Gyan Ganga | भगवान के बिना कुछ नहीं होगा। मलूक चंद की सच्ची कहानी | Hindi Story

















 एक गांव में एक सेठ रहते थे । उनका नाम मलूक चंद था । उनके घर के पास एक ब्राह्मण का घर था । ब्राह्मण बहुत ही पूजा - पाठ करते थे ।   एक दिन ब्राह्मण ने रात्रि में एकादशी का जागरण किया । सारी रात बैठकर ढोल , मंजीरे बजाकर भजन कीर्तन किया । जिससे पास के घर में रहने वाले मलूक चंद सेठ को रात भर नींद नहीं आई । वह ढोल और मंजीरों की आवाज से परेशान रहा । जब वह सुबह उठा तो उसने ब्राह्मण से कहा कि – आपने सारी रात मुझे सोने नहीं दिया । सारी रात आपके भजन और ढोल , मंजीरों की आवाज हमारे घर में आती रही और मैं ठीक से सो ही नहीं पाया । उसने ब्राह्मण को बहुत खरी-खोटी सुनाई । ब्राह्मण ने कहा कि – कल एकादशी का जागरण था । एकादशी के दिन रात्रि में मैं भजन कीर्तन करता हूं । सेठ जी ,  यदि आपको सारी रात नींद नहीं आई , तो आप मेरे घर आकर भजन कीर्तन में शामिल हो जाते और भगवान का नाम लेते । मलूक चंद सेठ बोले कि अगर इंसान रात्रि को ठीक से सोएगा नहीं , तो वह सुबह उठकर कैसे काम करेगा और काम पर नहीं जाएगा , तो अपने परिवार को क्या खिलाएगा । और वैसे भी मुझे ये भजन कीर्तन पसंद नहीं है। ब्राह्मण बोला कि – खिलाने वाला तो ईश्वर है , वह सब का ध्यान रखता है , वह सब को भोजन देता है । तब मलूक चंद सेठ जी बोले – ये क्या तुमने भगवान के नाम की रट लगा रखी है । मैं खुद कमाता हूं और खाता हूं । तुम्हारे भगवान का दिया हुआ मैं नहीं खाता । मैं तो अपनी कमाई का खाता हूं । तुम्हारे भगवान एक एक को थोड़े ही ना खिलाने आते हैं । तब ब्राह्मण बोला कि – भगवान किसी न किसी को निमित्त मात्र बनाकर सब का पेट भरता है । वही हमारे अंदर मेहनत करने की इच्छा शक्ति देता है । ब्राह्मण और सेठ में इस बात पर बहस हो गई । सेठ जी बोले कि – हम कमाते हैं और खाते हैं । ब्राह्मण बोला कि – खिलाने वाला तो परमात्मा ही है । इस बात की बहस होते होते दोनों के बीच एक शर्त लग गई । तब मलूक चंद सेठ बोले – तो ठीक है , अपनी बात साबित करो ।  मैं कल दिन में पूरा दिन भूखा रहूंगा । खुद से खाना नहीं खाऊंगा । देखते हैं तुम्हारा भगवान मुझे कैसे खिलाएगा ? और अगर मैं जीत गया तो तुम्हें सदा के लिए यह भजन कीर्तन छोड़ना होगा । ब्राह्मण को अपने भगवान पर पूरा विश्वास था । उन्होंने कहा – ठीक है , मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर हैं । अगली सुबह  सेठ ने कुछ नहीं खाया और सोचा कि यदि घर में रहूंगा , तो कहीं परिवारजन जिद करके  खिला ना दे , इसीलिए मैं जंगल में चला जाता हूं ।  सेठ जी एक जंगल में जाकर एक वृक्ष के ऊपर चढ़कर बैठ गए और बोले कि देखते हैं , अब यहां पर आकर मुझे कौन खिलाता है । आज तो मैं अपनी शर्त जीत जाऊंगा और ब्राह्मण को सदा के लिए भजन कीर्तन और ढोल मंजिरे बंद करने पड़ेंगे । फिर मैं  आराम से सोया करूंगा । वह यह सब सोच रहा था तभी उस पेड़ के नीचे एक बुढ़िया माई अपनी बकरियां चराने आई । वह उसी पेड़ की छांव में बैठ गई । उस बुढ़िया ने उस पेड़ की छांव में विश्राम किया । तभी उसे लगा कि उसकी बकरियां चरती हुई कहीं दूर चली गई है और वह अपनी बकरियों को देखने के लिए वहां से उठकर चल पड़ी । बुढ़िया गलती से अपना थैला वहीं पर भूल गई । या फिर कह सकते हैं कि भगवान की प्रेरणा थी जो गलती से वो उस थैले को वहां भूल गई । सेठ जी पेड़ पर चढ़े हुए थे और यह सब देख रहे थे । तभी थोड़ी देर बाद वहां पर कुछ डाकू आते हैं । उनके पास चोरी का बहुत सारा धन होता है । डाकू उस पेड़ के नीचे बैठते हैं और अपना चोरी का धन आपस में बांट रहे होते हैं । तभी उनकी नजर उस पास पड़े थैले पर पड़ती है,  तो उनमें से एक डाकू कहता है कि –  सरदार देखो , यहां पर एक थैला पड़ा हुआ है । इसे खोल कर देखते हैं । उसमे एक कपड़े में तीन – चार रोटियां बंधी हुई थी । डाकू बोलता है कि – सरदार कोई लगता है अपना भोजन यही भूल गया है । हमें भूख भी लगी हुई है , चलो भोजन करते हैं । तब सरदार बोलता है कि नहीं नहीं , भला इतने घने जंगल में कोई अपना भोजन क्यों भूलेगा । लगता है हमें पकड़वाने के लिए किसी ने चाल चली है , देखो कोई यहां आस पास तो नहीं है  । हो सकता है इन रोटियों में किसी ने जहर मिला रखा हो , कोई हमें मारना चाहता हो । तो वे सब इधर-उधर देखने लगते हैं । अचानक एक डाकू की नजर पेड़ पर चढ़े हुए सेठ पर पड़ती है । डाकू सेठ को नीचे उतरने के लिए कहते हैं । सेठ नीचे उतरने से मना कर देता है कि नहीं , मैं तो आज यहीं पर बैठा रहूंगा । तब सारे डाकू मिलकर जबरदस्ती उसे पेड़ से नीचे उतार देते हैं । और कहते हैं कि बता तू पेड़ पर चढ़कर क्यों बैठा है,  तूने इस भोजन में जहर मिला रखा हैं ताकि हमें मार सके और हमारा सारा धन छीन सके। सेठ जी कहते हैं कि नहीं नहीं , मैंने यह भोजन नहीं रखा । यहां तो एक बुढ़िया आई थी और वही अपना थैला यहां गलती से भूल गई है । तब डाकू कहते हैं कि तुम झूठ बोल रहे हो । अगर तुमने यह भोजन नहीं रखा है और ना ही इसमें जहर मिला हैं , तो फिर इस भोजन को खा कर दिखाओ और अपनी बात साबित करो । चलो इसमें से एक रोटी खाकर दिखाओ । सेठ जी कहते हैं कि – नहीं नहीं , मैं आज रोटी तो बिल्कुल नहीं खाऊंगा ।  डाकू बोला कैसे नहीं खाएगा , इसमें जहर मिलाकर हमें मारना चाहता था और अब हम कह रहे हैं भोजन कर , तो मना करता है । डाकू जबरदस्ती उसको पकड़ लेते हैं और उसके मुंह में जबरदस्ती एक टुकड़ा डालते हैं , पर सेठ मुंह नहीं खोलता । तो डाकू उसकी नाक बंद करके उसका मुंह खुलवा देते है और एक – एक टुकड़ा खिला कर एक रोटी खिला देते हैं । तब सरदार कहता है एक रोटी खाकर इसे कुछ नहीं हुआ । लगता है दूसरी रोटी में जहर है । इस तरह करके उसे दूसरी रोटी भी खिला देते हैं और फिर इस प्रकार तीसरी रोटी और चौथी रोटी । चारों रोटियां उस सेठ को जबरदस्ती खिला देते हैं । सेठ जी मन ही मन सोचते हैं कि–  मान गए भगवान , तेरी लीला को मान गए । जब कोई नहीं खाता तो उसे जबरदस्ती मार-मार कर भी खिलाता है । मलूक चंद सेठ सोचते हैं कि चाहे तू डाकू के रूप में आकर खिला , चाहे भक्तों के रूप में ,  खिलाने वाला तो तू ही है । डाकू उसे छोड़ देते हैं । मलूक चंद सेठ भागे भागे ब्राह्मण के पास आते हैं और उनसे हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हैं और कहते हैं – ब्राह्मण देव , आपने सत्य ही कहा था । आपका भगवान ही खिलाने वाला है और कोई नहीं खाता तो वह मार मार कर खिलाता है । मलूक चंद सेठ का जीवन पूरी तरह बदल चुका था । मलूक चंद सेठ अपना सारा घर बार छोड़कर भगवान के भजन कीर्तन में लग गए ।  और मलुकचंद सेठ से मलूक दास बन गए ।

