बलिदान। माँ बेटे की प्रेरणादायक कहानी।
अमित 10-12 साल का लड़का था । स्कूल से आते ही उसने अपने बैग को फेंका और अपनी मां से झगड़ने लगा । तुम मेरे स्कूल में क्यों आई .... मैंने तुम्हें कितनी बार मना किया है कि मेरे स्कूल में मत आया करो । मां ने कहा – बेटा , तुम्हारे लंच बॉक्स में चटनी रखना भूल गई थी और तुम टिफिन लेकर स्कूल चले गए थे । लेकिन तुम इतना नहीं जानती कि तुम काणी हो , तुम्हारे पास एक ही आंख है । तुम्हारे जाने के बाद सब मुझसे कहने लगे कि – तुम्हारी मां तो काणी है । सब हंस रहे थे और मेरा मजाक उड़ा रहे थे । मां बोली – कोई बात नहीं बेटा तुम स्कूल से आए हों , तो तुम्हे भूख लग रही होगी ...... चलो खाना खा लो । बेटा बोला – नहीं , मैं आज खाना नहीं खाऊंगा । तब मां बोली कि ठीक है बेटा , मैं दोबारा तुम्हारे स्कूल में नहीं आऊंगी । पर तुम खाना तो खा लो । बेटा नहीं माना और कहने लगा तुम काणी हो , तुम काणी हो । मां इस जहर को शक्कर की तरह पी गई और अपने बेटे से प्रेम करने लगी । उस घटना के बाद मां दोबारा स्कूल में नहीं गई और उसने मेहनत करके अपने बेटे को पढ़ाया । बेटा स्कूल में प्रथम आया । स्कूल वालों ने उसके सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया । लड़का तैयार हो गया और स्कूल के लिए निकलने लगा । मां ने पूछा कि बेटा मैं आऊं या नहीं । लड़के ने कहा तुम काणी हो ,यह कहकर चला गया । बेटे के मुंह से यह शब्द सुनते ही मां का कलेजा फटने को आ गया , लेकिन उस बुद्धिमान युवक को अपनी मां का दर्द दिखाई नहीं दिया । परंतु मां से रहा नहीं गया और वह उसके स्कूल में चली गई । परंतु स्कूल में सबसे आखिर में जाकर खड़ी हो गई ताकि किसी को भी पता ना चले । अपने बेटे का सम्मान देखकर वह बहुत खुश हो रही थी और उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे । कार्यक्रम के समाप्त होने पर वह जल्दी से घर आ गई । जब उसका बेटा घर आया तो वह अपने बेटे से बताने लगी कि – बेटा , मैं तेरे स्कूल में आई थी , तुम्हारा सम्मान देखने ...... लेकिन अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी , कि तभी बेटा जोर से उस पर चिल्लाया ....... लड़के को अपनी मां की ममता नजर नहीं आई । बुद्धि को ममता नजर नहीं आती , क्योंकि उसे बाहर का विषय समझ आता है । उसे अपने मां के दिल की बात सुनाई नहीं दी । वह बोला – काणी तुम्हें समझ नहीं आता , तुम मेरे स्कूल में क्यों आई । उसकी मां चुपचाप यह सब सुनती रही । समय बीता और लड़के की शादी हो गई । तब उसकी पत्नी ने कहा कि अड़ोस पड़ोस के सब मुझे कहते हैं कि तुम्हारी सास तो काणी है और मुझे काणी सास की बहु कहकर चिढ़ाते हैं , मुझसे अब यह सहन नहीं होता । एक दिन लड़के ने अपनी मां से कहा कि – हम तुम्हारे साथ नहीं रह सकते इसलिए हम शहर जा रहे हैं और वही जाकर रहेंगे । जन्म देने वाली , लोगों के झूठे बर्तन मांजने वाली , खुद के गहने बेचकर पढ़ाने वाली मां को अकेला छोड़कर दोनों पति-पत्नी शहर चले जाते हैं । कई वर्ष बीत जाने के बाद एक दिन मां की तबीयत खराब हो जाती है । तब मां सोचती है कि क्या पता मैं कब मर जाऊं ..... लेकिन सब कहते हैं कि मेरी परी जैसी पोती है और राजकुमार जैसा पोता है । यह सुनकर मुझे मेरे पोता पोती देखने की इच्छा हो रही है । तभी उसे बेटे और बहू का दिल चीर कर रखने वाला शब्द याद आया कि तुम काणी हो और वह रुक गई । मां ने तीन-चार दिन बड़ी बेसब्री से निकाले , पर उससे रहा नहीं