुत्र का नाम देवव्रत था । उस तरफ राजा शांतनु हस्तिनापुर में बहुत ही निराश हो चुके थे । वे हमेशा देवी गंगा और अपने पुत्र  के बारे में ही सोचा करते थे । वे प्रतिदिन गंगा नदी के तट पर जाया करते थे । उन्हें बस इस एक बात की ही आशा थी कि कब देवी गंगा उन्हें उनका पुत्र लौटाएंगी । जब देवव्रत किशोर अवस्था मे आ गए। उन्हे धर्म, अधर्म, नीति, शास्त्र सबका ज्ञान हो चुका था । तब देवी गंगा ने उचित समय समझा । और  अपने पुत्र देवव्रत को लेकर राजा शांतनु के पास आई  और उन्हें उनका पुत्र लौटा दिया । बाद में, इन्हीं देवव्रत ने अपने पिता का दूसरा विवाह सत्यवती से करने के लिए और सत्यवती की संतान को ही हस्तिनापुर का राज्य देने के लिए भीष्म प्रतिज्ञा की थी कि – वे आजीवन विवाह नही करेंगे  और सदा ब्रह्मचारी व्रत का पालन करेंगे । इसी कठोर प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा ।  और आगे चलकर वे कौरव और पांडवों के भीष्म पितामह कहलाए ।


What if Bhishma had thrown Pitamah into the Ganges? Story of Bhishma Pitamah and Ganga


It is about the time when the king of Hastinapur used to be Shantanu. One day King Shantanu went to the forest to play hunting and came to the banks of the river Ganges while playing hunting. On the bank of river Ganges he saw a very beautiful woman. On which he was fascinated and asked the woman her introduction? The woman said that - My name is Ganga, I am God river Ganga. Now King Shantanu came every day on the banks of river Ganges to meet Goddess Ganga. And one day he proposed marriage to Goddess Ganga. Goddess Ganga accepted his proposal, but asked him for an undertaking that after marriage, the king would never question the work done by Goddess Ganga. If the king breaks this promise, then Goddess Ganga will leave his side at the same time. King Shantanu gave a promise to Goddess Ganga that he would never ask any question to her. Goddess Ganga and King Shantanu got married. After marriage, the time of both of them passed happily and after some time Goddess Ganga became pregnant. King Shantanu was very happy and he was eagerly waiting for his coming crown prince. When the time came, Goddess Ganga gave birth to a son. But only after birth, she took that son to the bank of the river and carried him away and threw him in the river. King Shantanu followed Devi Ganga and kept watching all this, but he did not ask any question to Goddess Ganga because he had made a promise to Goddess Ganga. He was afraid that on asking his questions, Goddess Ganga might leave him. In course of time, Goddess Ganga gave birth to her second son and she also shed this son in her stream. Thus Goddess Ganga drowned her seven sons in her water and King Shantanu used to watch all this. But due to his promise, he could not ask any question to Goddess Ganga because he was afraid that Goddess Ganga might leave him. King Shantanu was very disappointed. The pain of killing his seven sons in front of himself was giving him unbearable pain. And with the passage of time, Goddess Ganga gave birth to an eighth son. The goddess went to the banks of the river Ganges with the eighth son also and as soon as she started shedding that son, the king could not stay with Shantanu and he snatched his son from the goddess Ganga and asked her why she was doing this. ? Then Goddess Ganga said that - I am a Devnadi and all the seven sons whom I have flown in my water in the river were all cursed Vasus. King Shantanu was very surprised and asked Goddess Ganga to tell all this secret. Then Goddess Ganga told that – Once the eight Vasus had stolen the cow of sage Vashistha. Due to which sage Vashishtha cursed these eight Vasus that all these people will be born in the world of death in human vagina and all of them will have to suffer a lot in that birth. Then hearing the call of the Vasus, I told them that I would conceive those eight Vasus in my womb and would give them salvation immediately by flowing them in my water. I have given salvation to my seven sons and saved them from the great suffering in this birth. But it was the eighth Vasu named Dyo whom I was going to give salvation. If you had not stopped me, our next son would have been a boon to this world. And this eighth Vasu would also get liberation. But now he will have to suffer a lot while staying on earth. You have broken your promise, so I will no longer be with you. In the absence of a mother, an infant cannot be brought up well. That's why I am taking my son with me and after making it fit for your family, I will return it to you after a few years. Saying this, Goddess Ganga went to her world with her son from there. Goddess Ganga made her son proficient in all the disciplines and also taught him fighting skills. The name of the eighth son of Goddess Ganga was Devavrata. On that side, King Shantanu had become very disappointed in Hastinapur. He always thought only of Goddess Ganga and his son. He used to go to the banks of the Ganges river every day. He had only hope of this one thing that when Goddess Ganga would return his son to him. When Devavrat reached adolescence. He had got the knowledge of all religion, adharma, policy, scriptures. Then Goddess Ganga understood the right time. And the king came to Shantanu with her son Devavrat and returned his son to him. Later, this same Devavrat had made a Bhishma vow to give his father's second marriage to Satyavati and to give the kingdom of Hastinapur to Satyavati's children only – that they would not marry for life and would always observe the Brahmachari Vrat. Due to this strict vow, he got the name Bhishma. And later on he was called Bhishma Pitamah of Kauravas and Pandavas. 