संत मलूक दास जी का एक दोहा बहुत ही प्रसिद्ध है – 


           अजगर करे न चाकरी , पंछी करे न काम ।

           दास मलूका कह गए , सबके दाता राम     ।।


There lived a Seth in a village. His name was Malook Chand. There was a Brahmin's house near his house. Brahmins used to worship a lot. One day a Brahmin awakened Ekadashi in the night. Sitting all night, playing dhol, Manjire and singing bhajans. Due to which Malook Chand Seth, who lives in a nearby house, could not sleep throughout the night. He was disturbed by the sound of drums and manjirs. When he woke up in the morning, he told the brahmin that – You did not let me sleep all night. The whole night the sound of your bhajans and drums, manjirs kept coming in our house and I could not sleep properly. He told the brahmin a lot of lies. The brahmin said that yesterday there was awakening of Ekadashi. On Ekadashi, I do Bhajan Kirtan at night. Seth ji, if you did not sleep the whole night, you would have come to my house and indulge in bhajan kirtan and take the name of God. Malook Chand Seth said that if a person does not sleep properly at night, then how will he wake up in the morning and do not go to work, then what will he feed his family. And anyway I do not like this bhajan kirtan. The Brahmin said that God is the one who feeds, He takes care of everyone, He gives food to all. Then Malook Chand Seth ji said – Have you kept chanting the name of God? I myself earn and eat. I don't eat what your God has given me. I eat my earnings. Your God does not come to feed each one a little. Then the Brahmin said that - God fills everyone's stomach by making someone or the other only an instrument. That is what gives us the will power to work hard. A debate ensued between the Brahmin and the Seth. Seth ji said that - we earn and eat. The Brahmin said that God is the one who feeds. While there was a debate about this, a condition was made between the two. Then Malook Chand Seth said – then it is okay, prove your point. I will be hungry all day tomorrow. I will not eat food by myself. Let's see how your God will feed me? And if I win then you will have to give up this bhajan kirtan forever. The brahmin had full faith in his god. He said - OK, I accept your condition. The next morning, Seth did not eat anything and thought that if I stay in the house, then the family members should not feed him by insisting, that's why I go to the forest. Seth ji went to a forest and sat on top of a tree and said that now let's see who comes here and feeds me. Today I will win my bet and the brahmin will have to stop singing the bhajans, kirtan and drums for all time. Then I will sleep peacefully. He was thinking all this when an old lady came under that tree to graze her goats. She sat under the shade of that tree. The old lady rested in the shade of that tree. Then she felt that her goats had gone somewhere far away while grazing and she got up from there to see her goats. The old lady accidentally forgot her bag there. Or it can be said that it was the inspiration of God who accidentally forgot that bag there. Seth ji was climbing on the tree and was watching all this. Then after a while some robbers come there. They have a lot of stolen money. The robbers sit under that tree and are dividing their stolen money among themselves. Then their eyes fall on the bag lying nearby, then one of the dacoits says that - Sir, look, there is a bag lying here. Let's see it open. In it, three or four rotis were tied in a cloth. The robber says that - Sardar someone seems to have forgotten his food. We are hungry too, let's eat. Then the Sardar says that no, why would anyone forget his food in such a dense forest. It seems that someone has played a trick to get us caught, see if no one is around here. Maybe someone has mixed poison in these rotis, someone wants to kill us. So they all start looking here and there. Suddenly a robber's eyes fall on Seth, who is climbing a tree. The robbers ask Seth to get down. Seth refuses to get down or not, I will be sitting here today. Then all the bandits together forcefully take him down from the tree. And they say that tell me why are you sitting on the tree, you have mixed poison in this food so that it can kill us and take away all our wealth. Seth ji says no no, I did not keep this food. An old lady had come here and she has forgotten her bag here by mistake. Then the dacoits say that you are lying. If you have not kept this food and have not got poison in it, then show it by eating this food and prove your point. Let's show it by eating a roti out of it. Seth ji says that – No no, I will not eat roti at all today. The robber said how he will not eat, wanted to kill us by mixing poison in it and now we are saying eat food, then he refuses. The robbers forcefully capture him and forcefully put a piece in his mouth, but Seth does not open his mouth. So the robbers close his nose and open his mouth and feed him a piece of bread. Then the Sardar says that nothing happened to him after eating one roti. Looks like there is poison in the second roti. In this way, we also feed him the second roti and then in this way the third roti and the fourth roti. The four rotis forcefully feed that Seth. Seth ji thinks in his heart that – God has agreed, has accepted your Leela. When no one eats, he feeds them by forcefully killing them. Malook Chand Seth thinks that even if you come and feed as a dacoit, even if you are a devoteeAs in, you are the one who feeds. The robbers leave him. Malook Chand Seth comes to the fledgling Brahmin and asks for forgiveness with folded hands and says – Brahman God, you have told the truth. Your God is the one who feeds and if no one eats, then he feeds them by killing them. Malook Chand Seth's life had completely changed. Malook Chand Seth left his entire house and started singing the bhajans of God. And Malukchand became Maluk Das from Seth.