गया और वह अपने पोता पोती को देखने शहर के लिए निकल पड़ी । अपने पोता पोती को खेलते देखा , उन्हें गोद में उठाने के लिए दौड़ पड़ी, तभी उसकी बहू ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा कि – इन्हें हाथ मत लगाना तभी उसका बेटा भी बाहर आ गया और बोला कि – काणी , यहां क्यों आई हो , चली जाओ यहां से । सुनाने का काम दिमाग करता है , बुद्धि करती है लेकिन किसी के द्वारा कहे गए कड़वें वचनों को सुनने का काम प्रेम करता है , हृदय करता है । मां अपने आंसुओं को जैसे तैसे रोककर वापस अपने गांव आ गई । कुछ दिनों के बाद गांव के मुखिया ने उसके लड़के को फोन करके कहा कि – तुम्हारी मां कुछ ही दिनों की मेहमान है । वह लड़का मुखिया की शर्म के कारण अपनी मां से मिलने के लिए शहर से चल पड़ा । परंतु अपने मन ही मन में कह रहा था कि – अच्छा हो , काणी मर जाए । परंतु जब लड़का गांव में पहुंचा तो उसके मुखिया और पड़ोसियों ने कहा कि – तुम्हारी मां तो कल रात ही गुजर गई थी । फिर हमने दोपहर के 12:00 बजे तक तुम्हारा इंतजार किया और तुम्हारे ना आने पर हमने स्वयं ही उसका दाह संस्कार कर दिया । वह अपने आखिरी पलों में तुम्हें ही याद कर रही थी , यह कहते हुए पड़ोसी ने उसे एक लिफाफा दिया । लड़का जब अपने घर आया तो उसकी पत्नी ने पूछा कि – क्या हुआ ? तब लड़के ने कहा कि काणी मर गई । पत्नी ने उसे चाय पिलाई । लड़के ने चाय पीते – पीते उस लिफाफे को खोला , जो उसे उसके पड़ोसी ने दिया था । उसके अंदर एक कागज था वह उस कागज को पढ़ने लगा । उसमें लिखा था कि – बेटा ,अब मुझे लगता है कि मेरा समय आ गया है । इसलिए अब मैं तुम्हें यह बात बताना चाहती हूं कि जब तू छोटा था तो एक एक्सीडेंट में तेरी एक आंख चली गई थी । मैं तुझे एक आंख का नहीं देख सकती थी । तेरे पिता ने तेरी आंख को वापस दिलवाने के लिए अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी थी , पर वे तेरी एक आंख नहीं दिला सके । तेरे सारे दोस्त तुझे काणा काणा कहकर चिढ़ाते थे । मैं तुझे इस प्रकार नहीं देख सकती थी । इसलिए मैंने अपनी एक आंख तुझे दे दी और तेरी दूसरी आंख देख कर मेरी एक आंख में खुशी के आंसू आते थे । जाओ खुश रह , मेरे बच्चे । यह पढ़ते ही उसके हाथ से चाय का कप नीचे गिर गया और वह जोर से चिल्लाया – मां... मां.... मां और जोर जोर से रोने लगा .... रोते हुए बोला – तुम मेरे लिए काणी हो गई मां .... तूने मुझे अपनी एक आंख दी..... तूने मुझे यह बात बताई क्यों नहीं .... तू आज तक एक बार भी क्यों नहीं बोली .......मुझे माफ कर दे मां....... परंतु अपने बेटे की यह बात सुनने के लिए अब उसकी मां नहीं रही थी
दोस्तों, दुनिया में सिर्फ मां बाप ही एक ऐसे इंसान है जो आपकी परवाह करते हैं। जिन्हें आपका दुःख देखकर तकलीफ होती है। जो आपकी हर गलती को हंसते हुए माफ कर सकते है। इसलिए कभी भी कड़वे शब्द बोलकर मां बाप का दिल नही दुखाना चाहिए।
पाप नाशनी गंगा , शिव पार्वती संवाद
एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे । पार्वती जी ने देखा कि – हजारों की संख्या में लोग गंगा जी में नहा कर " हर हर गंगे " कहते चले जा रहे हैं । परंतु सभी दुखी और पाप परायण है । तब पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से शिव जी से पूछा – हे प्रभु , गंगा में इतनी बार स्नान करने के बाद भी इनके पाप और दुख का निवारण क्यों नहीं हुआ ? क्या गंगा में सामर्थ्य नहीं रहा ? तब शिवजी ने कहा – पार्वती , गंगा में तो सामर्थ्य है , परंतु लोगों ने पापनाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है , तो इन्हें लाभ कैसे हो । पार्वती जी ने आश्चर्य से कहा कि – स्नान कैसे नहीं किया , सभी तो नहा नहा कर आ रहे हैं , अभी तक तो इनके शरीर भी नहीं सूखे हैं । शिव जी ने कहा – यह केवल जल में डुबकी लगाकर आ रहे हैं , तुम्हें कल इसका रहस्य समझाऊंगा। दूसरे दिन बड़े जोर से बरसात होने लगी । गलियां कीचड़ से भर गई । सड़क के रास्ते में एक गहरा गड्ढा था । उसमे कीचड़ भरा था । शिव जी ने एक वृद्ध व्यक्ति का रूप बनाया और दीन विवश होकर उस गड्ढे में जा गिरे । शिव जी ऐसे उस गढ्ढे में पड़ गए जैसे कोई मनुष्य चलता चलता गड्ढे में गिर पड़ा हो और निकलने की चेष्टा करने पर भी ना निकल पा रहा हो । पार्वती जी को उन्होंने यह समझा कर गड्ढे के पास बिठा दिया कि तुम लोगों को यू सुना सुना कर बार-बार पुकारती रहो , कि मेरे पति अचानक ही चलते चलते गड्ढे में गिर पड़े हैं । कोई पुण्य आत्मा इन्हें निकाल कर इन के प्राण बचाए और मुझ असहाय की सहायता करें । शिव जी ने यह भी समझा दिया कि जब कोई गड्ढे में से मुझे निकालने लगे , तो इतना और कह देना कि – भाई मेरे पति सर्वथा निष्पाप है , इन्हें वही छुए जो स्वयं निष्पाप हो । यदि आप निष्पाप हो तो इन्हें हाथ लगाइए , नहीं तो हाथ लगाते ही आप भस्म हो जाएंगे । पार्वती जी गड्ढे के किनारे बैठ गई और आने जाने वालों को सुना-सुना कर शिवजी की सिखाई बात कहने लगी । गंगा जी में नहा कर लोगों के दल के दल आ रहे थे । सुंदर युवती को यूं बैठे देख कर कईयों के मन में तो पाप आ गया , कई लोग लज्जा से डरे , तो कईयों को धर्म का भय हुआ । कुछ लोगों ने तो पार्वती जी को यह भी सुना दिया कि मरने दे बुड्ढे को , क्यों उसके लिए रोती है । उनमें से कुछ दयालु , सज्जन पुरुष थे । उन्होंने उस वृद्ध को गड्ढे से निकालने के बारे में सोचा । परंतु पार्वती जी के वचन सुनकर वे भी डर गए कि हम गंगा में नहा कर आए हैं तो क्या हुआ ? हम हैं तो पापी ही .... कहीं हम जल कर भस्म ना हो जाए । किसी का भी साहस नहीं हुआ । सैकड़ों आए और चले गए । संध्या हो चली थी । शिवजी ने पूछा – देखो , पार्वती कोई आया क्या , गंगा जी में सच्चे हृदय से नहा कर आने वाला । थोड़ी देर बाद "हर हर गंगे " कहता हुआ एक युवक वहां से निकला । पार्वती जी ने उसे भी वही बात कही । युवक का हृदय करुणा से भर आया । उसने शिवजी को निकालने की तैयारी की । पार्वती जी ने उसे रोककर कहा – यदि तुम निष्पाप हो , तभी मेरे पति को हाथ लगाना , नहीं तो मेरे पति को हाथ लगाते ही जलकर भस्म हो जाओगे । युवक ने उसी समय बिना किसी संकोच के दृढ़ निश्चय से पार्वती जी से कहा – माता , मेरे अभी भी निष्पाप होने में आपको क्यों संदेह होता है । देखती नहीं , मैं अभी गंगा नहा कर आया हूं । भला गंगा मां में गोता लगाने के बाद भी पाप रहते हैं क्या ? मैं अभी तेरे पति को निकालता हूं । उस युवक ने लपक कर शिवजी को बाहर निकाल दिया । तब शिव पार्वती ने उसे अधिकारी समझकर अपने असली रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए । तब शिवजी ने पार्वती जी से कहा कि – इतने हजारों की संख्या में आए युवकों में से बस इस एक युवक ने ही गंगा स्नान किया है । पार्वती, गंगा में स्नान का मतलब शरीर की डुबकी नही बल्कि मन की डुबकी है। मन से गंगा में डुबकी लगाओ और निष्पाप हो जाओ। तभी तो कहते है –
" मन चंगा तो कठौती में गंगा "