दो रानियों से आधे आधे हिस्से मे पैदा हुआ बच्चा कौन था ? Who was the child born in half by two burglaries ?














एक समय की बात है मगध देश में बृहद्रथ नाम का एक राजा रहता था । उसकी दो रानियां थी । लेकिन दोनों रानियों को कोई भी संतान नहीं थी । राजा ब्राह्मणों की बहुत ही सेवा किया करते थे । संतान प्राप्ति के उद्देश्य हेतु राजा महात्मा चण्डकौशिक के पास गए । महात्मा चण्डकौशिक ने राजा को अभिमंत्रित करके एक फल दिया और कहा कि ये फल रानी को खिला देना । राजा ने सोचा कि दोनों ही रानियों को संतान हो जाएगी  ।इसीलिए यह फल दोनों को आधा-आधा दे देता हूं । राजा ने वो फल दोनो रानियों को आधा – आधा काट कर दे दिया । जिससे दोनों रानियां गर्भवती हो गई । जब पहली रानी ने बच्चे को जन्म दिया तो उस बच्चे का शरीर का  आधा हिस्सा ही था और दूसरा आधा हिस्सा दूसरी रानी के गर्भ से पैदा हुआ । ऐसा लग रहा था जैसे बच्चे को किसी ने बीच में से आधा– आधा काट दिया हो । जब ये बच्चे राजा को दिखाए गए तो राजा ने उन्हें जंगल में फिकवा देने का आदेश दिया । राजा के सिपाही बच्चे के दोनों हिस्से को जंगल में छोड़ आए । उसी समय जंगल से एक जरा नाम की राक्षसी जा रही थी । जब उसकी नजर उस जीवित बच्चे के शरीर के टुकड़ों पर पड़ी तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि एक ही बच्चे के दो हिस्से किसने किए हैं । उसने अपनी तांत्रिक शक्ति से उस बच्चे के शरीर के दोनों हिस्सों को जोड़ दिया । शरीर के जुड़ते ही बच्चा जोर जोर से रोने लगा  । उस बच्चे को राक्षसी वहां के राजा बृहद्रथ के पास ले गई । राजा ने बच्चे को देखकर राक्षसी से पूछा कि यह किसका बच्चा है और तुम कौन हो ? तब राक्षसी ने सारी घटना बताई कि किस तरह उसे यह बच्चा जंगल में पड़ा हुआ मिला और उसने इसे अपनी तांत्रिक शक्ति से जोड़ दिया । राजा बच्चे को देखकर बहुत ही खुश हुआ और बोला कि यह मेरा ही बच्चा है । राजा ने उस बच्चे का नाम उस जरा राक्षसी के नाम पर ही जरासंध रखा । क्योंकि जरा नाम की राक्षसी के द्वारा ही उसके शरीर की संधि हुई थी , यानी शरीर को आपस में जोड़ा गया था । 

जरासंध बहुत ही क्रूर राजा था । उसने अपने पराक्रम से 86 राजाओं को बंदी बना लिया था । उसने सभी राजाओं को पहाड़ी किले में बंद कर रखा था । वह 100 राजाओं की एक साथ बलि देकर चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहता था ।