A couplet of Sant Maluk Das ji is very famous –


           The python does not work, the bird does not work.

           Das Maluka said, Rama is the giver of all.

Gyan Ganga | कहानी पंढरपुर की सच्ची कहानी। यहाँ आज भी साक्षात् भगवान खड़े है। hINDI STORY

 
















पुराने समय की बात है । एक पुंडरीक नाम का एक व्यक्ति था । वह दांडीवन नामक एक स्थान पर अपने माता-पिता के साथ रहता था । वह अपने माता पिता की बहुत ही सेवा करता था । समय आने पर उसके माता-पिता ने एक अच्छी सी लड़की देख कर उसका विवाह कर दिया । विवाह के पश्चात पुंडरीक के व्यवहार में बहुत ही अंतर आ गया । वह अब सारा ध्यान अपनी पत्नी पर ही देता था । अपने माता पिता की सेवा नहीं करता था । पुंडरीक और उसकी पत्नी  माता – पिता को बहुत ही तंग करते थे । उनसे घर का सारा काम करवाते थे । एक दिन पुंडरीक के माता-पिता ने सोचा कि – अब हमारा यहां पर कुछ काम नहीं है । अब हमसे पुंडरीक के अत्याचार सहन नहीं होते , हमें काशी के लिए चल देना चाहिए । माता-पिता दोनों काशी के लिए पैदल चल दिए । रास्ते में उन्हें साधु संतों का एक काफिला मिला । वह काफिला भी काशी जा रहा था । बूढ़े मां-बाप उस काफिले में शामिल हो गए  । पुंडरीक की पत्नी ने कहा कि – देखो , तुम्हारे माता-पिता काशी यात्रा के लिए चले गए हैं । मुझे डर है कि तुम्हारे माता  – पिता सोने के जेवरात चुरा कर ले गए हैं और वे काशी जाकर उन्हें बेच ना दे । हमें भी उनके पीछे-पीछे जाना चाहिए । पुंडरीक और उसकी पत्नी भी घोड़े पर सवार होकर उनके पीछे –  पीछे काशी के लिए चल पड़े । रास्ते में उन्हें काशी जाने वाला काफिला मिला । उसमें ही उन्होंने अपने माता-पिता को देखा । जब रात्रि के समय काफिला रुकता , तो सब विश्राम करते थे । परंतु पुंडरीक अपने माता-पिता से घोड़ों की सेवा करवाता था । और उन्हें विश्राम नहीं करने देता था । उसके माता-पिता बहुत ही दुखी हो गए थे । वे सोचने लगे कि हम तो तीर्थ यात्रा के लिए निकले थे , लेकिन इसने हमारा पीछा यहां भी नहीं छोड़ा । जैसे ही रात्रि होती और काफिला रुकता , सब विश्राम करते  ।लेकिन पुंडरीक अपने माता-पिता से घोड़ों की सेवा और अन्य कार्य करवाता था । चलते – चलते काफिला  कुक्कुट स्वामी के आश्रम में पहुंचा । सब लंबी यात्रा करके थक गए थे । उन्होंने सोचा कि यहीं पर क्यों ना दो रात विश्राम कर लिया जाए । सब लोग रात्रि को सो गए । लेकिन पुंडरीक को नींद नहीं आई । वह सारी रात जागता रहा । आधी रात बीत चुकी थी । तब उसने देखा कि कुछ स्त्रियां पुराने मैले कपड़ों में आश्रम में प्रवेश करती है । आश्रम में जाकर उन्होंने साफ सफाई की । साधु-संतों के कपड़े धोएं  । पानी भर कर रखा और उसके बाद जब वे आश्रम से निकली तो उनके वस्त्र साफ –  सुथरे थे । आश्रम से थोड़ी दूरी पर ही  वे स्त्रियां गायब हो जाती थी । पुंडरीक को यह सब देखकर आश्चर्य हुआ । ऐसा ही अगली रात भी हुआ। पुंडरीक ने देखा कि वें स्त्रियां फिर मैले कपड़ों में आती है । साधु संतों की सेवा करती हैं । और जब आश्रम से निकलती है , तो उनके वस्त्र फिर से साफ-सुथरे होते थे । जब वे आश्रम से निकल रही थी तो पुंडरीक से रहा नही गया और उनसे पूछा कि – आप कौन है ? जब आप आई थी ,तो आप के वस्त्र बहुत ही मैले थें और अब आप आश्रम से जा रही हैं , तो आप के वस्त्र बहुत ही साफ हैं । इसका क्या कारण है ? उन्होंने बताया कि हम गंगा और यमुना आदि पवित्र नदियां है । जब तुम जैसे पापी हम में स्नान करते हैं , तो हमारे वस्त्र मैले हो जाते हैं और साधु संतों की सेवा करने से हमारे वस्त्र साफ हो जाते हैं । तुम भी बहुत ही बड़े पापी हो । क्योंकि तुमने अपने माता-पिता की सेवा नहीं की । और उन्हें इस यात्रा में भी बहुत कष्ट देते आए हो । उनकी बात सुनकर पुंडरीक को अपनी करनी पर पछतावा होने लगा । वह फिर से अपने माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र बनना चाहता था । इसलिए उसने जब अगली सुबह हुई , तो उसने अपने माता-पिता से हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और कहा कि आप वापस मेरे साथ घर चलिए । मैं आपकी सेवा करके अपना जीवन सफल करना चाहता हूं । और उसने अपनी पत्नी को भी समझाया । दोनों पति पत्नी अपने माता-पिता को साथ लेकर चले । अब वह अपने माता-पिता की बहुत ही सेवा करता था । अपने माता-पिता को भोजन कराने के पश्चात ही दोनों पति-पत्नी भोजन ग्रहण करते थे । अब तो पुंडरीक की पत्नी भी अपने सास-ससुर के साथ अच्छा व्यवहार करती थी । एक दिन की बात है कि पुंडरीक अपने माता-पिता के चरण दबा रहा था कि तभी श्री कृष्ण भगवान माता रुक्मणी जी के साथ उसके घर के द्वार पर आए । और पुंडरीक का नाम लेकर उसे पुकारने लगे कि पुंडरीक  बाहर आओ । पुंडरीक ने पूछा कि आप कौन हो ? तब भगवान बोले कि – मैं भगवान श्री कृष्ण हूं जिसका तुम दिन रात नाम जपते हो । पुंडरीक ने कहा कि –  भगवान मुझे क्षमा करना , मैं अभी बाहर नहीं आ सकता । मैं अपने माता-पिता के चरण दबा रहा हूं । जब वें सो जाएंगे , तब मैं आपके पास आऊंगा । भगवान श्री कृष्ण खड़े-खड़े थक गए और उन्होंने पुंडरीक से पूछा कि –  कितना समय और लगेगा । जल्दी बाहर आओ । तब पुंडरीक बोला –  भगवान आपको अभी और प्रतीक्षा करनी होगी । श्री कृष्ण बोले –  अच्छा ठीक है , मुझे कुछ बैठने के लिए आसन दे दो । तब उसने भगवान के सामने एक ईट सरका कर कहा कि आप इस पर खड़े हो जाइए । भगवान बहुत देर से खड़े –  खड़े थक गए थे । इसलिए उन्होंने अपने दोनों हाथ कमर पर रख लिए और उस ईट पर दोनों पैर को जोड़कर खड़े हो गए । भगवान ये सब देखकर बहुत खुश हो रहे थे । जब पुंडरीक के माता-पिता को नींद आ गई  । तब पुंडरीक ने जाकर भगवान श्री कृष्ण का स्वागत किया । श्री कृष्ण ने कहा कि – पुंडरीक मैं तुम्हारी मातृ और पितृ भक्ति से बहुत ही प्रसन्न हूं । बताओ , तुम्हें क्या वर चाहिए । पुंडरीक ने कहा कि–  नहीं भगवन , मुझे आपके दर्शन हो गए , मुझे इसके अलावा और कुछ नहीं चाहिए । तब श्रीकृष्ण बोले कि – नहीं पुत्र ,  मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं और मैं तुम्हें एक वर देना चाहता हूं । मांगो तुम्हें क्या चाहिए ? तब पुंडरीक ने कहा कि –  भगवन ,  आप यहीं पर खड़े रहकर अपने भक्तजनों का उद्धार करें । तब भगवान श्री कृष्ण ने पुंडरीक और उसके माता-पिता को उसी समय मोक्ष प्रदान कर उन्हें अपने भगवत धाम भेज दिया ।  भगवान श्री कृष्ण का यही रुप श्री विग्रह के रूप में वहीं पर स्थापित हो गया । 

