पीपलीचट्टी नाम का एक गांव था । जो जगन्नाथपुरी के पास पड़ता था । उस गांव में रघु नाम का एक व्यक्ति रहता था । वह जाति का धीवर था । उसके घर में उसकी पत्नी और एक बूढ़ी मां थी । रघु मछलियां पकड़ कर और उन्हें बेचकर अपने परिवार का पालन पोषण करता था । रघु एक बहुत ही दयालु किस्म का व्यक्ति था । वह बचपन से ही भगवान की भक्ति में और भगवान में बहुत ही विश्वास रखता था । जब वह मछलियां पकड़ने जाता था और मछलियां जाल में आकर तड़पने लगती थी तो वह उन मछलियों को देखकर बहुत ही व्याकुल हो जाता था । लेकिन अपने परिवार के भरण-पोषण के खातिर उसे उन मछलियों को पकड़कर बाजार में मजबूरन बेचना पड़ता था । वह इस काम से खुश नहीं था । रघु ने एक गुरु जी से गुरुमंत्र लिया । वह अब नित्य स्नान करके सबसे पहले अपने भगवान के नाम का जाप करता था , बाद में अपने काम पर जाता था । जब भी कभी उसे मौका मिलता तो वह सत्संग और कीर्तन में जाया करता था । सत्संग में जब गुरु जी कहते कि प्राणी मात्र में भगवान है और हमें किसी भी प्राणी या जीव पर हिंसा नहीं करनी चाहिए ,तो उसे इन सब बातों को सुनकर उसका मन धीरे-धीरे शुद्ध हो चुका था और उसे जीव हिंसा से घृणा हो गई थी । एक दिन उसने निश्चय किया कि आज वह मछली पकड़ने नहीं जाएगा । और उसने मछली पकड़ना बंद कर दिया । घर में जो भी राशन था वह धीरे-धीरे समाप्त होने लगा । एक दिन ऐसा आया कि उसके घर में कुछ भी नहीं बचा था । उस दिन उसकी पत्नी और उसकी मां भूखी थी । वह दोनों उसे भला बुरा कहने लगी । अंत में अपनी पत्नी और अपनी मां की बातों से परेशान होकर उसने मछली पकड़ने का निर्णय लिया । और वह मछली पकड़ने तालाब पर गया । भगवान को हाथ जोड़कर जैसे ही उसने जाल तालाब में डाला । उसके जाल में एक बहुत बड़ी मछली आकर फंसी । जब उसने वह जाल बाहर निकाला तो मछली बाहर आकर तड़पने लगी । उसे अपने गुरु की कही हुई बात याद आने लगी और उसे मछली में भगवान प्रतीत होने लगे । लेकिन साथ ही साथ उसे अपनी पत्नी और अपने माता के भूखे होने का भी ख्याल मन में आया । उसने हाथ जोड़कर उस मछली से कहा कि आप जो भी हो , मुझे क्षमा करना । लेकिन मेरे पास मछली पकड़ने के अलावा और कोई भी जीवन यापन का सहारा नहीं है । इसलिए मैं आप को मारने पर मजबूर हूं । उसने दोनों हाथ से जैसे ही मछली के मुंह को पकड़ा और फाड़ने लगा , तभी उस मछली में से आवाज आई कि – नारायण मेरी रक्षा करो , नारायण मेरी रक्षा करो । मछली में से आई आवाज को सुनकर रघु आश्चर्य चकित हो गया और वह उस मछली को लेकर वन की ओर भागा । वहां वन में उसे एक पानी का बड़ा सा कुंड दिखाई दिया । उसने मछली को उस कुंड में डाल दिया । वह अपने परिवार की भूख भूल गया और साथ ही उसे याद ही नहीं रहा कि वे दोनों उसकी प्रतीक्षा कर रही होंगी । वह उस मछली को देखकर बोला कि – हे भगवन ! आपने मुझे इस मछली के अंदर से अपना स्वर सुनाया है । आपका स्वर इतना मीठा है , तो आप की छवि कितनी सुंदर होगी । हे भगवान मुझे दर्शन दीजिए । ये कहता हुआ वहीं बैठकर नारायण नाम का जप करने लगा । जप करते हुए उसे कई दिन हो गए । उसे अपनी भूख और प्यास का भी बिल्कुल ध्यान नहीं रहा । उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप बनाया और उसके पास आए और बोले कि – तू कौन है और यहां पर क्यों बैठा है । रघु का ध्यान टूटा और उसने देखा कि उसके सामने एक ब्राह्मण देव खड़े हैं । उसने ब्राह्मण को प्रणाम किया और कहा कि – कृपया आप मेरे ध्यान में विघ्न ना डालें । मैं भगवान नारायण का नाम जप रहा हूं । कृपया करके आप यहां से चले जाइए । मैं आपसे कुछ भी बात नहीं करना चाहता । तब ब्राह्मण बोले कि – अरे तपस्वी , तू क्यों मूर्ख बन गया है । क्या कभी कोई मछली भी बोल सकती है । तब रघु उनके मुख से मछली वाली बात सुनकर चौंक गया और सोचा कि ये तो साक्षात प्रभु ही हैं । जो मेरी इस मछली वाली बात को जानते हैं । तब उसने उनके चरण पकड़ लिए और कहा कि – हे प्रभु मैं बहुत पापी हूं, मैं जीवो की हत्या करता हूं । आप मेरी परीक्षा लेने यहां पर आए हैं । प्रभु कृपया मुझे दर्शन दीजिए । उसकी पुकार को सुनकर भगवन साक्षात चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गए । और उसे वरदान मांगने को कहा । रघु बोला कि प्रभु मुझे आपके दर्शन हो गए और मुझे कुछ नहीं चाहिए । बस अपनी भक्ति का आशीर्वाद दीजिए । भगवान ने उसे अपनी भक्ति का आशीर्वाद दिया । तब रघु बोला कि हे प्रभु मैं जाति से