जरासंध मथुरा के राजा कंस का ससुर और उसका परम मित्र भी था । जरासंध ने अपनी दोनों पुत्रियों  का विवाह मथुरा के राजा कंस के साथ  किया था । जब श्री कृष्ण ने कंस का वध कर दिया था । तो श्री कृष्ण से कंस के वध का बदला लेने के लिए जरासंध ने मथुरा पर 17 बार चढ़ाई की और युद्ध किया । लेकिन वह हर बार युद्ध में पराजित हुआ । श्री कृष्ण ने जरासंध का वध भीम के हाथों होना तय किया था । इसीलिए श्री कृष्ण , अर्जुन और भीम ब्राह्मण का वेश बनाकर जरासंध के राज्य में गए और उसे कुश्ती के लिए ललकारा । जरासंध समझ गया था कि ये ब्राह्मण नहीं है । जब उसने श्रीकृष्ण से उनका वास्तविक परिचय मांगा तो श्री कृष्ण ने उन्हें अपना वास्तविक परिचय दे दिया । जरासंध भीम से कुश्ती लड़ने को तैयार हो गया । भीम ने जरासंध के साथ 13 दिन तक कुश्ती लड़ी । भीम हर बार उसके शरीर के दो टुकड़े करता , लेकिन वे टुकड़े फिर आपस में जुड़ जाते ।  बाद में श्री कृष्ण का इशारा समझ कर भीम ने उसके शरीर के फिर से दो टुकड़े किए और और दोनों हिस्सों को विपरीत दिशा में फेंक दिया , जिससे कि वे हिस्से आपस में ना जुड़ पाए। तो इस प्रकार जरासंध की मृत्यु हुई थी 


Who was the child born in half of two queens?


Once upon a time there lived a king named Brihadratha in the country of Magadha. He had two queens. But both the queens did not have any children. The king used to do a lot of service to the brahmins. For the purpose of getting children, the king went to Mahatma Chandkaushik. Mahatma Chandkaushik invited the king and gave a fruit and said that this fruit should be fed to the queen. The king thought that both the queens would have children. That's why I give half-and-half to both of them. The king cut that fruit in half to both the queens. Due to which both the queens became pregnant. When the first queen gave birth to a child, that child had only half of the body and the other half was born from the womb of the second queen. It seemed as if someone had cut the child in half from the middle. When these children were shown to the king, the king ordered them to be thrown in the forest. The king's soldiers left both parts of the child in the forest. At the same time a demon named Zara was going from the forest. When his eyes fell on the pieces of the body of that living child, he was very surprised that who had made two parts of the same child. He connected the two parts of the child's body with his tantric power. As soon as the body was attached, the child started crying loudly. The demonic child took that child to the king Brihadratha there. Seeing the child, the king asked the demonic, whose child is this and who are you? Then the demonic told the whole incident that how she found this child lying in the forest and connected it with her tantric power. The king was very happy to see the child and said that this is my child. The king named that child Jarasandha after that little demonic. Because his body was treated by a demon named Jara, that is, the body was intertwined.

Jarasandha was a very cruel king. He had taken 86 kings captive by his might. He had kept all the kings locked in the hill fort. He wanted to become the Chakravarti emperor by sacrificing 100 kings at once.

Jarasandha was the father-in-law of Mathura's king Kansa and also his best friend. Jarasandha had married both his daughters with Kansa, the king of Mathura. When Shri Krishna killed Kansa. So to avenge the killing of Kansa from Shri Krishna, Jarasandha attacked Mathura 17 times and fought. But he was defeated in battle every time. Shri Krishna had decided to kill Jarasandha at the hands of Bhima. That is why Shri Krishna, Arjuna and Bhima disguised as Brahmins went to the kingdom of Jarasandha and challenged him to wrestle. Jarasandha understood that he was not a Brahmin. When he asked for his real introduction from Shri Krishna, Shri Krishna gave him his real introduction. Jarasandha agreed to fight with Bhima. Bhima wrestled with Jarasandha for 13 days. Bhima would break his body into two pieces every time, but those pieces would then join together. Later, understanding Shri Krishna's gesture, Bhima again divided his body into two pieces and threw both the parts in the opposite direction, so that those parts could not join together. So this is how Jarasandha died