तो भक्तों, भगवान श्री कृष्ण अपने उस श्री विग्रह में विट्ठल  विठोबा कहलाए । विट्ठल भगवान एक शंकु के आकार का मुकुट पहने हुए हैं । उनके कानों में मछली के आकार की बालियां हैं । भगवान श्री विट्ठल देव जी का श्री विग्रह आज भी धरती पर उसी जगह स्थापित है । आज भी भगवान वहां एक ईंट पर खड़े है। पुंडरीक के नाम पर ही उस स्थान का नाम पंढरपुर पड़ गया ।

भक्तों , इससे हमें यही शिक्षा मिलती है कि माता पिता की सेवा भगवान की सेवा से भी बढ़कर है । जो लोग अपने माता – पिता की सेवा करते हैं , उनसे भगवान हमेशा प्रसन्न रहते हैं ।

It's old time. There was a man named Pundarik. He lived with his parents at a place called Dandivan. He served his parents a lot. When the time came, her parents saw a nice girl and got her married. There was a lot of difference in Pundarik's behavior after marriage. Now he used to give all the attention to his wife only. He did not serve his parents. Pundarik and his wife used to harass the parents very much. He used to make them do all the household chores. One day Pundarik's parents thought that now we have nothing to do here. Now we do not tolerate Pundarik's atrocities, we should leave for Kashi. Both the parents left on foot for Kashi. On the way he met a convoy of sages. That convoy was also going to Kashi. The old parents joined the convoy. Pundarik's wife said, "Look, your parents have gone to visit Kashi. I am afraid that your parents have stolen the gold jewelery and they will not go to Kashi and sell them. We should also go after them. Pundarik and his wife also rode on horse and followed them for Kashi. On the way they found a convoy going to Kashi. It was there that he saw his parents. When the convoy stopped at night, everyone used to rest. But Pundarik used to get his parents to take care of the horses. and did not allow them to rest. His parents were very sad. They started thinking that we had gone for pilgrimage, but it did not leave us here either. As night fell and the convoy stopped, everyone rested. While walking, the convoy reached the Poultry Swami's ashram. Everyone was tired from the long journey. He thought that why not take rest for two nights here. Everyone slept at night. But Pundarik could not sleep. He stayed awake all night. Half the night had passed . Then he saw some women entering the ashram in dirty old clothes. After going to the ashram, he cleaned. Wash the clothes of the saints. Filled it with water and after that when she came out of the ashram, her clothes were clean. Those women used to disappear only at a short distance from the ashram. Pundarik was surprised to see all this. The same happened the next night as well. Pundarik saw those women again come in dirty clothes. Sadhus serve the saints. And when she left the ashram, her clothes were clean again. When she was leaving the ashram, Pundarik could not stay and asked her – who are you? When you came, your clothes were very dirty and now you are leaving the ashram, your clothes are very clean. What is the reason for this ? He told that we are holy rivers like Ganga and Yamuna etc. When sinners like you bathe in us, our clothes become dirty and our clothes get cleaned by serving sages. You are also a great sinner. Because you did not serve your parents. And you have been giving them a lot of trouble in this journey too. Hearing his words, Pundarik started to regret his actions. He again wanted to be the obedient son of his parents. So when she came the next morning, she apologized to her parents with folded hands and asked you to come back home with me. I want to make my life successful by serving you. And he explained it to his wife also. Both husband and wife took their parents along with them. Now he used to serve his parents very much. Both husband and wife used to take food only after feeding their parents. Now even Pundarika's wife used to treat her mother-in-law well. It is a matter of one day that Pundarik was pressing the feet of his parents when Shri Krishna accompanied by Lord Mata Rukmani ji came to the door of his house. And taking the name of Pundarik started calling him that Pundarik should come out. Pundarik asked who are you? Then God said that - I am Lord Shri Krishna, whose name you chant day and night. Pundarik said that - God forgive me, I cannot come out now. I am pressing on the feet of my parents. I will come to you when he sleeps. Lord Shri Krishna got tired of standing and asked Pundarika – how much more time would it take. come out early Then Pundarik said - Lord you have to wait longer. Shri Krishna said – All right, give me some seat to sit. Then he moved a brick in front of God and said that you should stand on it. Bhagwan was tired of standing for a long time. So he put both his hands on the waist and stood on that brick with both feet folded. God was getting very happy seeing all this. When Pundarik's parents fell asleep. Then Pundarika went and welcomed Lord Krishna. Shri Krishna said that – Pundarik, I am very happy with your maternal and paternal devotion. Tell me, what do you want? Pundarik said – No God, I have seen you, I don't want anything other than this. Then Shri Krishna said - No son, I am very happy with you and I want to give you a boon. Ask what do you want? Then Pundarik said – Lord, you save your devotees by standing here. Then Lord Shri Krishna gave salvation to Pundarik and his parents at the same time and gave them salvation in their God.