धीवर हूं । मछली पकड़ने का काम करता हूं और यह हमारा पैतृक व्यवसाय है । मैं अपने इस व्यवसाय को छोड़ना चाहता हूं । मैं आपकी भक्ति में लीन रहना चाहता हूं । आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि जब मुझे मृत्यु आए , तब भी मैं आपका नाम लेता रहूं। भगवान ने उसे तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए । रघु भगवान हरि का नाम जपता जपता अपने घर आया । गांव के लोगों ने उसे देखते ही भला बुरा कहना शुरू कर दिया कि अपनी पत्नी और अपनी माता को भूखी छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया था । वो तो गांव के लोगों ने उनके घर पर भोजन पहुंचाया और उनकी मदद की । रघु ने मन ही मन भगवान का धन्यवाद किया कि भगवान तूने उसकी अनुपस्थिति में उसके घर उसकी मां और उसकी पत्नी का भरण पोषण किया । अब वह भगवान का नाम जपता जपता गांव में ही भिक्षा मांगता था । उस भिक्षा से उनके घर का गुजारा चल जाता था । पहले वे सब भगवान का भोग लगाते और बाद में प्रसाद स्वरूप उस भोजन को ग्रहण करते थे । रघु पूरी तरह से बदल चुका था । वह भगवान के नाम में हर समय लीन रहता था । वह पूरी तरह से साधु बन गया था । यह सब देखकर उसकी पत्नी और माता भी बहुत खुश थी । भगवान का नाम लेते लेते कई घंटों तक उसकी समाधि लग जाती थी । किसी के प्रति उसके मन में राग और द्वेष ही नहीं था । वह भगवान का नाम लेकर गली-गली घूमता था । गांव के कुछ शैतान लड़के उसका मजाक उड़ाते थे । कुछ तो इतने दुष्ट थे कि उसे गालियां देते और उस पर मिट्टी के ढेले फेंकते थे । लेकिन रघु किसी को कुछ नहीं कहता था । रघु पर गालियों का और मार का कुछ भी असर नहीं पड़ता था । उसके मन से क्रोध ,लोभ ,मोह सब बाहर निकल चुके थे । वह सिर्फ भगवान का नाम जपा करता था । यह सब देखकर उन लड़कों की हिम्मत बहुत ही बढ़ गई थी। जब भी रघु गांव में भिक्षा मांगने जाता था , तो लड़के उसके पीछे-पीछे चलते थे और उसकी हंसी उड़ाते थें । गांव वाले उन लड़कों को रोकते थे परंतु वे लड़के नहीं मानते थे । एक दिन रघु गांव में भिक्षा मांगने जा रहा था तभी एक लड़के ने कांटों वाला डंडा रघु की पीठ पर मारा । जिससे रघु का शरीर लहूलुहान हो गया । रघु ने उसे कुछ नहीं कहा और चुपचाप चलता रहा । लेकिन वह लड़का तब भी नहीं माना । और रघु को फिर से डंडा मारा । रघु ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने घर चला गया । इतने में ही भगवान की भगवती शक्ति ने अपना चमत्कार दिखाया और वह लड़का बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा । गांव के लोगों ने जब लड़के को बेहोश देखा , तो सब इकट्ठा होकर उसके पास गए और उसे उठाने लगे । लेकिन लड़का मर चुका था । उसके घर से उसके मां-बाप को बुलाया गया । उसके मां-बाप रोते-रोते पहुंचे। गांव के लोगों ने सोचा कि इस लड़के ने रघु जैसे भक्त पर प्रहार किया था । इसी कारण भगवान ने इसके प्राण हर लिए । तब लोगों ने सोचा कि हमें रघु के घर जाकर माफी मांगनी चाहिए , हो सकता है कि भगवान इसे ठीक कर दे। वे सब रघु के घर गए । रघु के घर जाकर मां-बाप दोनों रोने लगे और कहने लगे कि भक्त रघु , मेरे बेटे को क्षमा कर दो । हमारा तो ये ही एकमात्र सहारा है । हम जानते हैं कि हमारा बेटा बहुत ही दुष्ट है और उसने तुम्हें मारा था । पर हम हाथ जोड़ कर तुमसे क्षमा मांगते हैं है कि मेरे बेटे को जीवित कर दो । यदि तुम इसे क्षमा कर दोगे तो भगवान इसे जीवित कर देंगे । यह कहकर उस लड़के के माता-पिता ने रघु के पैर पकड़ लिए । रघु ने कहा आप ये क्या कर रहे हो। मैं तो बहुत ही अधम हूं । आप मेरे पैरों को हाथ मत लगाइए । मुझे तो पता भी नहीं कि ये लड़का मर गया है । जब ये मुझे मार रहा था तो मेरे मन में कभी भी ये नहीं आया कि यह लड़का मर जाए । यदि यह लड़का मर गया तो जरूर इसमें मेरा ही दोष है । मैं ही बहुत बड़ा पापी हूं । अब इस पाप से मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी । इस लड़के के कारण मुझे जो भी दुख प्राप्त हुआ है , वह जरूर मुझे मेरे किसी पूर्व जन्म के पाप का ही फल था । यह तो बस इसका निमित्त मात्र बन रहा था । हे प्रभु , यदि मेरे मन में इस लड़के के प्रति कोई द्वेष या कोई भी क्रोध नहीं था, तो कृपा करके इस लड़के को जीवित कर दे । और मेरे माथे से इसकी मृत्यु का कलंक हटा दें । वह भगवान के सामने हाथ जोड़ कर रोने लगा और उनसे प्रार्थना करने लगा । उसने वहां पर खड़े सभी लोगों से