अहोई माता की व्रत कथा। अहोई अष्टमी। कार्तिक मास | Ahoi Mata's Vrat Story. Ahoi Ashtami. Kartik month














 


कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई माता का व्रत व पूजन किया जाता है । इस दिन महिलाएं  संतान की सुख समृद्धि के लिए और उनकी लंबी आयु के लिए व्रत रखती है । रात के समय तारों की छांव में अहोई माता की कहानी सुनती हैं और तारे को जल देकर अपना व्रत संपूर्ण करती हैं । उसके पश्चात ही भोजन करती हैं ।


अहोई माता व्रत कथा

एक साहूकार के सात लड़के , सात बहुएं और एक बेटी थी । एक दिन साहूकार की सातों बहुएं और बेटी घर को लीपने के लिए खेत में मिट्टी लेने के लिए गई । जब वे खेत में से मिट्टी खोद रही थी , तो साहूकार की बेटी के हाथों खुरपी से मिट्टी निकालते समय स्याऊ माता के बच्चों की मौत हो गई । इससे स्याऊ माता नाराज हो गई और क्रोधित होकर बोली –  जिस तरह तूने मेरे बच्चों को मार कर मुझे निसंतान किया है , उसी प्रकार जा तू भी निसंतान रहेगी । मैं तेरी आज से कोख बांध देती हूं । साहूकार की बेटी डर गई और अपनी भाभियों से बोली कि – भाभी आप में से कोई एक मेरी जगह अपनी कोख बंधवा ले । लेकिन सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से मना कर दिया । साहूकार की सबसे छोटी बहू ने कोख बंधवाने के लिए हां कह दी क्योंकि उसे डर था कि कहीं सास और ससुर गुस्सा ना हो जाए। इसलिए उसने अपनी ननंद की जगह अपनी कोख बंधवा ली ।  वें सब घर आ गई । उसके बाद साहूकार की छोटी बहू के जब भी कोई संतान होती , तो वह सातवें दिन ही मर जाती । जब भी हर साल अहोई अष्टमी का त्यौहार आता , तो साहूकार की सारी बड़ी बहूए अपने घर में व्रत और पूजा करती और अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए अहोई माता से प्रार्थना करती । परन्तु छोटी बहू अपने घर में बैठ कर रोया करती थी । जब हर साल ऐसा ही होता रहा कि छोटी बहू के जो भी संतान होती वह मर जाती , तो उसने एक पंडित जी को बुलाकर इसका उपाय पूछा – तब पंडित जी ने कहा कि तुम्हारी कोख बंधी हुई है , इसलिए तुम्हें संतान का सुख नहीं मिल रहा है । तुम्हें सुरही गाय की सेवा करनी होगी,  क्योंकि सुरही गाय अहोई माता की सहेली है । हो सकता है कि अपनी सहेली की बात मानकर अहोई माता तुम्हारी कोख खोल दें । पंडित जी की बात सुनते ही छोटी बहू ने अगले दिन से ही सुरही माता की सेवा करनी शुरू कर दी । साहूकार की छोटी बहू हर रोज सुरही माता का गोबर उठा देती , वहां पर साफ सफाई करती , पीने के लिए पानी भर कर रखती । सुरही माता सोचती कि यह कौन है ? जो रोज सुबह-सुबह मेरे यहां पर साफ सफाई करके जाता है । अगले दिन जब छोटी बहू सुरही माता के यहां पर साफ सफाई करने आई तो सुरही माता ने उसे देखा और पूछा कि तुम कौन हो और तुम्हे क्या चाहिए ?  जो तू मेरी इतनी सेवा कर रही है । तब साहूकार की छोटी बहू बोली कि स्याउ माता ने मेरी कोख बांध रखी है । जिसके कारण मेरे बच्चे होने के बाद सात दिन में ही मर जाते हैं । आप उनसे मेरी कोख को खुलवा दीजिए। सुरही गाय ने साहूकार की छोटी बहू की बात मान ली और कहा कि – स्याऊ माता सात समुंदर पार रहती है । चलो , तुम मेरे साथ चलो । साहूकार की छोटी बहू और सुरही गाय  दोनों चल दिए । चलते चलते वे दोनों थक गए और रास्ते में एक पेड़ के नीचे बैठकर