I sent This form of Lord Shri Krishna was established there in the form of Shri Deity.

So devotees, Lord Shri Krishna in that Shri Deity is called Vitthal Vithoba. Lord Vitthal is wearing a cone shaped crown. He has fish-shaped earrings in his ears. The Shri Vigraha of Lord Shri Vitthal Dev ji is still established at the same place on earth. Even today God is standing there on a brick. The place was named Pandharpur after the name of Pundarik.

Devotees, this teaches us that service to parents is more important than service to God. God is always pleased with those who serve their parents.

जिंदगी भर पाप किये। वेश्यावृति की। फिर भी क्यों मिला स्वर्ग | Gyan Ganga | hindi story













एक बार एक अजामिल नाम का ब्राह्मण था । जाति से ब्राह्मण होने के बाद भी वह बहुत ही दुष्ट प्रकृति का था । वह चोरी करता था । साधु-संतों को लूट लेता था । रास्ते में आते-जाते राहगीरों का सारा सामान चुरा लेता था । वह अपने माता-पिता को बहुत ही कष्ट देता था । वह बहुत ही दुष्ट संगति का हो गया था । वह हर रोज मदिरा का सेवन करता था । एक दिन वह नगर में घूमने गया , वहां पर उसने एक वैश्या को देखा । वह उस पर आसक्त हो गया और उसे अपने घर ले आया ।  उसने उससे विवाह रचा लिया । उस वैश्या से उसको 9 संतानें प्राप्त हुई । और 10 वीं संतान भी कुछ ही दिनों में पैदा होने वाली थी । एक  दिन अजामिल के गांव में कुछ साधु संत आए हुए थे । साधु संतों ने गांव के लोगों से कहा कि –  हमें भोजन करना है , अगर कोई अच्छा और भला सा घर हो , जहां का आचरण शुद्ध हो , जिस घर में लोग शाकाहारी हों ।  हमें ऐसा घर बता दो जहां हमें भोजन प्राप्त हो सके  ।  गांव के कुछ लोगों ने मजाक ही मजाक में अजामिल का घर बता दिया और कहा कि –  वह बहुत ही धर्मात्मा है , आपका वहां पर भोजन करना ठीक रहेगा । साधु-संत अजामिल के घर आ पहुंचे । साधु संतों ने अजामिल के घर आकर उससे भोजन के लिए कहा । लेकिन अजामिल तो उन साधु-संतों पर क्रोधित हो गया ,  परन्तु उसकी पत्नी ने उन साधु-संतों को प्रणाम करके भोजन कराया । साधु संत भोजन करके बहुत ही प्रसन्न हो गए और सोचा कि जाते – जाते इसका कुछ भला करके जाएं । साधु संत ने अजामिल से कहा कि अब तुम्हारी जो संतान होगी उसका नाम तुम नारायण रखना । अजामिल बोला –  ठीक है , इसमें नाम रखने में मेरा क्या जाता है । मैं नारायण नाम रख दूंगा । परंतु अब आप यहां से जाइए । साधु संत उसे आशीर्वाद देकर चले गए । अजामिल की 10 वीं संतान हुई और उसने उसका नाम नारायण रखा । अजामिल अपने छोटे बेटे से बहुत ही प्यार करता था । वह हर समय उसे नारायण नारायण पुकारता था । अजामिल अब बूढ़ा हो चला था । अजामिल की मृत्यु का समय आ गया था । यमदूत उसके घर आए । वह यमदूतों को देखकर डर गया और अपने बेटे नारायण को पुकारने लगा । उसका बेटा नारायण दूर कहीं खेल रहा था । उसे अपने पिता की आवाज सुनाई नहीं दी  । वह जोर-जोर से नारायण – नारायण कह रहा था कि – नारायण बेटा इधर आ , नारायण बेटा इधर आ । वह यमदूतों के भयानक रूप को देखकर कांप उठा था। वह नारायण नारायण चिल्ला रहा था । उसका बेटा तो नहीं आया । लेकिन विष्णु भगवान  के पार्षदों  ने जब सुना कि कोई नारायण नारायण पुकार रहा है । वें तुरंत अजामिल के पास पहुंचे । विष्णु भगवान के पार्षदों ने देखा कि यमदूत अजामिल के प्राण खींच रहे हैं । तब उन्होंने उन यमदूतों को रोक दिया और कहा कि  – तुम अब इसके प्राण नहीं हर सकते  और ना ही इसे यमलोक ले जा सकते हो । तब यमदूत कहने लगे कि –  यह बहुत ही बड़ा पापी है , इसमें जीवन भर चोरी , छल – कपट किया है । वेश्या का संग किया है । इसने अपने माता-पिता का सम्मान भी नहीं किया । इसे नरक भोगना पड़ेगा ।  तब विष्णु भगवान के पार्षद बोले कि – चाहे इसने जीवन भर कितना भी पाप क्यों ना किया हो , लेकिन अंत समय में इसने हमारे भगवान नारायण का नाम जपा है । इससे यह सभी पापों से मुक्त होता है । पार्षद बोले कि   भगवान का नाम बड़े से बड़े पाप को नष्ट करने की क्षमता रखता है ।  मनुष्य चाहे मजबूरी में या फिर गलती से भी यदि भगवान का भजन करता है ,  तो वह तुरंत उसी समय पाप से मुक्त हो जाता है । जिस प्रकार जाने या फिर अनजाने में ईंधन से अग्नि का स्पर्श होते ही वह जलकर भस्म हो जाता है , उसी तरह से अजामिल के सारे पाप नष्ट हो गए हैं । अब यह नरक में नहीं जाएगा । यमदूतों ने विष्णु जी के पार्षदों का कहना मान कर अजामिल को मुक्त कर दिया । और यमदूत वहां से चले गए ।  अजामिल यह सब देख और सुन रहा था  । इस सब को देखने के बाद उसके मन में भगवान के प्रति श्रद्धा भाव और भक्ति उत्पन्न हो गई । उसने सोचा कि सिर्फ भगवान के नाम का ही जब इतना प्रताप है , अगर मैं जीवन भर उनका भजन करता तो कितना अच्छा होता। विष्णु भगवान के पार्षदो ने अजामिल  को अपने साथ स्वर्ण के विमान में बिठाया । और उसे लेकर बैकुंठ धाम चले गए । अजामिल संसार के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष पा गया ।