भगवान का नाम लेने के लिए कहा । सभी लोग भगवान हरि का नाम जपने लगे । तभी थोड़ी देर में चमत्कार हुआ वह लड़का जीवित उठ बैठा । उस लड़के को जीवित देखकर उसके माता-पिता खुश हो गए । उस लड़के का मन पूरी तरह से बदल चुका था । वह भी भगवान का नाम जप रहा था और उसने रघु से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी । सभी लोग रघु को बार-बार हाथ जोड़कर प्रणाम करने लगे । और अपने अपने घर चले गए । रघु के इस कार्य से अब दूर-दूर गांव तक उसकी प्रसिद्धि फैलने लगी थी । उसके घर में लोगों की भीड़ बढ़ने लगी थी । सब अपनी कामना पूर्ति के लिए रघु के घर पर आते थे । और उसे हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे । रघु यह सब देख कर डरने लगा था । क्योंकि वह मान प्रतिष्ठा से दूर ही रहना चाहता था । अब उसने अपने घर को छोड़कर वन में रहने का विचार किया और दिन रात भगवान का भजन करने लगा । एक दिन रघु को लगा कि जगन्नाथ जी उससे भोजन मांग रहे हैं । उसने भोजन की सामग्री इकट्ठा की और भोजन बनाया । अपनी कुटिया का द्वार बंद कर लिया और भगवान को भोजन के लिए पुकारा । भक्त की पुकार को सुनकर श्री जगन्नाथ भगवान जी साक्षात आकर रघु के हाथ से भोजन ग्रहण करने लगे । उसी समय श्री जगन्नाथ पुरी में पुजारी ने भगवान जगन्नाथ के लिए छप्पन प्रकार के भोग तैयार करवाए । जगन्नाथपुरी में भगवान जी का भोग मंडप अलग है । उस भोग मंडप में एक दर्पण लगा हुआ है । उस दर्पण में श्री जगन्नाथ पुरी के श्री विग्रह का जो प्रतिबिम्ब दिखाई देता है , उसी प्रतिबिंब को नैवेद्य का भोग लगाया जाता है । सभी प्रकार के भोग तैयार हो जाने पर जब पुजारी जी भोग लगाने लगे , तो देखा कि दर्पण में प्रतिबिंब ही नहीं पड़ रहा है । पुुजारी जी घबरा उठे और राजा के पास गए और बोले कि – राजन आज भोग बनाने में कुछ दोष है , श्री जगन्नाथ जी भोजन ग्रहण नहीं कर रहे हैं । राजा ने जब स्वयं जाकर देखा तो उन्हें भी दर्पण में प्रतिबिंब दिखाई नहीं दिया । राजा हाथ जोड़कर कहने लगे कि – हे प्रभु ! यदि हमसे कोई अपराध हो गया हो तो हमे क्षमा कीजिए । राजा इस प्रकार कहकर भगवान के गरुड़ध्वज के पास आकर भूमि में ही लेट गया । तभी भगवान की लीला से उसे नींद आ गई और उन्होंने स्वपन में देखा कि – श्री जगन्नाथ जी भगवान उसे कह रहे हैं कि राजा तेरा कोई अपराध नहीं है , ना ही तुझ से कोई भूल हुई है । मैं इस समय जगन्नाथपुरी में नहीं हूं ,तो दर्पण में प्रतिबिंब किसका पड़ता । मैं तो जगन्नाथ पुरी से दूर पीपलीचट्टी गांव में अपने भक्त रघु के हाथों से भोजन ग्रहण कर रहा हूं । और वह मुझे जाने ही नहीं दे रहा है । तो तेरा भोजन आकर कैसे स्वीकार करू । यदि तुम मुझे यहां बुलाना चाहते हो, तो मेरे भक्त रघु और उसकी पत्नी और उसकी माता को भी यहां जगन्नाथपुरी में लेकर आओ । और उनके यहां रहने की व्यवस्था करो । यह सुनते ही राजा का स्वपन टूटा और राजा उठ बैठे । वे शीघ्र अति शीघ्र घोड़े से पीपलीचट्टी गांव में गए और वहां जाकर रघु का घर पूछा । सबने उसे एक झोपड़ी दिखाई । राजा ने द्वार खोला तो राजा वहां का दृश्य देखकर स्तब्ध हो गया । राजा ने देखा कि वहां पर रघु है और अपने हाथ से किसी को भोजन करा रहा है । परंतु जिसे वह भोजन करा रहा है वो वहां पर दिखाई नहीं दिया । यह तो प्रभु की लीला थी क्योंकि जगन्नाथ जी सिर्फ रघु को दिख रहे थे । इतने में ही भगवान जगन्नाथ वहां से अंतर्ध्यान हो गए । रघु ने जब देखा कि भगवान वहां से चले गए हैं , तो रघु बहुत ही विचलित हो गया । और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा । राजा ने उसे उठाया और उसका सिर अपनी गोद में रखा । रघु जब होश में आया तो देखा कि वह राजा की गोद में लेटा हुआ है । रघु ने उठकर राजा को प्रणाम किया । लेकिन राजा ने स्वयं ही रघु को प्रणाम किया । और अपने सपने की सारी बात बताई । प्रभु की आज्ञा मानकर रघु अपने परिवार के सहित जगन्नाथ पुरी में जाकर रहने को तैयार हो गया । राजा उन सब को वहां पर ले आए । रघु के जगन्नाथ पुरी में आते ही भोग मंडप के दर्पण में श्री जगन्नाथ जी का प्रतिबिंब दिखाई देने लगा । जगन्नाथ जी के मंदिर के दक्षिण की ओर रघु के परिवार की रहने की व्यवस्था की गई । और रघु खुशी खुशी वहीं पर रहने लगा ।