विश्राम करने लगे । जिस पेड़ के नीचे वें दोनों बैठे थे उस पर एक गरुड़ पंखनी का एक घोसला था । उसमें उसके बच्चे बैठे थे और गरुड़ पंखनी वहां पर नहीं थी । तभी छोटी बहू ने देखा कि एक सांप पेड़ पर चढ़ रहा है और उन बच्चों को खाने की कोशिश कर रहा है । साहूकार की छोटी बहू ने सांप को मार दिया । जब गरुड़ पंखनी वहां पर आई तो उसने देखा कि वहां पर खून पड़ा हुआ है , उसे लगा कि इस औरत ने मेरे बच्चों को मार दिया है । तब गरुड़ पंखनी छोटी बहू को अपनी चोंच मारने लगी । तब छोटी बहू बोली कि – एक तो मैंने तुम्हारे बच्चों को सांप से बचाया है और तू मुझे ही मार रही है । गरुड़ पंखनी ने छोटी बहू की यह बात सुनकर जब अपने बच्चों की ओर देखा तो वह उन्हें देखकर खुश हो गई । और बोली बता तुझे क्या चाहिए , जो तू मांगेगी मैं वही तुझे दूंगी । साहूकार की बहू बोली कि हमें सात समंदर पार  स्याऊ माता से मिलने जाना है । क्या तू हमें वहां पर ले जा सकती है ?  तब गरुड़ पंखनी ने साहूकार की छोटी बहू और सुरही गाय माता को अपने पंखों पर बैठा लिया और सात समुंदर पार ले गई । स्याऊ माता अपनी सहेली सुरही गाय को देखकर बहुत खुश हुई और उनकी आवभगत की । स्याऊ माता बोली कि मेरे सिर में बहुत जू हो गई है । क्या तुम मेरी जू निकाल सकती हो । सुरही गाय ने कहा कि हां , यह जो मेरे साथ आई है , यह तुम्हारे सिर की जुएं निकाल देगी । तब छोटी बहू ने स्याऊ माता के सिर की सारी जुएं निकाल दी । इस पर स्याऊ माता ने खुश होकर छोटी बहू को आशीर्वाद दिया कि जा तेरे सात बेटे और सात बहू हो । तब साहूकार की छोटी बहू बोली कि मेरे तो एक भी बेटा नहीं है ।  माता बोली – क्यों ऐसा क्यों है , कि तुम्हारे एक भी बेटा नहीं है ?  तब साहूकार की छोटी बहू ने स्याऊ माता से वचन लिया कि अगर आप मुझे वचन दे तभी मैं आपको इसका कारण बताऊंगी । स्याऊ माता ने कहा ठीक है मैं तुम्हें वचन देती हूं । साहूकार की छोटी बहू ने स्याऊ माता से वचन ले लिया ।  तब कहा कि माता , मेरे संतान कहां से होगी ? मेरी कोख तो आपके पास बंधी पड़ी है । मैं वही साहूकार की छोटी बहू हूं , जिसकी कोख आपने बांधी थी । तब स्याऊ माता बोली कि तूने तो हमें ठग लिया । परंतु जब मैंने तुम्हें आशीर्वाद दे ही दिया है कि तुम्हारे सात बेटे और सात बहू होंगी , तो ठीक है जाओ तुम्हें घर में तुम्हारे सात बेटे और सात बहू मिलेंगी । इस बार अहोई के व्रत पर सात अहोई बनाना और सात कढ़ाई करना । जब साहूकार की छोटी बहू घर गई तो उसे अपने घर में सात बेटे और सात बहू बैठी मिली । तब उसने अहोई माता का बहुत-बहुत धन्यवाद किया । जब अहोई अष्टमी का व्रत आया तो उसकी जेठानिया कह रही थी कि जल्दी-जल्दी पूरी पकवान बना लो , वरना छोटी बहू रोना शुरू हो जाएगी । लेकिन जब उन्होंने छोटी बहू के कुछ भी रोने की आवाज नहीं सुनी । तो उन्होंने अपने बच्चों को भेजा और कहा देख कर आओ कि तुम्हारी चाची के घर से रोने की आवाज क्यों नहीं आ रही है ? बच्चों ने जब वहां जाकर देखा और वापिस घर आकर बताया कि चाची तो खीर , पूरी  पकवान बना रही है और उनके साथ उनके सात बेटे और सात बहू भी  हैं  । तब सारी जेठानिया छोटी बहू के घर गई और पूछा कि – तूने अपनी कोख कैसे खुलवाई ?  तब छोटी बहू बोली कि स्याऊ माता ने मुझ पर दया करके मेरी कोख खोल दी है । सब स्याऊ माता की जय बोलने लगे ।