Once there was a Brahmin named Ajamil. Despite being a Brahmin by caste, he was of a very evil nature. He used to steal. He used to rob the saints and saints. On the way, he used to steal all the belongings of the passers-by. He used to give a lot of trouble to his parents. He had become very bad company. He used to drink alcohol every day. One day he went for a walk in the city, where he saw a prostitute. He became enamored of her and brought her to his house. He married her. From that prostitute he got 9 children. And the 10th child was also going to be born in a few days. One day some sages were visiting the village of Ajamil. The sages told the people of the village that - we have to eat food, if there is a good and good house, where the behavior is pure, the house where people are vegetarian. Tell us a house where we can get food. Some people of the village jokingly told Ajamil's house and said that - he is very pious, it will be fine for you to eat there. The sages and saints came to Ajamil's house. The sages came to Ajamil's house and asked him for food. But Ajamil got angry with those sages, but his wife offered them food after paying obeisance to those sages. The sages became very happy after eating the food and thought that they should go and do some good for it. The sage saint told Ajamil that now you should name the child you will have as Narayan. Ajamil said – Well, what does it take to name me in this. I will name Narayan. But now you leave here. The sages left after blessing him. Ajamil had his 10th child and named him Narayan. Ajamil loved his younger son very much. He used to call him Narayan Narayan all the time. Ajamil was now old. The time had come for Ajamil to die. The eunuchs came to his house. He got scared seeing the eunuchs and started calling his son Narayan. His son Narayan was playing somewhere far away. He could not hear his father's voice. He was saying loudly Narayan – Narayan that – Narayan son come here, Narayan son come here. He was trembling at the terrible appearance of the eunuchs. He was shouting Narayan Narayan. His son did not come. But when the councilors of Lord Vishnu heard that someone was calling Narayan Narayan. He immediately approached Ajamil. The councilors of Lord Vishnu saw that the eunuchs were taking away the life of Ajamil. Then he stopped those eunuchs and said that – you cannot lose its life now nor can you take it to Yamalok. Then the eunuchs started saying that – This is a very big sinner, he has committed theft, deceit and deceit throughout his life. Associated with a prostitute. He didn't even respect his parents. He will have to suffer hell. Then the councilor of Lord Vishnu said that - no matter how many sins he has committed throughout his life, but in the end time he has chanted the name of our Lord Narayana. By this he becomes free from all sins. The councilor said that the name of God has the ability to destroy the biggest sin. Whether by compulsion or even by mistake, if a person worships God, then he is immediately freed from sin. Just as, knowingly or unknowingly, when the fire touches the fire, it burns to ashes, in the same way all the sins of Ajamila are destroyed. Now it will not go to hell. The Yamadoots freed Ajamil by obeying the councilors of Vishnu. And the eunuchs left from there. Ajamil was seeing and hearing all this. After seeing all this, reverence and devotion towards God arose in his mind. He thought that when only the name of the Lord has so much glory, how good it would be if I used to worship him for the rest of my life. The councilors of Lord Vishnu put Ajamil with them in a golden plane. And took him to Baikunth Dham. Ajamila got liberated from the shackles of the world and attained salvation.

भाईदूज क्यों ? यमराज और यमुना का क्या है रिश्ता

    































धर्म ग्रंथों के अनुसार – कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है । इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि इस दिन यमुना ने अपने भाई यमराज जी का आदर सत्कार करके उनसे वरदान प्राप्त किया था ।

 एक पौराणिक कथा के अनुसार – सूर्य भगवान की पत्नी का नाम संध्या था । उनकी एक पुत्री और एक पुत्र था । उनकी पुत्री का नाम यमुना और पुत्र का नाम यमराज था । संध्या सूर्यदेव का तेज सहन नहीं कर पाती थी और एक दिन वो अपनी छाया को छोड़कर तपस्या करने के लिए चली गई । छाया से भी सूर्य देव को एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई । पुत्र का नाम शनि देव और पुत्री का नाम ताप्ती था । यमराज और यमुना में आपस में बहुत स्नेह था । भगवान के आदेशानुसार – यमराज ने पापियों को दंड देने का कार्यभार संभाला । और उन्होंने अपनी यमपुरी नगरी की रचना की । उधर यमुना भी नदी के रूप में परिवर्तित हो गई । इसी तरह समय बीतता चला गया । यमराज अपनी बहन से बहुत ही स्नेह करते थे । उन्हें अपनी बहन की बहुत याद सताती थी । किंतु अधिक व्यस्त होने के कारण वे अपनी बहन यमुना से मिलने नहीं जा पाते थे । यमुना अपने भाई यमराज को अपने घर आने का कई बार निमंत्रण देती थी । परंतु यमराज जी जा ही नहीं पाते थे । एक दिन यमुना ने अपने भाई यमराज को वचन देकर अपने घर भोजन निमंत्रण के लिए बुलाया । यमराज ने सोचा कि मैं तो काल हूं । मैं सबके प्राणों का हरण करता हूं । मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाता । सब मुझे अपने घर बुलाने से डरते हैं । लेकिन मेरी बहन जिस सदभावना से मुझे बुला रही है , उसका पालन करना मेरा धर्म है । इसलिए यमराज ने अपनी बहन के घर जाते समय नरक भोग रहे सारे जीवो को मुक्त कर दिया । उस दिन यमपुरी में उत्सव मनाया गया । और यमराज जी अपनी बहन यमुना के घर चले गए । यमुना अपने भाई को देखकर बहुत खुश हुई । यमुना ने अपने भाई के आने की खुशी में बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन बनाए और उनका बहुत ही आतिथ्य सत्कार किया । यमराज जी उनके आतिथ्य सत्कार से बहुत ही प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा । तब यमुना जी ने कहा कि – भैया , आप आज के दिन प्रतिवर्ष मेरे घर आया करो । और आज के दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर उससे तिलक करवाए और उसका आतिथ्य सत्कार ग्रहण करें । उसे तुम्हारा भय नहीं होना चाहिए और ना ही उसकी अकाल मृत्यु होनी चाहिए । यमराज जी ने "तथास्तु "कहा । यमराज जी ने अपनी बहन को बहुत से उपहार दिए और अपनी यमपुरी को प्रस्थान किया । तभी से यह भैया दूज मनाने की परंपरा चली आ रही है । मान्यता के अनुसार इस दिन यमराज जी और यमुना जी का पूजन करना चाहिए । इस दिन भाई – बहन को यमुना नदी में स्नान करना चाहिए और यमुना देवी का पूजन करना चाहिए। जो भी प्राणी इस दिन यमुना जी में स्नान करता है , उसे काल का भय नहीं होता और उसके सारे कष्ट का निवारण हो जाता है । वह प्राणी मृत्यु के पश्चात यमलोक में नहीं जाता उसकी सद्गति होती है । 
कहते है – इसी दिन श्री कृष्ण भगवान ने नरकासुर का वध किया था और उसके वध के पश्चात श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के घर गए । सुभद्रा ने अपने भाई श्री कृष्ण को तिलक लगाकर आरती की और उनका बहुत ही आतिथ्य सत्कार किया ।