There was a village named Piplichatti. Which used to fall near Jagannathpuri. A person named Raghu lived in that village. He was a fisherman of the caste. He had his wife and an old mother in his house. Raghu used to feed his family by catching fish and selling them. Raghu was a very kind person. He believed a lot in the devotion of God and in God since childhood. When he used to go fishing and the fish started suffering in the net, he used to get very upset seeing those fish. But for the maintenance of his family, he was forced to catch those fish and sell them in the market. He was not happy with this work. Raghu took a gurumantra from a guru. He now used to take bath regularly and first chanted the name of his Lord, then went to his work. Whenever he got a chance, he used to go to satsang and kirtan. In the satsang, when Guru ji said that there is only God in the creature and we should not do violence to any creature or creature, then after listening to all these things, his mind was gradually purified and he became disgusted with the violence of the creature. . One day he decided that he would not go fishing today. And he stopped fishing. Whatever ration was in the house, it gradually started running out. One day it came that there was nothing left in his house. His wife and his mother were hungry that day. She both started calling him good and bad. In the end, upset by the words of his wife and his mother, he decided to go fishing. And he went to the fishing pond. As soon as he put the net in the pond with folded hands to God. A huge fish got trapped in his net. When he took out that net, the fish came out and started suffering. He began to remember what his guru had said and began to see God in the fish. But at the same time he also thought about his wife and his mother being hungry. With folded hands, he told the fish that whatever you are, forgive me. But I have no other means of subsistence other than fishing. That's why I am compelled to kill you. As soon as he grabbed the mouth of the fish with both hands and started tearing it, then a voice came from that fish that - Narayan protect me, Narayan protect me. Raghu was surprised to hear the sound from the fish and ran towards the forest with that fish. There he saw a big pool of water in the forest. He put the fish in that pool. He forgot the hunger of his family and at the same time he could not remember that both of them would be waiting for him. Seeing that fish, he said - O God! You have told me your voice from inside this fish. Your voice is so sweet, so how beautiful will your image be. Oh god give me darshan. While saying this, sitting there started chanting the name of Narayan. He had been chanting for many days. He didn't even care about his hunger and thirst. Pleased with his devotion, the Lord took the form of an old Brahmin and came to him and said – Who are you and why are you sitting here. Raghu lost his attention and saw a Brahmin god standing in front of him. He bowed down to the Brahmin and said – Please do not disturb my meditation. I am chanting the name of Lord Narayana. Please do get out of here. I don't want to talk to you about anything. Then the brahmin said - Oh ascetic, why have you become a fool. Can a fish ever speak? Then Raghu was shocked to hear the fish talk from his mouth and thought that he is the real GOD. Who knows this fish thing of mine. Then he caught hold of their feet and said - Oh Lord, I am very sinner, I kill living beings. You have come here to test me. Lord please give me darshan. Hearing his call, the Lord appeared in the form of a quadrilateral. And asked him to ask for a boon. Raghu said that Lord I have seen you and I do not want anything. Just bless your devotion. God blessed him with his devotion. Then Raghu said that O Lord, I am a fisherman by caste. I do fishing and this is our ancestral