हे स्याऊ माता हम सब हाथ जोड़कर यही विनती करते हैं कि हमारे बच्चों की लंबी आयु करना और उन्हें सुख समृद्धि देना ।

बोलो स्याऊ माता की जय ।।।।


Ahoi Mata's Vrat Story. Ahoi Ashtami. Kartik month


Ahoi Mata is fasted and worshiped on the Ashtami of Krishna Paksha of Kartik month. On this day women keep a fast for the happiness and prosperity of their children and for their long life. At night, in the shade of the stars, Ahoi listens to the story of Mata and ends her fast by giving water to the star. After that she eats.


Ahoi Mata Vrat Katha

A moneylender had seven boys, seven daughters-in-law and one daughter. One day the seven daughters-in-law and daughter of the moneylender went to get soil in the field to cover the house. When she was digging the soil from the field, the children of Sayu Mata died while removing the soil from the shovel at the hands of the moneylender's daughter. Due to this, Sayu Mata got angry and said in anger - Just as you have made me childless by killing my children, in the same way you will also be childless. I tie your womb from today. The moneylender's daughter got scared and said to her sisters-in-law that - sister-in-law, one of you should get your womb tied in my place. But all the sisters-in-law refused to get their womb tied. The youngest daughter-in-law of the moneylender said yes to get the womb tied because she was afraid that the mother-in-law and father-in-law might get angry. So he got his womb tied in place of his sister-in-law. They all came home. After that, whenever the little daughter-in-law of the moneylender had a child, she would die on the seventh day itself. Whenever the festival of Ahoi Ashtami came every year, all the elder daughter-in-law of the moneylender would observe fast and worship in their house and pray to Ahoi Mata for the long life of their children. But the younger daughter-in-law used to cry sitting in her house. When it happened every year that whatever child the younger daughter-in-law would have had would die, she called a pandit ji and asked for its solution - then the pandit ji said that your womb is tied, so you are not getting the happiness of children. Is . You have to serve the surahi cow, because the surahi cow is Ahoi Mata's friend. It is possible that Ahoi Mata will open your womb after listening to her friend. On listening to Pandit ji, the younger daughter-in-law started serving Surhi Mata from the very next day itself. The little daughter-in-law of the moneylender would pick up the cow dung of Surhi Mata every day, clean there, keep water for drinking. Surhi Mata wonders who is this? Who goes to my place every morning after cleaning. The next day when the younger daughter-in-law came to Surhi Mata's place to clean, Surhi Mata saw her and asked who are you and what do you want? You are serving me so much. Then the little daughter-in-law of the moneylender said that my mother has tied my womb. Due to which I die within seven days after having children. You let them open my womb. The surahi cow agreed to the moneylender's younger daughter-in-law and said that - Sayu Mata lives across seven seas. Come on, you go with me. The moneylender's younger daughter-in-law and the surhi cow both left. While walking, both of them got tired and started taking rest under a tree on the way. On the tree under which both of them were sitting, there was a nest of an eagle feather. His children were sitting in it and Garuda's wings were not there. Then the younger daughter-in-law saw that a snake was climbing on the tree and was trying to eat those children. The moneylender's younger daughter-in-law killed the snake. When Garuda Pankhni came there, he saw that there was blood lying there, he thought that this woman had killed my children. Then Garuda's feather started beaking the younger daughter-in-law. Then the younger daughter-in-law said that - I have saved your children from snakes and you are killing me. Hearing this from the younger daughter-in-law, Garuda Pankhni looked at her children, she was happy to see them. And tell me what you want, I will give you what you ask for. The moneylender's daughter-in-law said that we have to go across the seven seas to meet Sayu Mata. Can you take us over there? Then Garuda Pankhni took the moneylender's younger daughter-in-law and Surhi cow mother on his wings and carried them across the seven seas. Sayau Mata was very happy to see her friend Surhi cow and welcomed her. Sayu Mata said that I have got a lot of lice in my head. Can you take out my yoke? The surahi cow said that yes, this one who has come with me, it will remove the lice from your head. Then the younger daughter-in-law removed all the yoke from Sayu Mata's head. On this, Sayu Mata was happy and blessed the younger daughter-in-law that you should have seven sons and seven daughters-in-law. Then the little daughter-in-law of the moneylender said that I do not have a son. Mother said - why is it so, that you do not have a single son? Then the little daughter-in-law of the moneylender took a promise from Sayu Mata that if you give me a promise, then I will tell you the reason for this. Sayu Mata said okay, I promise you. The moneylender's younger daughter-in-law took the promise from Sayu Mata. Then said that mother, where will my children come from? My womb is tied to you. I am the younger daughter-in-law of the moneylender whose womb you tied. Then Sayu Mata said that you have cheated us. But when I have already blessed you that you will have seven sons and seven daughters-in-law, then you will get seven sons and seven daughters-in-law in your house. This time on the fast of Ahoi, making seven Ahoi and doing seven embroidery. When the little daughter-in-law of the moneylender went home, she found seven sons and seven daughters-in-law sitting in her house. Then he thanked Ahoi Mata very much. When Ahoi Ashtami's fast came, her Jethania was saying that make the whole dish very quickly, otherwise the younger daughter-in-law will start crying. But when he asked the younger daughter-in-law Didn't hear any crying. So they sent their children and said come and see why the sound of crying is not coming from your aunt's house? When the children went there and saw and came back home and told that the aunt is preparing the kheer, the whole dish and she has seven sons and seven daughters-in-law with her. Then all Jethania went to the younger daughter-in-law's house and asked - how did you get your womb open? Then the younger daughter-in-law said that Sayu Mata has taken pity on me and has opened my womb. Everyone started chanting Sayu Mata ki Jai.