इस दिन शाम के समय यम के नाम से घर के बाहर चहुमुखी दीया जलाना चाहिए ।

dhanteras | धनतेरस पर भगवन धन्वंतरि के साथ साथ क्यों होती है यमराज की पूजा | आटे का दिया क्यों जलाए








 

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनवंतरी देवता का जन्म हुआ था । शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का , कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को कामधेनु गाय का, त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का , चतुर्दशी को काली माता का और अमावस्या को महालक्ष्मी माता का समुद्र मंथन से प्रादुर्भाव  हुआ था । देवता और दानव के द्वारा किए गए समुद्र मंथन से धन्वंतरी देवता अमृत का कलश हाथ में लिए उत्पन्न हुए थे । 

धन्वंतरी देवता को आयुर्वेद का जन्मदाता और देवताओं का चिकित्सक माना जाता है । भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से 12 वा अवतार धन्वंतरी देवता का था । 

धनतेरस के दिन चांदी का खरीदना शुभ माना जाता है । 


धनतेरस के दिन संध्या काल में यमराज के नाम का दीपक भी जलाया जाता है । यह दीपक होने वाले अनिष्ट को समाप्त करता है । साल में एक बार इस दिन यमराज जी की पूजा की जाती है । इनकी पूजा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है । 

इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है ।

कथा के अनुसार  – एक हिम नाम का राजा था । उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ । ज्योतिषियों ने कुंडली बनाई । कुंडली के अनुसार उसमें लिखा था – कि राजकुमार की मृत्यु विवाह के चौथे दिन ही हो जाएगी । यह सुनकर राजा और रानी बहुत ही दुखी हुए । समय बीतता गया । राजकुमार का विवाह हो गया । विवाह के बाद चौथा दिन भी आ गया । सबके मन में भय उत्पन्न हो रहा था । किंतु राजकुमार की पत्नी चिंता मुक्त थी ।  उसके मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं था । क्योंकि वह महालक्ष्मी की भक्त थी । उसे माता लक्ष्मी पर पूरा विश्वास था । शाम के समय राजकुमार की पत्नी ने सारा महल दीपों से सजा दिया । और माता लक्ष्मी के भजन गाने लगी । यमदूत जब राजकुमार के प्राण लेने आए तो उसकी पत्नी की भक्ति की शक्ति से यमदूत महल में प्रवेश न कर सके और वापस लौट गए । फिर बाद में यमराज ने सर्प का रूप धारण करके महल में प्रवेश किया । जब उस सर्प ने राजकुमार के कक्ष में प्रवेश किया ।  तो दीपों की जयमाला की रोशनी और मां लक्ष्मी की कृपा से उसकी आंखें चौंधिया गई थी । राजकुमार और राजकुमार की पत्नी दोनों महालक्ष्मी माता के भजन गा रहे थे । सर्प बने यमराज भी उनके पास बैठ गए । यमराज उन दोनों के भजन में ऐसे खोए कि उन्हें पता नहीं चला कि सुबह कब हो गई । राजकुमार की मृत्यु का समय जा चुका था । तब यमराज ने अपना असली रूप धारण किया । यमराज ने राजकुमार को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया ।और कहा कि जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को शाम के समय  सरसों के तेल का दीपक जलाकर  मेरा स्मरण करेगा , उसकी कभी अकाल मृत्यु नहीं होगी । 

कहते हैं उसी दिन से धनतेरस के दिन शाम के समय दीपक जलाने की परंपरा शुरू हुई । इसे  "यम दिवा  "यानी यम का दीपक भी कहते हैं ।  दीपक को घर के बाहर  दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखना चाहिए ।


Dhanvantari Devta was born on the Trayodashi of Krishna Paksha of Kartik month. On the day of Sharad Purnima, Moon was born, on Dwadashi of Krishna Paksha of Kartik month Kamdhenu cow, Trayodashi of Lord Dhanvantari, Chaturdashi of Kali Mata and Amavasya of Mahalakshmi Mata emerged from the ocean churning. Due to the churning of the ocean by the gods and demons, the god Dhanvantari was born with a pot of nectar in his hand.

The god Dhanvantari is considered to be the originator of Ayurveda and the physician of the gods. Out of the 24 incarnations of Lord Vishnu, the 12th incarnation was that of the god Dhanvantari.

Buying silver on the day of Dhanteras is considered auspicious.


A lamp in the name of Yamraj is also lit in the evening on the day of Dhanteras. This lamp eliminates the evil. Yamraj ji is worshiped once in a year on this day. Worshiping them does not lead to premature death.

There is also a legend behind it.

According to the legend – there was a king named Him. A son was born to them. Astrologers made horoscopes. According to the horoscope, it was written in it that the prince would die on the fourth day of marriage. Hearing this, the king and queen were very sad. Time passed by . The prince got married. The fourth day also came after the marriage. Fear was rising in everyone's mind. But the prince's wife was worry free. There was no fear in his mind. Because she was a devotee of Mahalakshmi. He had full faith in Mata Lakshmi. In the evening, the prince's wife decorated the whole palace with lamps. And started singing bhajans of Mata Lakshmi. When the eunuchs came to take the prince's life, the eunuchs could not enter the palace due to the devotion of his wife and returned. Then later Yamraj took the form of a snake and entered the palace. When that snake entered the prince's room. So his eyes were dazzled by the light of the garland of lamps and the grace of Maa Lakshmi. Both the prince and the prince's wife were singing hymns to Mahalakshmi Mata. Yamraj, who became a snake, also sat beside him. Yamraj was so lost in the hymns of both of them that he did not know when it was morning. The time of the death of the prince had passed. Then Yamraj assumed his true form. Yamraj blessed the prince with a long life. And said that whoever remembers me by lighting a mustard oil lamp in the evening on the Trayodashi of Kartik Krishna Paksha, he will never die prematurely.

It is said that from that day the tradition of lighting lamps in the evening on the day of Dhanteras started. It is also called "Yama Diva" i.e. Yama's lamp. The lamp should be kept outside the house facing south.