business. I want to leave this business of mine. I want to be absorbed in your devotion. You bless me that even when I die, I can keep taking your name. The Lord called him Taastu and became intrigued. Raghu came to his house chanting the name of Lord Hari. On seeing him, the people of the village started saying good and bad that they did not know where they had gone leaving their wife and their mother hungry. The people of the village brought food to his house and helped him. Raghu thanked God in his heart that Lord You took care of his mother and his wife at his house in his absence. Now he used to beg for alms in the village itself, chanting the name of God. That alms used to support his household. First they all used to offer God's Bhog and later they used to take that food as prasad. Raghu had completely changed. He was always absorbed in the name of the Lord. He had become a complete monk. Seeing all this his wife and mother were also very happy. Taking the name of God, his samadhi used to take place for many hours. There was no anger or animosity in his heart towards anyone. He used to roam from street to street in the name of God. Some devil boys of the village used to make fun of him. Some were so wicked that they used to abuse him and throw lumps of mud at him. But Raghu did not say anything to anyone. abusing Raghu And hitting had no effect. Anger, greed and attachment had all gone out of his mind. He used to chant only the name of God. Seeing all this, the courage of those boys was greatly increased. Whenever Raghu went to the village to beg for alms, the boys used to follow him and make fun of him. Villagers used to stop those boys but they did not believe in boys. One day Raghu was going to the village to beg for alms when a boy hit Raghu with a thorn stick on his back. Due to which Raghu's body became bloody. Raghu didn't say anything to her and kept on walking silently. But the boy still did not agree. And beat Raghu with a stick again. Raghu did not look back and went to his house. Just then, the divine power of God showed its miracle and the boy fainted and fell on the ground. When the people of the village saw the boy unconscious, everyone gathered and went to him and started lifting him. But the boy was dead. His parents were called from his house. His parents came crying. The people of the village thought that this boy had attacked a devotee like Raghu. That's why God took his life. Then people thought that we should go to Raghu's house and apologize, maybe God will fix it. They all went to Raghu's house. Going to Raghu's house, both the parents started crying and said that devotee Raghu, forgive my son. This is our only help. We know that our son is very wicked and he killed you. But with folded hands, we beg your forgiveness to bring my son alive. If you forgive it, God will bring it to life. Saying this the boy's parents held Raghu's feet. Raghu said what are you doing. I am very poor. Don't you touch my feet. I don't even know that this boy is dead. When he was beating me, it never came to my mind that this boy should die. If this boy dies, it is definitely my fault. I am a great sinner. Now how can I get rid of this sin? Whatever misery I have received because of this boy, was definitely the result of my sin in some previous birth. It was just being made just for the sake of it. Oh Lord, if I had no animosity or any anger towards this boy, then please bring this boy to life. And remove the stigma of its death from my forehead. He started weeping with folded hands in front of God and started praying to him. He asked all the people standing there to take the name of the Lord. Everyone started chanting the name of Lord Hari. Then a