O dear mother, we all pray with folded hands that our children should live long and give them happiness and prosperity.

Say Sayu Mata ki Jai.

कार्तिक मास मे सुने जाने वाली तुलसी जी की कथा | The story of Tulsi ji heard in the month of Kartik









  


हमारे धर्म ग्रंथों में कार्तिक महीने का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है । विष्णु भगवान कहते हैं कि मुझे महीनों में कार्तिक माह और वृक्षों में तुलसी जी सबसे अधिक प्रिय हैं । कार्तिक के महीने में स्नान , दान पुण्य आदि के करने का करोड़ों गुना फल मिलता है । कार्तिक मास में तुलसी जी की पूजा करने का विशेष महत्व है । जो लोग कार्तिक मास में माता तुलसी की पूजा करते हैं , उनके सामने घी का दीपक जलाते हैं उनके घर में धन-धान्य और सौभाग्य की वृद्धि होती है । क्योंकि तुलसी माता में स्वयं मां लक्ष्मी का वास माना जाता है । कार्तिक महीने में सुनी जाने वाली तुलसी माता की कहानी इस प्रकार है ।

 एक गांव में कुछ औरतें आपस में मिलकर कार्तिक मास में तुलसी जी की पूजा किया करती थी और तुलसी जी को सींचा करती थी ।  उनमें एक बुढ़िया ऐसी भी थी जो तुलसी माता को सींच कर कहती थी कि

हे तुलसी माता – सत की दाता , मैं तेरा बिड़ला सींचती हूं , मुझे बहू दे  , पीतांबर की धोती दे , मीठा-मीठा गास दे , वैकुंठा में वास दे , चटक की चाल दे , पटक की मौत दे , चंदन का काठ दे , रानी सा राज दे , दाल भात का भोजन दे , ग्यारस की मौत दे , और कान्हा जी का कंधा दे ।