23 october 2022 dahnteras | Gyan Ganga | धनतेरस के कथा और महत्व। धन सम्पदा के लिए लक्ष्मी पूजन |








 


कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्यौहार बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है । 

एक पौराणिक कथा के अनुसार  – एक समय भगवान विष्णु पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने के लिए निकले । तब माता लक्ष्मी ने भी उनके साथ चलने का आग्रह किया ।  भगवान विष्णु बोले कि –  देवी , अगर आप पृथ्वी पर जाकर , जैसा मैं कहूं ऐसा ही करो , तब आप मेरे साथ चल सकती हो । माता लक्ष्मी ने कहा –  ठीक है स्वामी जैसा आप कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगी । तब विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर आकर भ्रमण करने लगे । कुछ देर पश्चात विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी से कहा कि – देवी , आप जरा यहां पर रुको । जब तक मैं ना आ जाऊं तब तक आप यहां से कहीं मत जाना । माता लक्ष्मी ने कहा – ठीक है , स्वामी आप जाइए।  विष्णु भगवान दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े । देवी लक्ष्मी के मन में एकाएक विचार आया कि – भगवान विष्णु मुझे अपने साथ क्यों नहीं ले कर गए । उन्होंने मुझे यहां रुकने को क्यों कहा ?  उनका मन नहीं माना और वे विष्णु भगवान के पीछे पीछे चल पड़ी । माता लक्ष्मी ने देखा कि एक जगह पर सरसों के खेत में सुंदर फूल लगे हुए हैं । उन फूलों को देखकर माता का मन आकर्षित हो गया और उन्होंने फूलों को तोड़ कर अपना श्रृंगार किया । इसके बाद वे आगे चल पड़ी । आगे चलकर माता लक्ष्मी को एक गन्ने का खेत दिखाई दिया । तब माता लक्ष्मी ने गन्ने तोड़े और  उन्हें चूसने लगी ।

ऐसा करते हुए विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी को देख लिया और उन पर क्रोधित हो गए । भगवान विष्णु क्रोधित होकर बोले  कि –  देवी तुम मेरे मना करने पर भी मेरे पीछे-पीछे यहां तक आ गई हो । और किसान के खेतों में आपने चोरी का दंडनीय अपराध किया है । मैं आपको श्राप देता हूं कि आप 12 साल तक इस किसान के घर में ही रहकर अपना अपराध भोगोगी। ऐसा कहकर विष्णु भगवान  बैकुंठ लोक में चले गए  । माता लक्ष्मी वही किसान के घर में रह गई । किसान बहुत ही गरीब था । एक दिन माता लक्ष्मी ने किसान की पत्नी से कहा कि पहले तुम नहा धोकर मेरी इस बनाई गई मिट्टी की मूर्ति की पूजा करो । फिर जाकर बाद में रसोई बनाना । ऐसा करने से तुम्हे जो चाहिए वहीं मिलेगा । किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया । लक्ष्मी जी की कृपा के कारण किसान का घर थोड़े ही दिन में अन्न और धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया । किसान के वे 12 वर्ष बहुत ही आनंद से बीते ।  विष्णु भगवान 12 वर्ष के बाद लक्ष्मी माता को लेने के लिए आए । किसान माता लक्ष्मी को जाने से रोकने लगा ।  तब विष्णु भगवान बोले कि – यह तो चंचला है , इन्हें कौन रोक सकता है ? ये कहीं पर भी एक जगह नहीं ठहरती । यह तो इन्हें मेरा श्राप था जो तुम्हारे घर में 12 वर्ष तक रह रही थी । अब इनके श्राप की अवधि पूरी हो गई है । इसलिए अब ये जा रही है । लेकिन किसान  माता लक्ष्मी को बार-बार जाने से रोक रहा था और उनसे विनय पूर्वक निवेदन कर रहा था ।

माता लक्ष्मी को किसान पर दया आ गई और कहां कि – ठीक है , अगर तुम मुझे रोकना चाहते हो , तो जैसा मैं कहती हूं , ऐसा ही करो । कल धनतेरस है । कल घर को अच्छी तरह से लीप कर साफ सफाई करना। रात्रि में घी का दिया जलाना और संध्या काल में मेरी पूजा करना । एक तांबे के कलश में रूपए भर कर रखना । मैं उस कलश में निवास करूंगी । लेकिन जब तुम मेरी पूजा करोगे , तब मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी । तुम्हारी की गई इस एक दिन की पूजा से मैं वर्ष भर तक तुम्हारे घर में निवास करूंगी । यह कहकर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु  दीपक के प्रकाश के साथ चारों दिशाओं में फैल गए । अगले दिन धनतेरस के दिन किसान ने माता लक्ष्मी के कहे अनुसार पूजन किया । किसान का घर सुख-समृद्धि और धन-धान्य से भर गया इसी कारण धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है ।


The festival of Dhanteras is celebrated with great reverence on the Trayodashi of Krishna Paksha of Kartik month.

According to a legend – once upon a time Lord Vishnu went out to visit the earth. Then Mata Lakshmi also requested to accompany him. Lord Vishnu said that - Goddess, if you go to earth and do as I say, then you can walk with me. Mata Lakshmi said - Well lord, I will do as you say. Then Lord Vishnu and Mother Lakshmi came and started traveling on the earth. After some time Lord Vishnu told Mother Lakshmi that – Goddess, you just stay here. You don't go anywhere from here until I come. Mata Lakshmi said - Alright, lord you go. Lord Vishnu walked towards the south. A sudden thought came in the mind of Goddess Lakshmi that - why did Lord Vishnu not take me with him. Why did he ask me to stay here? Her mind did not obey and she followed Lord Vishnu. Mata Lakshmi saw that there are beautiful flowers in a mustard field at one place. Seeing those flowers, the mind of the mother was attracted and she plucked the flowers and did her makeup. After that they went ahead. Later, Mata Lakshmi saw a sugarcane field. Then Mata Lakshmi plucked the sugarcane and started sucking them.

While doing this Lord Vishnu saw Goddess Lakshmi and got angry on her. Lord Vishnu got angry and said that - Goddess, you have come here after me even after my refusal. And you have committed the punishable offense of theft in the farmer's fields. I curse you that you will suffer your crime by staying in this farmer's house for 12 years. Saying this Lord Vishnu went to Baikunth Lok. Mata Lakshmi stayed in the same farmer's house. The farmer was very poor. One day Mata Lakshmi told the farmer's wife that first you should wash your bath and worship this clay idol made by me. Then go and cook the kitchen later. By doing this you will get what you want. The farmer's wife did the same. Due to the grace of Lakshmi ji, the farmer's house became full of food and money in a few days. Those 12 years of farmer were spent very happily. Lord Vishnu came after 12 years to take Lakshmi Mata. The farmer started stopping Mata Lakshmi from going. Then Lord Vishnu said that - this is fickle, who can stop them? It does not stay in one place anywhere. This was my curse to him who was staying in your house for 12 years. Now their curse period is over. So now it is going. But the farmer was stopping Mata Lakshmi from going again and again and was requesting her graciously.

Mata Lakshmi took pity on the farmer and where - well, if you want to stop me, then do as I say. Tomorrow is Dhanteras. Tomorrow clean the house thoroughly by leaps and bounds. Lighting a lamp of ghee in the night and worshiping me in the evening. Keep money in a copper urn. I will reside in that Kalash. But when you worship me, then I will not be visible to you. With this one day worship done by you, I will live in your house for a whole year. Saying this Maa Lakshmi and Lord Vishnu spread in all four directions with the light of the lamp. The next day, on the day of Dhanteras, the farmer worshiped according to the instructions of Mata Lakshmi. The farmer's house was filled with happiness, prosperity and wealth, that is why Lakshmi is worshiped on the day of Dhanteras.