miracle happened in a short while that boy got up alive. Seeing the boy alive, his parents were happy. The boy's mind had completely changed. He was also chanting the name of the Lord and asked Raghu for his transgression. Everyone started bowing to Raghu with folded hands again and again. and went to their respective homes. Due to this work of Raghu, now his fame started spreading to far and wide villages. The crowd of people started increasing in his house. Everyone used to come to Raghu's house to fulfill their wishes. and bowed to him with folded hands. Raghu was scared seeing all this. Because he wanted to stay away from prestige. Now he thought of leaving his home and living in the forest and started worshiping God day and night. One day Raghu felt that Jagannath ji was asking him for food. He gathered the food ingredients and prepared the food. He closed the door of his hut and called God for food. Hearing the call of the devotee, Shri Jagannath Bhagwan ji came directly and started taking food from Raghu's hand. At the same time the priest at Shri Jagannath Puri prepared fifty-six types of bhog for Lord Jagannath. The Bhoga Mandap of Lord ji in Jagannathpuri is different. There is a mirror in that Bhoga Mandap. The image of Shri Deity of Shri Jagannath Puri is seen in that mirror, the same image is offered as Naivedya. When all kinds of bhog were ready, when the priest started offering bhog, he saw that there is no reflection in the mirror. Pujari ji got nervous and went to the king and said – Rajan, there is some fault in making bhog today, Shri Jagannath ji is not taking food. When the king himself went and saw, he also did not see the reflection in the mirror. The king started saying with folded hands that - O Lord! Forgive us if we have committed any crime. Saying this, the king came to the Garudadhwaj of God and lay down on the ground. Then he fell asleep due to the leela of God and he saw in the dream that – Shri Jagannath ji God is telling him that the king is not your crime, nor you have made any mistake. I am not in Jagannathpuri at this time, so whose reflection in the mirror would have been? I am taking food from the hands of my devotee Raghu in Piplichatti village, far away from Jagannath Puri. And he is not letting me go. So how can I come and accept your food? If you want to invite me here, then bring my devotee Raghu and his wife and his mother also here to Jagannathapuri. And make arrangements for their stay. Hearing this, the king's dream broke and the king got up. Very soon he went to Piplichatti village by horse and went there and asked Raghu's house. Everyone showed him a hut. When the king opened the door, the king was shocked to see the scene there. The king saw that Raghu is there and is feeding someone with his hand. But the one whom he is feeding did not appear there. It was Lord's Leela because the world Nannath ji was seeing only Raghu. In the meantime, Lord Jagannath disappeared from there. When Raghu saw that the Lord had left from there, Raghu was very distraught. And fainted and fell on the ground. The king picked him up and placed his head in his lap. When Raghu regained consciousness, he saw that he was lying on the king's lap. Raghu got up and bowed to the king. But the king himself bowed to Raghu. And told everything about his dream. Following the orders of the Lord, Raghu agreed to go to Jagannath Puri along with his family. The king brought them all over there. As soon as Raghu came to Jagannath Puri, the reflection of Shri Jagannath ji started appearing in the mirror of Bhoga Mandap. Arrangements were made for Raghu's family to stay on the south side of Jagannath's temple. And Raghu happily started living there.