यह कहकर वह बुढ़िया अपने घर चली जाती । धीरे – धीरे तुलसी जी सूखने लगी । तब विष्णु भगवान जी तुलसी माता से बोले कि क्या हुआ तुलसी , तुम इतना सूख क्यों रही हो ।  तब तुलसी जी कहती हैं कि एक बुढ़िया मेरे पास आती है और इस प्रकार से कहती है । मैं उसे ये सब तो दे दूंगी , परंतु कृष्ण जी का कंधा कहां से दूंगी । तब विष्णु भगवान कहते हैं कि तुलसी तुम चिंता मत करो , जब बुढ़िया मरेगी तो मैं अपने आप उसे कंधा दें आऊंगा । जब कुछ वर्ष पश्चात वह बुढ़िया मर गई तो सब उसे उठाने लगे । लेकिन वह बुढ़िया इतनी भारी हो गई कि किसी से ना उठी । तब सब कहने लगे कि यह तो इतना दान और पुण्य करती थी , लेकिन तब भी है कितनी भारी हो गई है ,कि किसी से उठ ही नहीं रही है । तब भगवान जी एक आदमी का रूप धारण करके आए और कहने लगे कि क्या हुआ ?  तब सब लोगों ने बताया कि बुढ़िया माई बहुत भारी हो रही है और किसी से उठ नहीं रही हैं । तब कान्हा जी ने बुढ़िया माई के कान में जाकर कहा कि – 

बुढ़िया माई मन की निकाल ले , पीतांबर की धोती ले ,

मीठा-मीठा गास ले , वैकुंठा में वास ले , चटक की चाल ले , पटक की मौत ले , ग्यारस की मौत ले और कृष्ण जी का कांधा ले ।

 जैसे ही यह शब्द उस बुढ़िया माई के कान में गए तो बुढ़िया माई का शरीर हल्का हो गया । तब कृष्ण भगवान ने बुढ़िया को कंधा दिया और बुढ़िया मां को मोक्ष मिल गया ।

हे तुलसी माता ,जैसे आपने उस बुढ़िया माई को मोक्ष प्रदान किया , ऐसे ही हम सब को मोक्ष प्रदान करना । 

तुलसी माता की जय ।


The story of Tulsi ji heard in the month of Kartik


Great importance of Kartik month has been told in our religious texts. Lord Vishnu says that in the month of Kartik month and among the trees, Tulsi ji is most dear to me. Taking bath, charity, etc. in the month of Kartik gives crores of folds of fruit. Worshiping Tulsi ji in Kartik month has special significance. Those who worship Mata Tulsi in the month of Kartik, light a lamp of ghee in front of her, there is an increase in wealth and good fortune in their house. Because in Tulsi Mata herself is believed to be the abode of Goddess Lakshmi. The story of Tulsi Mata heard in the month of Kartik is as follows.

 In a village some women used to worship Tulsi ji with each other in the month of Kartik and used to irrigate Tulsi ji. Among them there was an old lady who used to irrigate Tulsi Mata and say that

O Tulsi Mata - the giver of truth, I water your Birla, give me a daughter-in-law, give me a dhoti of pitambar, give me sweet and sweet gas, dwell in Vaikuntha, give me the speed of sparkle, give me the death of Patak, give me sandalwood wood, queen Give me a secret, give food of lentils, give death to Gyaras, and give Kanha ji's shoulder.

Saying this the old lady went to her house. Gradually Tulsi ji started drying up. Then Lord Vishnu said to Tulsi Mata that what happened Tulsi, why are you getting so dry. Then Tulsi ji says that an old lady comes to me and says like this. I will give all this to him, but from where will I give the shoulder of Krishna ji. Then Lord Vishnu says that Tulsi, don't worry, when the old lady dies, I will automatically come to give her shoulder. When the old lady died after a few years, everyone started raising her. But the old lady became so heavy that she could not get up from anyone. Then everyone started saying that it used to do so much charity and virtue, but even then it has become so heavy that it is not getting up from anyone. Then Lord ji came in the form of a man and started saying what happened? Then everyone told that old lady Mai is getting very heavy and is not getting up from anyone. Then Kanha ji went to the old lady's ear and said that –

Take out the old lady of my mind, take out the dhoti of Pitambar,

Take a sweet gas, take breath in Vaikuntha, take the gait of Chatak, kill Patak, take the death of Gyaras and take Krishna's shoulder.

 As soon as these words entered the ear of that old lady, the old lady's body became lighter. Then Lord Krishna gave shoulder to the old lady and the old lady got salvation.

O Tulsi Mata, just as you have given salvation to that old lady, in the same way give salvation to all of us.

Glory to Tulsi Mata.